Tuesday, May 18, 2010

राम-रहीम : मुख्तसर चित्रकथा

छत्‍तीसगढ़, रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग क्रमांक - 200
20 किलोमीटर दूर गांव चरौदा-धरसीवां
सड़क पर बांई ओर द्वार दिखाई देता है
इस द्वार से अंदर जाने पर
मंदिर के सामने जल कुंड में गज-ग्राह दिखते हैं

मंदिर के अंदर मंडप में शिलान्‍यास का फलक लगा है


मुक्‍तेश्‍वर शिव मंदिर
कही जाने वाली संरचना के
शिलान्‍यास फलक पर तो रस्‍म अदायी खुदी है
लेकिन लोगों के मन में आज भी
श्री बाबू खान का नाम स्‍थापित है
जिनकी पहल और अगुवाई में
गांव और इलाके भर के श्रमदान से
यह मंदिर बना
धरसीवां से थोड़ी दूर कूंरा उर्फ कुंवरगढ़ गांव है
यहां दो संरचनाएं एक ही चबूतरे पर साथ-साथ हैं
मंदिर-मस्जिद



वापस चरौदा के शिव मंदिर में
मंडप की भीतरी दीवार सचित्र दोहों से सजी है

चित्र के साथ दोहा है-
''राधा जी के हाथ में, ऐसा फूल सफेद।
हंसी हंसी पूछे राधिका, कृष्‍ण नाम नहीं लेत॥''
दोहे का संदर्भ खोजा जा सकता है
किंतु बात लोक मन की है.
राधा लौकी के फूल का नाम पूछ रही हैं
कृष्‍ण बूझकर भी प्रचलित छत्‍तीसगढ़ी नाम
तूमा (राधा को 'तू मां') कैसे उचारें ?

अकथ, ओझल लोक मन के
श्रृंगार, भक्ति, औदार्य-ग्राह्यता का
भाव और रस-सौंदर्य (एस्‍थेटिक) सहज होता है.
धमतरी के श्री दाउद खान रामायणी को याद करते हुए
लंबी सूची के बिना भी महसूस किया जा सकता है.

टीप - इस आलेख का उपयोग बिना पूर्व अनुमति के किया जा सकता है, किंतु उपयोग की सूचना मिलने पर आपको अपने धन्‍यवाद का भागी बना सकूं, इस अवसर से वंचित नहीं करेंगे, आशा है.

Friday, May 7, 2010

नितिन नोहरिया बनाम थ्री ईडियट्‌स


भारतीय मूल के नितिन नोहरिया 1 जुलाई 2010 को हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के डीन का पदभार ग्रहण करेंगे। 1988 में यहीं वे सबसे कम उम्र के प्रोफेसर बने थे। आइआइटी के केमिकल इंजीनियर नोहरिया पढ़ाई के दौरान ही 'मुझे केमिकल इंजीनियर नहीं बनना' तय कर चुके, बताए जाते हैं। पढ़कर याद आता है 'थ्री ईडियट्‌स'।

आइआइटी जैसी पढ़ाई या किसी अन्य डिग्री के बावजूद, रोजगार का जरिया बदलना, रोजगार के साथ रुचि निभ जाना, रुचि को रोजगार बना लेना, रोजगार में अविश्वनीय उठा-पटक और परिवर्तन की थोड़ी बातें इस संदर्भ में की जा सकती हैं। 'थ्री ईडियट्‌स' फिल्म जिन कई कारणों से मुझे पसंद नहीं आई उनमें मुख्‍य है कि नायक के लिए वैज्ञानिक शोध के साथ स्कूल चलाया जाना सहज-संभव और एक दूसरे का पूरक दिखाया गया है वहीं उसके साथियों के लिए, ऐसा शायद विपर्यय दिखाने की फिल्‍मी मजबूरी के कारण है लेकिन वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी या कुछ और करना पूरक नहीं बाधक होता है।

नेतृत्व सिद्धांत और व्यवहार के अध्येता नोहरिया के इंजीनियर से प्रोफेसर-डीन बन कर पटरी बदलने के साथ हमारे दो महान नेताओं के पटरी-बदल को एक प्रसंग के साथ याद करना रोचक होगा- बैरिस्टर-महात्‍मा गांधी के, पदरहित लेकिन सर्वमान्‍य जन नेता रहते हुए 1939 में उनके समर्थित योग्‍य प्रत्याशी पट्‌टाभि सीतारमैया, सिविल सेवा से राजनीति में आए सुभाषचंद्र बोस से चुनाव हारते हैं, यद्यपि बोस अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं।

कुछ उदाहरणों पर नजर डालते चलें- इन्जीनियर, प्राध्यापक, आईपीएस, आईएएस से जनप्रतिनिधि और छत्तीसगढ़ के पहले मुख्‍यमंत्री बने श्री अजीत जोगी, आयुर्वेद चिकित्सा की पढ़ाई कर डॉक्टरी करने वाले छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पायलट-प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी, इस तरह की लंबी सूची बन सकती है, जिनमें से कुछ खास और अलग तरह के लोग बतौर आंचलिक उदाहरण याद आते हैं-

छत्तीसगढ़ के पाली-तानाखार क्षेत्र के वर्तमान विधायक श्री रामदयाल उइके सरपंच रहे हैं। पटवारी बनकर शासकीय सेवा में आए। फिर मरवाही, जो (चिकित्सक) मंत्री रहे डॉ. भंवरसिंह पोर्ते की सीट और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, से भाजपा के विधायक चुने गए लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी, मुख्‍यमंत्री श्री अजीत जोगी के लिए इस्तीफा दिया। आगे चलकर गोंड़वाना के गढ़ और अपराजेय-से नेता तानाखार के विधायक (शिक्षक) श्री हीरासिंह मरकाम के विरुद्ध इस नये क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित हुए। नवागढ़ ब्लाक के एक सज्जन, कई सालों से कमाने-खाने बाहर जाते थे। गांव में रहने के दौरान पंचायत चुनाव आया, सरपंच प्रत्याशी बने और चुनाव जीत गए, इन सरपंच ने 2007 में कहा कि सरपंची जम नहीं रही है, इस साल के बाद फिर कमाने-खाने के लिए बाहर जाने का इरादा है। कोरिया कुमार (फोटोग्राफी, शोध रुचि सम्‍पन्‍न) डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव का अलग तरह का उदाहरण चर्चित रहा है। अत्यंत लोकप्रिय जननेता और सफल मंत्री, पिछले चुनाव में स्वयं टिकट के लिए मना कर प्रत्याशी नहीं बने।

पहली नजर या जल्दबाजी में व्यतिक्रम दिखता भी कई बार स्वाभाविक अनुक्रम साबित होता है। विसंगतियां, बैठ जाने पर संगत मान ली जाती है। पेशा और रुचि, शिक्षा-प्रशिक्षण से अलग रोजगार और विशेषज्ञता, धारा के साथ अनुकूल और निर्धारित भविष्य के बजाय अपवाद बनकर सिद्धांत को पुष्‍ट करने वालों की कमी नहीं। यही जीवन-सुर को पूरा करता है, ताल बिठाता है। 'लीक छोड़ तीनों चलैं शायर, शेर, सपूत।' इस 1 जुलाई को शैक्षणिक सत्र आरंभ होने के साथ हम भारतीय, गौरव सहित अपना पाठ दुहरा सकते हैं।

Monday, May 3, 2010

सिरजन

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य बनने के बाद ही, मार्च 2001 में, महंत घासीदास संग्रहालय परिसर, रायपुर में पारम्‍परिक शिल्पियों की कार्यशाला 'सिरजन−2001' का आयोजन हुआ। कभी−कभार टिप्‍पणी या लेख लिखने वाले मुझ जैसे से कहानी तो बन ही नहीं पाती तो सहजता से गद्य न लिख पाने वाले के लिए कविता की सोचना भी मुश्किल था। लेकिन बतौर ड्यूटी, परिसर पूरने के लिए मैंने कुछ पंक्तियां बनाईं। डॉ. केके चक्रवर्ती और डॉ. एए बोआज अधिकारी थे। पंक्तियां उपयुक्‍त लगीं। उत्‍साहित होकर कुछ और, जिन्‍हें मैंने भावानुवाद माना, छत्‍तीसगढ़ी में भी बना लिया। दोनों का इस्‍तेमाल पोस्‍टर की तरह हुआ। पिछले दिनों में कुछ गंभीर लोगों ने उनकी याद कराते हुए दोनों को कविताओं की मान्‍यता दी तो उन महानुभावों की सहिष्‍णुता और उदारता का कायल होकर याद किया कि एक अंग्रेजी अखबार में तब इसका (छत्‍तीसगढ़ी का) अनुवाद भी छपा था। खोजते हुए अक्‍सर जैसा नहीं होता, बारी−बारी तीनों मिल गए। अब भटके−खोए तो वेब पर, मुझसे और मेरे इर्द−गिर्द नहीं, इसलिए −


सिरजन−1

हुनर ऐसा कि
हवा में हाथ घुमाते ही
बन गई मछलियां
रुपहली, चमचमाती।

तैरती हैं मछलियां
आती हैं, जाती हैं
कारीगर हाथों में
यकीनन, सचमुच।

नदी-नाले, जंगल और पहाड़
और आकाश
स्वच्छंद उन्मुक्त चिड़ियाएं
सिरजती हैं सारी कायनात।

सिरजन−2

रुख-राई, चिरई-चुरगुन
मनिखे बारामिंझरा भइया
पुतरा रचे, पुतरी रचे
अउ रचागे रचइया।

रथिया-बिहनिहा, संझा-मंझनिहा
सुरता सुताथे, सुरता चेताथे
सुरता बिसराथे, माया सिरजाथे।

तओ जै हो, जै हो
जै हो, जै हो
जै हो सिरजनहार।

Sirjan 2001

Trees and saplings
Birds and birdies
Men and icons
Animate and inanimate alike
The Creator created them all
Also did he create
the nights and the dawns
the evenings and the noon's
and other innumerable things
impossible for one to remember
My oblations to that creator of universe
Glory to him
Glory to him
Glory to him.
(The Hitvada, Raipur. Dt. 25.03.2001)