बड़ा पक्षपाती है, यह काल का पहिया, जिसे चाहे अल्पावधि में उन्नति के शिखर पर ले जाकर बिठा दे और जिसे चाहे, पतन के गर्त में गिराकर नेस्तनाबूद कर दे, किन्तु इसकी निर्लिप्तता भी प्रशंसनीय है, इसके नीचे चाहे कोई भी आए, बिना चिन्ता किए उसके ऊपर से गुजर जाएगा और इसकी निर्बाध गति को देखिए तो बड़ा अनुशासित और नियमबद्ध जान पड़ता है, किसी की चिरौरी-विनती से यह अपनी गति न बढ़ा सकता और न ही किसी की दुआ-बद्दुआ से गति कम ही करता। वह तो घूम रहा है, घूमता रहेगा।
क्या हमारी यही नियति है कि काल-चक्र के नीचे आकर पिसते रहें? नहीं, ऐसा सोचना अज्ञानता का परिचायक होगा। काल-चक्र की गति अपने साथ चलने की सीख देती है और अपनी अवज्ञा के प्रतिक्रियास्वरूप कभी-कभार हमारे कान भी उमेठ दिया करती है। जीवन को गतिमान रखने के लिए, काल-चक्र के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए ही हमारे आदि-गुरुओं ने ज्ञान दिया है -
कलिः शयानो भवति, संजिहानस्तु द्वापरः।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति, कृत सम्पद्यते, चरंश्चरैवेति चरैवेति ...
अर्थात् सोये रहना ही कलयुग है, उठ जाना द्वापर है, खड़े हो जाना त्रेता है और चल पड़ना ही सत्युग है, अतः चलते रहो, चलते रहो ... चलते रहने का यह संदेश जिसने विस्मृत किया वह पीछे छूट गया और खो गया काल-चक्र के गर्दो-गुबार में।
काल का विभाजन चार युगों में, शताब्दियों में और दिन-रात से लेकर घंटे-मिनट-सेकंड, तक किया गया। काल-गणना में सहायक हुआ सूर्य। प्रारंभिक काल-गणना में सूर्य घड़ी बनी और सूर्य की स्तुतियों को मूर्त किया गया, कोणार्क में सूर्य मंदिर बनाकर। सूर्य का वाहन रथ है, जिसमें सात घोड़े जुते हैं, रथ को गति का प्रतीक माना गया और सात घोड़ों का तारतम्य प्रिज्म के सात रंगों से स्थापित किया जाता है इसीलिए पूरा मंदिर रथाकार बनाया गया। रथ के पहिये और आरों से काल की विभिन्न गणना सप्ताह-घंटे को प्रदर्शित किया गया किन्तु काल के इस प्रतिनिधि की हालत देखिए - काल के ही प्रहार से आज इसका ध्वंसावशेष मात्र रह गया है और काल की गति से प्रभावित यह मंदिर आज भी खड़ा है, विगत स्मृतियां अपने दामन में समेटे, एक इतिहास अपने हृदय में छिपाए।
देश, काल, पात्र की सीमा से परे वस्तु शाश्वत होती है किन्तु ऐसा लगता है कि शाश्वत सिर्फ यह नियम है अन्य कुछ भी नहीं। कभी तानसेन की सुर लहरियों से काल भी ठिठक जाया करता था, ऐसी मान्यता है, किन्तु तानसेन के राग-सुर-ताल सभी काल से ही तो बंधे थे, काल उनसे तो न बंधा था। अपने संगीत से काल को रोक लेने वाला आज इतिहास के पृष्ठों में कैद है।
कभी वेदों को भी लिपिबद्ध किया गया और इसके शब्दों को अपौरुषेय एवं शाश्वत कहा गया। महत्व तो अभी भी है इनका, किन्तु कथन शाश्वत नहीं रहा। काल के प्रभाव का पर्त चढ़ता गया, चढ़ता जा रहा है और इनका महत्व अब इसलिए है, क्योंकि काल प्रहार से बचे ग्रंथों में ये प्राचीनतम हैं।
वैसे तो शाश्वत में विभाजन की कोई गुंजाइश नहीं है फिर भी कुछ देर के लिए इस नियम को परे रखकर सोचें तो व्यक्ति अथवा जीव, शाश्वतता के इस क्रम में सबसे नीचे रखा जा सकता है और फिर उसकी कृतियां और कला कुछ ऊपर। मोटे तौर पर व्यक्तिवाचक संज्ञाएं कम और जातिवाचक संज्ञाएं अधिक शाश्वत हैं। अब यह प्रश्न सिर उठाने लगता है कि क्या 'शाश्वत' की शाश्वतता पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जा सकता, 'शाश्वत' एक शब्द ही तो है और शब्द शाश्वत हैं अथवा नहीं यह दार्शनिक समस्या है तथा दार्शनिक समस्याओं को सामान्य व्यक्ति तो छू ही नहीं सकता, दार्शनिक भी उसे उलझाते ज्यादा हैं अतः इस विवाद में न पड़कर आइये रास्ता बदलें।
वैज्ञानिकों की एक कल्पना है- 'काल-यंत्र', एच जी वेल्स के अनुसार इस यंत्र से काल को रोका तो जा ही सकता है, समय को पीछे भी किया जा सकता है। वैज्ञानिक-बौद्धिक संभावनाओं से हटकर विचार करें तो क्या यह संभव जान पड़ता है? शायद काल की गति को रोकने का प्रयास प्रकृति पर आघात होगा और प्रकृति को हम अपने अनुसार नहीं बदल सकते, हमें ही प्रकृति के अनुसार बदलना होगा। डारविन ने अपने विकासवाद में 'प्रकृति के अनुसार अपने को ढाल लेने की क्षमता रखने वाला ही बचा रह पाता है', की बात कही है और संभव है प्रकृति को छेड़ने के ऐसे प्रयास में काल, महाकाल बनकर आ जाए।
महाकाल की धार्मिक मान्यता 'शिव' के साथ जुड़ी हुई है। 'शिव' का शाब्दिक अर्थ होता है शुभ, मंगल। यदि 'शिव' शब्द को 'शव' धातु से व्युत्पन्न मान लिया जाय तो इसका अर्थ होगा 'निद्रित होना' तात्पर्य, जिस अवस्था में वासनाएं सो जाती हैं। माण्डूक्योपनिषद में इस अवस्था को चतुर्थ कहा गया है, जो निर्विकल्प समाधि की अवस्था है। तो संभावना यह व्यक्त की जा सकती है कि कहीं शिव की निद्रा खुलने वाली तो नहीं? कहीं फिर से तो डमरू न बज उठेगा? कहीं फिर ताण्डव नृत्य तो नहीं होने वाला है! खैर ...
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
ऊंगलियां उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालों की तरफ
बात निकलेगी तो फिर दूर ... ...
अतः आइये अब गुजरे सालों की तरफ से नजर हटाकर नये वर्ष के स्वागत के लिए तैयार हों, नया वर्ष जो अपने साथ लाएगा नया उत्साह-उल्लास, नई उमंगें और ढेर सारी खुशियां - सबके लिए।
मजमून का पता-ठिकाना :
1980 का एक पुराना साल, कभी जिसके नये होने की उमंग के साथ अपने लिखे इस पूर्व कृत पर अब वय वानप्रस्थ दृष्टि डालते हुए यह नये-पुराने भेद से निरपेक्ष लगा।
नोबल क्लब के मुख्य कर्ता-धर्ता अरूण अदलखा, विजय नंदा, डॉ. सुरेन्द्र गुप्ता, डॉ. अखिलेश त्रिपाठी, शरद अग्रवाल, बिलाल गंज, अजीत कोटक, कु. लक्ष्मी पुरोहित, कु. अनिता शाह, अरूण शाह आदि रहे। क्लब को रायपुर में 1979 में पहली बार सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित कराने के कारण अधिक जाना गया। इस हेतु प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और रंगकर्मी ए.के. हंगल का शुभकामना संदेश, 'नोबल क्लब' की स्मारिका में प्रकाशित हुआ।
स्मारिका के संपादक डॉ. मानिक चटर्जी हैं तथा सह-संपादकों में मेरा भी नाम है। रचना वापसी के लिए खुद के पता लिखे लिफाफों का खासा संग्रह रखने वाले मुझ के लिए पहला अवसर था, जब संस्था/पत्रिका द्वारा कुछ लिखने का आग्रह किया गया था। यही इस लेख-मजमून का पता ठिकाना है, जो 2011 में भी बतौर पोस्ट लगाए जाने लायक लगा।
हमारे साथी प्रताप पारख के हाथ यह स्मारिका लगी और उन्होंने कवायद शुरू कर दी, कि देखें 30 साल बीत जाने के बाद स्मारिका के लगभग 100 विज्ञापनदाता प्रतिष्ठानों/संस्थाओं की क्या हालत है। इसमें एक पता शहर के लोहिया बाजार का भी मिला। हमने याद कर लिया कि यह लोहे का बाजार नहीं, बल्कि डॉ. राम मनोहर लोहिया पर रखा गया बाजार का नाम था। आज यह बाजार कहां है हम याद न कर सके, मैंने पता लगाने का प्रयास भी नहीं किया, क्योंकि मैं राजधानी के बाजार में अपनी याददाश्त सहित लोहिया जी के खो जाने को रेखांकित करना चाह रहा हूं।
नोबल क्लब के बारे में जानकार अच्छा लगा. उन विज्ञापनदाताओं के बारे में इतने लम्बे समय बाद जानना बहुत रोचक होगा. निश्चित ही उनमें से बहुत से व्यापार से हट चुके होंगे और कुछेक अपने क्षेत्र के मील के पत्थर बन चुके होंगे.
ReplyDeleteसमय क्या है? काल क्या है? प्राचीन मानस से लेकर आधुनिक जीनियस तक ये प्रश्न मथते चले आये हैं. सापेक्षता की कुछ जानकारी तो शायद आपकी भी होगी ही... सब कुछ दृष्टा पर ही नियत ही कि वह अपने लिए समय की कौन सी परिभाषा और सीमा गढ़ता है.
एक फूल के लिए दो दिनों में खिलकर मुरझा जाना मनुष्य के सौ वर्षों के जीवन के बराबर है, यह बात और है कि मनुष्य के मन में अमरत्व की अवधारणा भी पल्लवित होती रहती है.
सिंह साहब आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट ...बुक मार्क* कर लिया फिर पढने का मन करेगा नोबल क्लब के बारे में जानकार अच्छा लगा. ...शुक्रिया ...
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ..स्वीकार करें
नमस्कार,
ReplyDeleteराहुल सिंह जी,
काल के संबंध में यह आलेख तो शाश्वत है।
30 सालों के बाद भी ऐसा लग रहा है जैसे आज ही लिखा गया हो।
रोचक और बहुत बढ़िया आलेख।
........
दिक्काल की पहेली अभी भी दर्शन और विज्ञान के लिए अबूझ है।
........
नव वर्ष 2011
आपके एवं आपके परिवार के लिए
सुख-समृद्धिकारी एवं
मंगलकारी हो।
।।शुभकामनाएं।।
राहुल सिंह जी,
ReplyDeleteनूतन वर्षागमन के प्रथम दिन अवसर का लाभ लेते हुए असीम शुभकामनाएं अनवरत रहेगी आपके साथ। आपके सार्थक उत्कृष्ट और शुभ संकल्पो के निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति शुभाकंक्षा भी। सर्व मंगलम् ॥
काल के साथ साथ आदर्श परिवर्तन को इंगित करती श्रेष्ठ पंक्ति………।
ReplyDeleteमैं राजधानी के बाजार में अपनी याददाश्त सहित लोहिया जी के खो जाने को रेखांकित करना चाह रहा हूं।
आप को ओर आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं
ReplyDeletehappy new year...
ReplyDeleteसही मायनों में एक नोबल पोस्ट!!
ReplyDeleteसिंह साहब अच्छी लगी यात्रा डाऊन द मेमोरी लेन थ्रू द टाईम मशीन!!
समय ठहरता भी कहां है. जब 'आज' अभी पुराना हुआ ही चाहता है तो बीते हुए कल की तो बिसात ही क्या है... सिवा किताबों में रखे उन फूलों की तरह जो उस दिन एकदम तरोताज़ा थे जिस दिन यूं रखे गए थे.. अलबत्ता उनमें से ख़ुशबू ढूंढने की चाह कभी जाती नहीं है.
ReplyDeleteप्रणाम श्रेष्ठजन !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी मिली जिसके माध्यम से यहां आना हुआ, और एक सशक्त लेखनी से परिचय पाया ।
ख्रीष्टनववर्षस्य हार्दिकशुभाशयाः स्वीकरोतु भवान् ।
सरजी, वैसे तो हम ठहरे हुये पानी की तरह हैं लेकिन चाहते जरूर हैं कि सदा चलायमान रहें। ऐलीबाई के तौर पर अपने पसंदीदा गानों में ’तुझको चलना होगा’ ’जीवन चलने का नाम’ ’चल अकेला चल अकेला’ शुमार है, ये बता सकता हूँ:))
ReplyDeleteअलग-अलग स्थितियों के बारे में मेरे दादाजी एक कहावत सुनाया करते थे जिसमें मनुष्य को
चल रहा है तो लोया(पंजाबी में लोहा का स्थानापन्न),
बैठ गया तो गोया(गोबर या उपला) और
सो गया तो मोया(मृतक समान)
बताया जाता है।
काल को सब्जैक्ट बनाकर एक सर्वकालिन लेख, जो तीस साल पहले भी प्रासंगिक था, तीस साल बाद शायद और भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगा।
कभी नोबल क्लब की और गतिविधियों के बारे में भी बतायें।
नव वर्ष पर मंगल कामनायें।
काल की गति को रोकने का प्रयास प्रकृति पर आघात होगा और प्रकृति को हम अपने अनुसार नहीं बदल सकते, हमें ही प्रकृति के अनुसार बदलना होगा।
ReplyDeleteचल पड़ना ही सत्युग है, अतः चलते रहो, चलते रहो ... चलते रहने का यह संदेश जिसने विस्मृत किया वह पीछे छूट गया और खो गया काल-चक्र के गर्दो-गुबार में।
एक
हमेशा हमेशा हमेशा
पढ़ा जाते रहने वाला
अनुपम , अद्वितीय आलेख .....
ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक विवेचनाओं का
अद्भुत मिश्रण ....
अपने सीमित ज्ञानवश ,,,
मैं , शायद कुछ ना कह पाऊँगा
अभिवादन स्वीकारें .
नव वर्ष मंगलकामनाएं .
इस पोस्ट को पढ़ना एक रोलरकोस्टर राइड की तरह रहा... ज्ञान की कई घुमावदार परतों से गुजरते हुए जब अंतिम भाग पर पहुंचा तो अंत भी चौंकाने वाला रहा... मुझे तो लग रहा था कि आपने ये आज ही लिखा..
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की फीड का ईमेल सब्सक्रिप्शन ले रखा है पर लगता है कोइ तकनीकी समस्या थी, मेल नहीं मिली.. अब ब्लॉग पर ही इसका लिंक लगा लिया है ..
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteसिंह साहब आप को आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं kaal ki jankari aur aapke prfect hindi ke words.
ReplyDeleteकालचक्र पर चढ़े कभी हम,
ReplyDeleteऔर कभी धूली पर पटके।
हिन्दी में काल चिंतन कम ही हुआ है...इस प्रयास के लिये निश्चय ही आप बधाई के योग्य है. लेकिन मेरा अनुरोध है कि काल कि अवधारणा पर आप शोधपरक कुछ जरूर लिखें. नव वर्ष की शुभकामना.
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteसर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष २०११ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
कहते हैं काल का पहिया रूकता नहीं है। पर आप हर पोस्ट में उसे उल्टा जरूर घुमा देते हैं। शुभकामनाएं 21 के 11 की।
ReplyDeleteकाल का विशद विवेचन, नोबल क्लब को याद करते हुए भविष्य के लिए, भूत और वर्तमान का सुन्दर संयोजन.
ReplyDeleteचलना ही जिन्दगी याद आया... जिन्दगी की किताब के पन्ने पलटने पर पता नहीं कौन कौन से रहस्य सामने आ जाते हैं..
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अर्थात् सोये रहना ही कलयुग है, उठ जाना द्वापर है, खड़े हो जाना त्रेता है और चल पड़ना ही सत्युग है, अतः चलते रहो, चलते रहो ... चलते रहने का यह संदेश जिसने विस्मृत किया वह पीछे छूट गया और खो गया काल-चक्र के गर्दो-गुबार में।
एकदम सत्य काल चिंतन...
वैज्ञानिकों की एक कल्पना है- 'काल-यंत्र', एच जी वेल्स के अनुसार इस यंत्र से काल को रोका तो जा ही सकता है, समय को पीछे भी किया जा सकता है। वैज्ञानिक-बौद्धिक संभावनाओं से हटकर विचार करें तो क्या यह संभव जान पड़ता है?
एक बार सोचा था इस बारे में भी...और लिखा था:-
विज्ञान फंतासी लेखकों का एक बड़ा ही लोकप्रिय विषय है टाईम ट्रेवल और टाईम मशीन, यह एक ऐसे उपकरण की कल्पना है जिसमें बैठ कर कोई भी मनुष्य भूतकाल या भविष्य के किसी भी समय में सशरीर अपनी पूरी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के साथ जा सकता है। अब एक पल के लिये मान लीजिये कि टाईम मशीन सचमुच बन सकती है और टाईम ट्रेवल संभव है, अब नीचे लिखी तीन स्थितियाँ देखिये:-
१- बहुत गुस्सेबाज और शक्तिशाली श्रीमान शेर सिंह अपने परदादा की सगाई में जाते हैं और वहीं किसी बात पर अपने परदादा से झगड़ा कर बैठते हैं झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि श्रीमान शेर सिंह अपने परदादा की सगाई होने से पहले ही गला दबा कर हत्या कर देते हैं।
२- चरित्रवान, शान्त और आदर्शवादी श्रीमान सौम्य प्रताप विवाह करने से पहले ही अपने प्रपौत्र को देखने जाते हैं टाईम मशीन से, उन्हे प्रपौत्र मिलता तो है पर एक जेल के अंदर जहाँ वो देश के विरूद्ध जासुसी और एक सैन्य अधिकारी की हत्या की सजा काट रहा है। अपने वंश की यह गत देखकर श्रीमान सौम्य प्रताप इतने खिन्न हो जाते हैं कि आजीवन विवाह ही नहीं करते।
३- श्रीमती शान्त शान्ति टाईम मशीन से जाती हैं रामायण काल मे् माता सीता से मिलने, क्योंकि रामायण वो पढ़ चुकी हैं और उसमें हुआ रक्तपात उनको पसंद नहीं इसलिये वो सीता माता को रावण के षड़यंत्र के बारे में बता कर लक्ष्मण रेखा को कतई पार न करने के बारे में आगाह कर देती हैं, माता सीता उनकी सलाह मान लेती हैं और रावण सीता माता का अपहरण करने में नाकाम रहता है, नतीजा राम-रावण युद्ध की आवश्यकता ही नहीं होती।
अब जरा दिमाग पर जोर देकर सोचिये कि क्या उपरोक्त तीन में से कोई कथन सत्य हो सकता है ? जवाब होगा...नहीं!
इसीलिये यह माना जाता है कि कल्पना के घोड़े जितने भी दौड़ा लिये जायें पर हकीकत में टाईम ट्रेवल करना और टाईम मशीन बनना असंभव है।
...
आदरणीय राहुल भैया,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा एवं ज्ञानवर्धक लेख है, आप निरंतर ऐसे ही लिखते रहें..
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
भय तो है कि कहीं शिव की निद्रा खुलने वाली तो नहीं? कहीं फिर से तो डमरू न बज उठेगा? कहीं फिर ताण्डव नृत्य तो नहीं होने वाला है!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख
शुभकामनाएँ पाश्चात्य नववर्ष की
साल की खूबसूरत शुरूवात आपकी इस पोस्ट के साथ....यूं ही साल भर सिहावलोकन के माध्यम से आप हमें बहुत कुछ देते रहें.... शुभकामनाएं...
ReplyDeleteसोये रहना ही कलयुग है, उठ जाना द्वापर है, खड़े हो जाना त्रेता है और चल पड़ना ही सत्युग है, अतः चलते रहो, चलते रहो
ReplyDelete--------------
यह याद रहेगा! बहुत शुभ हो नव वर्ष!
काश कि9 हम खुद को प्रकृ्ति के अनुसार ढालना सीख लें। लेकिन आज दुनिया क्4ए पास समय कहाँ है प्रकृति को देखने समझने का। बहुत अच्छी लगी पोस्ट। आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeletefir laut kar aata hu.
ReplyDeletelohiya ji ka prasang kal ke pahiye ka udaharan hai.
राहुल जी! आपका गम्भीर और सार्थक चिन्तन पढ़कर आनन्द आ गया!
ReplyDeleteनया साल 2011 आपके लिए मंगलमय हो!
नए साल और पुराने साल के सन्दर्भ में 'काल' पर आपका यह चिंतन सचमुच कालजयी लगा. सुंदर प्रस्तुति. नए वर्ष में आपके यशस्वी और सुखमय जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteकाल-चक्र को लेकर बहुत ही गंभीर और सार्थक चिंतन.
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएं
समय को लेकर मैं भी अक्सर परेशान रहता हूं ,प्रश्न का कोई सहज समाधान नहीं !
ReplyDeleteफिलहाल आपको,जो भी वर्गीकृत सत्य हो,उस काल की शुभकामनाएं !
काल चक्र पर आपका यह लेख सदा प्रासंगिक रहेगा.
ReplyDeleteकाल यात्रा कहाँ से शुरु होकर कहाँ पहुंची...
वैसे नोबल क्लब की जानकारी वाकई नोबल है, यह जानकर आश्चर्य हुआ कि डॉ साहब और उनकी मंडली ने ऐसे भी आयोजन किये हैं....
नव वर्ष की बधाई और शुभकामनाएं आपको भी
श्रीमान,
ReplyDeleteसच में! आपकी एक और सुंदर कृति.
वर्त्तमान से अतीत का अद्भुत जुडाव.
आप की लेखन प्रक्रिया बहुत प्रखर है,बहुत सुन्दर लगता है आप के ब्लॉग पर आ के
ReplyDeleteशुभ कामना सहित दीपांकर पाण्डेय
http://deep2087.blogspot.com
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभ कामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत ही जानकारी परख पोस्ट.... नोबल क्लब के बारे में जानना अच्छा लगा ...
ReplyDelete... gahan, saarthak, bhaavpoorn lekhan !!
ReplyDeleteachhi lgi aapki post
ReplyDeletekabhi yha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
यहाँ तो बड़ी अच्छी-अच्छी जानकारियां हैं...नए साल की फिर से बधाई.
ReplyDelete______________
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
एक उम्दा आलेख।
ReplyDeleteआभार राहुल जी।
काल चक्र ही शाश्वत है चलता रहा, चल रहा है, और चलता रहेगा. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं . पुरातात्विक ज्ञान के लिए आभार .
ReplyDeleteहर बार आपके ब्लॉग पे कुछ नया जानने को मिलता है, इस बार भी काल-चक्र के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा..ऐसी पोस्ट कहाँ पढ़ने को मिलती है,
ReplyDeleteऔर अंत में,
ऐ.के.हंगल के हाथ का लिखा शुभकामना सन्देश बड़ा अच्छा लगा...पुराने अभिनेताओं में वो मुझे बहुत ज्यादा पसंद थे :)
नए साल की ढेरो बधाईयाँ !!
ReplyDeleteएक सार्थक चिंतन। आभार।
ReplyDeleteRKS! You may please see my cmments with Detha's SAPANPRIYA and somewhere else too [i forgot exactly where]. Good Late Night ... B.R.Sahu
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट।धन्यवाद।
ReplyDeleteराहुल जी, आपकी पोस्टों से काफी बौद्धिक सामग्री मिल जाती है। अच्छा लगा इस लेख से भी होकर गुजरना।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
कालचक्र का गूढ चिंतन आपके इस लेख में पढने व समझने को मिला । आभार...
ReplyDeleteआपका यह लेख हर नव वर्ष पर पढा जा सकता है और हर बार यह समयानुकूल ही लगेगा.
ReplyDeleteमेरे चिट्ठे पर आपकी कड़क चाय की गुहार पढ़ यहाँ आई.अब कल के चक्र की तरह मेरा सर घूम रहा है और मैं तो चाय भी नहीं पीती.
घुघूती बासूती
आदरणीय राहुल जी, "नया-पुराना साल" पढ़ा बहुत ज्ञानवर्द्धक और रोचक है."काल-चक्र की गति अपने साथ चलने की सीख देती है और अपनी अवज्ञा के प्रतिक्रियास्वरूप कभी-कभार हमारे कान भी उमेठ दिया करती है।".प्रकृति का यह अद्भुत जीवन दर्शन आज भी उतना ही सामयिक है.समय की निर्लिप्तता का बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित चित्रण है आपके लेखन में.
ReplyDeleteदेरी के लिया माफ़ी चाहूंगी ...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
समय की महिमा को आपने बहुत ही सहज और सरल शब्दों से लिखा ।
ReplyDeleteबहुत कुछ सीखने को मिला ।
कैसे मैं अपने पूर्व प्रेमी पर प्राप्त कर सकते टिप्पणी 2017 को जोड़ने पर अद्यतन
ReplyDelete