1984 से 2020 तक मेरी शासकीय सेवा अवधि में मल्हार की डिडिन दाई या डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी सबसे हाहाकारी घटना है। घटना के दौरान मैं फेलोशिप, अध्ययन अवकाश पर बनारस में था। विभागीय अधिकारी श्री जी. एल. रायकवार जी ने तब इस घटना का विवरण तैयार किया था, वह लगभग यथावत यहां प्रस्तुत है।छायाचित्र और परिशिष्ट की जानकारियों के लिए मल्हार के श्री संजीव पांडेय तथा श्री हरिसिंह क्षत्रिय से सहयोग लिया गया है। |
चोरी के पहले का चित्र |
डिडनेश्वरी प्रतिमा, ग्राम मल्हार, जिला- बिलासपुर (मध्यप्रदेश)
(1) अपराध क्रमांक 82/91 धारा 458/380, ता.हि. 30, पुरातत्व स्मारक अधिनियम, दिनांकः 19-4-91.
पुलिस थाना- मस्तूरी, जिला बिलासपुर, राज्य- मध्यप्रदेश
(2) वस्तु- प्रस्तर प्रतिमा
सामग्री- काला ग्रेनाईट प्रस्तर
माप- 100X63X26 सेंटीमीटर
भार- 175 से 250 किलोग्राम अनुमानित
काल- 11वीं 12वीं सदी ईसवी, रतनपुर कलचुरि शैली।
(3) अनुमानित मूल्य- रुपये 50000/-
(4) वस्तु का विवरण- पद्मासन में आसनस्थ अंजलीबद्ध नारी प्रतिमा प्रभामंडल, दत्र, मालाधारी विद्याधर एवं अप्सरा शिरोमाग पर दृष्टव्य है। मध्य पार्श्व में चंवरधारिणी परिचारिका द्विभंग में स्थित है। अधिष्ठान भाग पर उभय कोनों पर सिंह तथा बीचोंबीच नृत्यरत तीन नृत्यांगनाएं अंकित हैं। प्रतिमा शिरोभाग पर अलंकृत मुकुट, गले में हारावली, भुजाओं में केयूर, कलाई में कंकण तथा पैरों में नूपुर है।
(5) प्रतिमा का नाम-अवस्थान- डिडनेश्वरी मंदिर, मल्हार
(अ) स्थानीय नाम- डिडनेश्वरी.
(ब) प्रतिमा शास्त्रीय नाम- उपासना रत राजमहिषी.
(स) डिडनेश्वरी मंदिर के नाम से ज्ञात मंदिर के गर्भगृह में पूजित स्थिति में स्थापित प्रतिमा.
(6) रजिस्ट्रेशन विवरण- यह प्रतिमा पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972 के अंतर्गत रजिस्ट्रीकरण अधिकारी कार्यालय (पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग), बिलासपुर म.प्र. के द्वारा रजिस्टर्ड है। रजिस्ट्रेशन नंबर- बी.एल.आर./एम.पी./198 दिनांक 17-1-77
(7) रजिस्ट्रेशन धारक- श्री लैनूराम, कैवर्त समाज मल्हार.
(8) राजवंश/कलाशैली- रतनपुर कलचुरि कला शैली।
(9) अन्य विशेष विवरण- यह प्रतिमा काले ओपदार ग्रेनाईट प्रस्तर से निर्मित होने के कारण अत्यन्त आकर्षक है।
(10) प्रतिमा चोरी दिनांक- 19-4-91 को एक बजे से दो बजे रात के बीच, रिपोर्ट दिनांकः 19-4-91 के 4 बजे थाना मस्तूरी।
(11) प्रतिमा बरामदी दिनांक- 21-5-91.
(12) वर्तमान स्थिति एवं सुरक्षा- प्रतिमा बरामदी के पश्चात यह रजिस्ट्रेशन धारक श्री लैनूराम कैवर्त समाज मल्हार को सौंप दी गई है। यह प्रतिमा पूर्ववत उक्त मंदिर में मूल स्थान पर प्रदर्शित की गई है। प्रतिमा के बरामदी के पश्चात इस मंदिर की व्यवस्था स्थानीय ट्रस्ट के अधीन है। मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व विभाग के द्वारा देखरेख हेतु एक चौकीदार प्रारंभ से नियुक्त है। मंदिर परिसर का पर्याप्त विकास कर दिये जाने के कारण अब यह स्थल धार्मिक देवालय के रूप में परिवर्तित हो चुका है। वर्ष के नवरात्र-शरद (आश्विन) एवं बसंत (चैत्र) पर्व पर यहां ज्योति कलश स्थापित किये जाते हैं तथा मेला के सदृश दृश्य रहता है।
स्थल विवरण-
बिलासपुर जिले में स्थित मल्हार दक्षिण कोसल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुरातत्वीय स्थल है, यह स्थान मौर्य काल से लेकर निरंतर 16 वीं शती ईसवी तक अनवरत रूप से सांस्कृतिक गतिविधियों का साक्षी बना रहा है। मराठों के शासन काल में यह सांस्कृतिक दृष्टि से उपेक्षित रहा।
मल्हार, बिलासपुर-मस्तूरी-जोंधरा सड़क मार्ग पर जिला मुख्यालय बिलासपुर से 33 कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ है। निजी साधन अथवा नियमित बस से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। मल्हार से ताला (अमेरीकांपा) ग्राम की आकाश मार्ग से दूरी लगभग 20 कि.मी. है। प्राचीन काल में मल्हार का आवासीय क्षेत्र अरपा तथा लीलागर नदी के तट तक विस्तृत रहा है। जैतपुर, बेटरी, भरारी, चकरबेढ़ा आदि इसके समीपस्थ उपनगर/ग्राम रहे हैं।
पुरातत्वीय महत्व-
मल्हार की प्राचीनता के द्योतक, धरातल पर बिखरे असंख्य पुरावशेष रहे हैं। मिट्टी के प्राकार तथा परिखायुक्त विशाल गढ़, ब्राह्मी लिपि में अभिलिखित विष्णु की द्विभुजी प्रारंभिक प्रतिमा तथा अन्य अभिलेख, सोमवंशी शासकों के काल के मंदिरों के अवशेष एवं कलचुरि युगीन भग्न देवालय अद्यावधि यहां बच रहे हैं। विविध प्रकार के मृदभांड, सिक्के, पकी मिट्टी की मुहरें, मनके, प्रतिमा फलक, तामपत्र, खंडित प्रतिमाएं आदि प्रकार के पुरावशेष यहां प्रचुरता से प्राप्त हुए हैं। स्थानीय ग्रामवासियों के द्वारा ये पुरावशेष संग्रहित कर रखे गये हैं। मघ, सातवाहन, कुषाण, गुप्त, शरभपुरीय तथा कलचुरि शासकों के सिक्के तथा अन्य विविध प्रकार की अभिलिखित मुद्राएं विशेष उल्लेखनीय हैं। वर्ष 1974 से 1978 तक सागर विश्वविद्यालय, सागर के द्वारा यहां उत्खनन कार्य करवाया गया था। जिससे मल्हार की प्राचीनता पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा है।
मल्हार शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध एवं जैन धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। यहां उक्त सभी सम्प्रदाय की सभी प्रतिमाएं विपुलता से प्राप्त हुई हैं। संभवतः सोमवंशी शासकों के काल में बौद्ध विहार भी स्थापित था । कलचुरियों के काल में भी यह धार्मिक तथा वाणिज्य के केन्द्र के रूप में विकसित था। कलचुरियों के पराभव के पश्चात मल्हार की सांस्कृतिक गरिमा घटने लगी, तथापि यह व्यवसायिक केन्द्र के रूप में स्थापित रहा।
मल्हार के विपुल पुरातत्वीय वैभव की ओर ध्यान आकृष्ट होने के उपरांत भारतीय पुरातत्वीय सर्वेक्षण विभाग की ओर से इस स्थल के अवशेषों को संरक्षित घोषित किया गया जिनमें से प्राचीन गढ़, देउर मंदिर तथा पातालेश्वर मंदिर प्रमुख है। मध्यप्रदेश शासन पुरातत्व विभाग के द्वारा डिडनेश्वरी मंदिर को संरक्षित घोषित किया गया है। मल्हार के विपुल पुरातत्वीय धरोहर की स्मृति तथा प्रचार प्रसार के उद्देश्य से शासन के सहयोग से यहां त्रिदिवसीय मल्हार उत्सव भी आयोजित होता रहा है।
पुरातत्वीय संरक्षण/अनुरक्षण-
मल्हार में पुरातत्वीय अनुरक्षण से संबंधित प्रारंभिक कार्य मल्हार के मालगुजार तथा स्थानीय ग्रामवासियों के द्वारा पातालेश्वर मंदिर में वर्ष 1940 के लगभग करवाया गया था। तथा मलबे में दबे ध्वस्त पातालेश्वर मंदिर के गर्भगृह को अनावृत किया गया था। बाद में केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस भग्न मंदिर को पूर्णतः अनावृत कर अनुरक्षण कार्य सम्पन्न किया गया। 2- वर्ष 1977-78 के लगभग केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के द्वारा भग्न तथा टीले के रूप में परिवर्तित मंदिर को मलबा सफाई कार्य के पश्चात अनावृत किया गया। बाद में अनुरक्षण कार्य की करवाया गया है। 3- वर्ष 1987-80 में म.प्र. शासन पुरातत्व विभाग के रजि. अधिकारी कार्यालय बिलासपुर के द्वारा डिडनेश्वरी मंदिर में अनुरक्षण का कार्य सम्पन्न किया गया। जिसके दौरान कलचुरि कालीन मंदिर का अधिष्ठान प्रणालिका तथा अन्य खण्डित प्रतिमाएं प्रकाश में आए। इसी अधिष्ठान के उूपर लगभग 70-80 वर्ष ईंट-प्रस्तर की दीवार बनाकर मंदिर का रूप प्रदान कर दिया गया है।
वर्ष 1987-88 से अनुरक्षण कार्य के पश्चात ही यह मंदिर विशेष रूप से जनश्रद्धा का केन्द्र बना। अनुरक्षण कार्य से इसका मूल स्वयं अनावृत हो जाने से 70-80 वर्ष पूर्व निर्मित इस आधुनिक मंदिर का स्वरूप पुरातत्वीय महिमामंडित हो गया। तथा ग्राम में प्रभावशील वर्ग के द्वारा इस स्थल से धार्मिक लाभ लेने के उद्देश्य से मंदिर समिति का गठन कर हस्तक्षेप की प्रक्रिया भी आरंभ हुई।
मल्हार से डिडनेश्वरी देवी की ऐतिहासिक प्रतिमा चोरी की घटना के समाचार 20.4.91 से 31.5.91 तक नवभास्कर, नवभारत, दैनिक भास्कर, देशबंधु, अमृत संदेश व अन्य अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे। इन समाचारों का मसौदा/शीर्षक होता था- पुजारी पर संदेह, पुजारी व अन्य गवाहों के विरोधाभास बयान, 1 करोड़ की मूर्ति, ग्रामीण उत्तेजित, चक्का जाम, सघन नाकेबंदी, मल्हार में मातम का माहौल, चूल्हे नहीं जले, मिलने की पूरी संभावना, पुजारी, पुत्र, दामाद, बंबई के व्यापारी व तांत्रिक पर संदेह, प्रतिमा उत्तरप्रदेश में बरामद, दर्शन के लिए जनसमूह उमड़ा, पुलिस ने अपने प्रति भरोसा जुटाया, डिडनेश्वरी बिलासपुर पहुंची, दो गिरफ्तार, तीन फरार, 14 करोड़ की डिडनेश्वरी प्रतिमा उत्तरप्रदेश से आई, डिडनेश्वरी मूर्ति की कीमत 50 हजार (14 करोड़ और 50 हजार का समाचार, देशबंधु में क्रमशः 26 व 28 मई 1991 को प्रकाशित हुआ।), पुरातत्व विभाग के अनुसार मूर्ति दुर्लभ नहीं और डिडनेश्वरी देवी की मूर्ति मल्हार के निषाद समाज को सौंपने न्यायालय ने निर्देश दिए।
प्रतिमा चोरी की घटना विवरण-
राज्य शासन द्वारा संरक्षित स्मारक डिडनेश्वरी देवी मंदिर के गर्भगृह में रखी प्राचीन प्रतिमा की दिनांक 19.09.91 को रात्रि में एक-दो बजे के बीच चोरी हुई।
चोरों ने मंदिर में सोये हुए पुजारी से देवी के दर्शन के बहाने मंदिर खुलवाया। मंदिर में घटना की रात्रि में पुजारी तथा उसके दामाद सोये हुये थे। चोरों की संख्या लगभग छह थी। इन्होंने पुजारी को बहाने से बाहर बुलाकर कुछ दूरी पर बलपूर्वक उसे उसकी धोती से कसकर बांध दिया। मंदिर में स्थित पुजारी के दामाद को पिस्तौल अड़ाकर विवश कर मूर्ति उठाकर सफेद रंग की मारुति वैन में भरकर ले गये। पुजारी के दामाद को मंदिर के भीतर बंद कर ताला लगाकर चाबी फेंक दिये। बाद में किसी प्रकार से पुजारी अपने बंधन खोलकर दौड़ते हुये मंदिर तक आया तथा बदहवास स्थिति में चोरी की घटना की जानकारी ग्रामवासियों को दी।
घटना की जानकारी होते ही स्थानीय निवासी सर्वश्री डा. शंकर चौबे, रामवल्लभ पांडे, कौशल पांडे आदि ने मस्तूरी थाना पहुंचकर घटना की सूचना दी जिसके आधार पर अपराध क्रमांक 82/91 धारा 458/380 ताजीरात हिन्द 30, पुरातत्व स्मारक अधिनियम दर्ज किया गया। ग्रामवातियों के द्वारा तुरंत रात्रि में ही थाना प्रभारी को रिपोर्ट करने पश्चात जिला मुख्यालय बिलासपुर पहुंच कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया गया। यदि घटना के तुरंत पश्चात ही वायरलेस से सभी थानों को अवगत करा दिया जाता तो चोरी गई प्रतिमा अतिशीघ्र प्राप्त करने की पर्याप्त संभावना थी।
घटना की जानकारी प्राप्त होते ही पुलिस उपमहानिरीक्षक श्री पिप्पल, पुलिस अधीक्षक श्री पासवान, फोरेन्सिक साइंस विशेषज्ञ एवं अन्य स्थानीय अधिकारियों ने स्थल का निरीक्षण कर कार्यवाही आरंभ की।
ग्रामवासियों का विरोध तथा प्रतिक्रिया-
मूर्ति चोरी की घटना से व्यथित मल्हार तथा आसपास के ग्रामों में सशक्त विरोध एवं प्रदर्शन हुआ। जुलूस के रूप में एकत्र होकर उन्होंने प्रतिमा बरामदी की शीघ्र मांग करते हुये मस्तूरी तथा मल्हार में सड़क पर चक्का जाम किया। पुलिस के द्वारा समझाने बुझाने के पश्चात ही चक्का बंद समाप्त किया गया। मल्हार में तनाव की स्थिति देखते हुये पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की व्यवस्था कर दी गई।
डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी से अवसाद में डूबा मल्हार-
डिडनेश्वरी प्रतिमा के चोरी की जानकारी होते ही मल्हार तथा समीपस्थ आसपास के ग्रामों में शोक छा गया। अनेक स्त्री पुरुष रोते देखे गये। दुकान तथा हाट बंद रहे। और तो और मल्हार के अधिकांश घरों में शोक के कारण चूल्हे भी नहीं जले। चोरों के इस दुस्साहस की निंदा करते हुए ग्रामवासियों ने मंदिर व्यवस्था में परिवर्तन को उत्तरदायी ठहराते हुए आलोचना की। मल्हार के लोगों की डिडनेश्वरी देवी से जुड़ी हुई यह आस्था आत्मिक है। पुरातत्वीय वस्तुओं से उन्हें आत्मिक अनुराग है चाहे वह किसी मूर्ति का बेडौल अंग अथवा घिसा-पिटा सिक्का ही क्यों न हो। डिडनेश्वरी को वे अपनी आराध्य कुल देवी तथा माता के सदृश्य मानते हैं। उनका विश्वास है कि यह जगतजननी सती माता पार्वती की प्रतिमा है। जो शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए आराधना कर रही है। ग्रामवासियों का विश्वास है कि डिडनेश्वरी देवी की पूजा मान्यता से अविवाहित नारियां शीघ्र अपने अनुकूल वर प्राप्त कर लेती हैं।
पुलिस का जांच प्रणाली-
डिडनेश्वरी प्रतिमा चोरी जांच हेतु मल्हार में पांच वरिष्ठ थाना प्रभारियों का दल कैम्प स्थापित कर जांच कर रहे थे। जांच कार्य के अवसर पर समीपस्थ ग्रामों के साधारण चोर तथा निरपराध व्यक्ति भी प्रताड़ित हुये। शक के आधार पर पकड़े गये अनेक व्यक्ति जांच पीड़ित होते रहे। पुलिस विभाग ने जांच का कार्य करते हुए पुरातत्व में विशेष रुचि रखने वाले स्थानीय ग्रामवासियों के उूपर शक करते हुए अनावश्यक रूप से पूछताछ करते रहे तथा अपमानित भी करते सर्वश्री डा. शंकर चौबे, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक श्री रघुनंदन पांडे, श्री गुलाब सिंह ठाकुर आदि ने पुलिस के रवैये के प्रति अपनी व्यथा प्रकट की। कुछ ग्रामवासियों के अनर्गल बयान पर ध्यान केन्द्रित कर पुलिस पुरातत्व से अभिरुचि रखने वाले स्थानीय नागरिक तथा पुरातत्व विभाग के अधिकारियों पर भी दोष मढ़ कर हतोत्साहित करते रहे। इस जांच कार्य से मल्हार में पर्यटन की दृष्टि से आये हुए निरपराध व्यक्ति भी प्रताड़ित हुए तथा पुलिस ने कठोरता का व्यवहार किया। फलस्वरूप इस अवधि में मल्हार में काफी त्रासदायक स्थिति रही तथा पुरातत्व से अभिरुचि रखने वाले व्यक्तियों को तुच्छ दृष्टि से देखा जाने लगा था। राज्य शासन के बिलासपुर स्थित अधिकारी को यथा अवसर मल्हार में उपस्थित रह कर पुरावशेष रजिस्ट्रेशन की जानकारी प्रक्रिया आदि से जांच अधिकारियों को अवगत कराकर समाधान करवाया जाता रहा है। गलत सूत्रों के आधार पर शक के दायरे में फंसे प्रतिष्ठित नागरिकों की जांच करने पुलिस को बंबई जैसे महानगर में अन्वेषण कर बैरंग लौटना भी पड़ा है।
बिलासपुर सांस्कृतिक मंच और अपवाद-
डिडनेश्वरी प्रतिमा चोरी होने की घटना के कुछ माह पूर्व बिलासपुर में शासन के सहयोग से अखिल भारतीय शैलचित्र परिषद तथा म.प्र. इतिहास परिषद का आयोजन संपन्न हुआ था। आयोजन पश्चात आगंतुक विद्वान मल्हार भ्रमण के लिए गये हुये थे। चोरी के पश्चात कुछ तत्वों ने इस प्रतिमा की चोरी में इस आयोजन को भी एक कारण सिद्ध करने का प्रयास करते हुये मंच के पदाधिकारियों पर दोषारोप में लगे थे।
डिडनेश्वरी और ज्योतिष गणना-
डिडनेश्वरी देवी प्रतिमा की चोरी के पश्चात दोषारोपण एक सामान्य घटना होने लगी थी। बिलासपुर सांस्कृतिक मंच के द्वारा पुरातत्व एवं इतिहास के सफलता पूर्वक आयोजन और व्यापक संवाद प्रचार के फलस्वरूप अखबारों में इस कार्यक्रम को पर्याप्त रूप से प्रकाशित किया गया था। बिलासपुर नगर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ गिरीश पाण्डे, एम.बी. बी.एस. जो डॉ. श्याम कुमार पाण्डे (प्रा.भा.इति. एवं पुरातत्व सागर, वि.वि. सागर) के लघु भ्राता हैं संदेहास्पद होने लगे थे। इनके सहयोग से ज्योतिष को आधार बनाकर इस प्रतिमा का जन्मांक, कुल, वर्ण, जाति, राशि आदि निर्धारित की जाकर योगों की गणना की गई एवं ज्योतिषानुसार मत भी प्रकाशित किया गया जिसके अनुसार इस प्रतिमा की शीघ्र प्राप्ति के पश्चात और ख्याति प्राप्त होने की भविष्यवाणी भी की गई थी जो सत्य घटित हुआ।
डिडनेश्वरी प्रतिमा चोरी और समाचार पत्र-
क्षेत्रीय समाचार पत्र डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी और बरामदगी विषयक खबर समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित कर पुरातत्व के प्रचार प्रसार में परोक्ष रूप से संलग्न रहे। जांच से संबंधित प्रगति तथा तथ्य अंतिम दिनों तक समाचार पत्र में छपते रहे। यह एक संयोग रहा कि समाचार पत्रों में पुरातत्व विभाग के प्रति दुर्भावना अथवा दुष्प्रचार प्रकाशित नहीं हुआ।
डिडनेश्वरी प्रतिमा और पुरातत्व कार्यालय-
डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी में स्थानीय रजिस्ट्रीकरण अधिकारी कार्यालय बिलासपुर को भी लांछन तथा निंदा का सामना करना पड़ा। प्रतिमा के महत्व के अनुरूप चोरी की घटना की जानकारी भारतीय पुरातत्वीय सर्वेक्षण नई दिल्ली तथा सी.बी.आई. (पुरावशेष) को अवगत कराते हुए विस्तृत रिपोर्ट भेजी जाती रही है। जांच कार्य में कार्यालय से छायाचित्र तथा विवरण सदैव उपलब्ध कराये जाते रहे हैं।
डिडनेश्वरी प्रतिमा की उपलब्धि-
डिडनेश्वरी देवी की चोरी गई प्रतिमा की उपलब्धि एक सुंदर संयोग के रूप में बिलासपुर के इतिहास में स्मरणीय रहेगा। इस प्रतिमा की प्राप्ति से पुलिस को भी अप्रत्याशित ख्याति प्राप्त हुई। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों तथा मल्हार निवासियों के कलंक का परिहार हुआ। यह प्रतिमा पुलिस के द्वारा अनवरत प्रयास के फलस्वरूप अंतिम क्षणों में प्राप्त हुआ। इस प्रतिमा चोरी में किसी सिद्ध गैंग का हाथ नहीं था। यह चोरी प्रकार से अनाड़ी चोरों के द्वारा की गई थी। जो न प्रतिमा महत्व जानते थे, न ही इस प्रकार की चोरी से पूर्व में संबद्ध रहे थे। चोरी के पश्चात प्रतिमा को छिपाये रखना इसी तथ्य का सूचक है। इस प्रतिमा की प्राप्ति से मल्हार के ग्रामवासियों को सर्वाधिक संतोष तथा हर्ष हुआ।
डिडनेश्वरी प्रतिमा तथा राजनीति-
डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी के कुछ समय पश्चात भूतपूर्व प्रधानमंत्री माननीय राजीव गांधी के हत्या के कारण विधान सभा चुनाव स्थगित कर दिया गया था। मूर्ति चोरी की इस घटना का राजनीतिक लाभ उठाने में राजनीतिक दल भी पीछे नहीं रहे हैं। मूर्ति चोरी के जांच हेतु धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि आयोजित कर ग्रामवासियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किये जाने पर भी ग्रामवासी विचलित नहीं हुए। चोरी की घटना से मतदान बहिष्कार करने की स्थिति भी निर्मित करने के प्रयास की गूंज सुनाई पड़ती रही।
डिडनेश्वरी की वापसी-
डिडनेश्वरी देवी प्रतिमा की चोरी एक निंदनीय अपराध के रूप में लोकमानस में घर कर गया था। देवी की प्रतिमा की चोरी से अपराधियों को कुछ भी हासिल नहीं हो सका। जनसामान्य में यह प्रचलित विश्वास कि पुरातत्वीय धरोहरों की चोरी तथा विक्रय के दुष्कर्म में लिप्त व्यक्तियों का हमेशा अमंगल ही हुआ है। पुरातत्वीय धरोहर तथा पूजित प्रतिमा की चोरी एक दुस्साहसिक अपराध है जो कभी भी सफल नहीं हो सका है।
डिडनेश्वरी देवी की प्रतिमा मल्हार से दिनांक 19-4-91 को चुराई गई तथा बिलासपुर, मण्डला, जबलपुर, सागर, ललितपुर, झांसी होती हुई यह मैनपुर (उत्तर प्रदेश)प्रमाण पहुंची, तथा दिनांक 31-5-91 को वापस बिलासपुर पहुंची। बिलासपुर में इसे सिविल लाइन थाना में पंडाल बनाकर सार्वजनिक प्रदर्शन में रखा गया। सिविल लाईन थाना परिसर में इस प्रतिमा को देखने तथा पूजा करने वालों का अनियंत्रित तांता लगा रहा। व्यवस्था हेतु पुलिस कर्मियों को पुजारी का कर्तव्य निर्वहन करना पड़ा। बिलासपुर नगर में पुलिस के संरक्षण में रखी इस प्रतिमा का दर्शन करने वालों की संख्या तथा चढ़ोत्री एक किवदंती बन चुकी है।
डिडनेश्वरी की मल्हार यात्रा-
डिडनेश्वरी की प्रतिमा की बरामदगी के पश्चात शासकीय कार्यवाही पूर्ण करने के पश्चात न्यायालयीन आदेश से यह प्रतिमा पूर्व धारक भी लैनूराम कैवर्त समाज मल्हार को एक लाख रुपये की जमानत पर सौंपी गई। प्रतिमा प्राप्त करने के पश्चात एक विशाल जुलूस के रूप में इसे मल्हार ले जाया गया। बिलासपुर से मल्हार की 33 कि.मी. दूरी तय करने में इस प्रतिमा को लगभग 8 घंटे लग गये। रास्ते भर जगह-जगह पूजा तथा स्वागत से इस प्रतिमा के प्रति स्थानीय जनता का हार्दिक लगाव तथा भक्ति भावना का अनुमान होता है।
डिडनेश्वरी प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा-
मल्हार ग्राम में डिडनेश्वरी देवी की पुनःप्रतिष्ठा मूल स्थान पर की गई। सुरक्षा की दृष्टि से इस मंदिर के बाहरी दरवाजों का लोहे के गेट लगवाये गये तथा अतिरिक्त सुरक्षा की दृष्टि से इसे भी लोहे के सीखचों से घेर कर प्रदर्शन किया गया है। प्रतिमा के पूर्व प्रतिष्ठा के समय समस्त ग्रामवासियों, प्रमुख शासकीय अधिकारी, जन प्रतिनिधियों आदि को आमंत्रित किया गया था। इस आयोजन में समस्त धार्मिक अनुष्ठान अभिषेक, गोदान आदि कृत्य संपादित किये गये तथा समस्त ग्रामवासी एवं अतिथियों के लिये लंगर स्थापित किया गया था। डिडनेश्वरी देवी को पुनर्प्रतिष्ठा (07-06-91) से मल्हार का धार्मिक महत्व अब द्विगुणित हो गया है। इस स्थल पर समाज की ओर से धर्मशाला, ज्योतिकलश भवन आदि निर्माण किये गये हैं। मंदिर परिसर की भूमि दान अथवा क्रय से प्राप्त कर पर्याप्त विकसित कर ली गई।
शासकीय सहयोग तथा विकास-
डिडनेश्वरी देवी मंदिर के विकास हेतु शासन द्वारा मंदिर स्थल तक पक्का डामर रोड बनवा दिया गया है। जिससे पर्यटक आसानी से वहां पहुंच सके। स्थल पर पानी की व्यवस्था तथा सड़क के दोनों और बिजली के खंभे भी लगवा दिये गये हैं। इस मंदिर के सामने स्थित सरोवर को गहरा तथा स्वच्छ कर स्थल के सौंदर्य में वृद्धि की गई है। अब यह स्थल एक प्रसिद्ध देवी मंदिर के रूप में दर्शनार्थियों को आकृष्ट करने में निरंतर प्रगति करता जा रहा है।
मेरी स्मृतियों के झरोखे में मल्हार-
पुरातत्व विभाग में कार्यरत होने से मेरा संबंध मल्हार से बना रहा। वर्ष 1976 में मैं सागर में रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (पुरावशेष) के पद पर कार्यरत था। सागर में पदस्थ रहते हुये भी मुझे मल्हार उत्खनन कार्य में सागर वि.वि. सागर तथा म.प्र. शासन पुरातत्व विभाग के सहयोग से करवाये जा रहे उत्खनन कार्य शासकीय प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था। यह मेरी प्रथम मल्हार यात्रा थी। वर्ष 1986 में मेरी पदस्थापना बिलासपुर में हुई जिससे मुझे मल्हार से अभिन्न रूप से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। डिडनेश्वरी देवी मंदिर का अनुरक्षण कार्य भी मेरे कार्यकाल में संपन्न हुआ तथा स्थल का ख्याति की ओर क्रमशः चरण बढ़ना प्रारंभ हुआ। वर्ष 1991 में डिडनेश्वरी प्रतिमा की चोरी और उपलब्धि में परोक्ष रूप से प्रासंगिक अथवा अप्रासंगिक होने पर भी मेरा नाम पद गुरुता के कारण जुड़ा रहा है।
1976 की स्मृति में डिडनेश्वरी देवी के साथ-साथ उनके निष्कपट तथा सरल स्वभाव के पुजारी दिवंगत श्री खुलुराम जी साथ-साथ उभरते हैं। श्री खुलुराम जी के बिना देवी की महिमा उद्घाटित नहीं होती थी। देवी प्रतिमा के महत्व तथा महिमा का वर्णन करते हुये वे अघाते नहीं थे तथा मी पर चड़े हुये लाल जसवंत का पुष्य अत्यन्त श्रद्धा के साथ दर्शकों को भेंट करते थे। उस समय घंटो बैठकर प्रतिमा के सम्मुख ध्यान करने पर कोई व्यवधान नहीं होता था। अब स्थिति विपरीत हो चुकी है। देवी को अपने हाथों से पुष्प, चंदन, रोली अर्पित करना असम्भव है। लोहे के सीखचों के मध्य प्रतिमा का दर्शन मात्र किया जा सकता है। ऐसा लगने लगा है कि देवी अब अपने भक्तों से दूर कर दी गई हैं। उनका वात्सल्य प्राप्त करना अब कठिन हो गया है। कहीं न कहीं से भय का भूत अथवा विकारों का किटाणु प्रवेश कर गया है जिससे मातृ स्वरूपा देवी को भी सीखचों के भीतर सुरक्षित रखना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति समाज के दूषित मनोविकारों को प्रकट करती है, इसे दूर किया जाना आवश्यक है।
कलाकृतियों की सुरक्षा आवश्यक है परन्तु उतनी ही जिससे मनोभाव मृत न हो सके। अपने द्वारा पोषित वृक्ष के फल का एकाकी उपभोग अवश्य किया जा सकता है। परन्तु पक्षियों को बसेरा करने से रोकना आवश्यक नहीं है। वृक्ष के छांव के उपयोग का अधिकार सार्वजानिक है क्योंकि छांव मनुष्य की संपति नहीं है, उससे उसे वंचित करना मानव के अधिकार का हनन है।
डिनेश्वरी देवी की महिमा में एक यही स्थिति बाधक है। पूजित देवी के पाषाण प्रतिमा को सुरक्षित रखने की यह व्यवस्था भावनाओं को हमेशा भग्न करती रहेगी।
-जी एल रायकवार, पुरातत्ववेत्ता, रायपुर
परिशिष्ट-
श्री रायकवार के इस लेखे का महत्व स्पष्ट है। इसके साथ कुछ बातें जोड़ना मुझे आवश्यक लगा। अवकाश के दौरान मुझे घटना के समाचार मिलते रहे, यह भी कि पुलिस मुझसे पूछताछ के लिए बनारस पहुंच सकती है। वापस आने पर लोगों से हुई चर्चा और समाचार पत्रों की खबर के आधार पर तब मिली कच्ची-पक्की जानकारियां, अब जैसा याद कर पाता हूं कि चोरी में इस्तेमाल वाहन आगरा के किसी ‘ट्रेवल्स‘ से किराए पर ली गई थी, चुनावी माहौल में वाहन किराए पर लेने में मुश्किल आई थी। अपराधी संभवतः मूर्ति चोरी, स्मगलिंग आदि की कहानियां और फिल्मों से प्रभावित थे, कि मूर्ति मिली कि मालामाल होते देर नहीं। तब चर्चा में मूर्ति की कीमत करोड़ों, 14 करोड़ तक कही जा रही थी। पत्रिका ‘अगासदिया‘-32, अक्टूबर-दिसम्बर 2008 अंक के मुखपृष्ठ पर डिड़िनदाई प्रतिमा का चित्र प्रकाशित हुआ था। पत्रिका में इससे संबंधित लेख में बताया गया है कि ‘मूर्ति की दुर्लभता का ज्ञान सबको तब हुआ उत्तरप्रदेश मैनपुर से आकर मूर्तिचोर माता की मूर्ति को चुरा कर ले गये। उन्होंने नेपाल के तस्करों से संपर्क कर इस दुर्लभ मूर्ति का सौदा साढ़े चौदह करोड़ में कर लिया।‘
यह तथ्य स्पष्ट करना आवश्यक है कि 1974-75 से पूरे देश में प्राचीन कलाकृतियों के पंजीकरण का कार्य आरंभ हुआ, जिसके बाद चोरी-स्मगलिंग की ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण हुआ है, क्योंकि पंजीकृत प्रतिमा, धारक और निर्धारित स्थान के अलावा, देश-विदेश कहीं भी देखी जाती है, तो कार्यवाही की जा कर उसे वापस निर्धारित स्थान, धारक तक वापस लाया जा सकता है। कई ऐसे प्रकरण हैं, जिनमें स्मगल हो कर विदेश चली गई पंजीकृत प्रतिमाओं की वापसी हुई है।
डिडनेश्वरी की यह प्रतिमा पंजीकृत है और ऐसी प्रतिमा का सौदा पंजीकरण से अनजान व्यक्ति ही कर सकता है। चोरी के बाद जिनसे भी प्रतिमा का सौदा हुआ, बात करोड़ों से हजारों में आ जाती, चोर निराश थे और मूर्ति को किसी ग्राहक को न टिका पाने के कारण खेत में गड़ा कर छुपाया था। निराश अपराधी किसी तरह गाड़ी भाड़ा और उस दौरान हुए खर्च की भरपाई हो जाए, सोचकर मूर्ति का सौदा रु. 50000/- में करने को तैयार थे, लेकिन महीना भर समय बीत जाने के बावजूद उन्हें कोई ग्राहक नहीं मिला।
ग्रामवासी कभी सुरागी बन कर महत्व पाने, कभी मौज में, कभी द्वेषवश, कभी यह सोचकर कि छोटी सी सूचना भी काम की हो सकती है, पुलिस को बयान देते रहे। मामला ऐसा संवेदनशील था कि जब तक कोई ठोस सुराग न मिले, पुलिस किसी भी संभावना पर जुट जाती। जैसा मुझे याद है सुराग मिला था अरपा नदी के टोल बैरियर से, जहां गाड़ी के नंबर के साथ रसीद कटी थी। गाड़ी के रजिस्ट्रेशन के आधार पर पता करते हुए पुलिस ‘ट्रेवल्स‘ तक पहुंची और ग्राहक बन कर गाड़ी किराए मांगने लगी। बात निकली कि कुछ दिन पहले अमुक ने गाड़ी किराए पर ली थी, लोग चुनाव के लिए गाड़ी किराए पर ले जाते हैं और हालत बिगाड़ कर लाते हैं। यहां से रास्ता साफ होने लगा, उत्तरप्रदेश पुलिस ने सहयोग किया, चोर पकड़ में आए, पुलिस के लिए प्राथमिकता मूर्ति बरामदगी थी, वह भी योजनाबद्ध, चतुराई पूर्वक निर्विघ्न कर ली गई।
अंत तक बात आती रही कि सरगना कोई राजनैतिक रसूखदार डाक्टर है, जो शायद कभी नहीं पकड़ा गया। मूर्ति सही सलामत वापस आ गई, लेकिन तब एक अफवाह यह भी रही कि मूर्ति बदल दी गई है, नकली है। पुष्टि के लिए पुरातत्व अधिकारियों से परीक्षण कराया गया और अंत भला सो सब भला।