खबरदार, आपके आस-पास खबरी हैं तो आप, आपकी हरकत या ना-हरकत भी खबर बन सकती है, क्योंकि खबरें वहां बनती हैं जहां खबरी हों जैसे पोस्ट वहां बन सकती है जहां ब्लॉगर हो। खबरों के लिए घटना से अधिक जरूरी खबरी हैं और कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्लॉगर की तो पोस्ट अच्छी बनती ही तब है जब कोई मुद्दा न हो, वरना 'मीनमेखी' (सुविधानुसार इसे 'गंभीर टिप्पणीकार' पढ़ सकते हैं) पोस्ट को पूर्वग्रह से ग्रस्त अथवा बासी मान लेते हैं।
यह सूक्ति या थम्ब रूल बनाने का प्रयास नहीं, एक सचित्र खबर को पढ़ते हुए लगा कि कोई ब्लॉग पेज तो नहीं देख रहा हूं फिर इसका कैप्शन सोचते-सोचते इसकी लंबाई बढ़ गई, बस। पहले यह देखें-
अब सीधे विकल्प पर आइए-
1/ खबर पर ब्लॉग का असर है,
2/ किसी ब्लॉगर की लिखी खबर है,
3/ यह खबर कम ब्लॉग पोस्ट अधिक है,
4/ ब्लॉग पोस्ट और खबर के बीच का फर्क कम हो रहा है।
असमंजस है कि क्या चारों सही या सभी गलत का विकल्प भी दिया जाना चाहिए। अपनी भूमिका भी आप ही चुनें- बिग बी, हॉट सीट या क्विज मास्टर। हां! लेकिन किसी ईनाम-इकराम की गुंजाइश नहीं है, यहां।
यहां किसी ब्लॉगर सम्मेलन के लिए टॉपिक तय करने की कवायद भी नहीं है, यह तो यूं ही, कुछ भी, कहीं भी टाइप है, लेकिन खबरों पर नजर रखने वाले और खबरों की खबर लेने वालों के साथ सभी पहेली-बुझौवलियों को विशेष आमंत्रण।
दस मिनट तक सांस थामने वाला या तो मर जायेगा, या जोगी होगा या हिन्दी का ब्लॉगर।
ReplyDeleteबकिया ऐसी खबर तो किसी लेवल क्रासिंग पर खड़े हो जाइये, मिलती रहेंगी! :)
गनीमत की इसका फुटेज किसी टीवी चैनल को नहीं मिल गया वर्ना पूरा दिन पार कर देते इस रहस्य के साथ की गाय बचेगी या मरेगी ...
ReplyDeleteस्पेस की कमी के बाद भी इस तरह की खबर को प्रकाशित करके अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया।
ReplyDeleteयह अखबार साधुवाद का पात्र है।
post men nayapan hai bhai
ReplyDelete... saarthak post ... kuchh vishesh hi hai !!!
ReplyDeleteआमंत्रण स्वीकार है , जहेनसीब जो आपने खबरों की खबर की ही खबर ले डाली । आभार स्वीकारें । आपसे वो क्षणिक मुलाकात मुझे ताउम्र याद रहेगी
ReplyDeleteजी हाँ,
ReplyDeleteगाय और अन्य जानवर भी इतने समझदार तो होते ही हैं कि अपनी रक्षा कर लें.उनका कट मरना वैसा ही है जैसे लापरवाही पूर्वक मोटर गाडी रेल पटरी पर जाकर रेल गाडी से टकराती है. इसमें भी अघट घटने से बच गया. शहीद उधम सिंह के पिता भी ऐसी दुर्घटना रोकने के लिए रेल विभाग में नौकरी पर रखे गए थे.
http://brajkishorprasad.blogspot.com/
चारों विकल्पों पर ब्राह्मी सीरप पीकर चिंतन करने के बाद भी उत्तर नहीं बूझ रहा है, लाईफ लाईन फोन अ फ्रैंड हमने खो दिया है अब एक्सपर्ट कमेंट और जनता की राय का ही सहारा है। :):)
ReplyDeleteयदि वह समाचार यदि किसी ब्लॉग के पोस्ट में लिखी गई होती तो मेरा कमेंट यह होता -
बेहतरीन प्रस्तुति, आपकी भावनाओं को नमन. एक बार हम भी भिलाई के खुर्सीपार रेलवे क्रासिंग में खड़े थे और एक सवारी गाड़ी तेजी से रायपुर की ओर से आ रही थी, एक गाय दो पटरियों के बीच चर रही थी, लोगों नें उसे बचाने के लिए 'हात-हूत' करने लगे जब तक 'हात-हूत' का असर हुआ तब तक गाड़ी आ गई और गाय ट्रेन के ठोकर से उछलकर लगभग पांच फुट गिर गई, गाड़ी के गुजरते ही गाय नें अपनी पूरी शक्ति लगाई और उठ खड़ी हुई. क्रासिंग खुल जाने के बाद भी उस गाय को देखने के लिए भीड़ क्रासिंग पर कुछ मिनटों के लिए डटी रही।
* पांच फुट दूर गिर गई
ReplyDeleteईनाम-इकराम नहीं है, इसीलिये हिम्मत जुटा रहे हैं जी कुछ कहने की। चौथा खंभा लोकतंत्र का इसी मीडिया को ही कहते हैं शायद। रिलेटिड मामला है इसलिये बताता हूँ कि अप्रैल में ऐसी ही एक खबर पर मैंने एक पोस्ट लिखी थी ’बाल बाल बचे’, लेकिन मैं शायद ठीक से एक्सप्रैस नहीं कर पाया था खुद को।
ReplyDeleteवैसे हमारे दिल्ली में एक पुराना किस्सा मशहूर है कि संपादक महोदय के पास खबर पहुंची की अखबार छपने को तैयार है लेकिन कुछ स्पेस खाली छूट रहा है। आदेश हुआ कि लिख दो, "यमुना नदी में एक तांगा गिरने से चार व्यकित्यों की मौत हो गई।" पुन: खबर आई कि एक लाईन की जगह और खाली है तो इधर से भी पुन: निर्देश दिये गये कि लिख दो, "बाद में मालूम चला कि खबर झूठी थी।"
खबर तो खबर है ।
ReplyDeleteखबरीय तत्व, कितना है।
ReplyDeletevery interesting news !
ReplyDeleteअच्छी रही ये खबरों कि खबर और सच तो यही है कि..ब्लॉग पोस्ट और खबर के बीच का फर्क कम हो रहा है।
ReplyDeleteहम्म, दर-असल जो यह आपको एक ब्लॉगर की किसी पोस्ट की तरह लग रहा है, उसके पीछे बात यह है कि, अख़बार का फोटोग्राफर इस मौके से गुजर रहा था तो उसने फोटो ले ली. चूँकि मौके पर था ही, इसलिए उसे सारी जानकारी थी. अब वह फोटो लेकर आया अख़बार के दफ्तर में, किस्सा सुनाया, तो फिर प्रमुख नगर संवाददाता ने किसी संवाददाता को आदेश दिया कि फोटोग्राफर कि बात सुनकर इस मुद्दे पर आँखों देखी रपट तैयार करे. और उस संवाददाता ने फोटोग्राफर से सारी बातें सुन-समझकर जो रपट तैयार की, वही अख़बार में समाचार के रूप में छपा और और आपने यहाँ उसका उल्लेख किया... तो ये है सारी हकीकत, जब यह रपट छपी थी, इसे पढ़ते हुए ही सारा खेल समझ में आ गया था १०-१५ दिन पहले....ये फोटो या तो दीपक पाण्डेय ने ली होगी या फिर योगेश यदु ने, ऐसा मेरा अनुमान है
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर
@ संजीव तिवारी जी
ReplyDeleteगउ माता मने मन कहत रिस होही- तू मन का देखत ह ग, तमासा बना लेथ कोई भी चीज के, कोई बूता धंधा नइये का, रेंग अपन-अपन रस्ता.
@ रश्मि रवीजा जी
जी, अखबार भी क्या करें, 24 घंटे में एक बार छपना है, यहां चैनल चौबीसों घंटे हैं और कुछ बाकी रहा तो वह हमारी मुट्ठी में है, मोबाइल फोन पर.
@ मो सम...
ReplyDeleteएक समय था जब अखबारों के मुखपृष्ठ पर स्तंभ होता था, 'छपते-छपते', यह जगह खाली भी छूटी रह जाती थी.
@ राजेश उत्साही जी
लेकिन खबर पर किसका असर और खबर का असर किस पर कितना.
सही में ये खबर कम ब्लॉग पोस्ट ज्यादा है..
ReplyDeleteदुष्यंत कुमार नें कहा है - एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। फिर दस मिनट तक साँसें नहीं थमेंगी :)
ReplyDeleteपॉंचवा विकल्प भी होना चाहिए था - आजकल ब्लॉग पर खबरों का और खबरों पर ब्लॉग का असर हो रहा है। अब इस दशा से बच पाना कठिन होता चला जाएगा।
ReplyDeleteखबर क्या ? ब्लाग पोस्ट क्या ? इन दिनों तय करना मुश्किल हो गया है ! आपके विकल्पों पे मंथन के अलावा कुछ और ख़बरों के सोते फूट पड़े हैं ...
ReplyDelete(१)नशे में धुत ड्राइवर तेज रफ़्तार से गाड़ी निकाल ले गया, गाय की जान पे बनी रही !
(२)इतनी संवेदनशील और गम्भीर दुर्घटना की आशंका के बावजूद रेल मंत्री कोलकाता में !
(३)शासन की उपेक्षा से पीड़ित गायें जान देने पर उतारू !
(४)गाय को बचाने के बजाए उसे फोटो लेने की पडी रही ! (विरोधी अखबार के लिए)
(५)ब्लागरों ने पोस्ट लिख कर अपमानित किया,गाय जान देने पर आमादा !
(६)सारा चारा नेता खा गए गाये भूख से बेहाल खुदकशी को तैयार !
(७)पुलिस का निकम्मापन गाय पर आज तक मार्ग कायम नहीं किया !
(८)दुग्ध ऊर्जा प्रयोग सफल रहा , ट्रेक के पास खड़ी गाय ज़्यादा दूध देने लगीं !
पहली किश्त में इतनी ख़बरें काफी लग रही हैं ज़रूरत पड़े तो बताइयेगा :)
मै तो खबर और ब्लाग पोस्ट् पर कन्फ्यूज़ा गयी हूँ इसे जरा और विस्तार से कहे। ब्लाग पडःाते पढते भूल गयी हूँ कि खबर और ब्लाग पोस्ट मे अन्तर क्या है। धन्यवाद।
ReplyDeleteचलिये खबर तो खबर है,चाहे ब्लोग की हो या अख्बार की,
ReplyDeleteन्यूज़ पेपर में प्रकाशित इस समाचार में निस्संदेह ब्लॉगिंग का असर साफ दिख रहा है। संवाददाता निश्चित रूप से ब्लागर ही होगा। ब्लॅाग जगत की ख़बरें या समाचात पत्रों का ब्लाग - सब गड्डमड्ड हो गया लगता है।
ReplyDeleteआपकी पारखी नज़र ही इसे ताड़ सकती है...बहुत अच्छी पेशकश।
सनसनी, आजकल यहीं एक शब्द है जो मीडिया जगत में आतंक कि तरह व्याप्त है...ब्लागर भी हैं कुछ जो इस मर्ज़ के शिकार हैं...पर कुछ आप जैसे लोग भी हैं जिनकी निगाह से ये छुप नहीं पाता...
ReplyDelete.
ReplyDeleteअली साहब द्वारा दिए 'शीर्षकों' में इजाफा किये देता हूँ.
[९] कत्लगाहों में कटने की बजाये मालगाड़ी से कटना बेहतर है.
[१०] मालगाड़ी के दूसरी ओर लगे कूढ़े के ढेर से गाय की नज़र नहीं हटी.
[११] भागमभाग वाली ज़िंदगी में हर कोई पहले निकल जाना चाहता है.
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ब्लॉग -लेखन में वही तो लिखा जाएगा जो हमारे मन में होगा.
अपने अनुभव, अपनी जिज्ञासाएँ, अपने अनसुलझे सवाल, स्वयं को प्रभावित कर देने वाले विचार
प्रभावित व्यक्तित्वों की समीक्षाएँ, गोपनीय मनोभावों की अभिव्यक्ति, सूचनायें अपने नज़रिए से,
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एक बहिन दूसरी बहिन से कहती है ..."अरी तूने सुना, फलाने ने ......"
हमारा मानवीय स्वभाव है कि हम जो जानते हैं वह अपने अपरिचितों में बाँटना चाहते हैं. चाहे वह खबर ही क्यों न हो
'माध्यम' अपनाने पर शर्तें लागू करना .......... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दायरे में बाँधना होगा.
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ऐसी खबर बराबर मिल जाती है, बस जानवर के बदले इंसान होता है.....
ReplyDeleteजब आदमी के जीवन का मोल ही काम होता जा रहा है तब गाय के बारे में यह समाचार
ReplyDeleteBAHU KHOOB
ReplyDeleteमतो चारों ऑप्शन एक साथ चुन रहे हैं.
ReplyDeleteअच्छा..............
ReplyDeleteदिलचस्प प्रस्तुति.
ReplyDeleteजहाँ ईनाम कि गुंजाईश ना हो वहाँ हम कुछ नहीं कहते हैं.. :)
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