सितम्बर का महीना। 14 तारीख आने में अभी समय है। हिन्दी दिवस पर कुछ बात कहने की पृष्ठभूमि में फिलहाल अन्य भाषाओं (और लिपि) से संबंधित फुटकर कुछ नोट, अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी (सन 1952) को बांग्ला युवाओं की शहादत का स्मरण करते हुए-
# ककहरा से शुरू करें। अंगरेजी (रोमन) अल्फाबेट के सभी 26 अक्षरों से बना छोटा सा सार्थक वाक्य, जो अब अधिकतर दिखता है, फान्ट के नमूने के लिए, पहले इसी वाक्य से टाइपराइटर सुधार के बाद ट्रायल होता था, आप परिचित जरूर होंगे लेकिन हमेशा मजेदार लगता है- The quick brown fox jumps over the lazy dog. ऐसा ही एक अन्य लोकप्रिय वाक्य है- Pack my box with five dozen liquor jugs और बिना दुहराव के, ठीक 26 अक्षरों वाला वाक्य- Mr. Jock, TV quiz PhD, bags few lynx है। टाइपराइटर कुंजीपटल की एक पंक्ति के अक्षरों को मिला कर सबसे लंबा सार्थक शब्द TYPEWRITER ही बनता है और उल्टा-सीधा एक समान के प्रचलित उदाहरण हैं- WAS IT A CAR OR A CAT I SAW. या A NUT FOR A JAR OF TUNA. इसी तरह हिन्दी में 'कोतरा रोड में डरो रात को।' (कोतरा रोड, रायगढ़, छत्तीसगढ़ में है.)
# कुछ नमूने देखिए-
# एक नमूना यह भी-
अंगरेजी में स्पेलिंग और प्रूफ की गलतियों के लिए और क्या कहें? हां! याद आ रहा है, 1980 के दौरान 'हिंदी एक्सप्रेस' पत्रिका निकलनी शुरू हुई, जिसके पहले अंक का एक उद्धरण- 'पत्रिका में सबकी रुचि का ध्यान रखा गया है, प्रूफ की भूलें भी हैं, क्योंकि कुछ लोगों की रुचि सिर्फ इसी में होती है।'
# संस्कृत में भाषा के कितने ही कमाल हैं, पहले पहल रामरक्षास्तोत्र के ''रामो राजमणिः सदा विजयते...'' से अकारांत पुल्लिंग कारक रचना का एकवचन याद करने का आइडिया जोरदार लगा था, उसी तरह एक अन्य प्रयोग जिसमें सवाल ही जवाब हैं-
प्रश्न- का काली अर्थात् काली वस्तु क्या है?
उत्तर- काकाली (काक+आली) कौओं की पंक्ति।
प्रश्न- का मधुरा अर्थात् मधुर क्या है?उत्तर- काकाली (काक+आली) कौओं की पंक्ति।
उत्तर- काम धुरा (काम+धुरा) अर्थात् कामदेव का अनुग्रह वहन।
प्रश्न- का शीतलवाहिनी गंगा अर्थात् शीतलवाहिनी गंगा कौन है?
उत्तर- काशी-तल-वाहिनी गंगा अर्थात् काशी तल में प्रवाहित गंगा शीतल है।
प्रश्न- कं संजघान कृष्णः अर्थात् कृष्ण ने किसको मारा?
उत्तर- कंसं जघान कृष्णः अर्थात् कृष्ण ने कंस को मारा।
प्रश्न- कं बलवन्तं न बाधते शीतम् अर्थात् किस बलवान को शीत नहीं बाधता?
उत्तर- कंबलवन्तं न बाधते शीतम् अर्थात् कंबल वाले को शीत नहीं बाधता।
# कुछ नमूने देखिए-
हम बचपन में 'का ग द ही ना पा यो' का खिलवाड़ करते हुए का, काग, गदही, कागद, दही, ना, हीना, नापा, पायो, यो जैसे शब्द तोड़-मरोड़ करते थे। निराला जी ने 'ताक कमसिनवारि' को ताक कम सिन वारि, सिनवारि, ता ककमसि, नवारि, कमसिन, कमसिननारि आदि में तोड़ने का प्रयोग किया है। THE PEN IS MIGHTIER THAN THE SWORD वाक्य के शब्द PENIS, THIS, WORD, TEAR, SWARD, MIGHTY, EARTHEN, बन कर कई अर्थछटाएं बनती हैं। यह उद्धरण ऐसी-वैसी जगह से नहीं, अज्ञेय के संग्रह शाश्वती में ऐसे और भी नमूनों सहित यह VARIORUM शीर्षक से है।
# एक नमूना यह भी-
i cdnuolt blveiee taht I cluod aulaclty uesdnatnrd waht I was rdanieg. The phaonmneal pweor of the hmuan mnid, aoccdrnig to a rscheearch at Cmabrigde Uinervtisy, it dseno't mtaetr in waht oerdr the ltteres in a wrod are, the olny iproamtnt tihng is taht the frsit and lsat ltteer be in the rghit pclae. The rset can be a taotl mses and you can sitll raed it whotuit a pboerlm. Tihs is bcuseae the huamn mnid deos not raed ervey lteter by istlef, but teh wrod as a wlohe. Azanmig huh? yaeh and I awlyas tghuhot slpeling was ipmorantt! can you raed tihs?
अंगरेजी में स्पेलिंग और प्रूफ की गलतियों के लिए और क्या कहें? हां! याद आ रहा है, 1980 के दौरान 'हिंदी एक्सप्रेस' पत्रिका निकलनी शुरू हुई, जिसके पहले अंक का एक उद्धरण- 'पत्रिका में सबकी रुचि का ध्यान रखा गया है, प्रूफ की भूलें भी हैं, क्योंकि कुछ लोगों की रुचि सिर्फ इसी में होती है।'
# मोड़ी या मुडि़या लिपि के उदाहरण एक वाक्य में 'सेठजी अजमेर' को 'सेठजी आज मर', 'रुई ली' को 'रोई ली' और 'बड़ी बही' को 'बड़ी बहू' पढ़ने की बात बताई जाती है। तात्पर्य ''सेठजी का अजमेर शहर जाना, रुई लेना-खरीदना और बही-खाता भेजना'' का समाचार सेठ जी के मरने, रो लेने और बड़ी बहू को भेजने का संदेश बन जाता है। कहा जाता है कि यह गड़बड़ मात्रा न लगाने या कम लगाने के कारण होती थी, अगर रोमन के उदाहरण से अनुमान लगाएं तो ए, ई, आई, ओ, यू का इस्तेमाल किए बिना लेखन की तरह।
# सन 1880 में यूरोप और एशिया से हजारों लोग 'हवाई' के शक्कर कारखानों में काम करने के लिए लाए गए। अप्रवासियों में अधिकांश चीनी, जापानी, कोरियाई, स्पेनी व पुर्तगाली थे, जो न तो मालिकों की अंगरेजी समझ पाते थे न ही मूल हवाई निवासियों की भाषा। पुरुष काम में तो महिलाएं चूल्हा-चौकी में लगी रहतीं। भाषा के लिए किसी के पास समय कहां?, लेकिन बच्चों का काम कैसे चले। आपसी समझ के लिए पहले तो अशुद्ध खिचड़ी अंगरेजी प्रयुक्त होती रही लेकिन 25-30 साल बीतते, नई पीढ़ी आ जाने पर, विशिष्ट अजनबी सी भाषा विकसित हो गई। इस भाषा, वर्तमान हवाई क्रिओल में द्वीपवासियों की सभी मूल भाषाओं के शब्द हैं किन्तु इसके व्याकरण की साम्यता अन्य से किंचित ही है।
हवाई विश्वविद्यालय के भाषाशास्त्र के प्रो. डेरेक बिकर्टन ने इस भाषा के तीव्र विकास का अध्ययन किया है और वे अपनी पुस्तक Roots of Language में इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह भाषा पूरी तरह से बच्चों के खेल की उपज है। बिकर्टन के अनुसार उनके पालकों के पास भाषा समझने-सीखने का वक्त नहीं था और वह जबान भी नहीं जिसे वे अगली पीढ़ी को दे सकते। वे यह भी इंगित करते हैं कि निश्चय ही आरंभ में पालक भी इस नई भाषा को समझ सकने में असमर्थ रहे, उन्होंने भी यह भाषा अपनी नई पीढ़ी से सीखी। दुनिया की एकमात्र ज्ञात भाषा, जो बड़ों ने बच्चों से सीखी। भाषा हमेशा किसी की बपौती हो, जरूरी नहीं। वैसे भी भाषा तो मातृभाषा होती है।
दूसरी तरफ भाषाशास्त्री गणेश देवी का कथन- 'हर भाषा में पर्यावरण से जुड़ा एक ज्ञान जुड़ा होता है. जब एक भाषा चली जाती है तो उसे बोलने वाले पूरे समूह का ज्ञान लुप्त हो जाता है, जो एक बहुत बड़ा नुकसान है क्योंकि भाषा ही एक माध्यम है जिससे लोग अपनी सामूहिक स्मृति और ज्ञान को जीवित रखते हैं।' और वेरियर एल्विन 1932-35 की अपनी डायरी में तटस्थ दिखते हुए फिक्रमंद जान पड़ते हैं, इन शब्दों में- 'मंडला जिले के गोंड, बड़ी सीमा तक अपना कबीलापन खो चुके थे। वे अपनी भाषा खो चुके थे।'
एक और बात, पापुआ-न्यू गुयाना की, लगभग 452000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में निवास करने वाली कोई 70 लाख आबादी, 850 से अधिक भाषाएं इस्तेमाल करती है, जिसमें एक इशारों वाली 'भाषा' भी है। भाषाई विविधता की दृष्टि से इसके मुकाबले और कोई नहीं।
# शायद नवनीत पत्रिका में कभी प्रकाशित हुआ- भाषावैज्ञानिक अध्ययन का एक निष्कर्ष, सामान्यतः माता-गृहिणी का शब्द भंडार 4000 शब्दों का होता है। टिप्पणी- "इतनी कम लागत और इतना बड़ा कारोबार।"
महिलाओं से क्षमा सहित, आशय कि सोच रहा हूं- ब्लागरों के मामले में यह बात किस तरह लागू होगी। क्षमा पर्व का माहौल है, ब्लागरों से क्षमा सहित।
मैं कुछ और जोड़ना चाहता हूँ -
ReplyDeleteभाषा की बात हो नोम चोमस्की कहीं उद्धृत न हों,थोड़ी हैरानी होती है !
रही अपुन की भाषा हिन्दी की बात तो आम आदमी की बोलचाल की भाषा के पैरोकारों ने हिन्दी का बड़ा कबाड़ा किया है.....
हमेशा आम आदमी की बोलचाल भाषा के आधार पर ही हिन्दी का मूल्यांकन उचित नहीं है -हिन्दी विद्वानों की विद्वानों के लिए भी एक भाषा है और उसे हर कहीं जबरदस्ती बोलचाल की भाषा तक लाये जाने का कोई औचित्य नहीं है -दृश्य मीडिया ने हिन्दी को जन जन तक तो जरुर पहुंचाया है मगर उसने हिन्दी का बहुत अहित भी किया है -हर काम -बौद्धिक विमर्श बोलचाल की ही भाषा में ही क्यों हों? दरअसल अक्सर बोलचाल की भाषा के पैरोकार वे ज्यादा लोग हैं जिन्हें हिन्दी की अन्तर्निहित क्षमताओं का ज्ञान नहीं है .....
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। शायद ऐसे ही और ऐसे भी विकसित होती है।
ReplyDelete"i cdnuolt blveiee taht I cluod aulaclty uesdnatnrd waht I was rdanieg. The phaonmneal pweor of the hmuan mnid, aoccdrnig to a rscheearch at Cmabrigde Uinervtisy, it dseno't mtaetr in waht oerdr the ltteres in a wrod are, the olny iproamtnt tihng is taht the frsit and lsat ltteer be in the rghit pclae. The rset can be a taotl mses and you can sitll raed it whotuit a pboerlm. Tihs is bcuseae the huamn mnid deos not raed ervey lteter by istlef, but teh wrod as a wlohe. Azanmig huh? yaeh and I awlyas tghuhot slpeling was ipmorantt! can you raed tihs?"
ReplyDeleteमान गए साहब ... इसे अपने फेसबुक के लिए लिए जा रहा हूँ यहाँ से ... बहुत बहुत आभार आपका ...
इन 4000 शब्दों को दुनिया प्रणाम करती है।
ReplyDeleteसंस्कृत का लालित्य और शब्द चमत्कार अद्भुत है. रोमन लिपि के नमूने को पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं हुयी ......बिना रुके पढ़ा और मज़ा आया.
ReplyDeleteअरविंद मिश्र जी के कथन से पूरी तरह सहमत हूँ. परिष्कृत हिन्दी को बोलने में कम से कम विद्वानों को तो आपत्ति नहीं होनी चाहिए. विद्वत्सम्भाषा में बोलचाल की लोकभाषा से काम नहीं चलाया जाना चाहिए.
क्या बताऊं सर जी इस ब्लाग का उच्च स्तर देख कर आँखें चुधिया गयी हैं , होश फाख्ता हो गए और मैं चारो खाने चित्त .संस्कृत वाला पोर्शन संभाले नहीं संभला.चारो खाने चित्त वहीं पर हुआ. संस्कृत की एक कविता के विषय में सुना है कि आगे से पढ़ने पर रामायण की कथा आती है तो पीछे से पढ़ने पर महाभारत की.भाषा में भी चमत्कार ...
ReplyDeletehttps://ci.nii.ac.jp/ncid/BA84457589?l=en
DeleteBejod post.
ReplyDeleteअपन तो इतना ही जानते हैं कि जिन शब्दों में अपने को अभिव्यक्त कर सकें, वही उत्तम है। अब विद्वान लिखें और विद्वान ही बांचें यह तो होता ही रहा है।
ReplyDeleteसंस्कृत भाषा से संबंधित पैरा बहुत अच्छा लगा। ऐसे और भी प्रश्न-उत्तर हो तो शेयर कीजियेगा।
ReplyDeleteआज आप खासा जोखिम ले रहे हैं ...:-)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
प्रश्न और उत्तर एक से !!!!! - चमत्कारिक.
ReplyDelete"The quick brown fox jumps over the lazy dog." पढ़कर याद आ गया कि अंग्रेजी टाइपराइटर सुधारने वाले जब भी आते थे तो सुधार कार्य के बाद यही वाक्य टाइप कर के चेक किया करते थे, क्योंकि इस वाक्य में अंग्रेजी के छब्बीसों अक्षर आ जाते हैं।
ReplyDeleteसंस्कृत के इन प्रश्नों का ज्ञान आज पहली बार हुआ। पहले होता भी कैसे? आठवीं कक्षा के बाद तो संस्कृत से नाता ही टूट गया था। नाता रह गया था तो गणित, भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र से।
किन्तु राहुल जी, मुझे लगता है कि इस पोस्ट में आपने उर्दू का कहीं भी जिक्र न करके कहीं अन्याय तो नहीं किया है?
बढ़िया. इस प्रश्नोत्तर के तर्ज पर निराला की एक कविता भी है शायद?
ReplyDeleteसंस्कृत की एक सूक्ति है -
ReplyDeleteकस्यस्विदधनं = यह धन किसका है ?
क अस्य स्विदधनं = यह धन क नामक प्रजापति का है..
भाषा निर्माण पर जानकारी देती हुयी सुन्दर पोस्ट के लिए आभार
बढ़िया पोस्ट,काम की जानकारी,आभार.
ReplyDeleteसंस्कृत के उद्धरण ने हमारे संस्कृत शिक्षक श्री कौशल किशोर त्रिपाठी की याद दिला दी... यह पूरा उद्धरण आज भी याद है.. उन्होंने तो प्र, परा, अप, सं, अनु, अव... आदि सारे उपसर्ग ऐसे याद करवा दिए थे कि आज भी जुबान से नहीं उतरते.
ReplyDeleteआगे पंडित जी (डॉ. अरविंद मिश्र) जी की बात से सहमति. जिनके लिए हिन्दी बोलचाल में सांस्कृतिक शब्दों के प्रयोग से कोई परेशानी नहीं होती उन्हें अवश्य करना चाहिए. और फिल्मों ने जहां हिन्दी के माध्यम से देश को जोड़ा है, वहीं भाषा की भी ह्त्या की है!!
जानकारी भरी पोस्ट ...
ReplyDeleteरोचक और ज्ञानवर्धक
ReplyDeleteराहुल भाई बहुत ही अच्छा विषय है १४ सितम्बर को हिंदी दिवस मेरी नजर में तो मात्र रश्म अदायगी ही है मुझे याद है मै सी सी आई में सेवा में था तब हिंदी पखवारा मनाया जाता था अनेकों प्रतियोगिताएं होती थी लगभग हर साल ही मैं सर्वाधिक पुरस्कार जीता करता था किन्तु मन कहीं न कहीं तो कचोटता ही था कि क्या मात्र हिंदी पखवारा मनाकर ही हम हिंदी के विकास के लिए कुछ कर पाएंगे एक बार इन्ही प्रतियोगिता में भाग लेते समय मैंने प्रशिद्ध लेखिका शिवानी का एक लेख पढ़ा था हिंदी पर ही उन्होंने लिखा था कि हिंदी की स्थिति उसी तरह है कि ** मोर पिया मोरी बात न पूछे तौऊ सुहागन नाम **
ReplyDeleteहर वर्ष की ही तरह क्या इस साल भी यह रश्म अदायगी नहीं होगी
सर , पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और इस ब्लॉग में बसा हुआ ज्ञान को देख कर चकित हूँ , कि मैं अब तक यहाँ क्यों नही आ पाया . आपके लेखन कौशल को प्रणाम करता हूँ और अब हमेशा ही आने की कोशिश करूँगा .
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.
आपको इस पोस्ट के लिये बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
bahut hi gyanverdhak aur bahumulya psot ke liye aapko bahut bahut badhai...........jankari paker bahut accha laga......her baar ki tareh hi ya kahe ki aur bhi acchi prastuti ke liye dhanywaad........itna gyan aap kaha se samet late hai .samj nahi aata .......wakai aapke pass to gyan ka bhandar hai .......kosis karunga ki jab bhi mauka lage aapke paas aker kuch sikh saku.........aabhar
ReplyDeleteसभी भाषाओँ का विकास की प्रक्रिया एक जैसी ही रही है.... ज्ञानवर्धक आलेख... हिंदी समृद्ध हो रही है.. भले संस्कृत की बलि देकर...
ReplyDeleteअतिरोचक ज्ञानवर्धक व आनंददायी आलेख....
ReplyDeleteउदहारण जो आपने दिए हैं...ओह...
मुग्ध भाव से पढ़ा...
आभार....
अद्भूत पोस्ट. भाषा की यह विलक्षणताएं अचंभित करती हैं.
ReplyDeleteदेर से आया यहाँ। बहुत संतुष्ट नहीं हो सका इस लेख से। वैसे कोशिश करने की इच्छा कुछ दिनों से है कि हिन्दी में भी एक वाक्य या पद्यांश ऐसा हो जिसमें सब वर्ण आ जायँ। संस्कृत की जिस कविता की बात ब्रजकिशोर जी कर रहे हैं, उसे देखने की तीव्र इच्छा है। शायद और कुछ कहेंगे आप जल्द ही यानि 14 सितम्बर तक। अद्भुत पोस्ट नहीं कह सकता। लेकिन ठीक है। आगे का इन्तजार है।
ReplyDeleteइतनी बेहतरीन जानकारी...और इतना सारा क्षमायाचन?? :)
ReplyDeleteसंस्कृत को हमारे राजनीतिबाजों ने मृत बना दिया और हमने भी उसमें योगदान दिया.
ReplyDeleteअब अगर हिन्दी बची है तो उसका कारण है, फिल्में, टीवी और श्रमिक.
आपकी फोटो बहुत अच्छी लगती है, किसी बच्चे की मासूमियत उसमें से छलक रही है.
बहुत रोचक बातें. हवाई की बात पढ़ते हुए सोचा कि शायद जब अचानक प्रवासी बन कर लोग नयी जगह पहुँचते हैं तो शायद ऐसा अक्सर होता हो कि बच्चे ही नयी भाषा का निर्माण करें. अफ्रीकी क्रियोल भी तो कुछ ऐसी ही है, हिन्दी, अरबी और अफ्रीकी शब्दों से बनी.
ReplyDeleteभाषा पर विवेचना अच्छी रही, महिलाओं के पास शब्द भले कम हों लेकिन वार बखूबी पड़ता है। शायन चयन की निपुणता उनके पास अधिक हो। हिंदी के पिछड़ने कारण भी यही रहा कि उसमे दूसरी भाषाओं को समाहित करने के बजाय विज्ञान आदि विषयों के क्लिष्ट शब्द जोड़ दिये गये। अब हिंदी में दूसरी भाषाओं के शब्द जोड़े जा रहे हैं तो इस प्रकार कि मौलिकता के लिये जगह ही नही बची। यथा सिटी भास्कर
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट,काम की जानकारी,आभार.
ReplyDeleteज्ञानवर्द्धक और उपयोगी आलेख … आभार !
ReplyDeleteशायद इसकी और कड़ियां भी आएंगी…
देखते रहेंगे ।
*माता-गृहिणी का शब्द भंडार 4000 शब्दों का होता है*
'इतनी कम लागत और इतना बड़ा कारोबार' :)
बहुत सटीक. अच्छा ज्ञानवर्धन हुआ.
ReplyDeleteसहमत पूरी तरह।
ReplyDeleteसंस्कृत भाषा के कमाल पसंद आये, धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आनन्द आया यह पोस्ट पढ कर। निश्चय ही गए जन्म में कोई पुण्य किया होगा कि इस जन्म में आपको पढ रहे हैं, आपसे बतिया रहे हैं।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ कर बहुत आनंद आया । मैने आपका अंग्रेजी वाला पैरा अपनी दस वर्षीय पोती से पढवाया और पाया कि मुझ से जल्दी उसनेपढ लिया । संस्कृत के श्लेषकारक वाक्य पढने में बहुत अच्छे लगे ।
ReplyDeleteपोस्ट बहुत रोचक है, भाषा के बारे में बहुत कुछ नया जानने को मिला.
ReplyDeleteसंस्कृत के ये वाक्य बहुत अच्छे लगे. ऐसी बहुत सी चीज़ें हमने भी पढ़ी थीं पर आज कुछ भी याद नहीं है. संस्कृत पढ़े वक्त भी बहुत बीत गया, हमारे स्कूल में सुविधा ही नहीं थी, ८वीं के बाद कंप्यूटर या इकोनोमिक्स में कुछ लेना अनिवार्य था.
बिहार से होने के कारण दो तरह की हिंदी का इस्तेमाल करती हूँ...बोलचाल की भाषा में हमारी हिंदी ऐसी होती है जो खड़ी बोली के व्याकरण पर नहीं चलती. कई बार लोगों को कहते सुना है कि ये गलत हिंदी है. मगर ये गलत हिंदी नहीं होती...वहाँ ऐसे ही बोलते हैं...सभी. वहीं जब लिखने की बात आती है तो सभी मात्राएं भी सही होती हैं और व्याकरण भी.
कमेन्ट थोड़ा ज्यादा लंबा हो गया. क्षमाप्रार्थी हूँ.
Azanmig ! ! !
ReplyDeletepost achchi likhi,
ReplyDeletesochna padega ,
naya janane ko mila... dhanyawad!
ReplyDeletechetan singh likes the above written article.
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