Sunday, October 31, 2010

छत्तीसगढ़ राज्य

ठाकुर रामकृष्‍ण सिंह 
 छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के इतिहास और पृष्ठभूमि की तलाश में जितनी सामग्री मेरे देखने में आई उनमें लगभग सभी, संस्मरण, श्रेय और दावों के अधिक करीब हैं। स्रोतों-दस्तावेजों के आधार पर तैयार इतिहास की अपनी कमियां हो सकती हैं, लेकिन जड़ और जमीन के लिए यह आवश्यक है। इस दृष्टि से अग्रदूत समाचार पत्र के 30 नवम्बर 1955 अंक में अंतिम पृष्ठ-8 का मसौदा, जिसमें ''गोंडवाना प्रान्त की मांग क्यों ?'' शीर्षक के साथ परिचय है कि ''एस.आर.सी. की रिपोर्ट पर हमारी विधान सभा ने पिछले सप्ताह विचार-विमर्श किया। कुछ सदस्य एक 'गोंडवाना प्रान्त' की मांग कर रहे हैं। ठाकुर रामकृष्णसिंह एम.एल.ए. ने इस मांग के समर्थन में विधान-सभा में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे पठनीय है।'' उक्त का अंश इस प्रकार है-



अध्यक्ष महोदय इस सदन में आज चार-पांच रोज से जो भाषावार प्रान्त के हिमायती हैं उन्होंने भाषण दिए। उससे यह स्पष्ट हो गया कि एक ही भाषा के बोलने वाले एक ही भाषा के बड़े प्रान्त में नहीं रहना चाहते। आयोग ने या हाई कमान्ड ने जो इस बात की कोशिश की कि एक भाषा के लोग एक ही प्रान्त में रहें तो इसका भी विरोध इसी सदन में आज  5 दिनों से हम देख रहे हैं। मराठी भाषा बोलने वाले लोग ही संयुक्त महाराष्ट्र में रहना नहीं चाहते। वे अपना अलग प्रान्त बनाना चाहते हैं। उनके भाषण में एक दूसरे के प्रति कटु भाव थे। इससे मुझे भास होता है कि जब एक भाषा के बोलने वाले आपस में एक दूसरे के प्रति इतनी कटु भावना रख सकते हैं तो वे दूसरी भाषा बोलने वाले के प्रति कैसी भावना रखेंगे। इन सब कारणों के अध्यक्ष महोदय, मैं एक भाषा के एक प्रान्त बनाने की योजना का विरोध करता हूं।

दूसरी बात जो श्री जोहन ने हमारे मुख्‍यमंत्री जी के प्रस्ताव में संशोधन रखा है उसका मैं समर्थन करता हूं। इस संबंध में अभी पहले हमारे एक उपमंत्री जी ने बहुत सुन्दर ढंग से ऐतिहासिक भूमिका दी है और वह इतनी यथेष्ठ है कि उसको मैं दोहराना नहीं चाहता। हम लोग जो गोंडवाना के समर्थक हैं वे यह चाहते हैं कि हमारा एक ऐसा कम्पोजिट प्रदेश बने जिनमें वे मराठी भाषी जो आज 95 वर्ष से हमारे साथ रहते आये हैं वे भी साथ रहें और अभी तक जिस प्रकार प्रेमपूर्वक रहते आये हैं उसी प्रकार रहें।

अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्तावित मध्यपेद्रश का इसलिये विरोध करता हूं कि वह इतना अन-बोल्डी है कि उसमें एडमिनिस्ट्रटिव कनवानिअन्स बिलकुल नहीं रहेगा। अध्यक्ष महोदय, मध्यभारत, भोपाल और विन्ध्य-प्रदेश का महाकोशल प्रदेश से कभी भी शासकीय संबंध नहीं रहा है। पर्वत जंगल तथा अन्य कठिनाइयों के कारण आपस में आवागमन के लिए जो रेल और सड़क बनाने की सुविधा होनी चाहिए या इनको एक स्टेट के एडमिनिस्ट्रेशन में लाने के लिए जो सुविधा होनी चाहिये वह सुविधा बिलकुल नहीं है। आपने, अध्यक्ष महोदय, इस बात पर भी गौर किया होगा कि हमारे बस्तर से मध्यभारत की कितनी दूरी है। 800 से एक हजार मील की दूरी होती है। ऐसे प्रदेश में बस्तर जैसे पिछड़े प्रदेश में रहने वाला व्यक्ति कैसे सुखी रह सकता है यह सोचने की बात है।

दूसरी बात यह है कि हमारा छत्तीसगढ़, जो कि देश को बहुत ही पिछड़ा हुआ भाग है, इस बड़े प्रदेश में कभी पनप नहीं सकता। इसकी जो तरक्की होनी चाहिये इसकी तरफ से जो ध्यान देना चाहिये वह कभी भी प्रस्तावित मध्यप्रदेश के शासन में नहीं हो सकता। अध्यक्ष महोदय, आपने देखा होगा कि राजधानी के प्रश्न पर भोपाल, सागर, इटारसी और सबसे मुख्‍य जबलपुर की चर्चा होती रही पर किसी ने भी यह गौर नहीं किया कि हमारे बस्तर से या छत्तीसगढ़ से ये स्थान कितनी दूरी पर हैं। मैंने इस संबंध में इतने भाषण सुने पर किसी ने भी छत्तीसगढ़ का जिक्र नहीं किया। यह नहीं सोचा गया कि इन स्थानों से छत्तीसगढ़ कितनी दूर हो जावेगा।

हालांकि अध्यक्ष महोदय, मैंने अभी प्रस्तावित मध्यप्रदेश का विरोध किया है मगर जो होना है वह तो होकर रहेगा इसलिये इस सिलसिले में मैं यहां एक बात रिकार्ड करा देना चाहता हूं कि चाहे राजधानी भोपाल हो या सागर हो या जबलपुर हो पर उसमें हमारे छत्तीसगढ़ के हित का ध्यान रखा जाना चाहिये और वह यह है कि इसमें रायपुर शहर को उप-राजधानी बनाया जावे। रायपुर शहर छत्तीसगढ़ का हृदय है और छत्तीसगढ़ के सभी स्थानों से बराबर दूरी पर है। आज के हमारे मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर थी फिर गवर्नमेंट बराबर जबलपुर को उप-राजधानी मानती चली आ रही है इसलिये हम चाहते हैं कि सिर्फ सिर और चेहरे को ही न देखा जावे। इन्दौर, भोपाल और जबलपुर तो बड़े बड़े शहर हैं वे आकर्षण के केन्द्र हो सकते हैं। पर केवल चेहरे को ही न देखा जावे। हम दूर में जो गरीब लोग इस छत्तीसगढ़ में रहेंगे उनके ऊपर भी यथोचित ध्यान दिया जाना चाहिये इसलिए मेरा निवेदन है कि नवीन मध्यप्रदेश में रायपुर को उप-राजधानी बनाया जावे। यहां जो गरीब लोग रहे हैं उनमें पोलिटिकल जाग्रति नहीं है इसका प्रमाण है कि 82 सदस्यों में से किसी ने भी राजधानी के प्रश्न पर यह नहीं कहा कि रायपुर को उप-राजधानी बनाया जावे। इससे पता चलता है कि ये लोग कितने बैकवर्ड हैं। इसलिये मैं चाहता हूं कि प्रस्तावित मध्यप्रदेश का यदि निर्माण होता है तो रायपुर को उप-राजधानी बनाने के अलावा हाईकोर्ट, बेन्च, रेवन्यू बोर्ड बेन्च और दीगर फेसिलटीज जो होती हैं वे दी जावें। अध्यक्ष महोदय, मैं इन शब्दों के साथ गोंडवाना प्रान्त की मांग का समर्थन करता हूं।

डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह

उक्त अंश के साथ प्रासंगिक तथ्य है कि छत्‍तीसगढ़ में 20वीं सदी के चौथे दशक में मानव विज्ञान के क्षेत्र में हुए अध्ययन का परिणाम सन 1944 में ''द गोंडवाना एण्ड द गोंड्स'' पुस्तक के रूप में सामने आया। क्षेत्रीय अस्मिता को अकादमिक पृष्ठभूमि के साथ रेखांकित करने का यह गंभीर प्रयास डॉ. इन्द्रजीत सिंह (1906-1952) द्वारा किया गया, जो तत्कालीन सीपी एण्ड बरार के पहले मानवशास्त्री हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन की 10वीं वर्षगांठ पर राज्य निर्माताओं का नमन।

21 comments:

  1. नि:संदेह छोटे राज्यों के गठन से चहुंमुखी होता है।
    इसका सबसे अच्छा उदाहरण हरियाणा और छत्तीसगढ है।
    सभी के समवेत प्रयास से छत्तीसगढ राज्य का निर्माण हुआ।
    मेरी तरफ़ से राज्य निर्माताओं को प्रणाम
    एवं राज्योत्सव पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं।

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  2. विशुद्ध अकादमिक नवैयत का आलेख ! उन्होंने रायपुर को उपराजधानी बनाए जाने की मांग की...वे सत्ता केन्द्र को जन पहुंच के दायरे में देखना चाहते थे ! स्वस्थ लोकतंत्र का आधार भी यही है कि सत्ता का मुख्य सूत्रधार जन गण हो और आगे भी सत्ता उसके दायरे में बनी रहे !

    बहरहाल आपके आलेख में उद्धृत दोनों विभूतियों को नमन,छत्तीसगढ़ राज्य के सर्व निर्माताओं को प्रणाम ! शुभकामनायें !

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  3. आपने एक महत्वपूर्ण दस्तावेज खोज लिया है। इसके आलोक में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नए सिरे से चिंतन करने की आवश्यकता है।...आपकी शोधदृष्टि को नमन।...छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस की शुभकामनाएं।

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  4. चिन्तनीय बिन्दु उठाये हैं और कुछ का परिणाम देखने को भी मिल रहा है।

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  5. इस महत्‍वपूर्ण जानकारी को सबके साथ साझा करने के लिए आभार।

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  6. महत्‍वपूर्ण जानकारी के लिए आभार !

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  7. महत्‍वपूर्ण जानकारी के लिए आभार !

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  8. जबरदस्त, आप ग्रेट हो भैया, आपके पास खजाना है. { काश इस खजाने को आप मुझ से बाँट लें ;) }
    आप खजाना हैं ये तो पहले भी कई बार कह चूका हूँ, आरम्भ ब्लाग ही देख लें मेरे इस कथन के लिए तो , तब भी मैंने कहा था कि " बहुत ही सारगर्भित जानकारी।
    ऐसे राहुल भैया को कितनी बार धन्यवाद अर्पित करते रहें हम, वे तो जानकारियों का खजाना हैं।
    आभार उनका"।

    ठीक १ नवम्बर को आप ऐसी सामग्री दे रहे हो जो यह बता रहा है की सीपी एंड बरार के सदन में, (अगर मैं गलत नहीं हूँ तो ठाकुर प्यारेलाल जी के पुत्र ठाकुर रामकृष्ण जी ) यह मांग कर रहे हैं कि रायपुर को उपराजधानी बनाया जाए. वाकई एक शानदार सामग्री, इसीलिए आप आप हैं जिन्हें हम सब पत्रकार इन सब संदर्भो के लिए तलाशते रहते हैं .

    उन सभी को प्रणाम जिन्होंने इस राज्य का स्वप्न देखा और इसके लिए संघर्ष किया.
    बधाई और शुभकामनाएं राज्य की दसवीं सालगिरह की .
    जय छत्तीसगढ़

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  9. पोस्ट समयानुकूल तो है ही,आगे भी उपयोगिता बनी रहेगी.इस संबोधन में छत्तीसगढ़ की जनता केसाथ तत्कालीन प्रतिनिधियों की प्रवृति भी प्रतिध्वनित होती है.ललित जी के पोस्ट से रायपुर के कार्यक्रम में आप की भागीदारी से अवगत हुआ.गिरीश पंकज जी ने भी कवर किया है .

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  10. जय छत्‍तीसगढ, जय सच्‍चे राज्‍य निर्माता।
    1955 में ठाकुर रामकृष्‍णसिंह एम.एल.ए.के योगदान और विधानसभा में रखे विचार को नमन, और आज के मैले क्षमा ए एल ए को भी एैसे ही विचार छत्‍तीसगढ के चहुमुंखी विकास के लिए रचनात्‍मक सोच के लिए शुभकामनाएं। सारगर्भित समसाययिक लेख के लिए साभार, राज्‍य की दसवीं सालगिरह की शुभकामनाएं

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  11. भाषा पर आधारित राज्यों का पुनर्गठन वास्तव में एक अदूरदर्शी पहल रही जो भारतीय समाज में जहर बन गयी है. ठाकुर रामकृष्णसिंह जी के वक्तव्य को पढ़कर हम चकित हैं. ऐसा प्रतीत होता है, उन्होने इस बुनियादी प्रश्न को (पुनर्गठन) राजनैतिक दृष्टिकोण से न देख उसके सामाजिक प्रभाव की पूर्व कल्पना कर ली थी.ठाकुर रामकृष्णसिंह और डॉ. इन्द्रजीत सिंह को नमन. आपका आभार की आपने इतनी अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई.

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  12. (ई-मेल से प्राप्‍त टिप्‍पणी)
    आदरणीय राहुल भैया,
    राज्य स्थापना दिवस एवं दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
    छत्तीसगढ़ राज्य से सम्बंधित पोस्ट देख कर सुखद आश्चर्य हुआ कि इतनी पुरानी जानकारी का संकलन आपके पास है.ऐसी जानकारी से हमारे पूर्वजों द्वारा किये गए प्रयासों कि जानकारी उजागर होती है,और उस धारणा का खंडन भी होता है,जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के पर्याप्त संघर्ष न होना माना जाता है.
    ठा. रामकृष्ण सिंह के जन्मस्थान तथा विधान सभा क्षेत्र की जानकारी के प्रकाशन से जांजगीर-चाम्पा जिले को मिलने बाले गौरव का लालच छोड़कर आपने व्यापक सोच का परिचय प्रस्तुत किया है,और इसके लिए भी आप साधुवाद के पात्र है.
    - महेश कुमार शर्मा
    महामंत्री,संस्कार भारती-छत्तीसगढ़

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  13. अच्छी-तथ्यपरख जानकारी । बधाई ।

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  14. Such a Just and Intelligent speech by Thakur RamKrishna Singh MLA.

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  15. (इ-मेल से प्राप्‍त डॉ. अखिलेश त्रिपाठी जी की टिप्‍पणी)
    bahut bahut badhaai hai rahul babu.pail ke padho,khubes ke likho......

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  16. Aadarniiy Rahul Singh jii

    Hameshaa kii tarah shodhaatmak post. Badhaaii.
    Deepaawalii kii anant shubhkaamnaayein.

    Harihar Vaishnav
    Mo: 93-004-29264

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  17. ऐतेहासिक दस्तावेज़ सामने लाकर उल्लेखनीय कार्य किया है आपने । अंग्रेज़ कितने ही बुरे थे लेकिन उनके प्रशासनिक कौशल की बराबरी आज भी हमारे लोग नहीं कर पाये , राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्निर्माण एक बड़ी भूल रही है ।

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  18. महत्वपूर्ण तथ्य और सत्य पर आधारित प्रस्तुति के लिए आभार . राज्य स्थापना की दसवीं साल-गिरह और दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .

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  19. अचंभित कर देनेवाली जानकारी बाबूजी की पुस्तक गोंड एवं गोडवाना को पढने का सौभाग्य मिला है ऐसी कृतियाँ वास्तव में कालजयी हैं जिनका पठान पाठन अधिक से अदिहिक होना चाहिए आपके अद्भुत पोस्ट के लिए बधाई

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  20. मोला इ पोस्ट सुघर लगिसे . धन्यवाद .बहोत जानकारी मिलीसे .

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