'फॅंस गए रे ओबामा' सुनकर एकबारगी लगता है कि अमरीकी राष्ट्रपति की पिछले दिनों भारत यात्रा का कोई संदर्भ है, लेकिन ऐसा कतई नहीं। फिल्म की कहानी है आर्थिक मंदी की, जिसे अपहरण के साथ लपेट कर, मजेदार ढंग से दिखाया गया है।
फिल्म में एक तरफ भारत लौटे अमरीकावासी एनआरआइ ओम शास्त्री (नायक रजत कपूर) हैं तो दूसरी तरफ मुम्बई अंडरवर्ल्ड की रानी फिमेल गब्बर सिंह (नायिका नेहा धूपिया) और इन दोनों के बीच है, ओम शास्त्री का भांजा कन्हैया लाल, यानि हमारा हीरो, छत्तीसगढ़ का दिनेश नाग। दिनेश ऐसा अभिनेता है, जिसकी आंखें तो क्या चेहरा भी बोलता है।
छत्तीसगढ़ को आदिम संस्कृति के चर्चित (जनजाति और उनके घोटुल) केन्द्र, बस्तर और अबुझमाड़ के कारण भी जाना जाता है। अबुझमाड़-ओरछा का मुहाना है अब का जिला मुख्यालय नारायणपुर। इसीसे लगा गांव है गढ़ बेंगाल, जो सन 1957 में पूरी दुनिया में जाना गया था दस वर्षीय बालक चेन्दरू के साथ। चेन्दरू नायक था, अर्न सक्सडॉर्फ की स्वीडिश फिल्म 'एन डीजंगलसागा' ('ए जंगल सागा' या 'ए जंगल टेल' अथवा अंगरेजी शीर्षक 'दि फ्लूट एंड दि एरो') का। फिल्म में संगीत पं. रविशंकर का है, उनका नाम तब उजागर हो ही रहा था। सन 1998 में अधेड़ हुए चेन्दरू और इस पूरे सिलसिले को नीलिमा और प्रमोद माथुर ने अपनी फिल्म 'जंगल ड्रीम्स' का विषय बनाया। चेन्दरू, इन दिनों अपने गांव में 'गैर-फिल्मी' दिनचर्या बसर कर रहा है, किन्तु फिल्मों का पहला छत्तीसगढ़ी सुपर स्टार वही है।
नारायणपुर से लगे गांव माहका का निवासी है दिनेश नाग। स्कूली शिक्षा रामकृष्ण मिशन, विवेकानन्द विद्यापीठ, नारायणपुर से 2001 में पूरी हुई, आगे की पढ़ाई के लिए दिनेश भिलाई आ गए लेकिन उनका मन रमने लगा नाटकों में। 2004 में रायपुर में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की कार्यशाला हुई। दिनेश की मानों मुराद पूरी हुई। कार्यशाला में उनकी अभिनय प्रतिभा को अमिताभ श्रीवास्तव, विनोद चोपड़ा और विभा मिश्रा ने पहचाना। इसी क्रम में दिनेश को अपनी प्रतिभा निखारने का मौका मिला, भोपाल की कार्यशाला में, जहां उन्हें देवेन्द्र राज अंकुर, राजेन्द्र गुप्ता, भानु भारती और रतन थियम जैसे गुरु मिल गए। इसके बाद 2005 में दिनेश ने मुंबई की राह पकड़ ली।
बॉलीवुड के खट्टे (-मीठे की शुरुआत शायद अब हो) अनुभवों के साथ दिनेश इडियट बॉक्स, रन भोला रन और स्ट्राइकर फिल्मों से जुड़े रहे, लेकिन इनसे उनकी पहचान न बनी।
दिनेश बताते हैं 8 नवम्बर को फिल्म के म्यूजिक रिलीज के अवसर पर उन्हें कन्हैया लाल के रूप में पहचाना गया इससे उन्हें भरोसा है कि 3 दिसम्बर को फिल्म रिलीज के साथ उनकी पहचान बनने लगेगी, हमारी भी यही कामना है। उनकी आने वाली फिल्म कॉल सेंटर पर आधारित 'तीस टका' होगी।
दिनेश नाग का फोन नं. +919867745061 है। इस पोस्ट के लिए जानकारी और फोटो का सहयोग अभिषेक झा (फोन नं.- +919424287102) और सोमेश (फोन नं.- +919993294086) से मिला है।
परिशिष्टः
रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद आश्रम, रायपुर के संस्थापक प्रातः स्मरणीय स्वामी आत्मानंद जी ने बिलासपुर व अमरकंटक आश्रम सहित नारायणपुर आश्रम, विवेकानंद विद्यापीठ की नींव रखी, जिसके माध्यम से अबुझमाड़ इलाके में मुख्यतः चिकित्सा और शिक्षा की नई अलख जगी। इस यज्ञ में उनके सहयोगी संतोष भैया, देवेन्द्र भैया, राजा भैया, शत्रुघ्न भैया, सतीश भैया, चटर्जी सर याद आ रहे हैं।
गढ़ बेंगाल, चेन्दरू के साथ बेलगुर, पंडी, जैराम द्वय, शंकर द्वय, बुधसिंह, रूपसिंह, सोबराय, मनीराम, पिसाड़ू कचलाम जैसे अनेकों कलाकार-शिल्पकारों का सभ्य-सुसंस्कृत गांव है और यहां किसी सियान को ढुसीर बजाकर घोटुल पाटा और लिंगोपेन की महान गाथा गाते देख-सुन सकते हैं।
नारायणपुर के पास कोई 40 साल पहले सोनपुर के अपने प्रवास के बाद वहां से 30 किलो मीटर दूर कोई 20 साल पहले, घनघोर अंदरूनी इलाके का डेढ़ हजार साल पुराना बौद्ध अवशेषों सहित प्राचीन स्थल भोंगापाल का उत्खनन कैम्प, वहीं बांसडीह, बलिया के सिंह गुरुजी का संग व मार्गदर्शन, खुदाई के साथी चेलिक और मोटियारी के साथ घोटुल संस्था को पहली बार करीब से देखने-समझने का अवसर बना।
याद कर रहा हूं, भोंगापाल में स्विस युवा पर्यटक से मुलाकात हुई और फिर सन 1990-91 में रेनॉल्ड पेन नया-नया था, जिसके साथ बहुतों की बालपेन से लिखने की आदत बनी और फाउन्टेन पेन छूटा। लेकिन पहली खेप के बाद रायपुर के बाजार में इसकी कमी हो गई। नारायणपुर के इतवार बाजार से कैम्प के सौदा-सुलुफ के बाद बस स्टैंड पर पान की दुकान में रेनॉल्ड पेन दिख गया और एक साथ पेन की जोड़ी खरीद लिया।
अब सोचता हूं ''नारायणपुर में रेनॉल्ड पेन और भोंगापाल में स्विस युवा'' शीर्षक से उदारीकरण और वैश्वीकरण पर महसूस किए, याद रहे, पहले-पहल अनुभवों पर एक पोस्ट लिखूं, गल्फ-वार के चलते कैम्प के लिए किरोसीन और सफर के लिए डीजल संकट से मुकाबले को जोड़कर, जो समाप्त हो अंकल सैम के नारे के साथ।
इन सबका साक्षी और कुछ हद तक सहभागी रहने के चलते गौरव अनुभव कर रहा हूं और नक्सलवाद की याद अब आई, लेकिन 'बाबू ले बहुरिया गरू झन हो जाय' इसलिए फिलहाल बस इतना ही।
पुनश्चः 5 दिसंबर को ''आज की जनधारा'' समाचार पत्र ने स्तंभ 'ब्लॉग कोना' में इस पोस्ट को साभार प्रकाशित किया है।
पुनश्चः 5 दिसंबर को ''आज की जनधारा'' समाचार पत्र ने स्तंभ 'ब्लॉग कोना' में इस पोस्ट को साभार प्रकाशित किया है।
दिनेश नाग की तस्वीरें देख कर ही लग रहा है...कि काफी expressive चेहरा है उनका...हर तस्वीर में अलग भाव हैं...और आँखें बिलकुल बोलती सी हैं.
ReplyDeleteअच्छा लगा इनके बारे में जानना
दिनेश नाग के बारे में पहली बार जानने को मिला। ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात‘, हमें गर्व है कि हमारे पास दिनेश नाग जैसे कलाकार भी हैं। दिनेश नाग के लिए शुभकामनाएं कि उनकी ख्याति चहुंदिश विसरित हो।
ReplyDeleteचेंदरू और उसकी फिल्म के बारे में भी मुझे मालूम नहीं था। आपका आभार कि आपने इनसे संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई।
संपूर्ण आलेख अत्यंत रोचक है, उतना ही रोचक परिशिष्ट भी।
‘बाबू ले बहुरिया गरू झन हो जाय‘ का प्रयोग मन को मोह गया।
सत्तर के दशक में समांतर फ़िल्मों के एक अभिनेता हुआ करते थे- अनंत नाग, क्या दिनेश नाग का उनसे कोई संबंध है?
Jubilant news! congratulations Dinesh Nag.
ReplyDeleteदिनेश नाग जी को ढेरों शुभकामनायें। उत्तरोत्तर वृद्धि हो उनकी।
ReplyDeleteचेंदरू तो अपने पहचान का है परन्तु दिनेश नाग को नहीं जानता था. अब जानकार अच्छा लगा. वे खूब तरक्की करें. आपने विवेकानंद आश्रम से जुड़े लोगों की दिला दी. उन नामों में आदरणीय संतोष कुमार झा जी मेरे लिए ख़ास हैं. पहचान तो जगदलपुर से ही थी जब तालाब के किनारे चबूतरे पर बैठ नीचे पानी में चले आये सांप को देख उन्होंने उसे भ्रह्म की संज्ञा दी थी. रायपुर में रहते हुए कई बार मुलाकात हुई. जब भी हमने उनसे अपेक्षा की, वे घर चले आते थे (प्रवचन करवाते थे).
ReplyDeleteअरे वाह, बढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteखुशी हुई दिनेश जी के बारे में जानकर। शुभकामनाएं उन्हें।
आपकी ''नारायणपुर में रेनॉल्ड पेन और भोंगापाल में स्विस युवा'' पोस्ट का इंतजार रहेगा।
दिनेश के भविष्य के लिये शुभकामनायें...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग से ही पहली बार जाना दिनेश नाग के बारे में उनकी फिल्म रिलीज़ के अवसर पर ढेरों शुभकामनायें. चेंदरू के बारे में किसी लेख में पढ़ा था सच में जब भी अपनी जमीं से जुडा कोई कलाकार किसी अच्छी जगह दिख जाता है तो गर्व तो महसूस होता ही है. रेनोल्ड्स पेन कि बात भी खूब याद दिलाई आपने सच अब तो निब पेन सपना सा लगने लगा है. गत दिनों मैंने प्रे रायपुर शहर में खोज ली लेकिन चेलपार्क की स्याही नहीं पा सका वे दिन शायद अब यादों के ही रह गए है दिनेश नाग जी के बारे में जानकारी परक ब्लॉग के लिए हार्दिक साधुवाद
ReplyDeleteचेंद्रू के साथ का वाकया नेट से जानता था,रोमाचक प्रकरण है वह भी.
ReplyDeleteनाग को अभी नोटिस नही लिया था,
आधुनिक भारत के इतिहास में राम कृष्ण मिशन का सतही वर्णन ही पाया था, आप के अनुभव से कार्य रूप में जान पाया.शुक्रिया.
दिनेश नाग के संबंध में जानकर खुशी हुई, अंचल की प्रतिभाओं को सफल होते देख-सुन कर खुशी होती है। दिनेश से परिचय कराने के आपके अंदाज नें इस फिल्म के प्रति उत्सुकता बढ़ा दी है।
ReplyDelete.... अगली पोस्ट की फुलझड़ी छोड़ कर पढ़ने की भूख बढ़ा दी है आपने। बाबू ले बहुरिया के गरू होए के सवाले नई ये आपके नपे तुले पोस्ट मा बाबू अउ बहुरिया के सुघ्घर जोड़ी बनेच रहिथे।
Waah! kyaa baat hai! Naaraayanpur ke itne (mahaz 52 kilometre)kariib rah kar bhii main abhaagaa apne biich ke Dinesh jii ke wishay main kuchh bhii nahiin jaan paayaa aur wahaan se itnii (277 kilometre) duur rah kar bhii aapne sab-kuchh jaan liyaa. Bataaiye mujhe aapse rashk kyon nahin haonaa chaahiye bhalaa?
ReplyDeleteAadarniiy Raahul sinh jii, is aahlaadpuurn jaankaarii ke liye meraa kotishah aabhaar swiikaarein. Aabhaar aadarniiy अभिषेक झा (फोन नं.- +919424287102) और सोमेश (फोन नं.- +919993294086) kaa bhii jinhone aap tak yah jaankaarii pahunchaayii.
Dinesh Naag jii ko anekaanek badhaaiyaan. We pragati ke uchchatam shikhar tak pahunchein.
Chendaruu jii kii charchaa par mujhe ek baat yaad aa rahii hai: maine kuchh warshon puurv Chendaruu jii aur Naaraayanpur ke paas एड़का ke niwaasii wayowriddh aur suprasiddh mittii shilpii shrii Dewnaath jii ko aarthik sahaayataa (pension) dilaane ke sambandhii ek patr Chhattisgarh Sanskriti Sanchaalnaalay ko bhejaa thaa. Us patr par tatkaalin sanskriti aayukt aadarniiy Pradiip Pant jii ne kaarywaahii bhii kii thii kintu wah sahaayataa unhein milii yaa nahii, merii jaankaarii mein nahin hai.
Punah aabhaar.
Saadar,
Harihar Vaishnav
राहुल जी,
ReplyDeleteकई साल हो गये, फ़िल्म देखनी लगभग छोड़ रखी हैं लेकिन ’फ़ंसते ओबामा’ को देखने का मन कर रहा है। अच्छा लगा दिनेश नाग से परिचय, बाकी तो अभिनय देखकर ही मालूम चलेगा। आपकी लेखन शैली बहुत अच्छी है, सहज और प्रवाहमान। अगली पोस्ट का इंतज़ार है।
दिनेश नाग के विषय में जान कर बहुत अच्छा लगा। यह फिल्म देखनी पडेगी।
ReplyDeleteगढ़ बंगाल दो-तीन बार जाने का अवसर मिला है ......वहां के एक शिल्पी से मिला था ....... कुछ तीर-धनुष खरीदकर लाया था. छत्तीस गढ़ के लिए गौरव है का विषय है यह गाँव ....ज़ो इतने कलाकारों की जन्म स्थली है ......यह फिल्म देखनी ही होगी. नाग को सफलताओं के लिए शुभाकामनाएं .
ReplyDelete@ संजीव तिवारी,
ReplyDeleteगजब फभोए ह संजीव भाई, मजा आगे कमेंट देखके. परता पर गे ए पोस्ट लिखना.
आपके पास भोंगापाल जैसी समृद्ध स्मृतियाँ हैं और दिनेश के पास समृद्ध आदिम लोकरंग की थाती ! वो खुशनसीब है कि उसे कद्रदानों ने पहचाना और अनगढ़ को हीरा होने का मौक़ा दिया ! अभिनय और रंगकर्म की कच्ची खान है यहाँ ! जो भी हुनरमंद हाथ डाले , निकाले और पका ले ! दिनेश के लिए रामकृष्ण मिशन नारायणपुर फिर भिलाई ,भोपाल और मुम्बई के एक्सपोजर्स उसकी तकदीर कहूं या संजोग ?
ReplyDeleteफिलहाल उसकी उन्नति की अशेष शुभकामनाएं !
दिनेश नाग के विषय में जान कर बहुत अच्छा लगा। यह फिल्म देखनी पडेगी।
ReplyDeleteबहुत दिलचस्प जानकारी .सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति.आभार .
ReplyDeleteAchhi aur suchnaparak prastuti.PLz. visit my blog.
ReplyDelete.
ReplyDeleteदिनेश जी से परिचय अच्छा लगा। रोचक एवं सुन्दर शैली में लिखे इस लेख के लिए आभार।
his pics are quite lively.
.
अरे वाह, बढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteखुशी हुई दिनेश जी के बारे में जानकर। शुभकामनाएं उन्हें।
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
... dinesh ji ko badhaai va shubhakaamanaayen ... behatreen post !!!
ReplyDeleteदिनेश नाग के चित्र को आपके आलेख के साथ पढ़ा तो फिल्म देखने की इच्छा हो रही है। परिशिष्ट आकर्षक है।
ReplyDeleteदिनेश नाग के विषय में जान कर बहुत अच्छा लगा....अब फिल्म देखने का मन है ......
ReplyDeleteDinesh nag ke sambandh mein jankari mili.Film dekhne ke bad hi kisi nishkarsh par pahuncha ja sakata hai.Informative post.PLz visit my new post.
ReplyDeleteदिनेश नाग के भावी जीवन के लिए शुभकामनाएं
ReplyDeleteदिनेश नाग के बारे में जानकार अच्छा लगा. फिल्म तो शायद ही देखने में आये, महीनों से कोई फिल्म नहीं देखी.
ReplyDeleteबाज़ार और शहरीकरण का बहुत प्रभाव तब देखने में आया जब सात साल बाद इस वर्ष बिलासपुर गया था. नगर की तो कायापलट ही हो रही है लेकिन मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं विकासविरोधी नहीं पर नगर ने अपनी निर्मलता और अपनापन खो दिया है. ऐसा सभी शहरों के साथ है.
आपका ब्लाग गागर में सागर की तरह है,दिनेश नाग के बहाने बस्तर की वैश्वकि छवि के जानने को मिली, पढने के बाद दिमागी खुराक के अलावा समझ को एक दिशा भी मिलती है;
ReplyDeleteगोविंद ठाकरे रायपुर
दिनेश नाग ..पढ कर मन प्रफ़्फ़ुल्लित हुआ कि बस्तर से मुम्बइ तक का सफ़र इस युवा ने किया है......शुभकामनाएं.
ReplyDeleteThanks all of you .. for your kind concern .. i am pleased .. writing behalf of Dinesh Nag.......
ReplyDeleteTHANK'S ALL.....I AM PEASED.
ReplyDelete
ReplyDeletecooll :)))
ReplyDeletecooll :)))
Highly energetic blog, I loved that a lot. Will there be a part
ReplyDelete2?
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