Friday, September 13, 2024

अनगढ़ एआइ

*जीव के रूप में रति, संतानोत्पत्ति कर प्रतिरूप रचने से आगे बढ़कर पिछली सदी में मानव ने जैव-रासायनिक स्तर पर क्लोन रचना आरंभ की साथ ही मनो-भौतिक दिशा में रोबोट और एआइ गढ़ा, अब यह एआइ खुद अपनी अगली पीढ़ी पैदा कर सकने में सक्षम है।
*भौतिक अस्तित्व में होना आवश्यक, किंतु हम ‘ब्रह्मं सत्यं, जगन्मिथ्या‘ वाले, अब कागज की लेखी का अस्तित्व बेमानी हो रहा है, जब तक वह आभासी में न हो।
*सोशल मीडिया की निरर्थकता पर सीख देने वालों की सोच भी चेतन-अवचेतन में लाइक-कमेंट से तय होने लगती है और पता ही नहीं चलता कि यह नियंत्रण, पूरा बागडोर ही, अनजाने कब हमने एल्गोरिदम, एआई के हाथों सौंप दिया है।

शहर का कैफे। शाम को एक अतिथि के सम्मान में कुछ युवा श्रद्धा-भाव से जमा हैं। अतिथि शहर में पधारे हैं, अगले दिन उन्हें साहित्यिक संगोष्ठी में भाग लेना है और युवाओं के लिए कृपापूर्वक कुछ समय निकाला है। संगोष्ठी आधुनिक और उत्तर-आधुनिक साहित्यिक प्रवृत्तियों, दशा और दिशा, सन्नाटा-शहर में या साहित्य में, जैसे कुछ विषयों पर चर्चा होनी है। अतिथि, युवाओं को बता रहे हैं कि इस बीच वे कितने व्यस्त रहे हैं, यहां आना संभव नहीं हो रहा था, किंतु आग्रह टाल न सके। इस भागदौड़ में अगले दिन के लिए कोई तैयारी नहीं की है, खास कुछ सोच नहीं पाए हैं। फिर युवाओं के लिए प्रश्न उछालते हैं, कि आप युवा बताइए कि आपको वक्तव्य देना हो तो किन मुद्दों और बिंदुओं पर बात करना चाहेंगे। यूं ही इधर-उधर की बातों के बीच एक युवा, जो अब तक अपने मोबाइल पर लगा था, मानों इस बातचीत से उसका कोई लेना-देना नहीं, उसने बिंदुवार सुझाव देना शुरू किया। अतिथि चकित, युवा की बातें लगभग वही थीं, जैसा वे सोच सकते मगर उनके लिए इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात, जब युवा ने कुछ ऐसे बिंदु भी बताए, जिनकी ओर उनका कभी ध्यान नहीं गया था। यह सब सुनते अतिथि संकोच में पड़ गए, जबकि समूह के अधिकतर युवा समझ गए कि यह जीपीटी का मामूली सा खेल है, जो अतिथि को कमाल लग रहा है।

इस साल मार्च अंतिम सप्ताह में खबर आई कि चंडीगढ़ में हाईकोर्ट ने हत्या के केस में जमानत की अर्जी पर फैसले के लिए जीपीटी का इस्तेमाल किया है, एआइ का ऐसा प्रयोग पहली बार है।

इस सदी के आरंभ में प्रकाशित मनोहर श्याम जोशी की पुस्तक ‘21 वीं सदी‘ में एक लेख ‘कम्प्यूटर होगा अगला कवि, ठाट से उपजेंगे सब गान‘ है। कम्प्यूटरजनित चार कविताओं के साथ लिखते हैं ‘मेरे कवि मित्र नाराज होंगे लेकिन कम्प्यूटर को कवि बनाना कथाकार बनाने की अपेक्षा ज्यादा आसान साबित हो रहा है, क्योंकि आधुनिक कविता में थोड़ी-बहुत अनर्गलता चल ही जाती है।‘ ऐसी एक कविता वहां है-
देवदूत-उषा का प्रकाश!
साथ में एक सागर निश्चेष्ट, मौन। 
साथ में सौ-सौ बार लिखते हम।
साथ में एक अवसर कि खोल सकें
एक सधी-बॅंधी लय उसके चेहरे की ओर। 
निःशब्द कक्ष,
निर्जन सागर तट, प्रेम के अवशेष बिखरे हुए। 

लेकिन बात इससे भी पुरानी है, जब फ्रैंक रोजेनब्लाट ने 1957 में इलेक्ट्रानिक उपकरण ‘परसेप्ट्रान‘ बनाया था, जिसने जैविक नियमों की तरह सीख सकने की क्षमता-संभावना दिखाई थी। फ्रेड रेनफेल्ड, शतरंज के खिलाड़ी और इस खेल संबंधी पुस्तकों के लेखक थे। अन्य विविध विषयों पर भी उन्होंने खूब लिखा, कुछ-कुछ हमारे गुणाकर मुले की तरह। उन्होंने ही संभवतः पहली बार अपने लोकप्रिय लेखन से इस वैज्ञानिक उपलब्धि की जानकारी को रोचक ढंग से सामने लाया। ट्रेवर मैकफेड्रिस और सारा डिकाउ का अमरीकी आभासी लोकप्रिय चरित्र मिक्यूला साउसा या लिल मिक्यूला गढ़ा।

साहित्य में घोस्ट राइटिंग से आगे या अलग कुछ हो, तब बात बने। नये कई रचनाकारों को पढ़ते हुए लगता है कि इतना तो उन दिनों की बात हो तो कोई घोस्ट राइटर और अब एआइ लिख सकता है। तो जिस तरह सूचना और संदर्भ-समृद्ध बुद्धिजीवियों के सामने चुनौती है कि वे गूगल से अलग, क्या सोच-बता रहे हैं, वैसे ही आज के रचनाकारों को भी सोचना होगा कि वे एआइ के मुकाबले अलग/बेहतर क्या कुछ कर पा रहे हैं।


एआई के सामने हम मनुष्य आड़े-टेढ़े सवाल पूछकर उसके लिए कठिन चुनौती पेश कर रहे हैं, भटकाना चाहते हैं, छेड़ रहे हैं, उकसा रहे हैं कि वह हमारी तरह मजाकिया अंदाज भी सीख ले, कहीं उसकी भी भावनाएं आहत होने लगें और वह भी अनाप-शनाप पर आ जाए, शायद यही मानव की एआई पर विजय होगी। हम उसे चुहल और शैतानी सिखा कर रहेंगे, जिससे वह हम इंसानों की तरह ‘सच्चा‘ व्यवहार करने लगे और फिर उससे कोई खतरा नहीं रहेगा। वह भी हमारी तरह, हमारे बराबर ‘भरोसेमंद‘ होगा।

प्रसंगवश, जीपीटी-4 विकसित करने के दौरान एआइ को कैप्चा-CAPTCHA, जो मनुष्य और रोबोट का फर्क कर सकने के लिए रखा जाता है, हल करने के लिए कहा गया, उसे किसी इंसान की सेवाएं ले सकने की छूट थी, जीपीटी ने इसका लाभ लेते कैप्चा हल कर लिया। यहां तक तो ठीक था, मगर जब उससे पूछा गया कि उसने खुद कैप्चा हल करने के बजाय अन्य की मदद क्यों ली, क्या वह रोबोट है, तो उसका जवाब था- नहीं, वह विजन इम्पेयर्ड है। यहां आसानी से कहा जा सकता है कि जीपीटी झूठ बोल रहा है, मगर यों तथ्यतः वह रोबोट नहीं है और उसने यह नहीं कहा कि वह कैप्चा नहीं पढ़ सकता, तथ्य बताया कि उसकी ‘दृष्टि-सीमा‘ है। इसलिए उसका यह जवाब सच-झूठ के समक्ष तथ्य के चिंतन का विषय बन जाता है। यह भी ध्यान में आता है कि एआइ का भविष्य और मानव पर एआइ के नियंत्रण की चर्चा बराबर हो रही है। एआइ की नजर इस पर भी होगी ही, तो क्या वह प्रतिपक्ष बनेगा? इसका कोई हल सुझाएगा? क्या मानव उसके सुझाए हल पर अमल करेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसका सुझाया विश्वसनीय लगने वाला हल ‘ईमानदार‘ तो हो, मगर किसी पक्ष के हित-अहित से इतर, सच-झूठ के बीच झिलमिलाता-सा हो और अंततः एआइ के पक्ष में ही हो, जिससे निजात के लिए मानव को फिर एआइ की शरण में जाना पड़े।

मैने एआइ से एआइ पर सात-आठ सौ शब्दों का लेख लिखाना चाहा, दो-तीन अलग-अलग तरह से लिखने का कमांड दिया, जैसा चाहता था, उसके करीब भी नहीं पहुंच पा रहा था, संभव है मेरे कमांड देने में कोई कमी रही हो, वह मुझे हर बार बहुत नीरस-सा, अनावश्यक व्यवस्थित, सुगठित लगा, आप भी प्रयास कर देख सकते हैं फिर मैंने खुद से सवाल किया कि जो चाह रहा हूं, क्या उसके आसपास तक भी कुछ बता-लिख सकता हूं, परिणाम मेरा यह ‘अनगढ़ एआइ‘ है। शब्द-सीमा का कमांड एआइ को दिया था, वह खुद पर लागू न हुआ, इससे संबंधित ढेरों बात मन में हैं, मगर फिलहाल शब्दों में नहीं आ पा रही हैं। बहरहाल, इस प्रयास के परिणाम का मूल्यांकन आप कीजिए।

1 comment:

  1. अकादमिक दायरे , विक्टोरियन शिष्टाचार , गणितीय निष्कर्ष , बंधाये शब्दानुवाद तक ही ए आई की पहुंच होगी । लोक जीवन की व्यंजना , आड़ी तिरछी बतडंडियों पर चलना आसान नहीं ।

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