1948 में महेश कौल की फिल्म आई थी, गोपीनाथ। फिल्म में रायपुर और बूढ़ा तालाब का जिक्र आता है, स्वाभाविक ही महेश कौल से रायपुर, छत्तीसगढ़ के रिश्ते की खोज-खबर करना चाहा। मुझे कभी मनु नायक जी से हुई बातचीत याद आई, जिसमें उन्होंने बताया था कि वे काफी समय महेश कौल के साथ जुड़े रहे थे। मगर अनुमान हुआ कि महेश कौल से मनु नायक का रिश्ता इतना पुराना तो नहीं होगा। इसलिए मनु नायक जी से आग्रह किया, उनके बंबई दौर की शुरुआत और उस दौर की बातें याद करने का।
मनु नायक का जन्म 11 जुलाई 1937 का है, अब वे 84 वर्ष के हो गए हैं, रायपुर आते-जाते रहते हैं, मगर इन दिनों बंबई में हैं। फोन पर बातें होने लगीं तो मानों स्मृति पटल पर सतरंगी तस्वीरें उभरने लगी। कुछ पूरक शब्द अपनी ओर से जोड़ कर उन्हीं की जुबानी-
मनु नायक जी के साथ मैं कुछ बरस पहले |
1955 में ग्यारहवीं पास किया, उसके बाद 1957 में मैं भी एक्टर बनने ही बंबई गया था। महेश कौल जी की फिल्म का विज्ञापन आया था तो मैंने उन्हें एप्लाई किया था। मगर उनसे मेरी जान पहचान हुई पंडित मुखराम शर्मा की वजह से। लंबी कहानी है। दुर्ग का ड्राइवर था नारायण राव नाम का, एन.आर. मास्टर। लालाराम चन्द्राकर थे एक रईस आदमी, दुर्ग जिला के उन्होंने एक बार मुलाकात कराई थी। मोहन स्टूडियो के मालिक के ड्राइवर थे एन.आर. मास्टर। उसके साथ स्टूडियो में गए, कोई सीन था, उसे हिंदी में कापी करने को था, वहां हिंदी लिखने वाला कोई नहीं था, सब उर्दू वाले थे तो मैंने कहा सर आप मुझे परमिशन देंगे तो मैं एक कापी कर देता हूं अच्छे से। उस समय पढ़ते-लिखते थे तो हैंडराइटिंग भी अच्छी बनती थी। मैं लिख दिया पूरा सीन, दो पेज था, साफ अक्षर में। पंडित मुखराम शर्मा वहां आए थे, किसी से मिलने। उन्होंने देखा तो एकदम खुश हो गए। पूछा, कहां के हो, कौन हो।
इसके बाद मैं एयरपोर्ट घूमने गया, दसेक दिन बाद। और लड़के थे, स्टूडियो में सो जाते थे तो मैं भी वहीं सो जाता था, लड़कों से एन.आर. मास्टर ने मुलाकात करा दी थी। उनलोगों के साथ एयरपोर्ट देखने गया तो देख रहा हूं कि एनाउंसमेंट हो रहा था कि मद्रास की फ्लाइट आ रही है। उस जमाने में इतना रिस्टिक्शन नहीं था। अंदर तक जा सकते थे। मैं चला गया अंदर देखने कि कैसे लैंड होता है। एकदम आगे तक बढ़ गए, जहां सिक्योरिटी वाले होते हैं वहां तक पहुंच गए। देखा कि सब लुंगी वाले मद्रासी आ रहे हैं, पैंट का चलन कम था उस जमाने में। उसके बाद देखता हूं तो पंडित मुखराम शर्मा चले आ रहे हैं। मैंने उनको प्रणाम किया और उसके बाद वे पूछने लगे अरे तुम कहां से आ गए। मैंने कहा, सर एयरपोर्ट देखने आए थे। पूछने लगे, क्या कर रहे हो। मैंने कहा कुछ काम नहीं करता, काम खोज रहा हूं। बोले मेरे आफिस में चले आना कल 4 बजे के बाद, रंजीत स्टूडियो में।
मैं वहां पहुंच गया। मुझे पंडित मुखराम शर्मा ने कौल साहब से मुलाकात कराई और बोला, लड़का अच्छा है, हिंदी में लिख लेता है, सब अच्छे से। रायपुर का है, तो कौल साहब ने तुरंत ओके कर दिया, कहा कि रख लीजिए अच्छा है तो। उन्होंने और मुझे रख लिया अपने साथ। इस तरह से मेरा एप्वाइंटमेंट हो गया तुरंत, फटाफट। 1957 से महेश कौल साहब के साथ था, फिल्म तलाक से ले कर दीवाना तक, तलाक फिल्म हिट हुई थी, जिस दिन मैं ज्वाइन किया उस दिन गाने की रिकार्डिंग थी (रौ में बहते सुनाया)-
बिगुल बज रहा आजादी का, गगन गूजता नारों से
मिला रही है आज हिन्द की, मिट्टी नजर सितारों से
एक बात कहनी है लेकिन, आज देश के प्यारों से
जनता से नेताओं से, फौजों की खड़ी कतारों से
कहानी है इक बात हमें इस, देश के पहरेदारों से
संभल के रहना अपने घर में, छिपे हुए गद्दारों से।
महेश कौल जी ने मुझसे कभी रायपुर की चर्चा नहीं की। वे व्यस्त रहते थे, हमेशा लोगों से घिरे रहते थे। मेरा काम मामूली था, क्लर्क की तरह, उन्होंने जो कहा कर दो, वह कर दिया। एन.सी. सिप्पी से मिलवाया, एक्जीक्यूटिव थे वे कंपनी के। मुझे लगा दिया उनके साथ। आफिस का, स्टूडियो का जो भी काम होता था फिल्म से संबंधित, जो एन. सी. सिप्पी करते थे वह मुझे करना पड़ता था, ऐसा चालू हुआ तो चलता रहा इसी तरह। एन सी सिप्पी को असिस्ट करता था मैं, प्रोडक्शन के काम में उनको हेल्प करना, शूटिंग में भी जाना पड़ता था कई बार। किसी सामान की जरूरत हो तो उसकी पूर्ति करना हमारी ड्यूटी था।
‘कहि देबे संदेश‘ के लिए कौल साहब मना करते रहे कि तुम बरबाद हो जाओगे, मारकेट था नहीं, इसलिए वे मना कर रहे थे, आखिरी दम तक मना किया था उन्होंने। मैं जब बंबई से वापस आया और अपने स्कूल कचहरी के पास राष्ट्रीय विद्यालय में जा कर बताया, उस जमाने में प्रिंसिपल थे रामानंद कन्नौजे, कि वहां मैं महेश कौल के यहां काम कर रहा हूं। तब कन्नौजे सर ने बताया कि कौल साहब उनके क्लास फेलो थे मॉरिस कालेज, नागपुर में।
मुझे पहले पता नहीं था कि रायपुर से उनका कोई ताल्लुक है। पता चला कि पंडित भोलानाथ कौल थे, महेश उनके (दत्तक) लड़के हैं। लोग बताते हैं कि उस जमाने में रायपुर में उनकी भोला फिनाइल फैक्ट्री थी, गुढ़ियारी में। बाबूलाल टाकीज के सामने खादी भंडार था, उसके मालिक राजदान थे, उनलोगों के रिश्तेदार थे भोलानाथ, उस दुकान में मैं भी गया हूं एक बार। शायद यही आधार होगा।
बहरहाल, देखना-सुनना चाहें तो लिंक पर फिल्म गोपीनाथ है। पूरी फिल्म के बजाय बूढ़ा तालाब, रायपुर वाला अंश देखना हो तो वह फिल्म के आरंभ में ही 9.20 वें मिनट से 12.10 वें मिनट पर है।
No comments:
Post a Comment