Monday, September 12, 2011

हिन्‍दी

बुल्‍के जी की हस्‍तलिपि का नमूना
21-12-60 को रामवन, सतना के
 बाबू शारदाप्रसाद जी को लिखा पत्र,
 जिसमें 'भक्‍त शबरी' व रामकथा
संबंधी अन्‍य पुस्‍तकों का उल्‍लेख है।
हिन्‍दीसेवी बुल्‍के जी, फादर बुल्‍के के बजाय बाबा बुल्‍के कहलाने लगे थे। उन्‍होंने शायद हिन्‍दी सेवा का कोई घोषित किस्‍म का व्रत नहीं लिया, लेकिन सहज भाव से जहां इस भाषा को आवश्‍यकता थी, ऐसे क्षेत्र की पहचान की, जिससे भाषा को मजबूत किया जा सके और वहां उनके प्रयास से जो संभव था, किया। उनके द्वारा तैयार शब्‍दकोश और रामकथा शोध, इसी का परिणाम और उदाहरण है। बुल्‍के जी तक हिन्‍दी भाषा-साहित्‍य के शोध-प्रबंध भी अंगरेजी में लिखे जाने का कायदा था, लेकिन उन्‍होंने अपना शोध प्रबंध सन 1949 में हिन्‍दी में तैयार कर जमा करने के अपने निर्णय के साथ बुद्धिजीवियों-हिन्‍दीजीवियों पर कम भरोसा किया और अपने निदेशक डॉ. माताप्रसाद गुप्ता और गुरु डॉ. धीरेन्‍द्र वर्मा के माध्‍यम से इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के तत्‍कालीन कुलपति, डॉ. अमरनाथ झा और अकादमिक परिषद को भी प्रभाव में ले कर मजबूर किया, इस निर्णय को मान्‍य करने के लिए।

दूसरे, देवकीनंदन-दुर्गाप्रसाद खत्री याद आ रहे हैं, चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, रोहतास मठ और विज्ञान फंतासियों वाले। यह वह दौर था जब भारतीय भाषाओं के नाम पर बांगला का ही प्रचार था और इसी भाषा में ढेरों मौलिक साहित्‍य और अनुवाद उपलब्‍ध होता था। कहा जाता है कि खत्री जी की इन किताबों को पढ़ने के लिए लोगों ने हिन्‍दी सीखी। उन्‍होंने शायद कभी हिन्‍दी सेवा का दंभ नहीं भरा और उन्‍हें इस तरह से याद भी कम ही किया जाता है। बरेली वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का राधेश्यामी रामायण और उनके नाटक, मुंशी सदासुखलाल का सुखसागर, सबलसिंह चौहान का महाभारत और गीता प्रेस, गोरखपुर की पत्रिका 'कल्‍याण' के नामोल्‍लेख के बिना बात अधूरी होगी।

इसके बाद पचास के दशक से आरंभ होने वाला पूरा दौर रहा है इलाहाबाद से छपने वाली किताबों का, जब उर्दू जासूसी दुनिया का बांगला और हिन्‍दी उल्‍था होता। लेखक इब्‍ने सफ़ी (सफ़ी के बेटे- असली नाम असरार अहमद), बीए और हिन्‍दी अनुवादक प्रेमप्रकाश, बीए। जासूसी दुनिया प्रेमियों को खबर जरूर होगी कि ये किताबें आजकल मद्रास से रीप्रिंट हो कर एएचव्‍हीलर पर 60 रु. में मिल जा रही हैं। जासूसी साहित्य में ओमप्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक की भी लंबी पारी रही है। दूसरा महत्‍वपूर्ण नाम याद आता है कुसुम प्रकाशन, जिसमें भयंकर जासूस सीरीज के लेखक नकाबपोश 'भेदी' और प्रमुख पात्र इंस्‍पेक्‍टर वर्मा-सार्जेन्‍ट रमेश होते। इसी तरह भयंकर भेदिया सीरीज के लेखक सुरागरसां होते और जासूस जोड़ी बैरिस्‍टर सुरेश-सहकारी कमल कहलाती।
इसके अलावा सामाजिक उपन्‍यास कुसुम सीरीज में छपते जिनके लेखकों में एक खरौद, छत्‍तीसगढ़ के श्री एमएल (मनराखनलाल) द्विवेदी भी होते। जासूस महल की किताबें होतीं और अंगरेजी से अनूदित मिस्‍टर ब्‍लैक, टिंकर की जासूसी होती तो दूसरी ओर बहराम चोट्टा। इस दौर में हिंदी किताब का लगभग अर्थ जासूसी पुस्‍तक ही होता। जासूसी उपन्यासों की महिमा के कुछ उल्लेख प्रासंगिक होंगे- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीे 'चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति को निःसंकोच सबसे प्रिय उपन्यास कहते और पाब्लो नेरूदा से पूछा गया कि अगर आग लग जाए तो आप अपनी कौन सी किताब बचाना चाहेंगे, जवाब था मेरी कृतियों के बजाय मैं उन जासूसी कहानी संग्रह को पहले बचाना चाहूंगा, जो मेरा अधिक मनोरंजन करती हैं। जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा, अमृतलाल नागर के भी प्रिय रहे वहीं मुक्तिबोध, स्टेनली गार्डनर और अगाथा क्रिस्टी को भी पढ़ना पसंद करते थे।

तीसरे, हिन्‍दी फिल्‍में हैं, जिसने हिन्‍दी को न सिर्फ फैलाया, बल्कि प्रचलित रखने में इसकी भूमिका महत्‍वपूर्ण है और रहेगी, क्‍योंकि भाषा के लिए गंभीर साहित्‍य के साथ उसका प्रचलन में रहना जरूरी है। यदि आमतौर पर भारत की सम्‍पर्क भाषा अंगरेजी मानी जाती है तो इसके समानांतर आमजन की वास्‍तविक सम्‍पर्क भाषा, उत्‍तर से दक्षिण तक हिन्‍दी है और वह अधिकतर फिल्‍मों के कारण ही है। हिन्‍दी साहित्‍यकारों में ज्‍यादातर ने अपने नाम से या नाम छुपा कर हिन्‍दी फिल्‍मों के लिए काम किया है। राही मासूम रजा, कमलेश्‍वर और बाद में मनोहर श्‍याम जोशी, फिल्‍मों-सीरियल से जुड़े सबसे ज्‍यादा उजागर नाम रहे। इस संदर्भ में आनंद बक्षी जैसे गीतकार और फिल्‍मी गीत भी याद आ रहे हैं। ''सुनो, कहो, कहा, सुना, कुछ हुआ क्‍या, अभी तो नहीं, कुछ भी नहीं, चली हवा, उठी घटा...'' जैसे गीतों से ले कर मेरे नैना सावन भादों, फिर भी मेरा मन प्‍यासा, तक जैसे गीत। और फिर सलीम-जावेद जोड़ी के फिल्मी संवाद- ‘कितने आदमी थे‘, ‘मेरे पास मां है‘, या ‘मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता‘। यह सब चाहे व्‍यावसायिक-बाजारू, हल्‍का-फुल्‍का और मनोरंजन के लिए गिना जाए, मगर हिन्‍दी की लोकप्रियता, लोगों की जबान पर चढ़ने के लिए कम महत्‍व का नहीं।

हिन्‍दी की पृष्‍ठभूमि मजबूत मानी जा सकती है, वैदिक-लौकिक संस्‍कृत से प्राकृत-पालि और अपभ्रंश हो कर खड़ी बोली तक, लेकिन उसका इतिहास पुराना नहीं है और यही कारण है कि हिन्‍दी के विद्वानों को याद करें तो वे और उनकी पृष्‍ठभूमि में या कहें अधिकार की मूल भाषा उर्दू(अरबी-फारसी), संस्‍कृत या अंगरेजी होती है। यहीं राजाजी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के साथ तमिलभाषी रांगेय राघव और कन्नड़भाषी नारायण दत्त की हिन्दी साधना भी स्मरणीय हैं। आशय यह कि हिन्‍दी सेवा के लिए लगातार सहज भाव से उद्यम आवश्‍यक है और इसमें वक्‍त भी लगना ही है। भाषाएं यों ही खड़ी नहीं हो जातीं। हां, हिन्‍दी की पृष्‍ठभूमि और इतिहास पर मेरी दृष्टि में हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की दो पुस्‍तकें, हिन्‍दी साहित्‍य का आदिकाल और हिन्‍दी साहित्‍य की भूमिका के साथ उनके कुछ निबंध सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण हैं।

हम में से अधिकतर, बच्‍चों के सिर्फ अंगरेजी ज्ञान से संतुष्‍ट नहीं होते बल्कि उसकी फर्राटा अंगरेजी पर पहले चमत्‍कृत फिर गौरवान्वित होते हैं। चैत-बैसाख की कौन कहे हफ्ते के सात दिनों के हिन्‍दी नाम और 1 से 100 तक की क्‍या 20 तक की गिनती पूछने पर बच्‍चा कहता है, क्‍या पापा..., पत्‍नी कहती है आप भी तो... और हम अपनी 'दकियानूसी' पर झेंप जाते हैं। आगे क्‍या कहूं आप सब खुद समझदार हैं।

मैं सोचने लगा कि क्‍या हम भाषा में सोचते हैं और हां तो मैं किस भाषा में सोचता हूं। लगता है, रोजमर्रा काम-काज को हिन्‍दी और छत्‍तीसगढ़ी में, गंभीर अकादमिक विषय-वस्‍तु, अंगरेजी और हिन्‍दी (उर्दू शामिल) में कभी संस्‍कृत में भी और किसी विद्वान का सहारा हो तो इंडो-आर्यन और इंडो-यूरोपियन तक। मन की ठाट, अपनी पहली जबान, सिर्फ छत्‍तीसगढ़ी में (सरगुजिया, हल्‍बी शामिल) और कभी इससे अलग तो भोजपुरी या बुंदेली में। बोलने में सबसे सहज छत्‍तीसगढ़ी, फिर हिन्‍दी को पाता हूं, कभी लंबी सोहबत रही तो जबान पर भोजपुरी और बुंदेली भी आ जाती है। कोई जर्मन, फ्रेंच या इटैलियन मिल जाए सिर्फ तभी अंगरेजी। पढ़ने में हिन्‍दी सहजता से, अंगरेजी सुस्‍ती से और छत्‍तीसगढ़ी (बचपन में बांगला) कठिनाई से। मैं हिन्‍दी का प्रबल पक्षधर, क्‍योंकि जिसे जो भी और जितनी भी आती है, हिन्‍दी ही आती है। जी हां, मेरे सहज लिख पाने की भाषा सिर्फ और सिर्फ हिन्‍दी है।

सवाल होता है, हिन्‍दी दिवस मनाने से क्‍या होगा? पता नहीं, लेकिन जवाब मैं इस सवाल से मिला कर ढूंढने का प्रयास करता हूं, क्‍या जन्‍म दिन मनाने से आयु बढ़ जाती है?

यहां आई अधिकांश बातें आशय मात्र हैं, तथ्‍य की दृष्टि से भिन्‍न हो सकती हैं। कभी टिप्‍पणी, कभी मेल पर या यहां-वहां लिख चुका हूं, वही तरतीबवार जोड़ने का प्रयास है। किसी का नाम लेने-छोड़ने या सूची बनाने का प्रयास यहां कतई नहीं है। सभी, खासकर अज्ञात, अल्‍पज्ञात हिन्‍दी सेवियों को नमन।

53 comments:

  1. कुछ नाम फिर से मस्तिष्क में कौंध गए... जब पहली बार मुझे हिन्दी दिवस की प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के रूप में नगद राशि प्राप्त हुई थी, तो मैंने उस राशि से बाबा बुल्के का शब्दकोश खरीदा था.. आज भी मेरे बेटे के पास वो सुरक्षित है... इब्ने सफी बी.ए. मेरी माता जी की फेवरिट लेखक रहे हैं... अच्छा प्रयास है कि उनकी पुरानी पुस्तकें नए कलेवर में पुनः प्रकाशित होकर सामने आयी है.. हिन्दी दिवस के समारोह हमारी संस्था में प्रारम्भ हो चुके हैं और मेरा योगदान जारी है.. बोलने में तो मैं भी हिन्दी का प्रयोग करता हूँ, लेकिन नौकरी का तकाजा ऐसा है कि सारे दिन अंग्रेज़ी में बात करने को बाध्य हूँ.. भाषाओं में हिन्दी/उर्दू, अंग्रेज़ी, बांग्ला फर्राटे से और मलयालम आसानी से लिख पढ़ लेता हूँ..
    फिल्मों ने शब्दकोश को बिगाडा भी है.. खासकर इन दिनों बहुत ही!

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  2. क्या क्या पढ़ा है आपने ....बधाई !

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  3. हिंदी के विकास और उसके एक राष्ट्र भाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने के घटनाक्रम को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने ....आपका आभार

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  4. हिन्दी अविरल प्रवाहित महानदी मन्दाकिनी है जो सदियों से जनमानस को सिंचित करती आई है,प्राणवायु के रूप में हमारे शरीरों में साक्षात् विद्यमान है। इसलिए हमें प्रत्येक साँस को ही हिन्दी दिवस समझना चाहिए।

    हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं

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  5. कुसुम प्रकाशन वाले भाग से अनभिज्ञ हूं. बाकी सभी से परिचित. दुख की बात है कि अब निरन्तर हिन्दी का क्षरण होता जा रहा है. कम से कम स्कूल और कालेजों में तो यही हाल है. माध्यमिक शिक्षा में अब हिन्दी के छात्र लगातार कम होते जा रहे हैं. नौकरी के लिये अच्छी अंग्रेजी आना तो आवश्यक है किन्तु हिन्दी का कामचलाऊ ज्ञान ही काफी है. देखिये कब तक यह सालगिरह मना पाते हैं.

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  6. आम जन की भाषा तो हिंदी है रहेगी . जिनके दिलों में है उनके लिए ये जन्मदिन क्या..............
    .
    पुरवईया : आपन देश के बयार

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  7. पारसी रंगमंच का भी योगदान है कुछ...

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  8. फिल्मों ने हिन्दी को कितना फैलाया, इसपर आप भी उसी साजिश या संयोग में फँस गये हैं, जिसमें सब फँसे हैं। वह उपन्यास मद्रास से मेरठ से? अधिक नहीं कहूंगा वरन …

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  9. खुशनसीब हूं मैं कि आपके बताए हिंदी के सभी पड़ावों से अपनी मुलाकात रही है.....अच्छी मुलाकात..। हर संवाद भले ही याद न हो पर प्रभाव अपने पर हमेशा पाता हूं..। बुल्के साहब ने अपना वतन बेल्जियम छोड़ कर मानव से सेवा भारत में करने की ठानी थी पर वो मानव सेवा के साथ-साथ भारत की ऐसी सेवा कर गए जो उसके अपने सपूत नहीं कर पाए। हिंदी के अन्नयन प्रेमी थे बुल्के साहब। ये भी सही है कि चंद्रकांता संतति ने ही कई लोगो को अपनी बोली से आगे बढ़कर प्रवाहमान हिंदी की तरफ मोड़ा। हिंदी न तो मर रही है न ही मरेगी..अभी हम जैसे करोडों हैं। हम जैसों को दूसरी भाषा के ज्ञान की कमी पर शर्मिदंगी नहीं अपनी भाषा में निष्णात होने का गर्व अक्सर होता है। हिदीं धारा प्रवाह बोलने वाले कई लोग पढ़ नहीं पाते धारा प्रवाह ..उनको इसकी तरफ मोड़ने में सफलता भी पाई है..और उन लोगो की शर्मिंदगी एहसास दिलाती है कि हिंदी अखंड प्रवाहमान बनी रहेगी..।

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  10. सबसे पहला उत्तम शब्दकोष फादर कामिल बुल्के का ही खरीदा था. बाद में कई अच्छी शब्दकोष मिले पर उसमें जो बात है वह बाकी में नहीं. संस्कृतनिष्ठ हिन्दी पर्याय जानने के लिए वह अभी भी सर्वथा उपयुक्त है.
    बाद में डॉ. रघुवीर का शब्दकोष भी देखा जिसे पढ़कर हवाइयां उड़ने लगी थीं.
    हिन्दी दिवस कल है. कुछ तैयारियां बाकी रह गयीं हैं. दो-तीन दिन बहुत काम रहेगा.
    पोस्ट के बाकी तथ्यों से पूर्ण सहमति है. हिंदी पर ऐसी अलग तरह की पोस्ट पढना अच्छा लगता है.

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  11. जब बच्चा रोता है कि उसे दूध चाहिए तो कुछ महान लोग चावल पीस कर पिलाने लगते हैं और बेचारा बच्चा बुद्धू बन जाता है। शायद उपमन्यु की कथा है, शिव पुराण से। संदर्भ और कारण स्वयं तलाशे जाएँ।

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  12. सेंट जेवियर्स रांची में दो साल पढा हूँ तो फादर कामिल बुल्के से परिचय तो है ही.
    सटीक पोस्ट है. 'जन्मदिन मनाने से आयु तो नहीं बढ़ती?' - ये सवाल भी पसंद आया.

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  13. चैत-बैसाख की कौन कहे हफ्ते के सात दिनों के हिन्‍दी नाम और 1 से 100 तक की क्‍या 20 तक की गिनती पूछने पर बच्‍चा कहता है, क्‍या पापा..., पत्‍नी कहती है आप भी तो... और हम अपनी 'दकियानूसी' पर झेंप जाते हैं।

    सटीक सी बात!!

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  14. आपके पोस्ट के माध्यम से बहुत सी नई बातें जानने को मिली .....आभार

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  15. मतलब फिल्म जब नहीं थी भाषा नहीं चलती थी? आपकी क्षमता से कम का लेख लग रहा है। असंतुष्ट!

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  16. हम राजन इक़बाल पढ़ कर बड़े हुए... चाचा चौधरी भी... बाद में चंद्रकांता को टीवी पर देखे.... पहला शब्दकोष बाबा बुल्के का था. और जब पता कि वे रांची में ही रहते हैं... मिलने चले गए उनके आश्रम. भारतीय भाषाओँ उत्थान में विदेशी स्कालरों का योगदान उल्लेखनीय है जिसमे जी ए ग्रियर्सन का नाम प्रमुख है. बढ़िया आलेख. हिंदी दिवस के बहाने सार्थक चर्चा तो हो रही है इस वर्चुअल स्पेस में.

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  17. क्षमता मतलब जैसा कि आप पहले लिखते रहे हैं, उस आधार पर लगा कि यह कमजोर है।

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  18. हिम्मत नहीं पडी कि अपने बच्चे को हिन्दी माध्यम से शिक्षित कराऊँ...पर आज जब वाह या उसके मित्र कहते हैं,क्या भविष्य है हिन्दी का ?? महीनों तारीखों या दिनों जैसे नामों पर प्रश्नवाचक मुद्रा बना लेते हैं और अपेक्षा रखते हैं कि उन्हें वह अंगरेजी में पूछा जाय,तो असह्य दुःख होता है...हालाँकि मन में यह विश्वास बांधे रखने का प्रयास करती हूँ कि मेरा खून और संस्कार यदि उसतक पहुंचा है तो कभी न कभी वह जोर मरेगा और उसे इस भाषा से प्रेम करने को विवश कर देगा...

    अपने लिए हिन्दी दिवस नितांत अनुपयोगी या कहें दुर्भाग्यपूर्ण तो अधिक उचित होगा, लगता है...पर इस पीढी के लिए "हिन्दी दिवस" बहुत आवश्यक लगता है...

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  19. क्या खूब व्याख्यान किया है आपने हिन्दी के बारे में.. बहुत जानकारी मिली है.. अच्छा लगा... हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई..

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  20. देर से आया -लेकिन दुरुस्त आया.
    बहुत ही तथ्य परक आलेख आपनें लिखा है,बधाई और आभार.

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  21. हिन्दी इस देश की बिन्दी बनेगी कि नहीं?

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  22. ईमेल पर संजीव तिवारी जी-
    Hindi hai hum .... Dhanyawad bhaiya.

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  23. अब ब्लॉग से उत्थान मार्ग बनना है।

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  24. हिंदी दिवस पर आपका ब्लॉग पढ़कर फिर से मेरी प्रिय लेखिका शिवानी की बात याद आ ही गयी कि
    **लगा कर मातृभाषा का सिंदूर भी हाय हिंदी तू रही व्यभिचारनी **
    विचार परक लेख के लिए साधुवाद

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  25. अच्छा लगा ये पढ़ना।

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  26. बहुत ही सुन्दर लेख..और उससे भी सुन्दर उसके भाव |
    सभी टिप्पणियाँ भी बहुत ही शानदार हैं !
    सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई..
    जय हो :)

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  27. आलेख और उसकी अवधारणा, दोनों ही पसंद आये. देश के अनेक अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी रहा हूँ और विदेश में भी, इसलिए हिन्दी सेवा में फिल्मों और धर्म की भूमिका की अच्छी जानकारी है. बाकियों से परिचय न हिंदी क्षेत्र में हुआ न उसके बाहर.

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  28. लेखक इब्‍ने सफी बीए और हिन्‍दी अनुवादक प्रेमप्रकाश बीए। जासूसी दुनिया प्रेमियों को खबर जरूर होगी कि ये किताबें आजकल मद्रास से रीप्रिंट हो कर एएचव्‍हीलर पर 60 रु. में मिल जा रही हैं। दूसरा महत्‍वपूर्ण नाम याद आता है कुसुम प्रकाशन, जिसमें भयंकर जासूस सीरीज के लेखक नकाबपोश 'भेदी' और प्रमुख पात्र इंस्‍पेक्‍टर वर्मा-सार्जेन्‍ट रमेश होते। इसी तरह भयंकर भेदिया सीरीज के लेखक सुरागरसां होते और जासूस जोड़ी बैरिस्‍टर सुरेश-सहकारी कमल कहलाती।

    हिन्‍दीसेवी बुल्‍के जी, फादर बुल्‍के के बजाय बाबा बुल्‍के कहलाने लगे थे। उन्‍होंने शायद हिन्‍दी सेवा का कोई घोषित किस्‍म का व्रत नहीं लिया, लेकिन सहज भाव से जहां इस भाषा को आवश्‍यकता थी, ऐसे क्षेत्र की पहचान की, जिससे भाषा को मजबूत किया जा सके और वहां उनके प्रयास से जो संभव था, किया। उनके द्वारा तैयार शब्‍दकोश और रामकथा शोध, इसी का परिणाम और उदाहरण है।



    हिंदी की जय बोल |

    मन की गांठे खोल ||


    विश्व-हाट में शीघ्र-

    बाजे बम-बम ढोल |


    सरस-सरलतम-मधुरिम

    जैसे चाहे तोल |


    जो भी सीखे हिंदी-

    घूमे वो भू-गोल |


    उन्नति गर चाहे बन्दा-

    ले जाये बिन मोल ||


    हिंदी की जय बोल |

    हिंदी की जय बोल |

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  29. हम में से अधिकतर, बच्‍चों के सिर्फ अंगरेजी ज्ञान से संतुष्‍ट नहीं होते बल्कि उसकी फर्राटा अंगरेजी पर पहले चमत्‍कृत फिर गौरवान्वित होते हैं। चैत-बैसाख की कौन कहे हफ्ते के सात दिनों के हिन्‍दी नाम और 1 से 100 तक की क्‍या 20 तक की गिनती पूछने पर बच्‍चा कहता है, क्‍या पापा..., पत्‍नी कहती है आप भी तो... और हम अपनी 'दकियानूसी' पर झेंप जाते हैं। आगे क्‍या कहूं आप सब खुद समझदार हैं।

    बहुत ही सटीक लगी...
    सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई..

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  30. बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक आलेख ...तैरने का आनंद तो अपनी मातृभाषा में ही ..
    आपने कई प्रशस्त अवदानों की याद दिला दी ,ऋषि तुल्य बाबा बुल्के की भी -आभार !

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  31. बहुत ही सहजता से आपने हिंदी का आधुनिक इतिहास लिखा है। मेरी समझ से हिंदी का उत्थान करने के लिये अच्छे लेखकों की उत्क्रृष्ट रचनाओं की आवश्यकता सबसे ज्यादा है कोई भी भाषा थोपी नही जा सकती जब तक उसमे रोचक सामग्री उपल्ब्ध न हो ।

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  32. बस एक सवाल कि साहित्य की कमी का रोना रोनेवाले लोग यह बताएँगे कि वे कितनी किताबों के नाम जानते हैं या इसका क्या आधार पाते हैं कि रोचक साहित्य नहीं है। हाँ, कुछ क्षेत्रों में अगर साहित्य नहीं है, तो उसमें लेखक का कोई दोष नहीं। क्यों लिखे वह? जब न पढ़ने वाले हैं, न सम्मान करने वाले। और उन्हें पूछता कौन है?

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  33. हिन्दी के बारे में बहुत जानकारी मिली है
    हिंदी दिवस पर
    बहुत ही रोचक और विश्लेष्णात्मक पोस्ट
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    *************************
    जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

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  34. आपका जवाब नहीं | बहत शोध किया है आपने इस लेख के लिए |
    धन्यवाद इतनी सारी जानकारी के लिए |

    मेरी भी रचना देखें |
    **मेरी कविता:राष्ट्रभाषा हिंदी**

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  35. रविकर जी के लिए टिप्पणी करना आसान है। एक बार लिखकर लगाते जा रहे हैं। अच्छा ही है।

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  36. बहुत ही अच्छी पोस्ट....कई बातों की जानकारी मिली...

    फादर कामिल बुल्के के शब्दकोष जैसा तो कोई शब्दकोष नहीं...खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि बुल्के जी के साक्षात दर्शन का अवसर भी मिला

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  37. ये ब्लॉग जगत का बहुत बड़ा लाभ है कि समान विचारों वाले लोगों से परिचय हो जाता है जो वास्तविक जिन्दगी में शायद ही संभव होता। हिन्दी और हिन्दी दिवस के बारे में कमोबेश यही विचार अपने रहे हैं और अपने दायरे में ऐसे विचार रखने वाला मैं अकेला ही होता था।

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  38. हिन्‍दी के सन्‍दर्भ में आपकी यह पोस्‍ट तो अपने आप में एक सन्‍दर्भ सागर है। मजा आ गया। वाह-वाह। साधुवाद।

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  39. कामिल बुल्के जी का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता. उस फादर को नमन. जासूसी ओउस्तकों में तिलस्मी किस्म की भी हुआ करती थी. "ऐय्यारी" शब्द से उन्हीं के माध्यम से परिचित हुआ था. सुन्दर आलेख.

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  40. विचारोत्तेजक लेख ...किन्तु बहुत सी बातों से सहमत नहीं हो पाया मैं यहाँ .....परन्तु बहुत सोधोप्रांत लेख लिखा है आपने ...बहुत बहुत बधाई

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  41. लाजवाब ..
    बधाई ..
    - डा. जेएसबी नायडू (रायपुर)

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  42. @ कहा जाता है कि खत्री जी की इन किताबों को पढ़ने के लिए लोगों ने हिन्‍दी सीखी। उन्‍होंने शायद कभी हिन्‍दी सेवा का दंभ नहीं भरा....

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    यही सच्चाई है। जो लोग असल हिन्दी सेवक होते हैं वह कहीं भी हिन्दी सेवा वाला नगाड़ा टनटनाते नहीं चलते, वह केवल अपना काम किये जाते हैं और लोग खुद ब खुद प्रेरित हो जुड़ते चले जाते हैं। हिन्दी फिल्में भी उसी श्रेणी में हैं। वे लोगों को आकर्षित करती हैं और गैर हिन्दी भाषी सहज ही खिंच जाता है।

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  43. मुझे भी काम के सिलसिले में अंग्रेजी बोलना पड़ता है लेकिन अभी तक मैं सहज रूप से अंग्रेजी नहीं बोल पता..खुद को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाता अंग्रेजी में..

    एक बार की बात याद आती है, मेरे ऑफिस में एक प्रेजेंटेसन था जिसे मुझे ही देना था..मेरे टीम मैनेजर ने मुझसे कहा की एक दो बार प्रैक्टिस कर लो..उनके सामने दो बार डेमो दिया भी लेकिन उनको कुछ सही नहीं लग रहा था..उन्होंने मुझे कहा, तुम शायद इस इन्वेस्टमेंट के कांसेप्ट को समझे नहीं अब तक..क्यूंकि तुम समझा नहीं पा रहे हो सही से..
    बात थी ये की मैं बहुत अच्छे से समझ चूका था जो भी कांस्पेट था..लेकिन शायद अंग्रेजी में सही से व्यक्त नहीं कर पा रहा था..मैंने मैनेजर को कहा की एक बार आप मुझे इजाजत दें, मैं हिन्दी में ये डेमो आपको देकर दिखाता हूँ..आपको यकीन हो जाएगा की मैं कांसेप्ट समझ गया हूँ...वो मान गए..
    प्रेजेंटेसन जब खत्म हुआ तो वो बस यही कह पायें - इट्स परफेक्ट.. :)

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  44. सवाल होता है, हिन्‍दी दिवस मनाने से क्‍या होगा? पता नहीं, लेकिन जवाब मैं इस सवाल से मिला कर ढूंढने का प्रयास करता हूं, क्‍या जन्‍म दिन मनाने से आयु बढ़ जाती है?


    बहुत कांटे की बात लिखी है आपने.आपसे पूर्णतया सहमत हूं. पता नहीं क्यों हम सच से मुंह फेर कर बैठे रहते हैं.

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  45. हिंदी फिल्मों और जासूसी उपन्यासों के दौर के पहले के काल पर विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि हिंदी के विकास में उत्तर भारतीय संतों की लोकभाषा, वेंकटेश्वर प्रेस मुंबई से प्रकाशित हिंदी पुस्तकें, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रचे गए देशभक्ति के गीत और गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

    पी.एच.डी. उपाधि के लिए फादर कामिल बुल्के द्वारा प्रस्तुत किया गया शोधग्रंथ हिंदी का पहला शोधग्रंथ था। इसके पहले हिंदी में पी.एच.डी. करने वाले भी अंग्रेजी में शोधग्रंथ लिखते थे, ऐसा नियम ही था।
    कामिल बुल्के को हिंदी प्रेमी कमल बुलाकी भी कहते हैं।

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  46. हिंदी दिवस पर कुछ महत्वपूर्ण नामों का सार्थक स्मरण कराया है आपने. हिंदी सिनेमा में नीरज जी का योगदान भी महत्वपूर्ण है, जो आज भी सक्रीय हैं.

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  47. हिंदी अब सरकारी-आयोजन के ज़रिये एक कमाऊ साधन बन गई है ! एकदिनी,साप्ताहिक या पखवाड़ा आयोजित करने के नाम पर आज केवल पाखंड हो रहे हैं,फिर भी ,अन्य स्तरों पर हिंदी अपने आप समृद्ध हो रही है !पहले तो जो विकास हुआ ,सो हुआ ही, अब हम सब अपने-अपने स्तर से प्रयासरत हैं !
    आपने इस बहाने योगदान करने वालों को याद किया,आभार !

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  48. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने,
    बधाई,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  49. फादर कामिल बुल्के से हिंदी फिल्मों तक इतिहास गिनवा दिया कुछ सालों बाद इसमें हिंदी ब्लॉगिंग भी शामिल हो जायेगी । हिंदी दिवस का ये फायदा तो हुआ ही कि आपका सुंदर आलेख पढने को मिला ।
    कवियों में गोपाल दास नीरज जी और लेखकों(लेखिकाओं ) में शिवानी जी की भाषा बहुत अच्छी लगती है ।

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  50. बहुत ही तथ्य परक आलेख आपनें लिखा है| बधाई और आभार|

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  51. Rahul bhai ,aapne to puraney beete din yaad dila diye/wo din bhi kitney sunder they/apney jamaney me lugdi sahiya kah kar nakari jane wali in kitabon ne kitna romanchak maya jaal racha tha wo to koi pathak hi bayan kar sakta hai/aaj bhi unki maang hai ye unke reprint se sabit hai/mai bhi usdaur se guzra hoon aur jiya hai un durlabh palon aur sahitya ko bho/aapne yaden taza kar hum sabhi ko punarjeevit kar dioya/aabhaar bandhu,dhanyavaad bhi/sader,
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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