मंत्रः अवलोकन-विवरण
मंत्रः विश्लेषण-व्याख्या
सरगुजा जिले के कुसमी अंचल में देवारी (ओझा, बइगा, गुनिया, सिरहा) यानि इलाज, झाड़-फूंक सिखाने के पारम्परिक केन्द्र हैं। इन केन्द्रों के प्रति आस्था और सम्मान किसी वेदपाठशाला जैसा ही होता है। ऐसा एक केन्द्र डीपाडीह ग्राम के उरांव टोली में संचालित था, जिससे जुड़े लोग बताते कि प्रशिक्षण लगभग छः माह में पूरा किया जा सकता है, किन्तु आमतौर पर एक वर्ष का समय लगता है। मंत्रों को अच्छी तरह समझ लेने, फिर ध्यान लगा कर सीखने में प्रशिक्षण का प्रारंभिक ज्ञान कम समय में भी कराया जा सकता है।
प्रशिक्षण पूरा होने पर नागपंचमी/अमावस्या को दीक्षान्त होता है और फिर गुरु की अनुमति पाकर ही मंत्रों का उपयोग किया जा सकता है। जर-बुखार ठीक करने के लिए किसी का बुलावा आने पर प्रशिक्षित व्यक्ति को अनिवार्यतः फूंकने जाना होता है, और इसलिए बुलावा देने के पहले पास-पड़ोस से पता कर लिया जाता है कि देवार को/उसके घर कोई अड़चन-समस्या तो नहीं है। दूसरी तरफ, पहल पीडि़त पक्ष की ओर से होना चाहिए, यानि बिना औपचारिक बुलावा के पहुंचकर मंत्रों का प्रयोग असरदार नहीं होता। गुरुओं की सहमति से उनके शिष्यों ने प्रशिक्षण और मंत्रों के बारे में बताया, उन्होंने सचेत किया कि बिना गुरु के इन मंत्रों का अभ्यास, गंभीर परेशानी में डाल सकता है (आगे पढ़ने वाले भी इस बात का ध्यान रखें)-
प्रशिक्षण का आरंभ धाम बांधने से होता है। इसके लिए बेंत की छड़ी, लोहड़गी यानि लोहे की छड़ी, आंकुस यानि अंकुश, त्रिशूल, शंख, कुल्हाड़ी, लोहे का हथियार- गुरुद, सिंगी आदि की जरुरत होती है। प्रशिक्षण के दौरान बगई का कोड़ा बनाया जाता है, जिससे गुरु प्रतिदिन चेले को एक-एक कोड़ा मारते हैं और धाम बांधने के मंत्रों से अभ्यास आरंभ कराते हैं।
धाम बांधनी का मंत्र-
पूरब के पूरब बांधौं, पच्छिम के पच्छिम बांधौं, उत्तर के उत्तर बांधौं, दक्खिन के दक्खिन बांधौं, पिरथी चलै पिरथी बांधौं, अकास चलै अकास बांधौं, पताल चलै पताल बांधौं, दाहिना चलै दाहिना बांधौं, बायां चलै बायां बांधौं, आगे चलै आगे बांधौं, पीछे चलै पीछे बांधौं, माये धीये डाइन चलै, डाइन बांधौं, बाप बेटा ओझा चलै, ओझा बांधौं, हमर बांधल गुरु क बचन, हमर बांधल, बारहों बरस, तेरहो जुग रहि जाय।
बांधनी के बाद गुरु मंत्र का अभ्यास किया जाता है-
गुरु मंत्र- गुरु गुरु बूढ़ा गुरु, जन्तर गुरु, माधो गुरु, दइगन गुरु, सीधा गुरु, अंधा गुरु, आइद गुरु, बइद गुरु, औलाद गुरु, मवलाद गुरु, केंवटा गुरु, महला गुरु, डोमा गुरु, बछरवा गुरु, चनरमा, सुरुज नराएन के लागे दुहाई।
गुरु क मान, गुरु क तान, गुरु क पांव, पंयरी, जहां बइठे, गुरु-गुरुआइन, तार-तरवाईर, छांई करे, गुरु देयाल, उदुरमा, पान-फूल, पगास, नया पाठ, करो मसान, केकर बले, गुरु क बले, गुरु के साधल, तीन सौ साइठ, जतन के लगे दोहाई।
इसके पश्चात् मुख्यतः दो प्रकार के मंत्रों का अभ्यास किया जाता है। मंत्रविद्ध करने के अर्थ में बांधनी के मंत्र और बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए हांकनी के मंत्र। इन दोनों प्रकार के मंत्रों के उदाहरण निम्न हैं-
बांधनी मंत्र- घोट-घोट, बज्जर घोट, फुलकारी, लागे तारी, ससान लय, मसान गेलय, देखे गेलय, भैरव पाठ, नाइनी काठ, दूर भैल, लई इवों, बज्जर खेलों। भाज-भाज, भाजत पुर, दूत-भूत करो कपास, साइठ सरसों, सोरों धान, हथे गुन, मसान छई, देखे गेलें, भैरो पाठ, नाइनी काठ, दूर भयल।
बज्जर बज्जर, बज्जर बांधौं, रिंगी-चिंगी, सात क्यारी, चंडी चेला, सेकर पीछे लाप लीता, देखाल भूत, बंधाल हावै, कौन-कौन बैमान, चकरल, लिलोरी, ठिठौरी, मानुस देवा, बाल पुकरिया, पोको दरहा, करो मसान, केकर बले, गुरु क बले, गुरु के साधल, तीन सौ साइठ जतन के लगे दोहाई।
छोट मोट भेरवा, जमीन जाय, जगहा जाय, असामुनी जाय, इन्द्रन बेटी, गोहारी जाय, इन्द्रन बेटी, मयर पूत, फोरो गाल, ढउरा ढेड़ी, उड़ि जाबे डैना तोड़ों, रिंग जाबे गोड़ तोड़ों, उलट देखबे आइंख फोरों, पलट देखबे कपार फोरों, केकर बले, गुरु क बले, गुरु के साधल, तीन सौ साइठ जतन के लगे दोहाई। पुरुब के पुरुबइया, पच्छिम के सोंखा, नौ सौ कोरवा, दस सौ बिरहर के लागे हांक।
हांकनी मंत्र- कलकत्ता के काली मांई, लोहरदग्गा के लोहरा-लोहराइन, बदला के मुड़ा-मुड़ाइन, कसमार के घींरू टांगर, पांच पूत, पांचो पंडा के लागे दोहाई।
ठुनुक-ठुनुक करे बीर, हथ कटारी हाथे काटी, टूटे एरंडी, बादी भूत के टूटे हाड़, जै मुठ मारौं तोर गुरु लवा-तीतर, मोर गुरु छेरछा बादी, उड़ि जाबे डैना तोड़ों, बइठ जाबे डांडा तोड़ों, रिंग जाबे गोड़ तोड़ों, केकर बले, गुरु क बले, गुरु के साधल, तीन सौ साइठ जतन के लगे दोहाई।
ओटोम दरहा, पोटोम दरहा, ठूठा दरहा, लंगडा दरहा, अंधा दरहा, खोरा दरहा, रूप दरहा के लागे परनाम।
उसुम तुसुम, भास मुद्दुम, तोन झोन तोर नोन, गरहाई लागल ठाढ़, चैंतिस बांधे के बन्धे, गुरु बन्धे, गुरु क बचन हम बांधे, बारहों चेला, हमर बांधल, बारों बीस, तेरों जुग रहि जाय, कभी हमर बचन न छूटे, भगत गुरु के लागे दोहाई।
गुन काटौं, काटौं गुन के रेखा, चढ़ल खाटी, उतरल जाय, पानी पथ बिलास करै, धर लाएं, लुटु-पुटु, धर लाएं, अपन कान, छड़न बादी, उड़लही बान, सायगुन बान, खैरा अपन गुन बान, राइख के का करै, तार काटे, तरगुन काटे, राम काटे, लखन काटे, धरम काटे, धरमात काटे, बानी चक्कर बान काटे।
झम-झम झमलई, सात समुंदर, सोरो धार, हाड़ खाए, मांस गलाए, नहीं माने, पाप-दोख, भूत-बैताल, धारा झौंटा, पीठ में लाठी, डंडे रस्सी, गल्ला फांसी, गोड़ में बेड़ी, हाथ में जंजीर, मुंह में तब्बा लगाइके, मनाइ के, समझाइ के, बुझाइ के, सुझाइ के, ए भूत के लइ बाहर कर, संकर गुरु के लागे परनाम।
परा-परा ठुठी पीपर, आवथीक, जाथीक, जम जाल, हिरा जाल, रेंगा जाल, केंवटा बीरा, जाले मारी, ले चली, ओकासी, ढेंकासी, आलो सुनी, पालो सुनी, डगर भुला, कंपनी, जंपनी, दे तो हरदी गुन्डा, धोआ चाउर, हमर चिन्ता, आवथीक, जाथीक, ठाढ़ कर देथव, सिद्ध गुरु के लागे परनाम।
जाय फार दादी बाजे, जाग डुमुर बाजथीक, लीली घुरी कारी नाचै, आप को बंडा ठेठेर, बिरजा धर लोचनी सम्पताल गेलाएं, डाकिन डुबाइतो, भंवरा बतास, नगफिन्नी, मछिन्दर गुरु के लागे परनाम।
उल्टा सरसों, पंदरों राई, मारौं सरसों टूटे बान, काली देबी कलकल करे, रकत मांस भोजन करे, नहीं माने पाप-दोख धारा झौंटा, पीठे लाठी, डंडे रस्सी, गल्ला फांसी, गोड़ में बेड़ी हाथ में धारा जंजीर लगाई के ए भूत बाहर कर।
छोट काली, बड़ काली हांक जाय, डांक जाय, कंवरू जाय, पटना जाय, असाम जाय, नहीं माने पाप-दोख, मनइ के, बुझइ के, लइ बाहर कर। पेराउ के झलक डाइर, मलक डाइर, सेन्धो रानी, बेन्धो रानी, दिया रानी, भुकु रानी, कजर रानी, चरक रानी, डिंडा रानी लागे परनाम।
इसी प्रकार के ढेरों मंत्रों के साथ सुमरनी गीत भी होते हैं। वाचिक परम्परा के मंत्र ज्यादातर साफ उचारे नहीं जाते, मन में दुहराए जाते हैं या बुदबुदाए जाते हैं, इन्हें शब्दशः लिखने के प्रयास में उच्चारण फर्क के कारण अशुद्धि स्वाभाविक है, इसलिए सब देव-गुरुओं से माफी-बिनती, दोहाई-परनाम।
देवारी बिद्या के गुरु जिरकू बबा, नगमतिया गुरु घन्नू बबा और बइदकी बिद्या वाले बइजनाथ बबा, इन तीनों का संरक्षण हम सबको 1988 से 1990 के दौरान सरगुजा प्रवास में मिलता रहा। डीपाडीह के ही लाली सेठ, कासी-दुधनाथ साव, रामबिरिछ, प्रेमसाय, करमी के सुखन पटेल, जसवंतपुर के जगत मुन्नी भगत मुन्नी (यानि स्वयं को भक्त और मुनि कहने वाले जगतराम कंवर) और इसी गांव के निवासी सांसद, प्रखर नेता लरंग साय जी, अंबिकापुर के टीएस बाबा जी,... सब के सब न सिर्फ हमारे काम में दिलचस्पी लेते, बल्कि संबल होते। उरांव टोली और बस्ती तो पूरी लगभग साथ ही होती दिन भर। पुराने टीलों में सांपों का डेरा होता, दिन में हाथियों का, शाम ढलने पर भालुओं का आतंक अक्सर बना रहता और इस देवस्थान के चारों ओर भटकती दृश्य-अदृश्य शक्तियां (जैसा लोग बताते) हमें सदा घेरे रहतीं, लेकिन हम इस पर्यावरण से लाभान्वित, स्वस्थ्य और बेहतर (निसंदेह सुरक्षित) वापस लौटते।
टीलों को खोदते हुए पुराने मंदिर अनावृत्त हुए, मूर्तियां जैसी हजार-हजार साल पहले तब रही होंगी हमें वैसी की वैसी भी मिलीं। मुझे हमेशा लगता है कि उन मंदिर-मूर्तियों की तरह ही ऊपर लिए नाम और कई चेहरे जो अब गड्ड-मड्ड हैं, आज भी वैसे ही होंगे, काल-निरपेक्ष। ज्यादातर चेहरे अब साफ याद नहीं, इसलिए जानता हूं कि मेरे विश्वास की रक्षा हो जाएगी और सारे लोग मुझे जस के तस मिलेंगे, हमलोगों के लिए अपना अकारण स्नेह-संरक्षण यथावत् परोसते।
मंत्रः विश्लेषण-व्याख्या
तथ्य, आंकड़े और सूचना जुटाना, वैज्ञानिक अध्ययन प्रक्रिया की आरंभिक आवश्यकता होती है, जिन्हें छांट कर, वर्गीकृत कर, क्रमवार जमाने के प्रयास में निष्कर्ष स्वतः उभरने लगते हैं। गणित जैसे प्राकृतिक विज्ञानों में भी निष्कर्षों में संशोधन-परिवर्धन संभव होता है, अपवाद भी निष्कर्ष-नियम का हिस्सा बन जाता है बल्कि यह तक कहा जाता है कि अपवाद ही नियमों को पुष्ट करते हैं। सामाजिक विज्ञानों में प्राथमिक निष्कर्षों के साथ अन्य कारक/दृष्टिकोण से और कभी समय के साथ, नई जानकारियों से यानि निवेश, और प्रक्रिया में फर्क आने से निर्गत परिमार्जित होता रहता है और कई बार फैसले उलट भी जाते हैं।
यह जानकारी इसी दृष्टि से संकलित और यहां प्रस्तुत है। प्राथमिक निष्कर्ष बस इतना कि वैदिक ऋचाओं जैसे ही प्रतिष्ठित इन मंत्रों में प्रकृति, परिवेश, आस्था के आलंबन और केन्द्र व्यापक रूप में शामिल हैं। स्वाभाविक ही ऐसा प्रयोग मात्र अनुकरण कर किया जाना, जोखिम का हो सकता है। इनके पाठ-अभ्यास-प्रयोग में शायद इसीलिए वैदिक मंत्रों की तरह निषेध भी हैं। यह उस परिवेश की जीवन पद्धति का अनिवार्य हिस्सा माना जा सकता है और अपने अंचल की परम्पराओं को जानने और उनमें संस्कारित होने के लिए उक्त मंत्रों के साथ प्रशिक्षित-दीक्षित होना उपयोगी जान पड़ता है।
पिछड़े कहे जाने वाले क्षेत्र से जादू-टोना, तंत्र-मंत्र से जुड़ी आकस्मिक घटनाओं की खबरें मिलती हैं, लेकिन कथित उन्नत-सभ्य समाज में व्याप्त कर्मकाण्ड और दुर्घटनाओं की तुलना में, गंभीरता और संख्या दोनों दृष्टि से यह नगण्य है। समाज को गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ, सत्यनारायण की कथा और महामृत्युंजय जाप से जैसा संबल मिलता है, दूरस्थ और अंदरूनी हिस्सों में संभवतः इन आदिम मंत्रों का वैसा ही प्रयोग दैनंदिन समस्याओं की उपचार विधि (काउंसिलिंग-हीलिंग सिस्टम) के रूप में होता है, जिसमें सार्वजनिक स्तर पर अव्याख्यायित तौर-तरीकों के अनुभव-सिद्ध परामर्श और जड़ी-बूटी, औषधियां भी हैं। स्वाभाविक है कि दीर्घ संचित इस ज्ञान को बिना समझे अंधविश्वास मान कर, संदिग्ध/खारिज करना स्वयं एक तरह का अंधविश्वास होगा। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल और केरल इंस्टीट्यूट फार रिसर्च, ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट आफ शेड्यूल्ड कास्ट्स एंड शेड्यूल्ड ट्राइब्स, कोझीकोड़ (कालीकट) जैसी संस्थाएं, इसे उपयुक्त सम्मान दिया जाना आवश्यक मान कर, इस दिशा में सक्रिय हैं।
पांच-एक साल पहले कहीं सुना- ''नम म्योहो रेन्गे क्यो''। साल भर से यह रायपुर में भी सुनाई पड़ने लगा है। इस बीच सुपर माडल मिरांडा केर, निचिरेन बौद्ध धर्म अपना कर खबर बनीं। पता चला कि यह बौद्ध धर्म के जापानी गुरु निचिरेन दैशोनिन द्वारा प्रवर्तित स्वरूप वाली प्रार्थना है और अब सोका गक्कई या सोका गाकी संगठन के माध्यम से क्रियाशील है। यह मंत्र मूल भारतीय बौद्ध धर्म के सद्धर्मपुण्डरीकसूत्र (अंग्रेजी में प्रचलित लोटस सूत्र) से आया कहा जाता है। संभवतः मूल प्राकृत भाषा (मागधी-पाली प्रभावयुक्त) के संस्कृत रूप को चीनी में अनुवाद किया गया, जो बरास्ते जापान वापस यहां आया है। इतनी भाषाओं, लिपियों, लोगों और समय से गुजरने के बाद भी यह मंत्र असर दिखा रहा है, जबकि इसके ठीक उच्चारण के लिए भी पर्याप्त अभ्यास जरूरी है और मंत्र का अर्थ पूछने पर तो मंत्र-साधकों की परीक्षा ही हो जाती है।
मैं सोच में पड़ा कि असरदार-प्रभावी क्या होता है? शब्द, शब्दों के अर्थ और उनसे बनने वाले भाव? उनका उच्चारण, उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि? मंत्र-द्रष्टा और साधक की परस्परता, समूह/समष्टि-बोध या और कुछ?... असर होता भी है या नहीं? यदि नहीं तो ऐसे मंत्र कायम क्यों हैं? क्या प्रभावी, मंत्र नहीं हमारी आस्था है?
'अनमिल आखर अरथ न जापू...', शायद अपरा से परा हो जाने की प्लुति में छुपा है यह रहस्य? ऐसे प्रश्नों का उत्तर बारम्बार तलाशा गया होगा, लेकिन यह ऐसी राह है जिसकी तलाश ''मंत्रः व्याख्या/निष्कर्ष'' स्वयं के जिम्मे ही संभव हो सकती है।
उदय प्रकाश की पंक्तियां याद आती हैं-
इतिहास जिस तरह विलीन हो जाता है किसी समुदाय की मिथक-गाथा में
विज्ञान किसी ओझा के टोने में
तमाम औषधियाँ आदमी के असंख्य रोगों से हार कर अंत में
जैसे लौट जाती हैं किसी आदिम-स्पर्श या मंत्र में।
इतिहास जिस तरह विलीन हो जाता है किसी समुदाय की मिथक-गाथा में
विज्ञान किसी ओझा के टोने में
तमाम औषधियाँ आदमी के असंख्य रोगों से हार कर अंत में
जैसे लौट जाती हैं किसी आदिम-स्पर्श या मंत्र में।
इस प्रकार के विषयों पर आम तौर से लोग इस विस्तार से नहीं लिखते. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत ही अनोखे विषय पर प्रकाश डाला है .. कुछ खास स्टाईल में उच्चारण और एक अलग ही धुन होने पर, एक ही बार सुनने पर भी बरसों तक असरदार रहती है ...
ReplyDeleteबात वही आस्था की है, विश्वास हो तो सब है और नहीं है तो कुछ नहीं। अपना व्यक्तिगत अनुभव बताता हूँ, मेरी गर्दन\छाती पर कई तिल हैं, एक नजदीकी रिश्तेदार ने इनसे निजात पाने का खुद का सफ़ल अनुभव बताया। एक पीर की मजार पर आस्था के साथ झाड़ू और नमक चढ़ाया जाये तो शर्तिया आराम मिलता है। जबरन धकेले जाने पर अपन चले गये और भौतिक पदार्थ क्योंकि मजार के बाहर मिलते ही थे, चढ़ा डाले। आस्था नहीं थी तो उसे समर्पित कहाँ से करते? हम वैसे ही रहे जबकि बहुत से खुद को ठीक हुये बताते हैं।
ReplyDeleteबैगाओं के गुप्त मंत्रों को आपने उजागर कर दिया। जानकारी पूर्ण आलेख के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteअनछुए और रहस्यमय विषयों पर, कोई इतिहास और संस्कृति का विद्वान्, लेखनी उठाये तो लेख दिलचस्प होने के साथ साथ गंभीर और महत्वपूर्ण भी बन जाता है !
ReplyDeleteआपकी विवेचना ने उत्सुकता बढ़ा दी है, राहुल भाई ....
आशा है आधुनिक सांइस द्वारा उपेक्षित इस विषय को आप और विस्तार देंगे ...
आभार आपका !
एक अलग सी दुनिया के बारे में इतनी रोचक पोस्ट पढना अच्छा लगा। बान्धनी और हांकनी से खींच के और ढील के पेंच याद आ गये।
ReplyDeleteमंत्रों का प्रभाव गहरा होता है, क्यों होता है, विज्ञान प्रयासरत है समझने के लिये।
ReplyDeleteआस्था और ध्वनि विज्ञान के प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता .....वैज्ञानिक shodhon se रहस्य किंचित hee अनावृत हो सकने की संभावना है.
ReplyDeleteपूर्व सभी पोस्ट से हटकर,रोचक.
ReplyDeleteबढिया जानकारी भरा रोचक पोस्ट।
ReplyDeleteHairaan hun ki aapne itnee jankaree kahan se prapt kee! Bahut hee rochak aalekh hai!
ReplyDeleteसुना है कि मंत्र जाननेवालों को काम पड़ने पर अनिवार्यतः जाना पड़ता है।
ReplyDeleteअब यहाँ भूत-प्रेत भी आयेंगे :)बाद में कहूँगा फिर।
मंत्र की शक्ति तो उसके उच्चारण से पैदा होने वाले सुर, नाद से होती है और उच्चारण कर्ता की श्रद्धा और परा शक्ति से भी। इस परा शक्ति का जागरण भी उस सुर से ही होता है । उदाहरण के लिये ह्रीं का उच्चारण करे तो आपको हृदय केंद्र मे कंपन महसूस होगा और श्रीं का उच्चारण करे तो सिर के उपरी हिस्से मे अवस्थित केंद्र में कंपन होगा।
ReplyDelete(ऐसा मै सोचता हूं)
...उन्होंने सचेत किया कि बिना गुरु के इन मंत्रों का अभ्यास, गंभीर परेशानी में डाल सकता है (आगे पढ़ने वाले भी इस बात का ध्यान रखें)...,
ReplyDeleteसिद्धी बिना शब्द शायद अधुरे होते हो किन्तु आपने पोस्ट मे मंत्रो को अक्षरीय सिद्व किये हैं।
यदि हमारे वैदिक मन्त्रों में कोई दम है तो वह उस अंचल के बैगाओं के पारंपरिक मन्त्रों में भी होगा ऐसा मेरा विश्वास है. सभी स्थानीय शक्तियों को सम्मान देते हुए आप लोगों की कार्य शैली मैंने देखी भी तो है. ... अब कोयम्बतूर से...
ReplyDeleteअनछुए विषय पर रौशनी डाल रहे हैं आप... वास्तव में आस्था का भी सालों साल का वैज्ञानिक आधार रहा है... मिथिला के इलाके में भी इस तरह की कुछ परंपरा है... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteaapki kalam ne ise sahej liyaa .... varnaa ye bhi shaayad lupt ho jaati
ReplyDeleteमंत्रो का असर होता भी है और नहीं भी . ऐसे किस्से, तो पूरे भारत में बिखरे पड़े हैं
ReplyDeleteयह अच्छा किया कि सब देव गुरुओं से दोहाई परनाम कर लिया क्योंकि आपने प्रशिक्षण तो लिया ही नहीं सो उच्चारण दोष की संभावना बराबर है फिर बुदबुदाने वाले मन्त्रों को आपने लिख भी डाला है इसलिए माफी बिनती तो बनतीं ही है :)
ReplyDeleteपिछड़े कहे जाने वाले समाज के बरअक्स कथित उन्नत और सभ्य समाज में व्याप्त कर्मकांड की तुलनात्मक अतिशयता विषयक आपके निष्कर्ष से सहमत हूं !
किसी काल विशेष में यह क्षेत्र बौद्ध प्रभाव वाला रहा होगा वर्ना पुनर्वापसी का सहज आत्मीय स्वागत संभव ना होता ! यहीं कहीं पर दुनिया की गोलाई को बिना देखे भी स्वीकार किया जा सकता है :)
ध्वनियाँ और शब्द ,संभव है प्रभावी ना भी हो तो भी उनकी संगत जनित मानसिक सुदृढता के प्रभाव को तो स्वीकार किया ही जा सकता है ! ध्वनि, शब्द या फिर मनःविश्वास , उपादेयता के बिना उनकी सतत मौजूदगी की कल्पना कोई कैसे कर सकता है !
आदिवासी समाज ही हमारे इस तथाकथित सभ्य समाज की नींव है.
ReplyDeleteबड़ा ही शोधपरक व विस्तृत ज्ञानमय लेख।इनको पढ़कर स्मरण आये बचपन मे सुने ओझा लोगों के मुख से उच्चारित होते इसी तरह के मंत्र।
ReplyDeleteमैं यह मानती हूँ कि यदि तरंगों को किसी विशेष यन्त्र माध्यम से गुजार कर सैकड़ों मील दूर तक किसी यन्त्र द्वारा दृश्य श्रव्य माध्यम में आरोपित किया जा सकता है तो ये ध्वनि तरंग(मंत्र) भी क्यों नहीं महत्वपूर्ण, प्रभावी हो सकते हैं...??
ReplyDeleteआज चिकित्सा विज्ञान ने भी मानना शुरू कर ही दिया है कि ध्यान, योग, रेकी आदि अल्टरनेटिव मेडिसीन लाइन हैं..
यह सत्य है कि तंत्र मंत्र आदि का बहुत दुरूपयोग हुआ है, पर इससे यह कहना अनुचित है कि यह विद्या आधारहीन, व्यर्थ, अंधविश्वास है...
इस सुन्दर जानकारी परक पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
इमेल पर श्री गिरिजेश राव जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteIt means everywhere these mantras have same 'meaningless' combinations of queer words. My 'Nana' used to practise this type of 'Jhad Phoonk' and my 'Mausi' still has them written. Once I have read the notebook and was wondering how such combniations could have healing effects on humans and animals alike?
Yes, in childhood we had witnessed healing effects of such mantras. ...strange!
Regards,
Girijesh
Deep analysis.
ReplyDeleteबहुत ही गहराई से आपने इतनी विस्तृत जानकारी दी है आभार ।
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी,आभार ।
ReplyDeleteइतना संदर विषय और इतना विषद विवेचन कंहा कंहा पहुचती है आपकी लेखनी अब भी याद आते है बचपन के वे बैगा गुनिया आज भी तो अच्छे पढ़े लिखे कथित रूप से अरुधिवादी लोग इनके पास जाते दिखाई दे जाते हैं मैं एक डॉक्टर मित्र को जनता हूँ जो खुद तो सारी दुनिया का इलाज करतें हैं पर स्वयं अपनी पत्नी की तबीयत ख़राब होने पर बैगा के पास भेजतें हैं
ReplyDeleteउम्दा विषय और उस पर उम्दा लेख
बहुत ही अच्छा बधाई
यदि कार्य कारण संबंधों की व्याख्या करना ही विज्ञानं है तो बहुत सी चीजो की व्याख्या विज्ञानं भी कर पाता जिसमे से एक सम्मोहन भी है जो बहुत हद तक तंत्र से सम्बंधित है | जो किसी व्यक्ति को छुए बिना भी उसके शरीर व दिमाग को नियंत्रित कर लेता है | जिसे कोई भी छोटा मोटा जादूगर कहीं भी आपको करके दिखा सकता है | यह सच है कि तंत्र को भी विज्ञानं कि कसौटी पर कसा जाना चाहिए | पर इसके पहले इसे ख़ारिज कर देना तर्कपूर्ण नहीं होगा, जैसा कि हम आधुनिकता के नाम पर आमतोर पर करते है | जादू या तंत्र दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सदियों से लोक जीवन का हिस्सा रहे है और बिना किसी ठोस आधार के कोई भी चीज पूरी दुनिया में इतने लम्बे समय तक नहीं चल सकती | तंत्र के भी वैज्ञानिक आधार को व्याख्यायित करना चाहिए | इस दिशा में अपने जो प्रयास किया है वह स्वागत योग्य है |
ReplyDeleteVivek, Akaltara
''असरदार-प्रभावी क्या होता है? शब्द, शब्दों के अर्थ और उनसे बनने वाले भाव? उनका उच्चारण, उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि? मंत्र-द्रष्टा और साधक की परस्परता, समूह/समष्टि-बोध या और कुछ?... असर होता भी है या नहीं? यदि नहीं तो ऐसे मंत्र कायम क्यों हैं? क्या प्रभावी, मंत्र नहीं हमारी आस्था है? शायद अपरा से परा हो जाने की प्लुति में छुपा है यह रहस्य?'' - यह सब (या इस सबमें से कुछ) हो न हो, 'आस्था' का प्रभाव तो सबमें निश्चित रूप से होता है ही। इसक अनेक उदाहरण देख्ो हैं मैंने।
ReplyDeleteऔर मेरे लिए इस पोस्ट का हासिल यह अंश है -
''पिछड़े कहे जाने वाले क्षेत्र से जादू-टोना, तंत्र-मंत्र से जुड़ी आकस्मिक घटनाओं की खबरें मिलती हैं, लेकिन कथित उन्नत-सभ्य समाज में व्याप्त कर्मकाण्ड और दुर्घटनाओं की तुलना में, गंभीरता और संख्या दोनों दृष्टि से यह नगण्य है।''
असीम आनन्द और सुख मिला यह पोस्ट पढ कर।
बहुत सही पोस्ट!
ReplyDeleteहमारे गांव में लोटन गुरू भी ओझाई की पाठशाला चलाते हैं। भवानी सिद्ध होने में दो तीन साल लग जाता है। बीच में दो ट्रिप गया के भी लगते हैं। बड़ा मेथॉडिकल कार्यक्रम है। ज्यादा जानने का यत्न नहीं किया मैने! :-(
ॐ सरीम ह्रीं क्रीं हूं अं फट..... अद्भुत ध्वनि संघात .....यह मनोवैज्ञानिक और ध्वनि चिकित्सा का एक आदि रूप और अलभ्य दस्तावेज है....आब भी गजबै जूकिया मनई हैं... कहाँ कहाँ से संजोया इस अमूल्य ज्ञान को -अभी उसी दिन गिरिजेश से बात हो रही थी कि ऐसी कई जानकारियाँ चीनी यात्रियों हमारे यहाँ से जरुर ले गए होंगे... अब वापस हमें ही मिल रहा है .....
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध
ReplyDelete@ बी एस पाबला जी-
ReplyDeleteआपके एक शब्द ने ही जादू कर दिया हम पर, ''मंत्रविद्ध''.
एक बार तो पढ़ गया लेकिन लिखने लायक ज्ञान नहीं बन पाया.अनछुआ विषय है .शाम को लिखता हूँ ...
ReplyDeleteआपका इलाका इस मन्त्र-शक्ति से ज़्यादा ओत-प्रोत लगता है.शब्द अपना प्रभाव रखते हैं निश्चित ही,पर इस सबकी आड़ में ओझाओं का व्यापर चल रहा है.
ReplyDeleteहर व्यक्ति किसी न किसी बहाने मन्त्रों से अभिभूत है !
अद्भुत। संग्रहणीय पोस्ट।
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteइमेल पर श्री अमितेश गहलोत जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteI liked the article. Let me know if you want to know more about this practice. The format of this practice is very apt in the present time. You have rightly mentioned that the strong faith behind these mantras makes it effect strong or weak.
बहुत ही अछूते विषय पर विस्तार से लिखा है....
ReplyDeleteविषय आस्था और सकारात्मक सोच का है....अगर व्यक्ति पूरी निष्ठा से सोच लेता है की ये मन्त्र असर कर जाएगा तो शायद उसका सोचा हुआ सही हो जाता है और श्रेय मन्त्र को मिल जाता है.
अद्भुत!
ReplyDeleteविशेष है यह आलेख!
सचमुच, संग्रहणीय!
आदिम मन और सोंच की गांठें खुलती दिखीं.एक ने लिखा है कि मन्त्रों के लिखने का क्या उपयोग है ?
ReplyDeleteडाकुमेंटेशन के लिहाज से यह अनिवार्य है .
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeletevikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
''पिछड़े कहे जाने वाले क्षेत्र से जादू-टोना, तंत्र-मंत्र से जुड़ी आकस्मिक घटनाओं की खबरें मिलती हैं, लेकिन कथित उन्नत-सभ्य समाज में व्याप्त कर्मकाण्ड और दुर्घटनाओं की तुलना में, गंभीरता और संख्या दोनों दृष्टि से यह नगण्य है।''
ReplyDeleteअसीम आनन्द और सुख मिला यह पोस्ट पढ कर।
मेरा मानना है मन्त्र कितने ही रट ले जब असीम श्रद्धा व सही समय पर सिद्ध न किये तो निरर्थक है और जातीय वर्ण के अनुसार मंत्रो के प्रकार हो सकते है
ReplyDeleteयह जानकारी सराहनीय जो तंत्र विद्या का तलपगार है
आपका ब्लॉग तो अत्यंत लोकप्रिय है। सारे लेख गागर में सागर। आपके सरगुजा प्रवास पर यह लेख तो अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक। ग्रामीण और आदिवासी समाजों की अस्मिताएँ उनकी परंपराओं में ही जीवित रहेंगी। इसलिए इस विधा को सांस लेते रहना होगा।
ReplyDeleteजी, मुझे तब अपने पर गर्व होता है, जब मैं अपने आदिम मन से दूरस्थ भी रिश्ता महसूस कर पाता हूं।
Deleteजी, मुझे तब अपने पर गर्व होता है, जब मैं अपने आदिम मन से दूरस्थ भी रिश्ता महसूस कर पाता हूं।
Deleteसर जी यह मंत्र संपूर्ण रुप से पूरा नहीं है सर जी यह मंत्र का पूरा जानकारी मिल सकता है क्या अगर आपके पास संपूर्ण जानकारी हो तो मुझे चाहिए मुझे इस मंत्र को संपूर्ण रूप से जानना है यह मंत्र मेरे लिए बहुत जरूरी है और काम का भी है समाज का कल्याण हो सकता है इस मंत्र में बाचा नहीं है जब भी यह मैसेज को देखें तो मुझे कांटेक्ट करना मेरा नंबर है 810 365 5511 आपको कॉल का इंतजार करूंगा यह नंबर मेरा व्हाट्सएप भी है सर जी जरूर एक बार कॉल करिएगा धन्यवाद
ReplyDeleteकुछ भगतो के पूरा पता मेरे को दीजिये मै बिहार से
ReplyDeleteNo comment
ReplyDeleteGeet chahiye hame
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