उन्नीस सौ साठादि के दशक में, जब पहली दफा मेरी गिनती हुई होगी, पहले-पहल सुना- मर्दुमशुमारी। एकदम नये इस शब्द को कई दिनों दुहराता रहा। कुछ ऐसे शब्द होते हैं, खास कर जब वे आपके लिए नये हों, सिर्फ मुख-सुख के लिए बार-बार उचारने को मन करता है। बाद में जान पाया कि इसका अर्थ है- मनुष्यों की गिनती और वो भी पूरे देश के सभी लोगों की, फिर सिर्फ इतना नहीं घर-मकान भी और न जाने क्या-क्या गिन लिया जाता है।
बाद में थोड़ी और जानकारी हुई तब लगा कि यह अंगरेजों के दिमाग की उपज होगी, वे ऐसे ही काम करते हैं। हमारे देश में सौ-एक साल पहले उनके द्वारा कराया भाषा सर्वेक्षण, दुनिया का सबसे बड़ा सर्वेक्षण माना जाता है। लेकिन फिर पता लगा कि यह काम तो मुगलों के दौरान भी होता था। यह भी कि ईसा मसीह का जन्म जनगणना के दौरान हुआ और उससे भी पहले कौटिल्य ने राज-काज में मनुष्यों की गिनती को भी गिनाया है। मेरा आश्चर्य बढ़ता गया।
इन दिनों की बात। 2011 की इस पंद्रहवीं जनगणना में जाति आधारित गणना की चर्चा होती रही, जिससे यह समझा जा सकता है कि आंकड़े थोथे या निर्जीव नहीं होते, उनके उजागर होने की संभावना भी आशंका और विवाद पैदा कर सकती है, कैसे सत्य-आग्रही हैं हम। इस जनगणना में पहली बार जैवमिति (बायोमैट्रिक) जानकारी एकत्र की जा रही है, जिसका दूसरा दौर पूरा होने को है। जनगणना का एक ब्लॉग, रोचक है ही। इस जनगणना पर डाक टिकट भी जारी हुआ है।
जनगणना के पहले दौर में जिस पथ-प्रदर्शक बोर्ड की मदद से मैं इसके कार्यालय का रास्ता तलाश रहा था, वहां भी जनगणना हावी था। जनगणना कार्यालय पहुंचने पर मुहल्ला मकान क्रमांक और जनगणना मकान क्रमांक, एक फ्रेम में देखना रोचक लगा।
1991 की जनगणना में हमलोग सरगुजा जिले के उदयपुर-सूरजपुर मार्ग पर 22 वें किलोमीटर पर भदवाही ग्राम में थे। इस जनगणना के विस्तृत प्रारूप और पूछे जाने वाले कुछ निजी किस्म के प्रश्नों पर तब खबरें गर्म होती रहती थीं। हमारे वरिष्ठ सहयोगी और कैम्प प्रभारी रायकवार जी को चिन्ता रहती कि हमारी गिनती कौन, कहां और कैसे करेगा। इस अभियान में गिने जाने से चूक तो नहीं जाएंगे। प्रगणक, सरकारी आदमी जान कर हमसे अपना सुख-दुख बांटते। उनलोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में जुड़वा संतति बड़ी संख्या में है और प्रारूप में इसे कैसे दर्ज किया जाए, समझ में नहीं आ रहा है। खैर, तब हम सबकी गिनती हो गई, प्रगणकों की समस्या भी हल हो गई होगी।
इस जनगणना के दौर में स्थानीय अखबार में 5 फरवरी को छपी एक खबर देख कर याद आई जुड़वों और जनगणना की। समाचार का शीर्षक है ''जुड़वा बच्चे पैदा होने का रिकार्ड बनाया देवादा ने'' समाचार के अनुसार दुर्ग जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित गांव में 13 जुड़वा हैं। समाचार की एक पंक्ति है- ''देवादा निवासी संतूलाल, झल्लूलाल और किशोरीलाल सिन्हा तीनों सगे भाई हैं। तीनों के यहां जुड़वा बच्चे हैं। जुड़वा बच्चे पैदा होने के क्या कारण है यह वे बताने की स्थिति में नहीं हैं।'' गनीमत है ये तीन सगे भाई चैनलों की हद में नहीं आए हैं, वरना जुड़वा बच्चे पैदा करने का कोई न कोई कारण उन्हें कैमरे के सामने सार्वजनिक करना ही पड़ता और सरपंच से पूछा जाता कि क्या करना पड़ा आपके गांव को यह रिकार्ड बनाने के लिए। इस सिलसिले में मालूम हुई जानकारी आपसे बांटते हुए, केरल के कोडीनीडी गांव की कुल आबादी का दस फीसदी जुड़वा बताई जाती है।
इस सब मगजमारी के पीछे मंशा सांस्कृतिक पक्षों के तलाश की थी। कॉलेज के दिनों में किताबें उलटते-पलटते कुछ संदर्भ मिले थे अब उनकी फोटोकापी पर ध्यान गया कि सांस्कृतिक सर्वेक्षण एवं अध्ययन की संदर्भ सामग्री भी तो जनगणना के खंड के रूप में प्रकाशित हुआ करती थी।
इसके लिए अब तक की खोजबीन में मालूम हुआ कि प्रत्येक तीस वर्षों में ऐसे अध्ययन हुए हैं, 1931 और 1961 का तो दस्तावेजी प्रमाण मिल गया, लेकिन मानविकी-संस्कृति के और क्या अध्ययन-प्रकाशन, कब-कब हुए, अब भी होंगे, पता न लग सका सो वापस मर्दुमशुमारी उचारते बाल-औचक हूं कि हम सभी एक-एक, बिना चूके गिन लिए जाएंगे।
वैसे भी कहते हैं कि जम्हूरियत वह तर्ज़े हुक़ूमत हैं जहाँ इंसान तोले नहीं जाते, गिने जाते हैं!!
ReplyDeleteयह मर्दुमशुमारी कब मुर्दाशुमारी में तब्दील हो गई पता ही न चला.. हर पाँच सालों में और कभी कभी बीच में भी इन मुर्दा ज़मीर वालों की मुर्दाशुमारी शुरू हो जाती !
मर्दुमशुमारी बचपन से सुनते आ रहे हे, लेकिन उस समय इस का मतलब नही मालूम था, बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, लेकिन भारत मे सही मर्दुमशुमारी कभी नही हुयी, क्योकि हमारे यहां कोई सिस्टम ही नही हे, भिखारी , साधू ओर वो लोग जो घरो से दुर रहते हे उन की गिनती कहा हो पाती होगी
ReplyDeleteबधाई हो कोडीनीडी और देवादा को. हम तो अब तक यही समझ रहे थे कि 54 जुडवाँ युग्म (108) के साथ इलाहाबाद का उमरी गांव भारत की जुडवाँ राजधानी है।
ReplyDeleteगिनती करना अलग और उन्हें एक इन्सान जैसा जीवन यापन करने के लिये बेसिक एमेनिटीज उपलब्ध कराना दोनों बहुत अलग हैं.. गिनती कर ही खुश हो लेते हैं..
ReplyDeleteमैं सात आठ साल का रहा हूंगा, अपने दादाजी के साथ बैख गया था। उनके दस्त्ख्वत रिकार्ड से मैच नहीं किये, तो उन्होंने कहा, "अच्छा, बकलमखुद लिखा होगा, पुराने दस्त्ख्वत में।" मुझे कई साल तक और अब भी ये शब्द ’बकलमखुद’ ऐसे ही आकर्षित करता रहा है जैसे आपको मर्दुमशुमारी।
ReplyDeleteरोचक जानकारी, रोचक तरीके से। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनको हम बहुत लाईटली लेते हैं लेकिन ये इतिहास समेटे हैं खुद में। अच्छा लगता है नेप्थ्य के गीत सुनना, समझना।
हम गिन लिए जाते हैं, और कहते इस गिनती के आधार पर हमें बहुत से फ़ायदे मिलेंगे। इस वो ही जाने, बस हम गिनने के लिए हैं, गिनते जाएंगे।
ReplyDeleteवैदिककाल में महर्षि अंगिरा के द्वारा जब जनपदों प्रथम चुनाव करवा कर लोकतंत्र की स्थापना हुई थी, उस समय भी मर्दमशुमारी का उल्लेख है। उसी समय तक्षशिला विश्व विद्यालय की स्थापना एवं सैंधव (घोड़ा) पालतु बनाने का जिक्र भी हुआ है.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से ज्ञानरंजन हुआ।
आभार
1931 में जाति आधारित जनगणना हुई थी, उसके बाद सरकार इन्ही आंकड़ों से काम चला रही है।
ReplyDeleteजुड़वा होने का कोई स्थानीय नियत कारण नहीं पता लगा अब तक।
ReplyDelete@ प्रवीण पाण्डेय जी
ReplyDeleteकहा तो जाता है कि जुड़वा संतति अनुवांशिकी कारणों से होता है, लेकिन जानकारियों से ऐसा लग रहा है कि मिट्टी-पानी का भी असर होता है.
गिनती भी बस औपचारिकता भर है..... इससे ज़्यादा किसी बात का विचार करना ही कौन चाहता है......
ReplyDeleteI never read an article like it. It's enlightening, no doubt about it. What a collection of information and what a flow in the article. Kudos to you.
ReplyDeleteMy sincere congratulations to you on this subject. By the way, I too had heard this word Mardumshumari but never knew what it meant. Now from your article I learnt it.
Regards
G Manjusainath
कोई मर्दुमशुमारी की व्युत्पत्ति समझायेगा ? मर्द और उसकी दुम? शुमारी?
ReplyDelete@ चला बिहारी ... जी
ReplyDeleteवाह, क्या गजब फरमाया है, मानों मुगले आजम के सलीम.
@ स्मार्ट इंडियन जी
इलाहाबाद का उमरी गांव के लिंक के लिए आभार.
@ संजय जी
इसी तरह शब्द इस्तेमाल होता है- 'हस्ते-खुद' और बंसखेड़ा ताम्रपत्र में हर्षवर्धन के हस्ताक्षर उत्कीर्ण हैं 'स्वहस्तोमममहाराजाधिराजश्रीहर्षस्य'
@ अरविंद मिश्र जी
राजस्व अमले की कार्यक्षमता पर कहा जाता है- किसी जंगली इलाके के लिए पूछा गया था, जिले में कितने donkey हैं (जिसकी वहां न के बराबर संख्या थी) लेकिन d की जगह m टाइप हो गया और पूरे अमले ने मिल कर समय-सीमा में जानकारी तैयार कर दी.
"मर्दमशुमारी" शायद पुराने वक्त में आम प्रचलन में रहा हो. अगर आज भी प्रचलन में होता तो नारीवादियों ने इसको प्रतिबंधित करा कर ही दम लेना था.
ReplyDeleteबिलकुल नया शब्द जानने को मिला ये..'मर्दुमशुमारी'...और इस से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी भी
ReplyDeleteमर्दुमशुमारी भले हो रही हो लेकिन मर्दुमशनासी अब नहीं होती।
ReplyDeleteजुड़वा बच्चे अधिक हों तो देखना चाहिये कि वह एक शक्ल वाले, यानि एक अण्डकोष से बने बच्चे हैं या विभिन्न शक्ल वाले, यानि विभिन्न अण्डकोष से बने बच्चे हैं. आम तौर से नारी शरीर, प्रजनन उम्र में, हर मास एक नया अण्डकोष तैयार करके कोख में छोड़ता है, लेकिन यह कुछ दवाओं से भी हो सकता है, जिनकी वजह से दो या तीन अण्डकोष एक साथ तैयार हो कर कोख में आ जाते हैं. इस की वजह से जो स्त्रियाँ बच्चा न होने का इलाज करवा रहीं हों, उनमें जुड़वा या तीन बच्चे साथ में होने की अधिक संभावना होती है, लेकिन यह विभिन्न शक्ल वाले या फ़िर विभिन्न लिंग वाले बच्चे होते हैं. जबकि एक ही शक्ल वाले जुड़वा बच्चे अधिकतर अनुवांशिकी कारणों से होते हैं.
ReplyDeleteजानकारी पूर्ण पोस्ट है।
ReplyDeleteजानकारी और विषय दोनों ही नए हैं ! आभार आपका !
ReplyDelete'मर्दुमशुमारी..मैंने पहली बार सुना यह शब्द और जानकारी भी बेहतरीन दी आपने .
ReplyDeleteजहाँ तक गिनती का सवाल है इंसान तो अब गिनती के भी नहीं मिलते हाँ शरीर गिन लिए जाते हैं.
गहन चिन्तनयुक्त जानकारी पूर्ण विचारणीय पोस्ट ...
ReplyDeleteबेहद रोचक आलेख... अभी जनगणना का माहौल है चारो तरफ ऐसे में आपके इस आलेख से जन गणना के प्रति जानकारी और रूचि और बढ़ी है..
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ReplyDeleteमर्दुमशुमारी आज एक नए शब्द की जानकारी मिली शुक्रिया |
ReplyDeleteहाँ हमारे यहाँ भी दो , तीन दिन पहले ही जनगणना वाले आये थे इतना कुछ पूछा जिसकी जानकारी हमें थी ही नहीं पर हमनें तो फिर भी बता दी | मेरे भाई को भी जनगणना करने का काम सोंपा गया है वो बता रहा था गाँव के लोगों को तो अपनी जन्म तिथि भी मालूम नहीं और उसमे शादी की तारीख माँ की जन्म तिथि सब पूछा गया है | पता नहीं सही जानकारी कैसे एकत्र की जाएगी |
अच्छी जानकारी देती पोस्ट |
मैं आपकी शुक्रगुजार हूँ की आप समय - समय पर आकर मेरा होंसला बढ़ा कर जाते हैं बहुत - बहुत शुक्रिया |
ReplyDeleteinformative post .thanks.
ReplyDeleteजनगणना का शानदार इतिहास!!
ReplyDeletebahut acchee visataar se jaanakaaree dee hai| dhanyavaad|
ReplyDeleteमर्दुमशुमारी में ख्वातीनों को भी शामिल माना गया अलग से कोई आग्रह नहीं हुआ इस तबके के लिए संबोधन का :)
ReplyDeleteबहरहाल हमने जो जाना वो ये कि बतर्ज़े चित्रगुप्त ये भी एक किस्म का दाखिल खारिज़ है :)
पहला मौक़ा जो भी रहा हो , इस ख्याल के हकीकत में बदलते ही इंसान परिमाणात्मक हुआ :)
मर्दुमशुमारी, महामारी और मारामारी जैसे शब्दों के साथ भरपूर लय में है।
ReplyDeleteअगर भारत को व्यवस्थित होना है और जनता को सामाजिक और आर्थिक स्तर के आँकड़ों के बलबूते ही वर्तमान और भविष्य की सरकारों को घेरना है तो जनगणना जितनी सटीक हो उतना अच्छा है।
शब्द नया है... मेरे लिए...
ReplyDeleteइसीलिए जानकारी बहुत जरूरी थे... उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
और रही गिनती और आकड़ों की बात, तो ये हमारे देश की हवा में सम्मिलित हो चुका है...
जब तक देश है तब तक रहेगा ही...
आभार...
घर गया था,बिहार.वहां भी मर्दुमशुमारी की मारामारी है. बस वाले ने बताया कि पापुलेसन तेजी से बढ़ रहा है.सवारी कि कमी नहीं होगी कभी. वह बी .ए. आनर्स था.
ReplyDeleteवहां लोगों से समधन के नाम पूछे जा रहे हैं.रोमांटिक angle जैसा लगता है.
बहुत ख़ुशी नहीं होती कि मेरी गिनती सामान कि तरह की जा रही है.
aitihasik janakari 'mardum-shumari'........
ReplyDeletepranam.
जुड़वां बच्चो की राजधानी, मर्दुमशुमारी ( जनगणना ) जैसी उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई .परन्तु क्या हमारे देश में जनगणना शत प्रतिशत सही होती है . मुझे संदेह है .
ReplyDeleteफेसबुक पर श्री राजेश भटनागर की टिप्पणी-
ReplyDeleteमुर्दुम्शुमारी के बारे मिएं जानकारी पाकर अच्छा लगा. सर पब्लिक का ध्यान भूख प्यास भ्रष्टाचार से हटाने की रायशुमारी क्या कम होती है ?
विषय अच्छा है, समसामयिक ---कभी ये सरकारें भूखों किसानों फकीरों की मुर्दुम्शुमारी करवाए तो ठीक हो
काश सब गिन लिए जाएं
ReplyDeleteएक नया शब्द सीखने को मिला इस बहाने। धन्यवाद।
ReplyDeleteजुडवा बच्चों के पैदा होने के विभिन्न कारणों पर आपकी खोजपरक पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी। आपकी इस पोस्ट ने ही यह जिज्ञासा पैदा की है।
ReplyDeleteमनुष्य जीवन के विकास क्रम की इस पायदान का आनन्द आया।
Rochal aur gyanaparak jankari ke liye abhar
ReplyDeletedilchasp lekh
ReplyDeletebadhaaee
बहुत रोचक लेख लिखा है. जनगणना को अब तक केवल जनगणना ही जाना था.एक और नाम और कई पहलू जानने को मिले. आभार.
ReplyDeleteघुघूती बासूती