पीथमपुर पर अश्विनी केशरवानी जी ने कलम चलाई है और यहां सतीश जायसवाल जी की लेखनी का प्रवाह है। सतीश जी कविता-कहानी वाले साहित्य में रमे रहते हैं, लंबे समय तक पत्रकारिता भी की है, अवसर अनुकूल अपनी भूमिका निर्धारित कर लेते हैं। कथा और कथेतर के भेद को जोड़ते-मिटाते अपनी धारणा को साहित्यिक रंग देते, खतरनाक प्रयोग करना उन्हें आनंदित करता है, जो उनके पात्रों के लिए हमेशा सहज नहीं होता। ऐसे ही कुछ विवादित प्रयोग मुक्तिबोध का ‘विपात्र‘ और हबीब तनवीर का नाटक ‘हिरमा की अमर कहानी‘ है। इस शैली में उनके कुछ संतुलित प्रयोग भी हैं, जैसे ‘मछलियों की नींद का समय‘। कहानी के नायक डॉ. शंकर शेष हैं और एक पात्र सतीश (कहानी के लेखक स्वयं) भी।
मेरी दृष्टि में उनका महत्वपूर्ण काम यात्रा-संस्मरण और छत्तीसगढ़ की संस्कृति, कला, इतिहास और परंपरा के विशिष्ट आयाम को बेहद सजग और संवेदनशील देखना-समझना और संजीदगी से अभिव्यक्त-दर्ज करना है। भाट चितेरे, नरसिंहनाथ, बालपुर, जयरामनगर और जनजाति, बस्तर, महानदी जैसे विषयों से जुड़े उनके लेख छत्तीसगढ़ की अस्मिता और गौरव के ऐसे दस्तावेज हैं, जो अन्यथा दुर्लभ हैं। बातचीत के दौरान हां-हूं करते वे अपनी इस खासियत के प्रति रूखे की हद तक उदासीन रहते हैं। आभार कि ऐसी टिप्पणी की छूट, इतना अधिकार उन्होंने मुझे दे रखा है या कहें मैंने ले रखा है।
नवभारत, बिलासपुर में 14-3-93, पृष्ठ -7 पर प्रकाशित रपट, यहां प्रस्तुत-
पीथमपुर मेला: भीड़ कम और धार्मिकता ज्यादा
मान्यता: रोगियों की पीड़ा का हरण
कलेश्वरनाथ की कृपा
(पीथमपुर से सतीश जायसवाल की रपट)
बिलासपुर. महानदी के तट पर भरने वाले शिवरीनारायण के मेले में घटित घटना का जो असर हसदो तट पर भरने वाले पीथमपुर मेले में पड़ना आशंकित था, वैसा ही हुआ। धूलि- पंचमी के दिन, शिव-बारात के उठने के समय, पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष शिव बारात के प्रमुख बाराती नागा-साधुओं की संख्या अधिक थी, लेकिन इस बारात को देखने के लिये दूर-दूर से आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या कम थी और शिव-बारात की व्यवस्था के लिये नियुक्त किये जाने वाले नियमित पुलिस बल के मुकाबले विशेष सशस्त्र बल के सिपाहियों की संख्या अधिक थी, जो किसी भी आशंकित स्थिति के लिये पूरी तरह तैयार थे, लेकिन सौभाग्य से कोई भी अप्रिय स्थिति निर्मित नहीं हुई।
पीथमपुर के पुराने मेले की याद रखने वालों का कहना है कि जिस समय शिव जी का बारात लेकर नागा साधू चलते है, उस समय एक लाख लोगों तक की भीड़ जुड़ जाया करती थी, लेकिन इस वर्ष यह भीड़ २५ से ३० हजार के बीच सिमट कर रह गई। लोगों ने बताया कि शाम होने के साथ-साथ भीड़ यहां जिस हिसाब से बढ़ती है, उस हिसाब से दिया-बत्ती के बाद भी वह भीड़ ४० हजार लोगों को पार नहीं कर पायेगी। बताया गया कि शिवजी की बारात के साथ चलने वाले नागा साधुओं की संख्या पिछले वर्ष १४-१५ से अधिक नहीं थी, लेकिन इस वर्ष ३५-३६ से अधिक साधू शिवजी की बारात के साथ नजर आये। इस वर्ष ये साधू दक्षिण में केरल से लेकर, जूनागढ़ (गुजरात) गोरखपुर तथा वाराणसी (उ.प्र.) अमरकंटक (म.प्र.) और हिमाचल प्रदेश आदि के अखाड़ों से आये। एक शताब्दि से भी अधिक पुराना होने जा रहा यह पारम्परिक मेला, भीड़ के अतिरिक्त भी अपने बिखराव की तरफ दिखाई दे रहा है। शिवजी की बारात के आगे-आगे चलने वाले पटे बाज, तलवार के हुनर दिखाने वाले, रंगे-चंगे नंदी, झांकी के साथ चलने वाले हनुमान, शिव-पार्वती आदि अब नहीं दिखते, लेकिन कुछ नई धार्मिक परम्पराएं स्थापित होती भी दिखाई दीं। चांपा के करीब तपसी बाबा आश्रम से लगभग दो-अढ़ाई सौ कांवड़ियों ने यहां शिवजी को जल अर्पित किया। नई मनोकामना लेकर अथवा पुरानी मनौतियां पूर्ण होने पर, जमीन पर लेटते हुये पीथमपुर पहुंच कर भगवान कलेश्वर नाथ (शिवजी) को नारियल चढ़ाने वाले आस्थावादी भी बढ़ रहे हैं। चांपा से पीथमपुर तक, लगभग ८ किलोमीटर की दूरी, जमीन पर लेटकर नापती हुई पहुंची एक महिला श्याम बाई ने बताया कि उसके पांच वर्षीय नाती को गंभीर खूनी पेचिश थी और उसकी जान बचाने के लिये बिलासपुर के सरकारी अस्पताल में २ बोतल खून मांगा गया। दो बोतल खून के लिये श्याम बाई के पास न तो पैसे थे, न परिचय, लेकिन पता नहीं कहां से एक अपरिचित युवक आया, जिसे श्याम बाई नहीं जानती कि वह मनुष्य था या देवता, दो बोतल खून दे गया। उसके नाती की जान बच गई। श्याम बाई ने तभी मनौती मांगी थी कि जमीन पर लेटते हुये पीथमपुर आयेगी तथा भगवान कलेश्वर नाथ को नारियल चढ़ायेगी।
पुरानी मान्यता है कि भगवान कलेश्वर नाथ की कृपा से पेटदर्द के रोगियों की पीड़ा का हरण होता है इसलिये पेट दर्द से छुटकारा पाने की आस लिये आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ रही है। इन आस्था वादियों में चांपा के एक पत्रकार भी भगवान कलेश्वरनाथ के दर्शन के लिये पहुंचे। पीथमपुर का धार्मिक महत्व अब होली या धूलि पंचमी के दो दिनों में केन्द्रित न होकर, शिवरात्रि से शुरू होने लगा है। लोगों बताया कि पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष पीथमपुर में महाशिवरात्रि पर सर्वाधिक चढ़ाये गये। दरअसल, पीथमपुर का कुल महत्व उसके धार्मिक तथा व्यावसायिक पक्षों में बंटा हुआ है। भगवान कलेश्वर नाथ की अर्चना-पूजा महाशिवरात्रि पर्व से प्रारंभ हो जाती है और वस्तुतः पीथमपुर मेले की धार्मिक शुरूआत महाशिवरात्रि पर्व से ही प्रारंभ होती है, जबकि पारम्परिक मेले की व्यावसायिक शुरूआत होली के दिन से होती है, जब दूर-दूर से यहां पहुंची दुकानों में लेन-देन प्रारंभ होता है।
इस वर्ष मेले की जगह भी बदली गई है। एक सीध वाली लम्बाई में भरने वाला मेला अब चौड़ाई में फैला है और दुकानों की कतारें नदी तट की ओर उतरी है। जिन दुकानदारों ने पहले की तरह, लम्बी सीध से अपना शामियाना लगाया, उनकी दुकानदारी कमजोर रही। पहुंच की दृष्टि से पीथमपुर, जांजगीर, चांपा तथा सारागांव से लगभग बराबर-बराबर दूरी पर है। लगभग ८ किलोमीटर, लेकिन चांपा और सारागांव की तरफ से यहां आने वालों का रास्ता नदी की तरफ से है इसलिये इस वर्ष नदी तट की तरफ वाले दुकानदारों को अधिक ग्राहकों का लाभ मिला।
स्थानीय लोगों ने शिकायत की कि मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम पीथमपुर मेला को फायदे का सौदा नहीं मानता। एक दिन में, न्यूनतम १० हजार से लेकर अधिकतम १ लाख तक यहां पहुंचने वाले दर्शनार्थियों के लिये या तो तांगों का सहारा है अथवा निजी टैक्सियां। गांवों के लोग गाड़ा-गाड़ी से आ जाते है और बकाया के लिये यहां पैदल ही जाना है ... पुलिस सुरक्षा व्यवस्था के साथ साथ दीगर प्रशासनिक व्यवस्था भी इस वर्ष पहले के मुकाबले बेहतर है। एक प्रशासनिक आदेश के जरिये, मेला-अवधि के दौरान, मध्य भारत पेपर मिल को हसदो नदी में जल प्रवाहि करने पर पाबंदी लगा दी गई। हसदो नदी उस तट पर स्थित, मिल द्वारा रसायनिक द्रव युक्त प्रदूषित पानी के नदी में प्रवाहित किये जाने से यहां जल प्रदूषण की शिकायतें आसपास के गावों से की जाने लगी है। अपने सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रम के तहत पेपर मिल ने अपनी ओर से मेले में पेयजल के लिये ‘प्याऊ‘ लगाया है। विभिन्न शालेय तथा विश्वविद्यालयीन परीक्षाओं को ध्यान में रखकर लाउडस्पीकरों के उपयोग पर लगे प्रतिबंध का असर मेले में देखने मिला। लाउडस्पीकर पर बजने वाले फिल्मी गीतों के अभाव में मेला सूना- सूना लगा।
एक जनश्रुति के अनुसार, यहां के स्वयंभू शिव की मूल प्रतिमा जिस तेली हीरा साय के घर घूरे के नीचे से मिली थी, उस परिवार के लोगों को शिव बारात प्रस्थान से पूर्व पूजा का प्रथम अधिकार प्राप्त है तथा उस परिवार के पुरुष सदस्य शिवजी की पालकी उठाकर चलना अपना गौरव मानते हैं। इस परिवार की महिलाएं आज भी यही मानती और बतलाती है कि शिवजी का मूल स्थान उनका घर है, इसलिये उनके घर को शिव गद्दी होने का महत्व है। पत्रकारों के एक दल ने पीथमपुर और आसपास, से मेले में आयी हुई तेली युवतियों की भूरी-हरी आंखों चमत्कारिक सौदर्य को देखा और तथ्यों की पुष्टि की। इस पत्रकार दल ने राष्ट्रीय सेवा योजना की चांपा इकाई के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि इस नृतत्व शास्त्रीय विशिष्टता का प्रारंभिक अध्ययन करें। अनुमान किया जा रहा है कि आगामी वर्षों में, यह विशिष्टता, पीथमपुर के मेले में आने वाले दर्शनार्थियों के लिये आकर्षण का मुख्य केन्द्र होगी।
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