दो पुस्तिकाओं 'छत्तीसगढ़ की लोक कथाएं' तथा 'छत्तीसगढ़ की लोक कहानियां' का जिक्र है। मैंने जिन प्रतियों को देखा, वे हैं-
प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तिका में, तिथि सितम्बर 1992 तथा आईएसबीएन : 81-230-0004-9 अंकित है। 28 पृष्ठों की पुस्तिका में 7 कहानियां हैं। प्रकाशकीय वक्तव्य है कि ''...भारत के विभिन्न प्रांतों की लोक कथाएं प्रकाशित करने के साथ-साथ विश्व की लोक कथाएं भी प्रकाशित की हैं। इसी क्रम में 'छत्तीसगढ़ की लोक कथाएं' प्रस्तुत हैं। इसके लेखक हैं श्री गोपाल चन्द्र अग्रवाल।''
पुस्तिका के शीर्षक से अनुमान तो यही होता है कि संकलित कहानियां छत्तीसगढ़ में प्रचलित, सुनी-सुनाई जाने वाली लोक कथाएं हैं। प्रकाशकीय में लोक कथाओं को संग्रहीत और प्रकाशित करने का भी उल्लेख है, लेकिन छत्तीसगढ़ की लोक कथाएं, शीर्षक वाली पुस्तिका की इस प्रस्तुति में यही प्रक्रिया अपनाई गई है, ऐसा स्पष्ट नहीं है। बरबस ध्यान जाता है कि यहां श्री गोपाल चन्द्र अग्रवाल को सम्पादक या संकलनकर्ता नहीं बल्कि 'लेखक' बताया गया है। 'लोक कथाएं, पारम्परिक होती हैं, इनका ज्ञात-निश्चित कोई एक लेखक नहीं होता' इस स्थापना को स्वीकार कर लेने पर बात गड्ड- मड्ड होने लगती है।
आगे बढ़े- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली से प्रकाशित 'छत्तीसगढ़ की कहानियां' पुस्तिका में संस्करण 2006 तथा आईएसबीएन : 81-288-1290-4 अंकित है। 24 पृष्ठों की इस पुस्तिका में 5 कहानियां हैं। लेखक के स्थान पर अर्पणा आनंद का नाम है।
इस पुस्तिका की 'होशियार चूहा' और 'लालची बंदर' शीर्षक सहित पूरी कहानी 'छत्तीसगढ़ की लोक कथाएं' की हैं। 'लालची बंदर' के एक-दो वाक्य छत्तीसगढ़ी के हैं और एक हिस्सा छत्तीसगढ़ की 'हांथी-कोल्हिया-महादेव' वाली लोक कथा के 'मएन के डोकरी' (जैसे मैडम तुसाद संग्रहालय में मूर्त कलाकृतियां), प्रसंग से मेल खाता है। 'छत्तीसगढ़ की लोक कथाएं' में 'सात भाइयों की एक बहन' कहानी के दो छोटे पद्य-खंड छत्तीसगढ़ी के हैं।
इस विवरण और टीप के साथ स्वीकारोक्ति कि मैं जन्मना और मनसा छत्तीसगढ़ी, शायद रुचि के कारण लेकिन आकस्मिक ही दोनों पुस्तिकाएं देख पाया। इनमें से किसी भी कहानी को इस अंचल की कहानी के रूप में नहीं सुना है और उपरोक्त के अलावा दोनों पुस्तिकाओं का कोई हिस्सा मेरे परिचित छत्तीसगढ़ से मेल नहीं खाता। काफी खंगालने के बाद भी श्री गोपाल चन्द्र अग्रवाल अथवा अर्पणा आनंद का नाम, छत्तीसगढ़ की कथा-कहानी के परिप्रेक्ष्य में कहीं और नहीं तलाश सका। इन दोनों ने किसी पूर्व संकलनों को आधार बनाया है या सामग्री का संकलन स्वयं (कब और कहां ?) किया है, यह भी पता नहीं चलता। फिर भी कैसे कह दूं कि ये छत्तीसगढ़ की कहानियां नहीं है, लेकिन यह कैसे मानूं कि ये छत्तीसगढ़ की कथा-कहानी है।
किसी हितैषी ने फोन पर कहा, इस बार कोई टीप, तफसील नहीं, कहां रह गया पुछल्ला सो ये है तुर्रा। छत्तीसगढ़ी कहानियां आमतौर पर शुरू होती हैं-
कथा कहंव मैं कंथली
जरै पेट के अंतली
खाड़ खड़ाखड़ रुख
मछरी मरय पियासन
मंगर चढ़य रुख
चार गोड़ के मिरगा मरय
कोई खाता न पीता
पुनश्चः
किसी हितैषी ने फोन पर कहा, इस बार कोई टीप, तफसील नहीं, कहां रह गया पुछल्ला सो ये है तुर्रा। छत्तीसगढ़ी कहानियां आमतौर पर शुरू होती हैं-
कथा कहंव मैं कंथली
जरै पेट के अंतली
खाड़ खड़ाखड़ रुख
मछरी मरय पियासन
मंगर चढ़य रुख
चार गोड़ के मिरगा मरय
कोई खाता न पीता
और पूरी होती हैं, इस तरह-
दार भात चुर गे, मोर किस्सा पुर गे।
छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी के नाम पर यही हो रहा है. क्या दिल्ली, क्या रायपुर...!
ReplyDeletealok putul
यदि लेखक अगरवाल जी और अपर्णा जी का पता पुस्तक में हो तो उन्ही से हम पूछे की क्या गाओ का जिक्र कर देने भर से कहानी लोक हो जाती है वैसे सहि मायने में प्रकाशन विभाग नई दिल्ली को जगाना चाहिए
ReplyDeleteआगे की बात यह की यह भी समझ ले की लोक कथाओ के नाम पर हम क्या पढ़ रहे है ऐसे प्रकाशको से धन्यवाद् सर
ReplyDeleteसुनील चिपड़े
आप जान भी जायेंगे तो अन्य लोग तो नहीं ही जान पायेंगे और किताबें बिक जायेंगी. :)
ReplyDeletebahut vaajib savaal aapne uthaaye hain.kyaa kahaa jaay.
ReplyDeleteबस यही ..खुदा बचाय....क्या कहें
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है
"कैसे कह दूं कि ये छत्तीसगढ़ की कहानियां नहीं है, लेकिन यह कैसे मानूं कि ये छत्तीसगढ़ की कथा-कहानी है।"गंभीर समस्या है!
ReplyDelete... gambheer samasyaa prateet ho rahee hai ... khair ab kyaa kahen ... aapkee sameekshaa se doodh-kaa-doodh aur paanee-kaa-paanee saaf najar aa rahaa hai ... saarthak charchaa !!!
ReplyDeleteइसी प्रकार की दो कथा-कहानी संकलन मेरे पास भी है जिसके लेखक व कहानियों में छत्तीसगढ़ के स्थानीय सूत्रों को मैं भी तलाशते रहा हूं.
ReplyDeleteबाजारवाद की निशानी है यह.
धन्यवाद भईया.
निहायत ही फोहश किस्म की साहित्यिक बेईमानी है ये , कुछ और बड़े नाम भी इस हरकत की मिसाल बतौर पेश किये जा सकते हैं ! दिक्क़त ये है कि लोक गाथाओं की दीर्घ कालिक विरासत और ख्याति को अपने नाम करने के मोहवश भाई बंद अपनी मौलिक लेखकीय औकात भूल जाते हैं !
ReplyDeleteआपकी चिन्ता जायज़ है ! हमें शिद्दत से साथ जानियेगा ! विरसे से इस तरह की छेड़छाड निंदनीय है !
सर प्रणाम,
ReplyDeleteआपका लेख जब भी पड़ता हूँ अपनापन लगता है. छत्तीसगढ़िया होने का गर्व होता है. आपका लेख के बारे में मुझे भाई सुखनंदन राठौर ने बताया था.
जय जोहार
छत्तीसगढ़ लोक कथा,लोक साहित्य,कहानिया आदि में भरमार में.इसके हर प्रान्त में अलग अलग बोली एबम कहानी की खासियत हे.आपके द्वारा उठएग्ये सबाल बिलकुल जाएज हे.प्रकाशन के पहेले प्रकाशन बिभाग को इस दिसा में अछेसे अनुसन्धान करके छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक कथाएँ को सही ढंग से प्रकाशन करना चाहिए. इ बात हे किस प्रदेश की लोक संस्कृति की, क्यूंकि लोक कथाओं में ही उस प्रदेश की संस्कृत को पाए जाता हे . इसलिए मेरे बिचार से इ सही समय हे ,छत्तीसगढ़ लोक कथा ,साहित्य एबम इतिहास को सही ढंग से लिखा जाए .
ReplyDeleteआपकी इस रोचक विचार केलिए बहोत बहोत धन्यवाद.
राहुल भाई पोस्ट पढ़कर बहुत सी पुरानी यादें ताजा हो आई न जाने बचपन में कितनी ऐसी कहानियां सुनी होंगी जिनके लेखकों तो क्या कहने वालों का भी अता पता नहीं था मोहल्ले की एक चाची याद आ जाती है जो बहुत सी लोक कथाओं को अत्यंत ही रोचक तरीके से सुनाया करती थी,
ReplyDeleteशायद इसे दुर्भाग्य ही कहा जावे कि छत्तीसगढ़ी लोक कथाओं का कोई प्रमाणिक संग्रह देखने में नहीं आता.काश कि इस ओर कोई सार्थक पहल हो
आपके जानकारी परक पोस्ट के लिए साधुवाद
छत्तीसगढ़ के लोग शिक्षा, रोजगार और व्यापार के क्षेत्र में हमेशा से ही छले गए हैं। दुख की बात है कि अब यह छल लोक साहित्य तक भी पहुंच गया। छत्तीसगढ़ी लेखकों को अब जागना होगा।
ReplyDeleteओह्ह हमें तो आज पता चला कि छत्तीसगढ़ की भी कहानियाँ हैं। वैसे हमने भी पढ़ी हईं.. अबूझमाड़ और बस्तर की ..और बड़ी इच्छा है अबूझमाड़, बस्तर और जगदलपुर घूमने की।
ReplyDeletekuch hum bhee padh lege.
ReplyDeleteबेचने के फंडे हैं...
ReplyDeleteराहुल जी,
ReplyDeleteएक फ़ैंसी ड्रैस कंपीटीशन में चार्ली चैपलिन खुद, चार्ली चैप्लिन के गैट अप में गये थे और उन्हें तीसरा स्थान मिला था।
Aadarniy Rahul Sinh jii
ReplyDeleteLok kathaaon kaa bhii koii lekhak hotaa hai, yeh mere liye nayee kintu chamatkrit karane waalii jaankaarii hai. Abhii tak to main yehii samajhataa thaa ki lok kathaayen kahii jaatii hain na ki likhii. Chaliye Prakaashan Vibhaag kii kripaa se yeh rahasyodghaatan bhii ho gayaa. Lok kathaaon ko le kar saarii sthaapit dhaaranaayein dhwast ho gayiin. Jai ho Prakaashan vibhaag kii aur jai ho Agrawaal jii aur Aanand jii kii.
--Harihar Vaishnav
राहुल जी! मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है की रिलीज़ पर इस गीत के गीतकार के लिए डॉ. बच्चन का नाम लिखा गया था... लेकिन लोक गीतों के लिए किसी व्यक्ति विशेष का नाम उल्लेख किए जाने पर विरोध जताया गया और फिल्म के एलबम से सारे गीतों पर पारम्परिक रचना लिखकर दुबारा रिलीज़ किया गया.
ReplyDeleteराहुल भाई... बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने.प्रकाशन विभाग दिल्ली से छपी छत्तीसगढ़ की लोंक कथाएँ पुस्तिका के कलेवर का भी पता चला. प्रकाशन विभाग का दिमागी दिवालियापन जग-जाहिर है.कमोबेश यही हाल कुछ प्रकाशकों का भी है.आपको मालूम है कि बिलासपुर से ही भी सोमनाथ यादव ने बिलासा कला मंच के बैनर में तथा भाई परितोष चक्रवर्ती के संपादकत्व में संकलन छपा था जिसमे अमूमन २५ कथाएँ शामिल थी.उनका मूल छत्तीसगढ़ी ब्यौरा भी साथ में था. मैंने बाद में २००५ में AHIMAN RANI (FOLK TALES OF CHHATTISGARH) शीर्षक से २४ कथाओं का अंग्रेजी अनुवाद किया था. अभी मेरे पास ३० से मैसेज नहीं. मैंने इस वक्त अमूमन १५० अमेरिकी, चीनी, जापानी और अफ़्रीकी लोंक-कथाओं का अनुवाद कर रखा है. उसमे कुछ कथाओ में सन्देश के अलावाअधिक लोक-कथाएँ अंग्रेजी में अनुदित रखी है.
ReplyDeleteदिल्ली के कुछ स्वनाम धन्य प्रकाशकों से जब हिंदी या अंग्रेजी संकलन को छपने का अनुरोध किया था तब किसी प्रकाशक ने मेरी पाण्डुलिपि इस टीप के साथ लौटाई थी कि " इन कथाओं में फंतासी है, अधिकांश में मनोरंजन का तत्व प्रधान है.बात सच है कि प्रकाशन विभाग दिल्ली को जगाना चाहिए
राहुल भाई... बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने.प्रकाशन विभाग दिल्ली से छपी छत्तीसगढ़ की लोंक कथाएँ पुस्तिका के कलेवर का भी पता चला. प्रकाशन विभाग का दिमागी दिवालियापन जग-जाहिर है.कमोबेश यही हाल कुछ प्रकाशकों का भी है.आपको मालूम है कि बिलासपुर से ही सोमनाथ यादव ने बिलासा कला मंच के बैनर में तथा भाई परितोष चक्रवर्ती के संपादकत्व में संकलन छपा था जिसमे अमूमन २५ कथाएँ शामिल थी.उनका मूल छत्तीसगढ़ी ब्यौरा भी साथ में था. मैंने बाद में २००५ में AHIMAN RANI (FOLK TALES OF CHHATTISGARH) शीर्षक से २४ कथाओं का अंग्रेजी अनुवाद किया था. अभी मेरे पास ३० से अधिक छत्तीसगढ़ की लोंक कथाओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रखा है.. मैंने इस वक्त अमूमन १५० अमेरिकी, चीनी, जापानी और अफ़्रीकी लोंक-कथाओं का अनुवाद किया है. उसमे कुछ कथाओ में फंतासी तत्व प्रधान है.बात सच है कि प्रकाशन विभाग दिल्ली को जगाना चाहिए.
ReplyDeleteaakhir log kyon naam ke liye itna marte hain ki chori karne se bhi baaz nahin aate.. kal ko dunia yahi samjhegi ki chhateesgarh ki kahaniyaan inhonen hi likheen.
ReplyDeleteपुस्तक परिचय के लिए आभार !
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ लोक कथा,लोक साहित्य,कहानिया आदि में भरमार में.इसके हर प्रान्त में अलग अलग बोली एबम कहानी की खासियत हे.आपके द्वारा उठएग्ये सबाल बिलकुल जाएज हे.प्रकाशन के पहेले प्रकाशन बिभाग को इस दिसा में अछेसे अनुसन्धान करके छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक कथाएँ को सही ढंग से प्रकाशन करना चाहिए. इ बात हे किस प्रदेश की लोक संस्कृति की, क्यूंकि लोक कथाओं में ही उस प्रदेश की संस्कृत को पाए जाता हे . इसलिए मेरे बिचार से इ सही समय हे ,छत्तीसगढ़ लोक कथा ,साहित्य एबम इतिहास को सही ढंग से लिखा जाए .
ReplyDeleteआपकी इस रोचक विचार केलिए बहोत बहोत धन्यवाद.
gambhi baat hai yah. prakashak ko kitab chhapane k pahale satyataa ka pataa us sthan ke kisi varishth lekhak aadi se pata kar lena chaihiye. varnaa yah dhyaan rahe ki rahul singh jaise sajag log bhi yahaan hai. badhai..is lekh k liye.
ReplyDeleteलोक कथायें पारम्परिक होती हैं, कोई लेखक नहीं होता है इनका। इन्हे आगे बढ़ाते रहना हम सबका धर्म हो जाता है।
ReplyDeleteAadarniy Kishore Diwase jii
ReplyDeleteAapne lok kathaaon ke angrezii anuwaad kii baat kahii hai. Yadi aapke paas Chhattisgarhii lok kathaaon ke angrezii anuwaad taiyaar hon to aap kripayaa 'Indian Folklore Support Centre, Chennai' se patraachaar kar dekhein, shaayad baat ban jaaye. Email address hai:
info@indianfolklore.org
Saadar
Harihar Vaishnav
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Punashch:
ReplyDeleteAur haan aap Penguin books India se bhii sampark saadh sakate hain.
क्या समझा जाये ?लोक कथा गरीब की लुगाई हो चुकी है,या फिर बाजार हावी हो चुका है,जो पढाना चाहेगा, पढना पड़ेगा, भले ही खोवा की तरह मिलावटी हो,भुगतना पड़ेगा.
ReplyDeleteक्या छत्तीसगढ़ साहित्य समाप्त हो चूका है, या प्रकाशकों कि कमी हो गई है. बात गंभीर है , प्रयाश होनी ही चाहिए
ReplyDeleteलोककथाएं तो सरल-सहज होतीं हैं. वहां भी धोखाधड़ी........
ReplyDeleteक्या कहा जाए.
Why so much questions on attempt? Folk stories are for everyone to get inspired . No one can change the original essence of any culture even if we think so.
ReplyDeleteTry to find out better feel also in the book.
मौलिक लेखकों का अधिकार मारा जा रहा है। लेकिन इसका उपाय भी तो नहीं शायद ?
ReplyDeleteई-मेल से प्राप्त
ReplyDeleteआदरणीय राहुल भैया,
जागरूकता से परिपूर्ण पोस्ट के लिए साधुवाद.
वस्तुतः प्रांतीयता और क्षेत्रवाद से जुड़कर अनाधिकृत लाभ के उद्देश्य से इस प्रकार की चेष्टाएं की जाती हैं, जिन पर इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं आवश्यक हैं.वाचिक परंपरा की विषय-वस्तु के नाम पर ऐसी अप्रासंगिक जानकारी के प्रकाशन से छत्तीसगढ़ की सम्रद्ध लोक संस्कृति विद्रूपित हो सकती है,अतः ऐसी घटनाओं का पुरजोर विरोध होना चाहिए.
दूसरी ओर, यह भी आवश्यक है क़ि,छत्तीसगढ़ के लोक मानस में रची -बसी कथा- कहानियों, किस्सों तथा अन्य वाचिक परम्पराओं का संकलित रूप में प्रकाशन हो,जो नवागत पीढ़ी को विरासत से जोड़ कर रख सके.
"कथा कहों में कंथली . . . " में बरछा को भले ही कुछ नव-किशोर समझ लें ,किन्तु "कंथली" के बारे में समझाना भी आवश्यक है,और इसके लिए समवेत प्रयास करने होंगे.
(महेश कुमार शर्मा ) महामंत्री, संस्कार भारती, छत्तीसगढ़ ९४२५५-३७८५१
itna hi kahunga,chachu,ki aapka 'katha kahavn mai kanthli' aur 'daar bhat churge' padhkar mujhe meri dadi maa ki yaad aa gayi. bachpan me wo ham sab bhai bahnon ko 'hathi-koliha-mahadev' aur 'main k dokri' aadi kahaniyan sunaya karti thi. aap ne mujhe bachpan ki 'yaad' hi nahi dilai, balki wo sukhad, chintarahit aur relaxed 'anubhuti' bhi jaga di jo dada-dadi aur nana-nani k saath rah k bachchon ko hoti hai, jis k liye aapka saadar dhanyawaad.
ReplyDeleteजय जोहार !
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ की कथा कहानी, लेखक और प्रकाशक की कहानी का पर्दाफ़ाश..................आगे के लिए सावधान !
ReplyDeleteयह सभी भाषाओं में होरहा है, सही है--बाज़ार वाद---लेखक अग्रवाल किसी नेता, अफ़सर, हिन्दी विभाग या प्रकाशक के रिश्तेदार होंगे---पुस्तकें खरीद भी ली गई होंगी---सब पैसे का मामला है--कहां साहित्य....
ReplyDeleteप्रकाशन विभाग ने फिर भी सैकड़ों अच्छी किताबें छापी हैं। और भाई सरकारी है तो अधिकारी लोग लेखक जल्दी बन जाते हैं और छपा जाते हैं। ……एक किताब ठीक ऐसी ही है भोजपुरी लोककथा पर तो उसमें से कुछ कथा तो हम बचपन में सुना करते थे। इस पर भोजपुरी की कुछ बातें याद आती हैं। एक किताब है भोजपुरी की नीतिकथा पर तो संग्रहकर्ता ने 3000 कथाएँ घूम-घूम कर इकट्ठे किए थे और आठ जिल्दों में रखा उसे। ऐसे होती है लोककथा की छपाई और लिखाई। ई ना कि घरे बइठल 30-40 पन्ना रंग देनी सियाही से आ बन गइल किताब। …हाँ रोना धोना कहीं नहीं है और जो है वह बहुत कम है।
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