वह परिवेश, जो होश संभालने के पहले से देखते रहें, उससे एक अलग ही रिश्ता होता है, जन्मना। जो पहले से है, वह सदैव से विद्यमान, शाश्वत लगता है। अक्सर उसके प्रति वैसा कुतूहल भी नहीं होता, क्योंकि हमारी जानी दुनिया वही होती है, मन मानता है कि वही दुनिया है और उसे वैसी ही होना चाहिए।
किसी रामनामी को पहली बार कब देखा, याद नहीं। कह सकता हूं कि होश संभालने के पहले से देखता रहा हूं। रामनामियों से मेरा ऐसा ही रिश्ता रहा है। जब देखा कि लोगों को आश्चर्य होता है, जिज्ञासा होती है इनके बारे में, तो मुझे अजीब लगा। बाद में जाना कि इनके बारे में जानने कोई अमरीकी आया करता था, शोध किया, वे डॉ. लैम्ब रामदास हुए, उनकी पुस्तक है- Rapt in the name: the Ramnamis, Ramnam, and untouchable religion in Central India। कुछ और परिचित पत्रकार-लेखक, अध्येता-विद्वानों को रूचि लेते देखा। दसेक साल पहले सुन्दरी अनीता से रामनामियों पर उनके शोध के दौरान मुलाकात और फिर मेल-फोन से सम्पर्क बना रहा। अनीता को लंदन विश्वविद्यालय से इस अध्ययन Dominant Texts, Subaltern Performances:Two Tellings of the Ramayan in Central India पर डाक्टरेट उपाधि मिली, जिसमें रामकथा, विशेषकर रामचरितमानस के पदों की खास 'रामनामी' व्याख्या और इस अंचल की रामलीला में कथा-प्रसंगों की निराली प्रस्तुति को शोध-अध्ययन का विषय बनाकर सामाजिक संरचना को समझने का प्रयास है।
बड़े भजन मेलों और शिवरीनारायण मेले में रामनामियों के साथ समय बिता कर मैंने देखा-जाना कि वे दशरथनंदन राम के नहीं बल्कि निर्गुण निराकार ब्रह्मस्वरूप राम के उपासक हैं और इस भेद को अपने तईं बनाए रखने के लिए राम का नाम एक बार कभी भूले से भी प्रयोग नहीं करते, रामराम ही कहते, लिखते, पढ़ते हैं (छत्तीसगढ़ी में इन्हें रामनामी नहीं रामरामी या रमरमिहा ही कहा जाता है)। रामराम पूरे शरीर पर, कहने से स्पष्ट नहीं हो पाता कि गुदना शरीर के गुह्य हिस्सों सहित आंख की पलकों और जीभ पर भी होता है। समय बदला है। पूरे शरीर पर गोदना, कम होते-होते माथे पर रामराम तक आया फिर हाथ में, लेकिन अब बिना गुदना के रामनामियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
छत्तीसगढ़ में मेलों की गिनती का आरंभ अंचल की परम्परा के अनुरूप 'राम' अर्थात् रामनामियों के बड़े भजन से किया जा सकता है, जिसमें पूस सुदी ग्यारस को ध्वजारोहण की तैयारियां प्रारंभ कर चबूतरा बनाया जाता है, दूसरे दिन द्वादशी को झंडा चढ़ाने के साथ ही मेला औपचारिक रूप से उद्घाटित माना जाता है, तीसरे दिन त्रयोदशी को भण्डारा में रमरमिहा सदस्यों एवं श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण होता है।
संपूर्ण मेला क्षेत्र में अलग-अलग एवं सामूहिक रामायण पाठ होता रहता है। नख-शिख राम-नाम गुदना वाले, मोरपंख मुकुटधारी, रामनामी चादर ओढ़े रमरमिहा स्त्री-पुरूष मेले के दृश्य और माहौल को राममय बना देते हैं। परिवेश की सघनता इतनी असरकारक होती है कि मेले में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति, समष्टि हो जाता है। सदी पूरी कर चुका यह मेला महानदी के दाहिने और बायें तट पर, प्रतिवर्ष अलग-अलग गांवों में समानांतर भरता है। कुछ वर्षों में बारी-बारी से दाहिने और बायें तट पर मेले का संयुक्त आयोजन भी हुआ है। मेले के पूर्व बिलासपुर-रायपुर संभाग के रामनामी बहुल क्षेत्र से गुजरने वाली भव्य शोभा यात्रा का आयोजन भी किया गया है।
13 मई 2011 को इस हकीकत की कहानी, फिल्म्स डिवीजन के 51 मिनट के वृत्तचित्र, को सेंसर प्रमाण-पत्र मिला, जिसमें मैं विषय विशेषज्ञ के रूप में शामिल हूं। कमल तिवारी के कथालेख के साथ फिल्म शुरू होती है, कुछ इस तरह-
'समूची दुनिया किसी कथा के छूटे प्रभाव की तरह है' - योगवशिष्ठ कहता है। न जाने कितनी कथाएं हैं, जिनसे बनता है जगत।
एक कहानी यहां भी जी जा रही है। ... यहां श्रद्धा का एक सैलाब है जो तट पर बह निकला है। वैसे बहती श्रद्धा का आरंभ कहां होता है ... आत्मा का, विश्वासों का यह कौन सा भाव है जो अपने शरीर को ही वह पवित्र स्थल बना लेता है, जहां सारी श्रद्धा जैसे मंदिर की सी शक्ल में सिमट आती है। ... इसी आस्था की छुअन अपने शरीर पर लिये चले आए हैं। ये मेला है, आस्थाओं का समागम है, या जिन्दगी को जीने का एक अलग अंदाज़।
ये रामकहानी है, रामनामी समाज की। एक ऐसा समुदाय जो अपने होने में ही एक कथा है। इनके शरीर पर उभरते ये शब्द महज शब्द नहीं, जीवन को जीने के, समझने के सूत्र हैं। इन्हीं सूत्रों से बुनी गई है, रामनामी समाज की गाथा। वो गाथा जो एक सदी से कुछ ज्यादा समय में ले पाई है आकार। रामनामी समुदाय की पहचान है, उनके शरीर पर गुदने के रूप में लिखा रामराम। उनके सिर पर विराजता मोर मुकुट और बदन पर रामराम लिखा बाना।
... ट्रेलर समाप्त... आगे 'रुपहले परदे' पर देखना चाहें तो स्वयं उद्यम करें, या लाइव के लिए आ जाएं छत्तीसगढ़, आपका स्वागत है। आपने समझ लिया हो कि यह पोस्ट छत्तीसगढ़, फिल्म और स्वयं के प्रचार-प्रसार के लिए है, तो कहने की इजाजत लूंगा कि 'आप तो बड़े समझदार निकले।'
सभी तस्वीरें फिल्म निर्देशक भोपाल के सुनिल शुक्ल (अपना नाम वे इसी तरह लिखते हैं) ने उतारी हैं। मेरे प्रोफाइल वाली तस्वीर भी उन्हीं की ली हुई है। इस फोटो पर शुभाशंसा मिलती रही है, मैं सब से कहता हूं कि शकल तो वही है, जो हमेशा से है, लेकिन इसमें अलग कुछ है तो वह सुनिल जी की फोटोग्राफी के बदौलत है, सो इस मामले के सारे पिछले-अगले काम्प्लिमेंट, उन्हीं के नाम, रामराम।
28 सितंबर 2011, दैनिक भास्कर, रायपुरके सिटी भास्कर मुख्य पृष्ठ क्र. 17 की कतरन |
इस तरह से भी प्रकाशित हुआ |
अखिल भारतीय रामनामी महासभा के तत्वाधान में आयोजित वार्षिक सम्मेलन (रामराम बड़े भजन मेला) की यह वर्षवार सूची मुख्यतः श्री गुलाराम जी द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर है। वर्षवार भजन मेला एक-एक वर्ष महानदी के दाएं और बाएं आयोजित होता है। बाद में दाएं और बाएं दोनों ओर भी आयोजित हुआ, जिसे दा/बा से दर्शाया गया है।
1910-पिरदा, 1911-पिरदा, 1912-देवरबोड़, 1913-मंधाईभांठा
1914-दुर्ग, 1915-मुड़पार,
1916-परसाडीह, 1917-बड़े चुरेला
1918-छपोरा, 1919-छोटे चुरेला, 1920-सेंदरी,
1921-भिनोदा
1922-प्रधानपुर, 1923-कुरदी, 1924-भांठागांव, 1925-पिकरीपार
1926-जोगीडीपा, 1927-बटउपाली, 1928-जांजगीर, 1929-कोड़िया
1930-परसाडीह,
1931-रींवांपार, 1932-मोहतरा (बालपुर), 1933-कुटराबोर
1934-रमतला, 1935-पतेरापाली,
1936-बरभांठा, 1937-भटगांव
1938-भदरा, 1939-अकलतरा, 1940-बड़े सीपत,
1941-ग्वालिनडीह
1942-कोसीर, 1943-फगुरम, 1944-कटेकोनी, 1945-मड़वा,
1946-तालदेवरी, 1947-बिसनपुर, 1948-रायगढ़, 1949-सेन्दुरास
1950-केसला,
1951-दहिदा, 1952-मालखरौदा, 1953-खैरा
1954-ठठारी, 1955-छोइहा,
1956-सारसकेला, 1957-जेवरा
1958-रबेली, 1959-धनगांव, 1960-जवाली पुरेना,
1961-मल्दा
1962-करही, 1963-जमगहन, 1964-ओड़ेकेरा, 1965-डोमाडीह
1966-धुरकोट, 1967-मोहतरा, 1968-छपोरा, 1969-रईकोना
1970-खपरीडीह,
1971-चंदई, 1972-मौहापाली, 1973-पवनी
1974-सिंघरा, 1975-बलौदी-मुड़वाभांठा,
1976-कोरबा-छोटे सीपत, 1977-बरदुला-पासीद
1978-नरियरा, 1979-गोरबा, 1980-धुरुवाकारी,
1981-छिन्द, 1982-हरियाठी
1983-पंडरीपानी, 1984-बड़े पंड़रमुड़ा, 1985-सरसीवां,
1986-परसाडीह
1987-अरजुनी, 1988-सूपा, 1989-लेंन्ध्रा, 1990-कांशीगढ़
1991-कैथा, 1992-देवरीगढ़, 1993-नाचनपाली, 1994-पंडरीपानी-नवापारा दा-बा
1995-बिलासपुर-उरकुली दा-दा, 1996-परसदा-बेलादुला दा-बा
1997-खरकेना-कपिस्दा बा-दा,
1998-गौरादादर-खमरिया दा-बा
1999-मुनगाडीह-आनंदपारा (चुरेला) दा-दा,
2000-मरघटी-चरौदा बा-बा
2001-हरदी दा, 2002-चिस्दा-ठनगन बा-बा, 2003-दोमुहानी बा
2004-चारपारा बा, 2005-डंगनिया दा, 2006-बंदोरा बा
2007-शुक्लाभांठा दा,
2008-कुशियारीडीह-तुलसी बा-बा, 2009-पेलागढ़-गिरसानाला दा-दा,
2010-पिरदा (शताब्दी वर्ष) दा
2011-पंडरीपाली-बरतुंगा दा-दा, 2012-कुसमुल-कुटेला दा-दा
2013-बेल्हा (बिलाईगढ़) दा, रेड़ा (सारंगढ़) दा, रक्शा (कोसिर) दा
2014-रेड़ा से लालमाटी (हसौद) बा, रक्शा से बासिन (घोघरी) बा, बेल्हा से बिनौरी (मलार) बा
2015-कोदवा, 2016-रानीसागर-नगझर, 2017- इंदिरानगर (कोसीर)-तुषार,
2018- कुरदा-मुड़पार, 2019- सलौनीकला-गौराडीह, 2020- पिकरीपार,
2021- नंदेली-चंदलीडीह
अरे वाह! सदा की तरह रोचक जानकारी तो है ही, इस बहाने आपकी विशेषज्ञता को पर्दे पर देखने का अवसर भी मिलेगा। विदेश में यह फ़िल्म किस प्रकार देखी या प्राप्त की जा सकती है?
ReplyDeleteजी. हमेशा की तरह एक नयी और विलक्षण चीज़ की जानकारी दी है आपने. ऐसे और भी न जाने कितने विश्वास होंगे भारत में और बीती सदियों में बहुत से लुप्त हो चुके होंगे.
ReplyDeleteइस वृत्तचित्र का इंतज़ार रहेगा. क्या आप इसके कुछ अंश यूट्यूब पर या अपने ब्लौग पर एम्बेड कर कसते हैं?
https://youtu.be/kpyvEqtBEX0
Deleteइस हकीकत की कहानी फिल्म्स डिवीजन के 51 मिनट के वृत्तचित्र में आई है, जिसमें मैं विषय विशेषज्ञ के रूप में शामिल हूं।
ReplyDeleteआभार ||
पैले सबन कू तारीफ़ और वाहवाही करन देयो, हम बाद में आयेंगे ये कहने कि ’राजा नंगा है।’
ReplyDeleteपता नहीं क्यों, आपका ब्लॉग पढ़ नहीं पा रहा हूँ।
ReplyDeleteसंकलन योग्य लेख के लिए आपका आभार !
ReplyDeleteरामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम. रामराम.रामराम.
ReplyDeleteएक अलग ही सुख होता है आपके कथा-वाचन में... इस बार रामनामियों के बारे में जानकार अच्छा लगा.
रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम.रामराम. रामराम.रामराम.
निशांत मिश्र वाली querry हमारी भी समझी जाये। वैसे अपन तरजीह ’लाईव वर्ज़न’ को देंगे, जब भी मौका मिले।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का बहुत उत्सुकता से इंतज़ार रहता है, आज सुबह कहीं जाना था और जाने से जस्ट पहले एक बार लॉग-इन किया तो आपकी ’रामराम’ देखकर यहाँ आये तो कुछ और ही दिखा। इतना तो समझ ही गया था कि आपके ब्लॉग पर है तो कुछ अहम ही चीज होगी, फ़िर भी आपसे चुहल करने में मजा आता है इसलिये वैसा कमेंट कर गया था(वैसे ये स्पष्टीकरण आपके लिये नहीं है)
पोस्ट दर पोस्ट, आपके ज्ञान और सहजता से शेयर करने की विशेषता से और ज्यादा आपके मुरीद हुये जाते हैं।
रामराम।
प्रश्न वही है मेरा भी :)
ReplyDeleteसहेज रहा हूँ, यहाँ आ वैसे भी यही किया करता हूँ।
अच्छा तो यह बात है! रामराम की तैयारी हो रही थी। आपके लिए तो मैंने पहले भी कहा है 'पक्का छत्तीसगढ़ी'। फिर से पक्का छत्तीसगढ़ी। देखेंगे कभी। सरकार तक पहुंच रहे हैं आप…
ReplyDeleteरामनामियों का जिन्दगी जीने का एक अलग अंदाज़ ही तो है. वृत्त चित्र तो मै भी देखना ही चाहूँगा, यदि मिले तो.
ReplyDeleteपिताजी से सुना था इस बारे में बचपन में। फिर तो जैसे कि विस्मृत ही हो गया। आप ने फिर से याद दिला दिया। आभार।
ReplyDeleteअद्भुत, अनोखी, अनमोल जानकारी (अब तो ये शब्द भी बौने प्रतीत होने लगे हैं आपकी पोस्टों के सन्दर्भ में)हमेशा की तरह... मेरा सवाल कुछ और है कि इसकी सीडी/डीवीडी यदि उपलब्ध हो तो कृपया प्राप्त करने का पता एवं मूल्य बताने की कृपा करेंगे.. क्योंकि फ़िल्में भी मैं पाइरेटेड नहीं देखता.. फिर यह तो उनसे कहीं ऊपर है!!
ReplyDeleteइनके शरीर पर उभरते ये शब्द महज शब्द नहीं, जीवन को जीने के, समझने के सूत्र हैं।
ReplyDeleteवाह इसके बेहतर रामनामियों के लिये व्याख्या-सूत्र क्या हो सकता हैं। सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई और इससे परिचित कराने व पढ़ने का विशेष अपसर प्रदान करने का हार्दिक आभार।
राहुल जी, आप विशेषज्ञ तो हैं ही!
ReplyDeleteफिर भी फिल्म्स डिवीजन में विशेषज्ञ बनने के लिए बधाई!
रोचक जानकारी।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और बढ़िया जानकारी.
ReplyDeleteइतने करीब से कभी रामनामियों को नहीं जाना...आपकी पोस्ट के माध्यम से बहुत सी रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी मिली.
ये वृत्तचित्र दूरदर्शन पर या NDTV पर शायद कभी ना कभी जरूर दिखाया जाएगा.(
आप सूचित कीजियेगा.
बहुत ही रोचक और बढ़िया जानकारी ... बहुत बहुत आभार आपका साथ साथ बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteराहुलजी, आभार। पढाते रहिएगा। आपकी क्लास में बड़े ध्यान से सुन-समझ रहे हैं हम।
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी शायद यह वृतचित्र कभी हमें भी देखने को मिल जाये किसी न्यूजचैनल में.आभार आपका.और बहुत बधाई.
ReplyDeleteआदरणीय राहुलजी,
ReplyDeleteअति उत्तम.
बहुत ही बढ़िया ब्लॉग पोस्ट किया है आपने. दरअसल ये फिल्म ही आपकी बदौलत ही बन पाई है. पूरे डेढ़ साल लगे फिल्म को बनाने में. मेरे नाम के उल्लेख के लिए धन्यवाद.
सुनिल शुक्ल
@ सुनिल शुक्ला जी:
ReplyDeleteसुनिल साहब,
ब्लॉग प्रोफ़ाईल - सितंबर 2011,
profile views - 5.
यानि कि राहुल सर की यह पोस्ट ही सबब है प्रोफ़ाईल बनने की, तो एक ब्लॉग की शुरुआत भी हो जाये तो कैसा रहे?
सदा की तरह नई और रोचक जानकारी.
ReplyDeleteरामनामियों से मुलाकात का सुग्योग्य तो मिला, आपकी पोस्ट ने यादों को ताजा कर दिया। आभार
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteएक छोटी सी जिज्ञासा है।
मेरी कॉलोनी नहर के पास बनी है। रास्ते में एक मरघट पडता है। अक्सर देखता हूं कि शव के दहन के बाद लोग उसको पहनाया गा रामनामी वहीं फेंक कर चले जाते हैं। क्या यह उचित है?
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मनुष्य के लिए खतरा।
...खींच लो जुबान उसकी।
जानी-सुनी बात को भी आपकी लेखन शैली में पढ़ना और भी अच्छा लगता है। रामनामियों के बारे में कुछ और जानकारी मिली इसे पढ़कर, शुक्रिया भाई साहब। वृतचित्र तो मैं भी देखना चाहूंगा।
ReplyDeleteशायद 80 के दशक में बिलासपुर संभाग के रामनामियों पर ‘धर्मयुग‘ ने आवरण कथा प्रकाशित की थी। उसमें इनके मेलों, उत्सवों और परम्पराओं से संबंधित 3-4 आलेख और बहुत सारे रंगीन चित्र थे। वह सब आंखों के सामने वृत्तचित्र की भांति घूमने लगा। कभी संयोग हुआ तो आपका वृत्तचित्र भी देखेंगे।
ReplyDeleteई बिलाग चौंचक हौ. बनारस के डोमरजा पर कुछ बने के चाहीं. ब्रित्त न सही ऐते चित्र लेकिन बने के चाहीं.
ReplyDeleteज़ाकिर मियाँ,
उचित अनुचित तो बहुते है जइसे इहाँ आप का कमेंट एकदम विषय से बाहर है. अउर नीचे जो दू लिंक दिये हैं वह तो और भी अनुचित है. कभी बिना लिंक के भी कमेंट कर लिया करो. रैंक बढ़ावे खातिर एतना नीचे न गिरो कि जहाँ जाव वहीं ...
आदरणीय राहुलजी
ReplyDeleteरोचक जानकारी, बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
राहुल जी आपके ब्लॉग की खासीयत है कि आप हमेशा अलग से विषयों पर लिखते हैं । रामनामी संप्रदाय होता है और उनके बारे में आपके ब्लॉग पर ही जाना । बहुत आभार और राम राम ।
ReplyDelete@ आशा जोगळेकर जी
ReplyDeleteमुझे हमेशा लगता है कि दैनिक अखबारों और चौबीस घंटे के समाचार चैनलों के बाहर बहुत बड़ी, सच्ची सी दुनिया है, बस वहीं मन रमा रहता है. सादर धन्यवाद.
रामनामी समुदाय आपके क्षेत्र में मैंने भी देखा है ,वहाँ थोड़े दिन के प्रवास के दौरान जान पाया कि गुदना वाली कला छत्तीसगढ़ में कुछ ज़्यादा है.बाकी ,आप कला के क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा लगा रहे हैं,आभार
ReplyDeleteआज बहुत कुछ नया पढ़ने-समझने को मिला...आपका ब्लाग डिस्टेंस एजुकेशन सेंटर ते कम नहीं..जहां हमेशा कुछ अनोखा जानने को मिलता है
ReplyDeleteNice information, I was not aware about this community. Does presence of this community in Chhattisgarh further strengthen the theory of Rama spending his maximum exile in this region?
ReplyDeleteपहले ओपन नहीं हो रहा थी आपकी यह पोस्ट, काफी जंक दिख रहा था। अब पढ़ा। काफी रोचक जानकारी है। बहुत अलग किस्म की।
ReplyDeleteआप के सारे ब्लोग्स के विषय विशिष्टता लिए होते है और उससे भी खास होती है उनकी प्रस्तुति.
ReplyDeleteभारत के वास्तविक रूप से परिचित करानेवाली इस जानकारी से लाभान्वित हुई.
ReplyDeleteआभार !
ramnamayo se mila jarur tha par janta kam tha.jankari ke liye danywad. - vivek raj singh
ReplyDeleteBHAIYA PAHLI BAR APANE LAPTOP ME APKA POST PADA RAM JI KE NAM KA....
ReplyDeleteरामनामी पर शिवरीनारायण से लन्दन तक फैला पोस्ट ...
ReplyDeleteसब के लिए कुछ न कुछ ...
मेरे लिए सब कुछ ...
श्रध्हा और नमस्कार
अत्यन्त ही रोचक ..
ReplyDeletecame to know about the new dimension of your talents ..
शायद .. शब्द अपर्याप्त हैं .. आपकी अभिव्यक्तियों के तारीफ में ..
बधाई ..
- डा जेएसबी नायडू (रायपुर)
बढ़िया. रामनामियों से जुड़ी एक और पोस्ट पहले भी पढ़ा था कहीं. याद नहीं आ रहा. शायद अनिलजी के ब्लॉग पर.
ReplyDeleteहमें तो राम नामियों का पता ही नहीं था...इस रोचक जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteनीरज
ऐसी कुछ ब्लोग्पोस्ट्स अंतरजाल को समृद्ध बनाती हैं और हमारे विश्वास की रक्षा करती हैं कि इन्टरनेट का सही इस्तेमाल किया जाए तो बहुत कुछ अच्छा किया जा सकता है.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ कर अभिभूत हूँ...ऐसी समग्र जानकारी और इतना रोचक विषय. फिल्म देखने के लिए क्या करना होगा�?
यह पोस्ट पढ़कर सहसा दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली सांस्कृतिक पत्रिका 'सुरभि' की याद आ गयी. हम उस समय बहुत छोटे थे, लेकिन उस धारावाहिक को अवश्य देखते थे. अपने देश और उसकी रंग-बिरंगी संस्कृति को जानने की तीव्र इच्छा ही थी. विशेषतः ग्राम्य संस्कृति मुझे सम्मोहित करती है. छत्तीसगढ और झारखंड की कुछ आदिवासी जातियों के विषय में मेरी मित्र जो कि एक NGO में काम करती है, मुझे बताती रहती है.
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट मुझे बहुत अच्छी लगी. आपके ब्लॉग पर पहले भी एक-दो बार आ चुकी हूँ, पर इधर कुछ दिनों से तो ब्लॉग पढ़ना ही छूटा हुआ है. आज पूजा ने अपने बज़ पर इसे शेयर किया तो सहसा इस ब्लॉग की याद हो आयी.
mujhe khushi hai ki chhattisgarh ki is durlabh sanskrutik aur adhyatmik parampara ko kisi ne to sanjone ki kohish ki.poori team ko badhai,
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अद्भुत मगर प्रश्नों के समूह ने सहसा ही विदीर्ण कर डाला है !
ReplyDeleteरामनामियों का यह आस्था कुम्भ -कुल दाशरथी राम को नहीं मानता होगा ? यही न ?
यह कबीर के राम के उपासना का तो उत्सव नहीं है ?
क्या यह शूद्र /निचली जातियों तक सीमित है या उनमें विशेष प्रभावी है ?
यह मनुवादी व्यवस्था केप्रतिरोध /प्रतिक्रिया से उद्भूत तो नहीं?
मुझे उत्तर चाहिए ..प्लीज !
और हाँ एक सद्प्रयास को मूर्त रूप लेने पर अपने आह्लाद को फिल्म की अवधारणा और निर्माण से जुड़े सभी व्यक्तियों से उन्हें बधायी देकर बांटना चाहता हूँ और अपने विशेषज्ञ महोदय को भी भूरि भूरि बधाई !
ReplyDeleteअपूर्व रोचक व नवीन जानकारी रही यह मेरे लिए...
ReplyDeleteकृपया गाइड करें कि यह अनुपम वृत्तिचित्र कैसे उपलब्ध हो सकती है...
आपकी आभारी रहूंगी...
अद्भुत एवं रोचक पोस्ट...
ReplyDeleteसर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteयदि परम सत्ता का बोध "राम" नाम लेने से होता हो तो इसमे क्या हर्ज है? यही कारण है कि "श्री रामचरित मानस" प्राय: घर घर मे देखा जा सकता है। "शंभु प्रसाद सुमति हिय हुलसी। रामचरित मानस कवि तुलसी।" "राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंत काल पछतायेगा प्राण जायेगा छूट्॥" उपरोक्त पंक्तियाँ दादी नानी से सुना करता था। बहुत ही रोचक जानकारी……सादर आभार।
post pdhakar gyanvardh hua....saath hi 'vittchitra' dekhne ki bhu utsukta hue.......
ReplyDeletepranam.
रामनाम से हमारी आत्मा जुड़ी है। कितना गहरा इंपैक्ट डाला है इसने हमारी सोसायटी में। राम से जुड़े स्थल छत्तीसगढ़ में हैं यह जानकर बहुत अच्छा लगता है। योग वशिष्ठ की टिप्पणी मुझे खास तौर पर बहुत अच्छी लगी कि सारी दुनिया किसी कहानी के प्रभाव से ही बनी है।
ReplyDeleteरामनामी समुदाय पर पहली बार जानने को मिला. वृत्तचित्र में आपकी भूमिका पर बधाई. शायद कभी सूचना प्रसारण विभाग के एग्जिबिशन में दिख जाये तो लूँगा. ऑनलाइन उपलब्ध हो तो बतईयेगा. आभार.
ReplyDeletegyanverdhak lekh ke liye aabhar..........
ReplyDeletebahut hi sundar aur rochal prastuti ke liye aabhar!
ReplyDeleteAapkii lekhanii aur prastutiyon ke liye kuchh bhii kahne ko shabdon kii kamii khal rahii hai. Aapko aur aapkii lekhanii ko kotishah naman. Vrittchitra dekhane kii utsukataa banii huii hai. Badhaaii aur aabhaar.
ReplyDeleteभारतीय समाज के एक और उपेक्षित वर्ग के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ... आपको इस सार्थक पोस्ट के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteअद्दुत पोस्ट!!फिल्म देखने की चाह मेरी भी है!!
ReplyDeleteजैसा की सभी ने ऊपर कहा की आपकी हर पोस्ट अनोखी होती है, बहुत कुछ सीखने और नया जानने को मिलता है.
खैर, अब ये बात भी कितनी दफा और रिपीट किया जाए :)