वैसे तो सोचा था कि शीर्षक रखूं 'माई ड्रीम एग्रिगेटर' फिर लगा कि छोटे शीर्षक का हिमायती बने रह कर एक शब्द से भी काम चल सकता है। शीर्षक, प्रस्थान बिंदु ही तो है। यह भी ध्यान आया कि नाम में क्या रखा है, बख्शी जी ने अपने प्रसिद्ध निबंध का शीर्षक दिया 'क्या लिखूं' और क्या खूब लिखा। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी के लिए किसी ने रेखांकित किया है कि उनकी कृतियां हैं- चारुचंद्र का लेखा, बाणभट्ट की आत्मकथा और अनामदास का पोथा, मानों उनका लिखा कुछ नहीं। अज्ञेय याद आ रहे हैं- 'लिखि कागद कोरे' पुस्तक की 'सांचि कहउं ?' भूमिका में लिखा है कि ''असल में शीर्षक देना चाहिए था 'अध सांचि कहउं मैं टांकि-टांकि कागद अध-कोरे' पर'' ... और फिर विनोद कुमार शुक्ल की 'वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह'। शीर्षक कैसे-कैसे, लंबे-छोटे।
बात पटरी पर लाने के लिए बस एक और शीर्षक याद करें, 'नवनीत'। हिन्दी डाइजेस्ट कही गई अपने दौर की श्रेष्ठ पत्रिका। इसके एक पेज पर 'अपने लेखकों से' छपता था। मैं इसे प्रत्येक अंक में पढ़ना चाहता था। देखें कि इस पत्रिका को कैसी सामग्री से परहेज था और ब्लॉग पर उपलब्ध होने वाली सामग्री से इसकी तुलना करें।
अब आएं एग्रिगेटर पर। 'माई ड्रीम एग्रिगेटर' में जिन ब्लॉग्स को शामिल करना चाहूंगा उनमें दस में एक पोस्ट को अपवाद मान कर छूट सहित, वे ऐसी न हो-
• कविता, खासकर प्रेम, पर्यावरण, इन्सानियत की नसीहत या उलाहना भरी, भ्रष्टाचार, नेता आदि वाली पोस्ट, जो लगे कि पहले पढ़ी हुई है। (वैसे भी कविता के प्रति रुचि और समझ की सीमा के बावजूद, मुझे कविता का पाठक मानते हुए, कविता पोस्टों की सूचना मेल/चैट से मिल ही जाती है)
• जिसका कहीं और दिखना संभव न हो ऐसे स्तर वाला घनघोर 'दुर्लभ साहित्य'।
• मैं (और मेरी पोस्ट), मेरी पत्नी, मेरे आल-औलाद, मेरा वंश-खानदान आदि चर्चा या फोटो की भरमार वाली पोस्ट।
• अखबारी समाचारों वाली, श्रद्धांजलि, बधाई, शुभकामनाएं, रायशुमारी वाली पोस्ट।
• ब्लॉग, ब्लॉगिंग, ब्लॉगर, ब्लॉगर सम्मेलन, टिप्पणी पर केन्द्रित पोस्ट।
• लिंक से दी जा सकने वाली सामग्री-जानकारी वाली और पाठ्य पुस्तक या सामान्य ज्ञान की पुस्तक के पन्नों जैसी पोस्ट।
• नारी, दलित, शांति-सद्भाव-भाईचारा आदि विमर्शवादी और 'क्या जमाना आ गया', 'कितना बदल गया इंसान' टाइप पोस्ट।
कल एक एसएमएस मिला- ''सोमवार से शुक्रवार ..... पर 11 पीएम से 01 एएम तक सुनिए अश्लील प्रोग्राम जो आप परिवार के साथ नहीं सुन सकते '' ..... '' सुनेंगे तभी न जागेंगे''। यदि भेजने वाले को नहीं जानता होता तो लगता कि यह चेतावनी नहीं, विज्ञापन संदेश है। अश्लीलता की सूचना, बालसुलभ हो या कामुक, जिज्ञासा तो पैदा करती है। ऐसी सूचना देती, चिंता प्रगट करती पोस्ट से भी एग्रिगेटर को मुक्त रखना चाहूंगा।
इस 'माई ड्रीम एग्रिगेटर' की हकीकत पर सोचना शुरू किया तो उलझ गया कि इसमें 'माई' (सिंहावलोकन ब्लॉग शामिल) होगा या नहीं, बस फिर क्या, छत्तीसगढ़ी में कहूं तो 'अया-बया भुला गे'। मन में एक क्रांतिकारी विचार आया कि एग्रिगेटर में शामिल करने की शर्तें ही ऐसी रखी जाएं, कि उसमें 'माई' जरूर हो। खुद माई-बाप हों तो कौन रोक सकता है आपको। 'अपना हाथ, जगन्नाथ'। आजमाया हुआ नुस्खा, 'रिजर्व आइडिया'।
इस 'माई ड्रीम एग्रिगेटर' की हकीकत पर सोचना शुरू किया तो उलझ गया कि इसमें 'माई' (सिंहावलोकन ब्लॉग शामिल) होगा या नहीं, बस फिर क्या, छत्तीसगढ़ी में कहूं तो 'अया-बया भुला गे'। मन में एक क्रांतिकारी विचार आया कि एग्रिगेटर में शामिल करने की शर्तें ही ऐसी रखी जाएं, कि उसमें 'माई' जरूर हो। खुद माई-बाप हों तो कौन रोक सकता है आपको। 'अपना हाथ, जगन्नाथ'। आजमाया हुआ नुस्खा, 'रिजर्व आइडिया'।
लेकिन अभी इन्हीं शर्तों के साथ एग्रिगेटर के लिए लक्ष्य 50 ब्लॉग का है। अपनी एक पिछली पोस्ट पर 'सामान्यतः टिप्पणी अपेक्षित नहीं' उल्लेख किया था, किंतु यहां इसके विपरीत सभी पधारने वालों से बे-टका सवालनुमा टिप्पणी अपेक्षित है कि क्या ऐसे एग्रिगेटर के 50 का लक्ष्य-
1.पूरा होगा 2.नहीं होगा 3.नो कमेंट 4.'अन्य'
उक्त में से पहले तीन, टिप्पणी के लिए कॉपी-पेस्ट सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से है, लेकिन इसके अलावा कुछ 'अन्य' कहना चाहें, तो थोड़ी उंगलियां चलानी होंगी।
अब ऐसा एग्रिगेटर बन जाए तो हकीकत, न बने तो सपना - 'माई ड्रीम'। गोया, लगे तो तीर, न लगे तो तुक्का और एग्रिगेटर बने न बने, अपनी बला से, पोस्ट तो तैयार हो ही गई, हमारी बला से।
बढिया बात। पोस्ट तो बन ही गयी।
ReplyDeletemy dream ko no. 1
ReplyDeletepranam.
सभी ऑपशन सही।
ReplyDelete1.पूरा होगा (सभी एक बार तो प्रवेश ले ही लेंगे)
2.नहीं होगा ( बोर होकर फ़िर उसी पर आ जायेंगे)
3.नो कमेंट (जब हम खुद कन्फ़्यूज हैं)
4.'अन्य' (जो भी हो अपनी बला से,हमें भी टिप्पणी का अवसर तो मिल गया)
बड़ी सख्त छन्नी लगाई है आपने। गिने चुने ब्लॉग्स ही इससे छनकर बाहर आ पाएँगे। मुझे नहीं लगता कि 50 तक पहुँचेगा आँकड़ा। मेरा जवाब तो 'नहीं' है।
ReplyDeleteवैसे मेरा ब्लॉग इस लायक है या नहीं ये तो बता दें :)
ummid kam hi lagti hai...:)
ReplyDeletewaise sayad mera blog bhi na hi aa payega..hai na!!
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
ReplyDeleteहमारी शुभकामनाये तो ले ही लीजिए.
ReplyDeleteall the best
ReplyDelete50 का आँकड़ा पहुँच सकेगा, निश्चय ही संभावनायें अपना रास्ता ढूढ़ लेती हैं।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लोगिंग की एक समस्या, या विशेषता, यह है कि विषय केंद्रित ब्लॉग बहुत कम हैं.. जो हैं भी उनका विषय का दायरा बहुत ज्यादा बड़ा है... यहाँ लोगों को जो अच्छा लगता है लिख देते हैं...डायरी टाइप... ५ मिनट में लिखी गयी कविता भी... यात्रा प्रसंग भी, जन्मदिन-पर्व-त्यौहार की बधाई भी, तकनीकी सलाह भी, व्यंग्य भी... हर ब्लॉग अपने आप में एक समाचारपत्र टाइप है.. सब कुछ मिला जुला... अंग्रेजी में अगर कोइ ब्लोगिंग तकनीक का विशेषज्ञ है तो वह उसी पर गहराई से लिखता है, इसी तरह बागवानी, फोटोग्राफी, कूकिंग, साहित्य आदि पर केंद्रित ब्लॉग हैं... इसका एक कारण यह है कि वहाँ आर्थिक पहलू भी जुड़ा है... मेरा अंग्रेजी का एक छोटा सा ब्लॉग है.. कोरियन लंगुएज प्रोफिशिएंसी टेस्ट पर आधारित.. मैं बस पिछले साल के प्रश्नपत्र, कुछ टिप्स, अन्य सूचनाएं आदि डालता रहता हूँ उसपर.. मैंने उसपर एडसेंस लगाकर देखा और पहले दो महीने में १० डॉलर आ गए थे मेरे एडसेंस अकाउंट में.. जिस दिन हिन्दी में ये होने लगेगा उसदिन हिन्दी में भी अच्छी गुणवत्ता वाले विषय केंद्रित ब्लॉग आने लगेंगे... अभी तो आपका ड्रीम प्रोजेक्ट थोड़ा मुश्किल लग रहा है... :) पूरा होगा पर बड़ी मशक्कत करनी होगी.. :) पर बन जाए तो बड़ा अच्छा हो.... मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं..
ReplyDeleteबहुत ही रोचक अंदाज में आपने ‘नवनीत‘ के बहाने वर्तमान ब्लाग लेखन की परोक्ष समीक्षा कर दी।
ReplyDeleteआपने नैनो टेक्नालाजी से ब्लाग फिल्टर बनाया है। ऐसे में आपके ‘माई ड्रीम एग्रीगेटर‘ में वांछित ब्लाग्स की संख्या शायद 10 तक भी न पहुंचे।
‘नहीं चाहिए‘ वाली सूची में कविता को नंबर 1 पर देखकर विस्मय हुआ। ‘नवनीत‘ भी कविता से परहेज नहीं करती थी। हमारे सम्पूर्ण प्राचीन साहित्य में पद्य की ही प्रधानता है।
चलिए हमें अपने ब्लागों का स्थान तो पता चल ही गया। जब आपको ऐसे पचास ब्लाग मिल जाएं तो उनके बारे में भी एक पोस्ट जरूर लिखियेगा।
ReplyDelete*
कहते हैं उम्मीद पर आसमान टिका है।
आप दूरदर्शी हैं यह मानना पड़ेगा . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
ReplyDelete.
ReplyDelete" माई ड्रीम " की जगह " यौर ड्रीम " कर दीजिये , आंकड़ा पचास हज़ार छुएगा , यकीन मानिए।
अपने सपने और अपने विचार हम अपने ब्लॉग पर अपने लेखों में उतार सकते हैं , लेकिन ब्लॉग एग्रीगेटर एक सार्वजनिक मंच हैं , जहाँ निष्पक्ष रूप से हर एक कों स्थान मिलना चाहिए ।
.
बसंतपंचमी की हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteमेरी शुभकामनाएं !
ReplyDeleteश्रीमान जी सपने हकीकत में भी बदल जाते हैं ..आपने तो सोचा है ..अच्छा सोचा है ....शुभकामनायें
ReplyDeleteराहुल सर एक काल्पनिक एग्रीगेटर के माध्यम से आपने ब्लॉग लेखन पर करार व्यंग्य किया है.. अंग्रेजी में इसे ब्लैक सटायर भी कहते हैं.. जोनाथन स्विफ्ट सबसे बड़े ब्लैक सेतेरिस्ट थे... गुलिवर्स ट्रेवेल्स इसी तरह की कल्पना का सेटायर है... एक ब्लॉगर होने के नाते आपकी पोस्ट हमारे औचित्य हमारे लेखन के औचित्य के बारे में सोचने पर विवश कर रही है... मौका भी आपने बहुत सुन्दर चुना है.. वसंत पंचमी जो कि सृजन, रचनात्मकता.. कला आदि की देवी हैं... उनके पूजा के दिन हमारी रचना.. हमारा लेखन कैसा हो इस पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी है आपकी पोस्ट...
ReplyDeleteसृजन आंकड़ो के मायाजाल में नहीं उलझता. वह तो नदी की तरह बहता रहता है.. ब्लाग को मैंने बाग़ कहा है. और बाग़ में फूल भी होते है और कांटे भी. तरह-तरह के फूल, तरह-तरह के कांटे भी. जैसे जीवन, वैसे ही बाग़..और अब वैसे ही ब्लॉग. ब्लॉग का मतलब कविता-कहानी, या सुविचार भर नहीं हो सकते. इसमे घर-परिवार, सिनेमा, संगीत, और कहींकहीं कुछ-कुछ टुच्चापन भी नज़र आ सकता है. तभी तो पता चलेगा की जीवन के कितने रंग है. हम सडकों पर सूअर भी देखते है और गाय भी. सूदर से भी आसक्ति वाले मिलेंगे और गाय को मान मानाने वाले भी मिलेंगे. गाय को काट कर खा जाने वाले ''महान तर्कशास्त्री'' भी मिल जाते है. तो,यह सच्चाई है. ब्लॉग की भी सच्चाई. पचास नहीं, सैकड़ों ब्लॉग ऐसे है, जिन्हें देख कर मैं चमत्कृत हो जाता हूँ. मेरी अपनी सीमा है. लेकिन मै जब अलग-अलग किस्म के सुन्दर ब्लॉग देखता हूँ, तो सोचता हूँ, ये भी अभिनव सोस है. इनका स्वागत होना चाहिए. लेकिन 'अश्लील कार्यक्रमों' का विरोध होना चाहिए. और हाँ, केवल पोस्ट लिखने के लिए भी पोस्ट नहीं लिखी जानी चाहिए. हर पोस्ट अगर कुछ सोचने के लिए बाध्य करे तो उसका स्वागत है. जैसे यह पोस्ट...एक लाइन में टिप्पणी निपटाने वाले को इतनाकुछ लिखना पड़ गया. मतलब पोस्ट सफल है....
ReplyDeleteबहुत खूब सर....
ReplyDeleteअच्छा आईडिया है....दिव्या जी की बात में भी दम है....:)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteड्रीम एग्रिगेटर से, बवाल और झगड़ा पैदा करने वाली पोस्टों को भी हटाना चाहिये।
ReplyDeleteशायद एक बार से अधिक पढ़कर फिर सही टिप्पणी लिखने के बारे में सोच सकूंगा. संख्या निश्चित रूप से पचास से अधिक जायेगी...
ReplyDeleteसिंह साहब मेरा मानना है कि दी गयी शर्तों के साथ तो ५० क्या ५ का लक्ष्य भी बेहद कठिन लक्ष्य रहेगा.
ReplyDeleteहै वही मुश्किल जिसे इंसान मुश्किल मान ले
ReplyDeleteमन के जीते जीत है, मन के हारे हार।
50 का ऑंकडा पूरा होंगा या नहीं? क्या बात कर रहे हैं? नामुमकिन कुछ भी नहीं।
'हम हैप्पी एग्रेगेटर बिन' का राग गाने लगेंगे लोग. नहीं तो अपना-अपना अग्रीगेटर अपना-अपना ब्लॉग !
ReplyDeletei am waiting for this...intresting...all the best...
ReplyDeleteफ़िल्म - वक्त.
ReplyDeleteचलो हटाओ राजा, जो देखा वो ख्वाब और जो सोचा वो अफ़साना। आओ, अब अपनी दुनिया में लौट आओ:))
दहाई का आँकड़ा छू लेंगे न आप?
गोया, लगे तो तीर, न लगे तो तुक्का और एग्रिगेटर बने न बने, अपनी बला से, अपना कमेंट तो हो ही गया:)
मै तो सोच रही हूं की इतना कुछ को जगह नहीं देंगे तो अब बचा क्या तकनीकी जानकारी या कुछ ऐसा ही | इस तरह के ५० तो मिल जायेंगे हिंदी ब्लोगिंग काफी बड़ा है बस देखना ये होगा की क्या ऐसे ब्लॉग आप के अग्रीगेटर में आना चाहेंगे क्योकि कुछ बस लिखते है क्योकि लिखना है चाहे कोई पढ़े या नही कोई फर्क उन्हें नहीं पड़ता है |
ReplyDeleteकहानियों का ब्लॉग तो इस ५० में होगा, ना.??...फिर हमें फ़िक्र नहीं हमारा ब्लॉग तो क्वालीफाई कर गया :)
ReplyDeleteअभी तो सारे ही ऑप्शन सही लग रहे हैं........ लगता तो नहीं कहीं मामला अटकेगा :)
ReplyDeleteबसंतोत्सव की शुभकामनाये
बाकी बाते बाद मे पहले यह लिजिये... बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteब्लागिंग की मूल भावना ही है अभिव्यक्ति की आजादी -और जब हम एक 'अभिजात्य' सोच के साथ इसे किसी निश्चित फ्रेम में बांधना चाहते हैं तो निश्चित रूप से इसकी असीम संभावनाओं का गला घोट रहे होते हैं -फिर भी गालिबन ख़याल अच्छा है !
ReplyDeleteऐग्रीगेटर को (विनम्रतापूर्वक) परे हटाइये, पहले यह बताइये कि इतना रोचक आलेख (नवनीत वाला, आपकी पोस्ट नहीं) लिखा किसने? और यह भी बताइये कि क्या आजकल भी हिन्दी में ऐसा कुछ लिखा जा रहा है?
ReplyDeleteएग्रीगेटर कम सेपरेटर अधिक लग रहा है।
ReplyDelete(सेपरेटर से आशय राईसमील का यंत्र)
तयशुदा मानकों पर ख्वाबशुद एग्रीगेटर हमें तो एलिगेटर नज़र आने लगा है ! अच्छे अच्छों के निशान तक ना मिलेंगे ! मसलन इंसानियत वाले स्यापे पर हम खुद ही आउट हो लिये :)
ReplyDeleteकभी किसी सरकार को ब्लागों पर काबू करने का ख्याल आया तो उसे इस पोस्ट से बड़ी प्रेरणा हासिल होगी :)
सुना है धरती की तरह इंसानों का तीन चौथाई हिस्सा तरल है और बाकी के एक चौथाई हिस्से में भी प्रदूषण की अपार संभावनायें / का अस्तित्व / और गुंजायश है ! तब तो आपके ड्रीम प्रोजेक्ट में सौ फीसदी नप गये :)
ेक तीर से दो शिकार। विचार तो अच्छा लगा। लेकिन कहाँ तक पहुँचता है आँकडा ये देखना बाकी है। अच्छी समीक्षा कर डाली ब्लाग लेखन की। बधाई।
ReplyDeleteआप सभी की टिप्पणियों पर आभार सहित मेल कर रहा हूं, किन्तु सार्वजनिक प्रस्तुत करने वाली कुछ बातें यहां -
ReplyDelete1. सपना सच हो, न हो, सपने को, खुद के ब्लॉग के बाहर होने की आशंका के बावजूद, सच-सच रखने का प्रयास किया है.
2. एग्रिगेटर बनाते हुए अपने लिए रास्ते की तलाश में किसी दूसरे के रास्ते बंद करने का इरादा नहीं है, वरन अगल-बगल की देख-रेख करते, आते-जाते ही रहेंगे. यदि इसे एग्रिगेटर कहना उचित नहीं तो 'ब्लॉग सूची' के अर्थ में लिया जा सकता हैं.
3. कविता ही नहीं पूरी काव्य परंपरा का सम्मान है मेरे मन में, काव्य के प्रति मैंने अपनी सीमा और पिटे-पिटाये से विषयों पर बासी कविताओं से अपना परहेज बताया है, अगर स्पष्ट नहीं हो सका है, तो मुझे खेद है.
4. विनम्रतापूर्वक, इस पोस्ट का एक मकसद नवनीत वाला आलेख पढ़ाना था. किसने लिखा था पता नहीं, शैली से अनुमान है कि तत्कालीन सम्पादक श्री नारायण दत्त जी ने तैयार किया होगा. आजकल हिन्दी में ऐसा जरूर लिखा जा रहा होगा, लेकिन पठन-पाठन में अब हम वानप्रस्थी जैसे हैं और अपना काम पुराने मूलधन के ब्याज से ही चल रहा है, थोड़ी बहुत खबरें ब्लॉग से मिलती हैं और यहीं अपने पढ़ने की हसरत पूरी करते हैं. एग्रिगेटर के इस पोस्ट के थोथे को उड़ा कर नवनीत वाले आलेख के सार को गहा तो यह पोस्ट सफल.
5. अपने-बेगाने पहचान में आने लगें फिर देर नहीं लगती सामाजिकता विकसित होते, इसी उम्मीद के साथ. आशा मुझे भी है, आज नहीं तो निकट भविष्य में लक्ष्य पूरा होगा, निसंदेह, चाहे एग्रिगेटर न बने.
आपका वांछित लक्ष्य पूर्ण हो. शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteमेरा यदि कोई ब्लाग आपकी छन्नी से फिल्टर होकर आने जैसा लगे तो प्रसन्नता सहित आभार...
विचार तो अच्छा लगा। लेकिन कहाँ तक पहुँचता है ये देखना बाकी है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया शैली में विश्लेषण.
ReplyDeleteबिना पोस्ट वाले ब्लॉग के बारे में क्या विचार हैं आपके?
सलाम.
मतलब तब 'कौशांबी की कामकन्या' और खुद को जिला महाकवि या तहसील राजनेता का श्रेय मिलने वाले वाकये का आत्मप्रशंसक लेख लिखकर लोग नवनीत में प्रकाशन हेतु भेजते थे... और संपादक महोदय के कार्यालय में कबाड़ बढ़ता था.... आज के नवनीत संपादक महोदय उसमें सिर्फ यही लिखते 'ब्लॉगर डाट काम समझ लिया है क्या नवनीत दफ्तर को ....'
ReplyDeletesach kahoon, pura nhin padha, lekin jitna padha usse ye sabit zaroor ho gya ki aap kuchh different likhte hai.
ReplyDeleteराहुल जी,
ReplyDeleteविचार उत्तम है। हिन्दी नेट संसार एकरंगी न हो जाये और स्तर और ऊपर उठे, इसके लिये ऐसे प्रयास अवश्य फलीभूत होने ही चाहियें। कभी भारत में हिन्दी में बहुत सारी श्रेष्ठ पत्रिकायें निकलती थीं तो उन्होने विकसित लेखकों की स्तरीय रचनाओं की सहायता से नये लेखकों की पीढ़ी को प्रोत्साहित किया य्न्हे एक तरह से चुनौती देकर कि ऐसा लिखने की कोशिश करो।
वर्तमान में टी.आर.पी का दौर है सो कम समय में सफलता के लिये आपका विचारा हुआ एग्रीगेटर शीघ्र गटि पकड़ेगा यदि आपका साथ देने के लिये २०-२५ स्तरीय ब्लॉगर तैयार हो जायें, तब आपके अग्रीगेटर में शामिल होने के लिये बाकी बचे ब्लॉगर जी जान से कोशिश करेंगे। आखिर वे इस सम्मानजनक सूची से बहर रहना पसंद तो न करेंगे।
और दीर्घ काल में तो ऐसा अग्रीगेटर ठसक के साथ चलेगा, जिंदा रहेगा और बहुत समय तक याद किया जायेगा।
आप शुरुआत करें, कारवाँ तो बन ही जायेगा।
शुभकामनायें!
राहुल जी ,आपका फिल्टर तो मजबूत लोहे का बना लगता है ......... लगता नहीं कि ये आकड़ा आप छू पाएंगे. फिर भी शुभकामनायें . नवनीत की बातें सच बहुत ही विचारणीय है .
ReplyDeleteइस पोस्ट के बहाने आपने ब्लॉग जगी की सार्थकता के बारे में बहुत कुछ कह दिया।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
bahut umda khayal hai shriman..
ReplyDeleteintzar karta hoon...
'Veer tum badhe chalo,dheer tum chale chalo'
ReplyDeleteJab post tayyar ho gayi,to aage ka maksad bhi
avasya poorn hoga.
Aapne mere blog 'Mansa vacha karmna' per jo apni bahumulya tippini ki uske liye aapka aabhari hun.Ab aapki kirpa se mera maksad bhi jaldi jaldi aage badhne ka hi hai.
आदरणीय श्री राहुल सिँह जी,
ReplyDeleteब्लॉगिंग को लेकर आपका आलेख सिंहावलोकन पर पढ़ा, मैं आपके तर्कों से सम्मत हूँ कि ब्लॉगिंग को परिवर्तन चक्र में चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता जब मिल गई है तो इसके सामाजिक उत्तरदायित्वों पर भी बहस की जरूरत बन जाती है। क्या लिखा जाये, कब लिखा जाये, कैसे लिखा जाये आदि पर भी विचार मंथन की आवश्यकता है।
यह कोई बात तो नही हुई कि ब्लॉग अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता देता है तो हम स्वछंद हो जायें और जो भी औल-फौल आता है मन में बयाँ कर डाले बिना उसके प्रभावों पर विचार करे। मैं यह मानता हूँ कि ब्लॉगिंग प्लेटफार्म पर भी किसी मॉडरेटर(नियंत्रक) की जरूरत है जो कि अनुचित, आपत्तिजनक सामग्री को निकाल फेंके। पाठक भी अपने तई न पढ़के ह्तोत्साहन का यह काम कर सकते हैं।
आपका ड्रीम प्रोजेक्ट कामयब हो......इसी आशा के साथ ( यह अच्छा है कि आपकी रुचि कविता में है क्योंकि मैं इसके अतिरिक्त कुछ और नही लिख पाता हूँ)
कृपया इस ई-मेल अपने ब्लॉग पर टिप्पणी के रूप में जरूर प्रकाशित कीजियेगा क्योंकि मैं इसे जावा स्क्रिप्ट की किसी त्रुटि की वज़ह से स्वंय नही पोस्ट कर पाया हूँ।
आपका कवितायन पर पधारने का शुक्रिया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आप ने अच्छी समीक्षा की है ब्लाग लेखन की। बधाई।
ReplyDeleteसारा कुछ नहीं समझ पाया पर मैं और हम सब आप के साथ हैं.
मुझे तो ऐग्रिगेटर के ज़माने में भी जुगाड़ न सूझा और बिना ऐग्रिगेटर के भी एंजॉय कर रहे हैं!!
ReplyDeleteमेरा बलॉग भी पचासवें पर तो रख ही लीजियेगा । नही तो कहिये किसी से सिफ़ारिश करवा देंगे । बहुत जुगाड़ है,हम यू.पी. वाले जो ठहरे..
ReplyDeleteआप ने अच्छी समीक्षा की है ब्लाग लेखन की। बधाई। 50 का आँकड़ा पहुँच सकेगा ।
ReplyDeleteइतना मालुम है हमारा ब्लॉग इसमें नहीं होगा ... आगे की राम जाने !
ReplyDeleteवैसे एक विनती है ... अगर संभव हो तो अपने ब्लॉग पर बेनामी टिप्पणियों वाला विकल्प बंद कर दें ! आपका और ब्लोगिंग का ... दोनों का ही हित होगा !
एग्रीगेटर और ब्लॉगर दोनों परेशान होंगे। पाबला जी इन्हीं लक्ष्यों के साथ ब्लॉग गर्व नाम से एग्रीगेशन कार्य शुरू करने जा रहे हैं। उद्देश्य नेक है मगर उधम मचाने वाले कहां मानेंगे।
ReplyDeleteअच्छा है.
ReplyDelete