''मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।''
राम की कौन कहे, सबकी खबर ले लेने वाले कबीर ने क्यों कहा होगा ऐसा? 'मैं', कबीर अपने लिए कह रहे हैं या कुत्ते की ओर से बात, उनके द्वारा कही जा रही है। पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी होते तो जवाब मिल जाता, अब नामवर जी और पुरुषोत्तम जी के ही बस का है, यह।
लेकिन किसी के भरोसे रहना भी तो ठीक नहीं। बैठे-ठाले खुद ही कुछ गोरखधंधा क्यों न कर लें, तो मुझे लगता है, यह कबीर की भविष्यवाणी है। वे यहां बता रहे हैं कि सात सौ साल बाद एक 'राम' (विलास पासवान, रेल मंत्री) होंगे और उनका एक कुत्ता 'मोती' होगा। आप ऐसा नहीं मानते ? दस्तावेजी सबूत ?, चलिए आगे देखेंगे। नास्त्रेदेमस को भविष्यवक्ता क्यों माना जाता है, जबकि लगता तो यह है कि होनी-अनहोनी घट जाती है तो उसकी नास्त्रेदेमीय व्याख्या कर दी जाती है। हमारे यहां तो भविष्य पुराण (आगत-अतीत) की परम्परा ही रही है।
कर्म और पुरुषार्थ के नैतिक, धार्मिक और विवेकशील संस्कारों के बावजूद मैंने भी कीरो, सामुद्रिक, भृगु संहिता, रावण संहिता, लाल-पीली जैसी किताबों को पढ़ने का प्रयास किया है, किन्तु भाग्य-प्रारब्ध का मार्ग भूल-भुलैया है ही, ये मुझे फलित के बजाय भाषाशास्त्र के शोध का विषय जान पड़ती हैं, जिसमें अपना भविष्य खोजते हुए, भाषा में भटकने लगता हूं। भाषाविज्ञानी परिचितों से आग्रह कर चुका हूं कि इन पुस्तकों की भाषा पर शोध करें। कैसी अद्भुत भाषा है, जो सबका मन रख लेती है। इससे भाषाशास्त्र का कल्याण ही होगा और शायद कुछ की तकदीर भी बदल जाए।
चलिए, फिर आ जाएं मोती कुत्ते पर। कर्मणा संस्कृति से जुड़े होने के कारण कोई परिचित दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के सांस्कृतिक कोटा के विरुद्ध भरती की चर्चा के लिए आए, लेकिन मेरा ध्यान अटक गया अधिसूचना- आरपीएफ का कुत्ता 'मोती' पर। फिर एक खबर यह भी छपी- इस 'मोती की नीलामी रोकने हाईकोर्ट में याचिका।' (दस्तावेजी सबूत)
अब तो मान लें कि कबीर भविष्यवक्ता थे और मोती नाम वाले राम के कुत्ते मामले की भविष्यवाणी से भी वे आज प्रासंगिक हैं। आप नहीं मानते तो न माने, हमारी तो मानमानी।
लेबलःहाहाहाकारी पोस्ट
@लेबलःहाहाहाकारी पोस्ट
ReplyDeleteपुन:आते हैं विचार कर
अलियों गलियों से गिंजर कर
हाहाकारी विचारों के साथ
चूँकि ये हाहाहाकारी पोस्ट है इसलिए हा हा हा की तो बनती है। :)
ReplyDeleteआपका ये 'शोध' अद्भुत है। हम तो आपसे पूरी तरह सहमत हैं। :)
हा! हा! हा!
ReplyDeleteवाकई एक साथ सभी को लपेट किया,कबीर,राम,मोती,नेस्त्रदेमस,भविष्य पुराण और भाषाशास्त्र!!
सत्य ही है, यह भविष्यकथन,नेस्त्रदेमसीय भाषारंजन से विशेष कुछ भी नहीं।
मोर हीरा गंवागे बनकचरन मा
ReplyDeleteलेकिन आपने दपूरे के कचरे से मोती ढूंढ निकाला, वो भी कबीर का।
अनोखा लेखन...अनोखी प्रस्तुति...
आपने जिन किताबों का जिक्र किया...उतनी भारीभरकम किताबें पढने की तो कभी हिम्मत नहीं हुई....और अब आपने बता ही दिया की वहाँ शब्दजाल ही ज्यादा हैं....सो बच गए :)
ReplyDeleteआपकी नज़र भी कितनी दूर तक गयी और कबीर की भविष्यवाणी भी क्या खूब फली कि
''मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।''
इस हाहाकारी पोस्ट में व्यंग की धार भी है ... तो इसलिए इसे व्यंगाकारी पोस्ट भी कहें ......
ReplyDeleteमोती की नीलामी फिर हुई या नहीं यह पता हो तो बताएं :)
ReplyDelete'सांस्कृतिक कोटा के विरुद्ध' तो भर्ती हो चुकी होगी अब तक :)
हम तो आपसे पूरी तरह सहमत हैं।
ReplyDeleteवाह !! एक अलग अंदाज़ ...बहुत खूब
अत्यंत रोचक. लगता है कुकुर पुराण कुछ हावी हो गया है. हमारे यहाँ मोती तो नहीं परन्तु लालू से मुलाक़ात करवाते हैं.
ReplyDeleteजय हो मोती की..
ReplyDeleteआज लोग अपने मां बाप को बेचने को तेयार हे यह तो बेचारा मोती हे....आप का लेख पढ कर मुझे मेरा हेरी याद आ गया, धन्यवाद
ReplyDeleteमुझे तो हाय हायकारी लगी :-)) शुभकामनायें !
ReplyDeleteराहुल सर,प्रणाम.
ReplyDeleteसाहित्य भी क्या चीज है.कही पर निगाहें कहीं पर निशाना .शायद यही व्यंग्य की जननी है और ये बात'मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।' में उभर कर सामने आयी है.सही है,जहाँ लोग अपने मां-बाप पर रहम नहीं करते वहां एक बेचारे कुत्ते की क्या बिसात.ऊपर-ऊपर तो यह बात हंसाती है लेकिन इसका अर्थ-विस्तार जीवन की कड़वी सच्चाई से रूबरू कराता है.सम्मोहित करती रचना.
आज भी आपकी पोस्ट पढ कर कई संभावनाएं जागी हैं...
ReplyDelete(१) सोचता हूं कि उस ज़माने में मध्य रेलवे और अखबार हुआ करते तो '...' का भी यही हाल होता :)
(२) मोतिया "राम" का और मोती "आर" पी एफ का :)
(३) आपने भृगु संहिता /लाल पीली किताबें देखीं ? कहीं पुनर्जन्म जैसा प्रश्न तो सामने नहीं था :)
(४) संत होने यानि कि ईश्वर का मोतिया होने, का ख्याल अब भय का कारण है :)
(५) अन्य टिप्पणीकारों के लिए संभावनायें और भी हो सकती हैं :)
कबीर का ये अंदाज़े-बयां था.
ReplyDeleteकबीर ने (हरि जननी मैं बालक तेरा ......में.) अपने को ईश्वर का बेटा कहा,
(दुलहिनी गावहु मंगलचार...............में) ख़ुद को ईश्वर की पत्नी माना.
इसी सन्दर्भों में उक्त दोहा भी अपनी सार्थकता बयान करता है.
सिंह साहब, एक पुरानी कहावत है कि हर कुत्ते का दिन आता है... अब ये "राम" राज में आया और मेरे नामधारी किसी श्वानप्रेमी ने उस बेचारे के लिये "विलास" नहीं मात्र पोषण की व्यवस्था माँगी! शायद तभी वह निराश श्वान गुनगुना रहा था था कि
ReplyDeleteरहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो,
हमज़ुबाँ कोई न हो और पासवान कोई न हो!
.
ReplyDelete"कर्म और पुरुषार्थ के नैतिक, धार्मिक और विवेकशील संस्कारों के बावजूद मैंने भी कीरो, सामुद्रिक, भृगु संहिता, रावण संहिता, लाल-पीली जैसी किताबों को पढ़ने का प्रयास किया है, किन्तु भाग्य-प्रारब्ध का मार्ग भूल-भुलैया है ही, ये सभी मुझे भाग्य फल के बजाय भाषाशास्त्र के शोध का विषय अधिक जान पड़ती हैं, जिसमें अपना भविष्य खोजते हुए, भाषा में भटकने लगता हूँ। भाषाविज्ञानी परिचितों से आग्रह कर चुका हूँ कि इन पुस्तकों की भाषा पर शोध करें। कैसी अद्भुत भाषा है, जो सबका मन रख लेती है। इससे भाषाशास्त्र का कल्याण ही होगा और शायद कुछ की तकदीर भी बदल जाए।"
@ मोती के बहाने आपने जो भाषाविद और विज्ञानियों को आड़े हाथों लिया है - वह मुझे महत्व का लगा, बाक़ी सब तो मुझे आकर्षक कवर ही प्रतीत हुआ.
आपके इस व्यंग्य को एक उपमा देता हूँ... सुन्दर आवरण में लिपटी बंद नाक खोल देनी वाली "विक्स की टॉफी" की मानिंद.
एक प्रश्न :
'कीरो' क्या है? मेरा ज्ञान अल्प है कृपया कुछ बढायें...
.
.
ReplyDeleteआपका कहीं 'नीरो' से तात्पर्य तो नहीं है ...?
.
आपके लेखन का एक नया रंग देखा...अक्सर व्यंग्य बाहर बाहर का ही हो जाता है..पर ये भीतर का है...वाकई हाहाहाकारी पोस्ट
ReplyDeleteहाहाहाकारी........... सचमुच हाहाकारी. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteयक़ीनन हाहाकारी..... ज़बरदस्त व्यंगात्मक शोध..... कबीर की भविष्यवाणी का हवाला भी देना भी खूब रहा ......
ReplyDelete@ प्रतुल जी, सुखद है कि आपने पोस्ट की नब्ज पकड़ी (विक्स वाला इलाज भी बताया).
ReplyDeleteCheiro या 'कीरो', जिस तरह इसे हिन्दी में उच्चारित किया जाता है, पाश्चात्य हस्तरेखा और अंक ज्योतिष के क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम माना जाता है.
मोती के नाम मस्त हाहाकारिता है :)
ReplyDeleteयाद आता है फिल्म 'धरती कहे पुकार के' जिसमें कि अनपढ़ कन्हैयालाल का भाई मोती उर्फ संजीव कुमार वकील हो जाता है और गाँव के मास्टर जब खबर पढ़कर बताते हैं कि आपका भाई मोती LLB हो गया है तो कन्हैयालाल मारे खुशी के झूमते हुए कहते हैं - हमार मोतीया टूट फाट बिलबिल हुई गवा.....हमार मोतीया :)
मोती से लेकर पासवान तक लम्बा सफ़र नजुमियों का।
ReplyDeleteकबीर जैसा ही रहस्य लेख में दृष्टिगोचर हो रहा है।
मर्म को समझने के लिए दिव्य दृष्टि की तलाश ।
मैं तो कहूं लाल हरी नीली पीली सभी किताबों का भाषाशास्त्रीय विवेचन होना चाहिए -मेरी भी एक फेलोशिप की दरकार है !
ReplyDeleteआपकी हाहाहाकारी पोस्ट पर हमारा हाँहाँहाँकारी कमेंट -
ReplyDeleteआप मान गये हैं तो हम कैसे नहीं मानेंगे जी? कबीर भविष्यवक्ता थे, और हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।
इस मोती के राम का तो हाल बेहाल सुना है, खुद मोती का क्या हुआ?
.
ReplyDeleteधन्यवाद आपने बताया. जब इस बात को मैंने पत्नी को बताया तो वे हँसकर बोली यह बात तो मुझसे पूछ लेते. अरे यह बात तो उसके छोटे भाई को भी पता थी. लगा कि मैं वास्तव में अल्पज्ञ हूँ. हस्तरेखा और अंक ज्योतिष में अरुचि के कारण ही इस रुचि का विस्तार नहीं हो पाया तो पाश्चात्य पुस्तकों का स्वाध्याय कहाँ से होता? देर से ही सही, पता तो चला इस कीरो के बारे में.
.
हा हा हा हाहाकारी पोस्ट थी तो हा हा तो हुआ ही व्यंग का भी जबाब नहीं.कहाँ तक नजर जाती है .
ReplyDeleteमोती ने इस पोस्ट पर कबिरा प्रहार किया.
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में इन दिनों मोती के दो मादा परिजनों का हाल भी इसी तरह बेहाल है। :)
बहुत अच्छा राहुल जी, आपके कमेंट्स लगातार मिलते रहते हैं, कबीर के राम और आज के नाम के राम का समन्वय काबिले तारीफ लगा। जनाब आपसे परोक्ष मुलाकात तो हुई है,( श्री राजीव जी के कक्ष में जब श्री उन्नीकृष्णन (नवनियुक्त वीसी, संगीय विवि, खैरागढ़) ज्वाइन होने से पहले रायपुर आए थे) लेकिन रूबरू की तरह नहीं। किसी दिन जरूर इच्छा रखता हूं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि जिस ब्लॉग पर आपने टिप्पणी में लिखा है, कि पूरा नहीं पढ़ा लेकिन सतयुग आ गया जान पड़ता है। एक फिल्म की पटकथा है। हम लोग मित्र मिलकर स्वांतसुखाय, रचनात्मकता बनी रहे, हम पत्रकार से इतर भी कुछ हैं, सोचने की ताकतें हम में भी हैं, आदि लक्ष्यों को लेकर इसे बनाने जा रहे हैं। आपकी साहित्य पर पकड़ देख कर महसूस हुआ वास्तव में सिटी भास्कर की ओर से कला संस्कृति देखने वाले रोहित मिश्र जी से आपकी मुलाकात जरूर होनी चाहिए। रोहित जी को साहित्य की अच्छी जानकारी और समझ है, मुझे सिर्फ समझ ही है, जानकारी नहीं।
ReplyDeleteआपके वर्दी कमेंट्स के लिए सादर बधाई।।।
वरुण के सखाजी, रिपोर्टिंग हेड, सिटी भास्कर, रायपुर. 09009986179
जी जी... पूरी तरह मान गए...
ReplyDeleteसच कहूँ तो कभी-कभी मन होता है वो लाल-पीली और बड़ी पुस्तकें पढने का... पर सिर्फ मन होता है, कदम आगे नहीं बढ़ाते... आज आपकी बातें पढ़ लग रहा है की अच्छा हुआ नहीं पढी...
पर व्यंग्य बहुत ही जबरजस्त था...
राहुल जी आपका यह आलेख वैसे तो पढ़ कल ही लिया था यही पोस्ट होने के साथ ही लेकिन इस पोस्ट ने "दिमाग की बत्ती" ऐसे जला दी थी कि उस समय टिप्पणी नहीं कर पाया था ... कबीर के मोतिया से आरपी ऍफ़ के मोती तक समय किस कदर गुजर गया पूरा लेखा जोखा आपने दे दिया है... तमाम बेस्ट सेलर भविष्य-वक्ताओं के हवाले से... मैं बचपन से रेलवे स्टेशन के किताब स्टालों पर सजे कीरो, नास्त्रेदम, लाल किताब, बजें दारूवाला, स्वेत मार्टिन आदि के आकर्षक कवर को देखता रहा हूँ... सहयात्री से ले के कई बार पढ़ा भी है.. (खरीद कर नहीं) और आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि भाषाविज्ञानियों की नज़र इधर नहीं गई.. आपकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहूँगा कि... इसी तरह हमारे सत्यनारायण की कथा.. हनुमान चालीसा, अन्य देवी देवताओं के चलिसाओं से लेकर लालू चालीसा पर भी शोध की जरुरत है.. 'मोती ' के नीलामी के विज्ञापन पर जितना खर्च हो गया होगा उतने में मोती अपने सेवा के बदले अंत तक सम्मान रह सकता था... बाबा नागार्जुन की एक कविता है इसी से जुड़े विषय पर मिलिट्री के घोड़े पर.. पंक्तियाँ याद नहीं अभी... कुल मिलकर व्यंग्य के साथ गंभीर बहस को छेड़ता आलेख...
ReplyDeleteपंद्रह दिनों से आँख की समस्या थी,
ReplyDeleteनेट पर नहीं आ पा रहा था ,
पोषण से वंचित महसूस कर रहा था,
गैर हाजिरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
'बिन मांगे मोती मिलें ...'
ReplyDeleteमोती पर लागु नहीं हो रहा है,संजीव तिवारी जी ने सही कहा है , अगर मोती के परिजनों पा निलंबन की करवाई की जा सकती है तो पेंशन का इन्तेजाम भी किया जाना चाहिए
बहुत खूब कहा है आपने ...।
ReplyDeleteरज्जू बाबू (स्वर्गीय श्री राजेन्द्र माथुर) कहा करते थे कि प्राणवान लेखन के लिए अलेखक को लेखक बनाया जाना चाहिए।
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट पढ कर मुझे कहने दीजिए - अविषय को प्राणवान विषय बनाने के लिए 'राहुल प्रशिक्षण महाविदृयालय' में भर्ती हो जाना चाहिए।
हाहाहाहाहाकारी नहीं, हा:) हा:) हा:) हा:) भरी पोस्ट।
अच्छी विचारणीय प्रस्तुति बहुत गहन अध्ययन मज़ा आया पढ़कर और साथ ही टिप्पणियां भी लाजवाब
ReplyDeleteMoti to har yug men moti hi raha hai.
ReplyDeleteMarak wyangya.
sundar prastuti republic day ki badhai
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
ReplyDeletehttp://hamarbilaspur.blogspot.com/
फेसबुक पर दर्ज-
ReplyDeleteShyam Kori 'uday' commented on your post.
Shyam Kori wrote: "... ''मैं तो कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।'' ... yah kathan, kis sandarbh men kahaa gayaa tathaa kin ke samaksh kahaa gayaa, jab tak yah spasht na ho jaaye yah anumaan lagaayaa jaanaa mushkil hogaa ki "yah kyon bolaa gayaa hai ... tathaa kyaa bhaavaarth hogaa" ... !!"
ओह, आज जा कर समझ में आया हाहाकारी पोस्ट का मतलब।
ReplyDelete-------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
बिल्कुल पक्की हाहाकारी पोस्ट। हा हा। सिंह साहब ये एकदम वाजिब सिंहावलोकन हुआ। क्या कहना। आपसे अब तक मुलाक़ात न हो पाने का अफ़सोस है।
ReplyDeleteसुन्दर , रोचक आलेख !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
ReplyDeletehttp://hamarbilaspur.blogspot.com/2011/01/blog-post_5712.html
Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteMusic Bol
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मोती को आराम की सेवानिवृत्ति मिले, रेलवे में ही।
ReplyDeleteमोती की न्यूनतम बोली 500 रुपये तो है। राम (आधुनिक नहीं, असली वाले) की बोली तो हमारे एग्नॉस्टिक उतनी भी न रखेंगे! :-(
ReplyDeleteनमस्कार सर
ReplyDeleteबात को कहने का खुबसूरत अंदाज़ !
बहुत बहुत बधाई !
ज़बरदस्त व्यंगात्मक शोध..... कबीर की भविष्यवाणी का हवाला भी खूब रहा बहुत बहुत बधाई ..
ReplyDeleteआप ने कुत्ते के माध्यम से जो कुछ ही कहा.बहुत ही अच्छा लगा।मेरे पोस्ट पर आते रहिएगा।सादर।
ReplyDeleteयह मोती भी ना...
ReplyDeleteदेश का दुर्भाग्य पर कमेन्ट कर आपने मुझे ज्योतिष विरोधी अपने व्यंग्य लेख पढने को आमंत्रित किया धन्यवाद.आप और अन्य कमेंटेटर ज्योतिष को न मानें तो क्या उसका महत्त्व समाप्त हो जायेगा?
ReplyDeleteभाग्य या प्रारब्ध- पूर्व जन्म में किये गए कर्म,अकर्म और दुष्कर्म के संचित फल इस जन्म का प्रारब्ध या भाग्य कहलाते हैं.इन्हें जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर ज्ञात किया जाता है.यदि फल बताने वाला गलती करता है तो उसमें विद्या या ज्योतिष शास्त्र कैसे गलत हुआ?.संत कबीर को अपने हास्य में घसीटना और लोगों की वाहवाही बटोरना घोर अनैतिक है.किसी भी विषय का नियमबद्ध एवं कृम्बद्ध अध्ययन विज्ञानं है.जो विज्ञानं माने प्रयोग शाला में बीकर आदि में भौतिक पदार्थों के सत्यापन को ही विज्ञानं मानते है वे अल्पज्ञानी लोग हैं.ज्योतिष विज्ञानं मानव-जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाने का मार्ग बताता है.जो इसका मखौल उड़ाते हैं ,वे दूसरा का भला देखना ही नहीं चाहते इसी लिए खुद पर इठलाते रहते हैं.देश का दुर्भाग्य पर कमेन्ट कर आपने मुझे ज्योतिष विरोधी अपने व्यंग्य लेख पढने को आमंत्रित किया धन्यवाद.आप और अन्य कमेंटेटर ज्योतिष को न मानें तो क्या उसका महत्त्व समाप्त हो जायेगा?
भाग्य या प्रारब्ध- पूर्व जन्म में किये गए कर्म,अकर्म और दुष्कर्म के संचित फल इस जन्म का प्रारब्ध या भाग्य कहलाते हैं.इन्हें जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर ज्ञात किया जाता है.यदि फल बताने वाला गलती करता है तो उसमें विद्या या ज्योतिष शास्त्र कैसे गलत हुआ?.संत कबीर को अपने हास्य में घसीटना और लोगों की वाहवाही बटोरना घोर अनैतिक है.किसी भी विषय का नियमबद्ध एवं कृम्बद्ध अध्ययन विज्ञानं है.जो विज्ञानं माने प्रयोग शाला में बीकर आदि में भौतिक पदार्थों के सत्यापन को ही विज्ञानं मानते है वे अल्पज्ञानी लोग हैं.ज्योतिष विज्ञानं मानव-जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाने का मार्ग बताता है.जो इसका मखौल उड़ाते हैं ,वे दूसरा का भला देखना ही नहीं चाहते इसी लिए खुद पर इठलाते रहते हैं.देश का दुर्भाग्य पर कमेन्ट कर आपने मुझे ज्योतिष विरोधी अपने व्यंग्य लेख पढने को आमंत्रित किया धन्यवाद.आप और अन्य कमेंटेटर ज्योतिष को न मानें तो क्या उसका महत्त्व समाप्त हो जायेगा?
भाग्य या प्रारब्ध- पूर्व जन्म में किये गए कर्म,अकर्म और दुष्कर्म के संचित फल इस जन्म का प्रारब्ध या भाग्य कहलाते हैं.इन्हें जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर ज्ञात किया जाता है.यदि फल बताने वाला गलती करता है तो उसमें विद्या या ज्योतिष शास्त्र कैसे गलत हुआ?.संत कबीर को अपने हास्य में घसीटना और लोगों की वाहवाही बटोरना घोर अनैतिक है.किसी भी विषय का नियमबद्ध एवं कृम्बद्ध अध्ययन विज्ञानं है.जो विज्ञानं माने प्रयोग शाला में बीकर आदि में भौतिक पदार्थों के सत्यापन को ही विज्ञानं मानते है वे अल्पज्ञानी लोग हैं.ज्योतिष विज्ञानं मानव-जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाने का मार्ग बताता है.जो इसका मखौल उड़ाते हैं ,वे दूसरा का भला देखना ही नहीं चाहते इसी लिए खुद पर इठलाते रहते हैं.
@ विजय माथुर जी,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट 'देश का दुर्भाग्य' पर मेरी टिप्पणी, संदर्भ स्पष्ट करने के लिए उद्धृत है- ''भारतीय मनीषा का इतिहास दृष्टिकोण, पाश्चात्य से भिन्न रहा है''. इसमें अपने पोस्ट पढ़ने को आमंत्रित करने जैसी कोई बात नहीं है, जैसा आपने लिखा. सविनय स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेरी टिप्पणियां, अपना पोस्ट पढ़ाने या वापस टिप्पणी पाने के लिए नहीं होतीं और कभी ऐसा हो तो कारण बताते हुए, मुझे स्पष्ट शब्दों में आमंत्रित करने में संकोच नहीं होता.
आपने टिप्पणी तिहरा कर लिखी है, चूकवश, जोर डालने के लिए या किसी और कारण से, समझ नहीं सका.
आप मानते हैं कि पोस्ट में कबीर को घसीटा गया है, तो यही कहूंगा कि शायद मेरी अभिव्यक्ति सीमा के कारण पोस्ट में कबीर के उल्लेख का आशय आपके समक्ष स्पष्ट नहीं हो सका, खेद है.
ज्योतिष पर आपके दृष्टिकोण, विश्वास और आपकी भावना का सम्मान कर सकता हूं.
नसीब अपना-अपना
ReplyDeleteजो
दूसरों का
भविष्य बता कर
अपना
वर्तमान बनाते हैं
ज्योतिषी कहलाते हैं.
राम पटवा, 9827179294
kya kahoon?
ReplyDeletepranam
आजतक के जीवन में ऐसा रोचक समाचार किसी समाचार में नहीं पढ़ा है...
ReplyDeleteसो आपका जितना भी आभार कहूँ ,कम है...
आपकी व्याख्या और यह समाचार सह विज्ञप्ति ....सचमुच लाजवाब !!!
हा हा कारी ही नहीं "हा !!!" कारी भी रहा यह पोस्ट मेरे लिए...
पोस्ट पढ़कर अनायास ही किसी कवि शायद सुरेश नीरव जी की पंक्तियाँ याद हो आयी
ReplyDeleteहमें क्या मालूम था हमारा अश्क कुछ यूँ उतरा जायेगा
भागते हुए कुत्ते ने दुसरे कुत्ते से कहा अबे भाग नहीं तो आदमी की मौत मारा जायेगा
उम्दा पोस्ट
मोती के नाम से अपने कुत्ते की याद आ गयी।ुमदा व्यंग के साथ जानकारी अच्छी लगी। धन्यवाद।
ReplyDelete...ये मुझे फलित के बजाय भाषाशास्त्र के शोध का विषय जान पड़ती हैं,...
ReplyDeleteहा हा हा
आप भी वहां चोट करते हैं जहां सबसे ज़्यादा लगती है
टिप्पणिया बता रही हैं की चोट सही जगह पढी !
ReplyDeleteआशीष
===================
परग्रही जीवन की संभावनाए
.
ReplyDelete.
.
अब तो मान लें कि कबीर भविष्यवक्ता थे और मोती नाम वाले राम के कुत्ते मामले की भविष्यवाणी से भी वे आज प्रासंगिक हैं।
मान लिया जी,
कबीर की 'दूर की' और आपकी 'पारखी' नजर... दोनों को...
अब अईसा लिखबै करेंगे तो हाहाहाकार तो मचबै करेगा...
...
सर ! आप की बात ही अचूक है . इस तरह की बात तो मैं सोची नहीं थी . शुभकामना सहित !
ReplyDeleteराहुल जी
ReplyDeleteकंप्यूटर सञ्चालन की सम्पूर्ण जानकारी के आभाव में रिपीटीशन को ठीक न कर सका जिससे भ्रम होना स्वभाविक है.मुझे आपके जवाब का पता चला तो स्पष्ट करना आवश्यक हुआ.
संत कबीर का व्यंग्य नहीं है तो मैं गलत समझा.कृपया अन्यथा न लें.
यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
ReplyDeleteआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये... ध्यान रखें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले दूर ही रहे,
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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