Monday, February 26, 2024

पीएससी - दावे, आपत्तियां और निराकरण

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा वर्ष 2023, पिछले 11 फरवरी को आयोजित हुई थी, 16 फरवरी को मॉडल आंसर जारी हुए और 27 फरवरी तक दावा-आपत्तियां मंगाई गई हैं। और अब खबर आई है कि आयोग मार्च के प्रथम सप्ताह में संशोधित मॉडल आंसर जारी करेगा, जिसके आधार पर परिणाम घोषित किए जाएंगे।

भ्रष्टाचार के आरोपों और जांच से जूझ रहे छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की इस परीक्षा पर खबरें आईं, उनमें उल्लेखनीय कि ‘पहली आपत्ति (सत्तारूढ़) भाजपा नेताओं की तरफ से आई और खबरों के अनुसार इसके बाद मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी मुखर हो गई है। अभ्यर्थी और कोचिंग संस्थान, जो सीधे प्रभावित होने वाले पक्ष हैं, भी खोज-बीन में जुटे होंगे। लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अनियमितता, पक्षपात, भूल-गलती, विलंब, अदालती और जांच की कार्यवाही जैसी की खबरें लगातार आती रहती हैं। छत्तीसगढ़ के साथ अन्य राज्यों की स्थिति भी कमोबेश एक जैसी है। 

फिलहाल जांच वाले विषय को छोड़ कर परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों, मॉडल आंसर और उन पर दावा-आपत्ति की समस्या को समझने का प्रयास करें। यह स्थिति अधिकतर प्रारंभिक परीक्षा, जिसमें बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं, के साथ होती है। इसमें मानवीय कारकों के चलते होने वाली त्रुटि दूर करने के लिए उत्तर पुस्तिकाएं ओएमआर शीट के रूप कर दी गईं। एक समस्या ऐच्छिक विषय और स्केलिंग को ले कर भी होती थी, जिसके कारण अब ऐच्छिक के बजाय, सभी अभ्यर्थियों के लिए एक जैसा प्रश्नपत्र होने लगा है। यह माना जा रहा है कि इससे विज्ञान, अभियांत्रिकी और तकनीकी विषय के अभ्यर्थियों को लाभ मिलता है, कला-मानविकी के अभ्यर्थी पिछड़ जाते हैं। अंतिम चयन के आंकड़े देखने पर स्थिति कुछ ऐसी ही दिखाई पड़ती है। 

इस परीक्षा के कुछ सवाल, जिन पर आपत्तियों की चर्चा है, क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा जिला, जिले में लिंगानुपात, बस्तर की लोक संस्कृति में विवाह मंडप में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी, छत्तीसगढ़ राज्य कितने राज्यों की सीमा को छूता है? इन प्रश्नों पर ध्यान दें तो स्पष्ट होता है कि आपत्तियों का मुख्य कारण काल-सन का उल्लेख न होना है, अर्थात छत्तीसगढ़ में पिछले वर्षों में नये जिले बने हैं, इसके बाद आंकड़ों का बदल जाना स्वाभाविक है, इसी तरह राज्यों की सीमा में बिहार-झारखंड या आंध्र से तेलंगाना भाग का राज्य बनना, उत्तर में मतभेद का कारण बनेगा। बस्तर के प्रश्न में लोक-संस्कृति बनाम जनजातीय संस्कृति के अलावा, विभिन्न जनजातियों की भिन्न परंपराएं, भौगोलिक क्षेत्र (बस्तर का विस्तृत क्षेत्र, जो अब सात जिलों में से एक है।) उत्तर में मतभेद की स्थिति का कारण बनता है। हिंदी और अंग्रेजी के प्रश्नों में अंतर, भाषाई भूल के अलावा प्रकाशित, सार्वजनिक उपलब्ध स्रोत अथवा प्रश्नपत्र में छपाई की भूल, प्रूफ केी गलतियां भी समस्या का कारण बनती है। 

ऐसे प्रश्न, जिनके मॉडल आंसर पर आपत्तियां होती हैं, सामान्यतः सामाजिक विज्ञान-मानविकी के होते हैं, परंपरा-मान्यता से संबंधित होते हैं। ऐसा इसलिए कि प्राकृतिक विज्ञान के प्रश्नों जैसी वस्तुनिष्ठता सामाजिक विज्ञान के प्रश्नों में संभव नहीं होती। विज्ञान में कारण होते हैं तो कला में कारक। और विज्ञान में भी आवश्यक होने पर नियत मान के साथ एनटीपी जोड़ा जाता है, यानि वह मान सामान्य ताप-दाब पर होगा, अन्यथा बदल जाएगा। कालगत आंकड़ों में जनगणना दशक, योजनाएं पंचवर्षीय और अनेक सर्वेक्षण-प्रतिवेदन वार्षिक होते हैं। इस मसले के कुछ अन्य पक्षों को सीधे उदाहरणों में देख कर समझने का प्रयास करें। छत्तीसगढ़ की काशी, कई स्थानों को कहा जाता है। मूरतध्वज की नगरी आरंग भी है, खरौद भी। खरौद, खरदूषण की नगरी है तो बड़े डोंगर में भी खरदूषण की जनश्रुति है। सोरर की बहादुर कलारिन, लोक विश्वास में बड़े डोंगर में भी है। ऐसी स्थिति में ‘कहा जाता है, माना जाता है ...‘ वाले प्रश्न वस्तुनिष्ठ कैसे होंगे! 

प्रश्नपत्र तैयार करने वालों, माडरेटर्स और अभ्यर्थी, इन सभी की समस्या जो अंततः आयोग की समस्या बन जाती है, यह कि किन स्रोतों को प्रामाणिक आधार माना जाए। शासन की वेबसाइट अपडेट नहीं होती, दो शासन की ही दो भिन्न साइट पर तथ्य और आंकड़े भिन्न होते हैं (पूर्व में वन विभाग से संबंधित एक प्रश्न में ऐसी स्थिति बनी थी।) इसके साथ पुनः उदाहरणों सहित बात करें तो 1920 में गांधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर है, मगर तिथियां अलग-अलग मिलती हैं, और खास बात यह कि किसी प्राथमिक-प्रामाणिक स्रोत से पुष्टि नहीं हो पाती कि गांधी 1920 में छत्तीसगढ़ आए थे। इसी तरह वीर नारायण सिंह की फांसी के स्थान में मतभेद है और डाक तार विभाग द्वारा जारी डाक टिकट में उन्हें तोप के सामने बांधा दिखाया गया है साथ ही उनके एक वंशज ने कुछ और ही कहानी दर्ज कराई है। पहली छत्तीसगढ़ी प्रकाशित रचना ‘छत्तीसगढ़ी दानलीला‘ के प्रकाशन की तिथि विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्य-इतिहासकारों ने अलग-अलग बताई है। ऐसे ढेरों उदाहरण और भी हैं। 

सामान्य अध्ययन और सामान्य ज्ञान के फर्क का ध्यान भी आवश्यक होता है। सामान्य अध्ययन, ऐसी आधारभूत जानकारियां हैं, जो सामान्यतः अध्ययन से, पुस्तक आदि माध्यम से पढ़ाई प्राप्त होती हैं और जिन जानकारियों की अपेक्षा किसी सामान्य जागरूक नागरिक से की जाती है, जबकि सामान्य ज्ञान आवश्यक नहीं कि पुस्तकों में आया हो, जहां समझ-बूझ की अपेक्षा होती है, और यह संस्कृति-परंपरा की दृष्टि से कई बार वैविध्यपूर्ण छत्तीसगढ़ में मतभेद का कारण बनती है, एक उदाहरण हरियाली अमावस्या का है, जो मैदानी छत्तीसगढ़ में हरेली, सरगुजा में हरियरी और बस्तर में अमुस तिहार नाम से प्रचलित है। कुरुद- धमतरी क्षेत्र के पंडकी नृत्य से अन्य छत्तीसगढ़ लगभग अनजान है, वह सुआ नृत्य-गीत को जरूर जानता है। बस्तर का दशहरा, दंतेश्वरी देवी का पर्व है, रायपुर के आसपास रावण की विशाल स्थायी मूर्तियां हैं, जिनकी पूजा भी होती है, सरगुजा में गंगा दशहरा का प्रचलन है तो सारंगढ़ के आसपास दशहरा के आयोजन का प्रमुख हिस्सा मिट्टी की मीनारनुमा स्तंभ पर चढ़कर गढ़ जीतना होता है। राम-रावण और रावण-वध वाला दशहरा तो है ही। इसी तरह भाषाई फर्क में शिवनाथ के उत्तर और दक्षिण यानि मोटे तौर पर बिलासपुर और रायपुर, दोनों की छत्तीसगढ़ी का फर्क क्रमशः- अमरूद जाम-बिही है, मेढ़क बेंगचा-मेचका है, तालाब तलाव-तरिया है और कुछु काहीं हो जाता है।

इस समस्या का सीधा और आसान हल दिखाई नहीं देता, मगर कुछ हद तक इसे कम किया जा सकता है, जैसे- मानविकी के प्रश्नों में एकमात्र सही विकल्प के बजाय निकटतम विकल्प को सही माना जाए। मान्यता है, कहा जाता है आदि जैसे प्रश्न न पूछे जाएं। आंकड़ों वाले प्रश्नों के कारण यह स्पष्ट हो कि सही उत्तरों के लिए निर्धारित तिथि क्या होगी। दावा-आपत्ति में गाइड बुक की जानकारियों के बजाय पाठ्य-पुस्तकों और अधिक प्रामाणिक ग्रंथों में आई जानकारी को सही माना जाए, मगर प्रश्न अनावश्यक चुनौतीपूर्ण न हों, क्योंकि अभ्यर्थी, विद्यार्थी होता है, शोधार्थी नहीं, और परीक्षा सामान्य ज्ञान की ली जानी है। एक ही प्रामाणिकता के दो स्रोतों में जानकारी में अंतर हो तो, परीक्षा के लिए निर्धारित माह-वर्ष के ठीक पहले अर्थात अंत में आई, अद्यतन जानकारी को प्रामाणिक माना जाए। यानि ऐसे आंकड़े या जानकारियां, जब तक विशिष्ट महत्व के न हों, करेंट अफेयर की तरह, अद्यतन स्थिति के ही प्रश्न होने चाहिए। इस तरह अन्य बिंदु निर्धारित कर वह परीक्षा की अधिसूचना के साथ प्रश्न-पत्र पर भी स्पष्ट अंकित हो।


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