हमर राज्य के छत्तीस ठन गढ़ मन बर कहे जाथे, सिवनाथ नदी के उत्तर म अठारह अउ सिवनाथ नदी के दक्षिण म अठारह। मगर ए छत्तीस गढ़ मन हमर राज्य के बीच के मैदानी भाग म ही आवंय, ए कर अलावा राज्य के उत्तर म सरगुजा राज, जे म कोरिया अउ जशपुर राज भी शामिल हे अउ दक्षिण म बस्तर राज, जे म सुकमा-कोन्टा, बीजापुर-भोपालपट्टनम, नारायणपुर-अबुझमाड़, कांकेर इलाका भी हावय। ए कर अलावा पूर्व अउ पश्चिम म रायगढ़ अउ नांदगांव है। सड़के-सड़क जाए म पाली-कटघोरा से आगू जात म ताराघाट पहुंचे के बाद, भाखा-बोली म साफ फरक पता लगे लगथे। अउ एती बस्तर जात घानी चारामा-कांकेर ले केसकाल के बाद आने राज आ गएन कस अपन मन के जनाथे।
छत्तीसगढ़ राज्य के इतिहास ल देखत म ए बात साफ दिखथे कि हमर आज के छत्तीसगढ़, पहिली समय म भौगोलिक रूप से अलग-अलग रहिस, लेकिन आपस म सांस्कृतिक संबंध रहिस हे। जइसे आज भी राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र म पड़ोसी राज्य मन संग हमर सांस्कृतिक आदान-प्रदान अउ एकता बने हुए हे। कई बार हम खुद अपन दायरा ल सीमित करे बर धरथन, अउ ए कर से अपने राज्य के कला-संस्कृति ह हम ल अनचिन्हार कसन लगे लगथे। जबकि हम सभी एक सनातन परंपरा के अंग अन, जे कर क्षेत्रवार अपन-अपन ढंग से विकास अउ परिवर्तन होए हे। अपन ले थोरको आने भाखा-बोली, खान-पान, रहन-सहन, पहिरावा-ओढ़ावा देख के ओ म हम ल रुचि होथे, ओ कर आकर्षण होथे, लेकिन कई बार हम अपन सोच ल सीमित कर के आने परंपरा के सम्मान करे म हिचक जाथन। जबकि जे ल अपन परंपरा म आस्था हे, प्रेम हे, गर्व हे, ओ कर बर मजबूत हे ते हर आने कला-संस्कृति के भी सम्मान करथे, ओ म रस लेथे।
एक हफ्ता आड़ कर के हर पाख म बिरस्पत के हरिभूमि पेपर के ‘चौपाल‘, जइसे ए कर नांव हे, तइसनहे ए कर पहिचान। ए मंच म छत्तीसगढ़ के चारों मुड़ा रंग-रंग के जानकारी मिल जाथे। कला, संस्कृति, साहित्य, इतिहास-पुरातत्व, ए सब विषय, जे कर से हमर पहिचान बनथे, जे कर बर हम ल गर्व होथे, ते सब पारी-पारी यहां बरगट होत रथे। तिहार आही, त तिहार, अउ जइसनहा मौसम-लगन हे, तइसे सचित्र अउ रोचक जानकारी। चौपाल के अंक मन कतको झन होहीं, जे मन ओ ल अगोरत रथें, जतन के राखथें, अउ समय-समय म फेर-फेर लहुटा के देखत-पढ़त रथें। चैपाल के अंक मन ह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के कोश बनत जात हे, जे ल किसी भी संदर्भ बर देखे जा सकत हे। ए कर सब ले जादा खासियत यही आए कि ए माध्यम से हमर वर्तमान पूरा राज्य के संस्कृति के हर पक्ष ल शामिल किए जाथे। राज्य के संस्कृति-प्रेमी अउ जानकार मन ए कर से प्रेम बनाए रखे हें अउ अपन सहयोग देथें, अउ ए मंच से लेखक-पाठक संबंध मजबूत होथे।
ए बीच म करोना के संकट आए हे। ए हर एक प्रकार के दुकाल आए। हमन इतिहास म बड़े-बड़े महामारी अउ अकाल-दुकाल के सामना करे हन। एहू ह एक प्रकार के फिरे दिन आय, ‘रहिमन चुप हो बैठिए, देख दिनन के फेर‘। ए समय ह धीरज धर के निभाए के आय। एक तरफ ए संकट हे, त दूसर तरफ सरकार, स्वयंसेवी संस्था अउ कतको अइसनहा लोग हें, जे मन अड़चन म परे मन के मदद करत हें। बेमारी से बचाव, इलाज के व्यवस्था किए जात हे। ए ध्यान रखना हे कि ए समय के मार ह सब उपर हे, पूरा दुनिया के हर आदमी किसी न किसी तरह से प्रभावित होए हे। ए समय म पहिली हम ल अपन सुरक्षा, फेर अपन घर-परिवार, पास-परोस के ध्यान रखना जरूरी हे। ए हर अइसनहा बेमारी अउ समय आय कि आने उपर परिही त हमू ल घालिही। ते पा के ए मौका म हम ल अपन साथ-साथ पूरा समाज बर सोचना हे। अउ जे कर से जे बन परय, एक दूसर के मदद करना हे। अइ हमर संस्कृति आय। प्रकृति हर सभ्यता के सामने चुनौती खड़ा करथे अउ परीक्षा लेथे, लेकिन हम अपन धीरज, बुद्धि-विवेक से हर कठिन परिस्थिति के सामना करथन अउ हर संकट के बाद अपन ल अधिक नया अउ ताजा रूप म, जीवन के नया उत्साह सहित आगे बढ़थन।
मो ल पूरा भरोसा हे कि आगे आने वाला समय ह हमर हेल-मेल, भाईचारा अउ खुशहाली के होही। हम अपन कला-संस्कृति संग अपन अस्मिता के गौरव महसूस करत हुए एक सुंदर समाज के रचना म अपन योगदान देबो।
३६गढ़ी बोली में बतियाना बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteBane au sugghar goth. Mor koti le badhai.
ReplyDeleteNice blog brother. Keep writing more such blog
ReplyDeleteHave a look on my blog also www.myhelpghar.com
कोरोना लाकडाऊन के बाद चौपाल अंक निकलना बंद होगे हवय सर जी
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