पचासेक साल पहले हम किशोर वय साथियों के लिए फिल्मी परदे के नायकों से कहीं बड़ी छवि मंच के, रामचन्द्र देशमुख, लक्ष्मण मस्तुरिया, केदार यादव, भैयाराम हेड़उ जैसे नामों की थी और चंदैनी गोंदा हमारे लिए एक पवित्र नाम रहा। इस सूची में एक अलग नाम खुमान साव का भी था, क्योंकि हम सिर्फ इस नाम से परिचित थे, न चेहरा पहचानते न ही उनके कद को जानते थे। यह नाम मेरी स्मृति में उतनी ही गहराई से दर्ज रहा और इस नाम का आकर्षण भी शायद अधिक ही रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात् राजिम मेला के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन था, जिसमें चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति को लेकर संवादहीनता की स्थिति बनी और खुमान साव जी से आमने-सामने पहली मुलाकात हुई। वे आम गंभीर से अधिक खिंचे हुए थे। मैं दुविधा में रहा, अपने विभागीय दायित्वों की सीमा और प्रशंसक होने के बीच तालमेल बिठाना था। वे तमतमाए रहे, लेकिन कार्यक्रम की प्रस्तुति शानदार रही। तब से बाद तक उनसे नरम-गरम, तीखी-मीठी होती रही।
वे लगभग हर महीने रायपुर आते और मुझसे मुलाकात होती, मेरे कक्ष में पहुंचते ही उनके बिना बोले चाय का ध्यान करना होता। इसके बाद धूम्रपान के लिए कमरे से बाहर निकल जाते। तबियत ठीक न होने पर अपनी गाड़ी में ही बैठे रहते, वहीं चाय पीते और हम सबसे मिल कर वापस लौटते।
छत्तीसगढ़ के लोक संगीत के लिए उनका एक प्रसंग मेरे लिए अविस्मरणीय है। मैंने किसी लोक कलाकार के धुन की आलोचना की, कि वह फिल्मी धुन की नकल है। इस पर उन्होंने डांटते हुए कहा- ए हमर पारंपरिक धुन आय, तैं का जानबे, फिलम वाला मन नकल करे हें, हमर धुन के। उनके पास पुराने समय में राजनांदगांव में आने वाले बंबइया कलाकारों के भी संस्मरणों का खजाना था।
सन 2005 में किन्हीं कारणों से मुझसे खफा हुए थे। मेरी तबियत खराब हुई और मैं लंबी छुट्टी पर रहा। वापस काम पर लौटा, मुझे पता नहीं था कि वे इस बीच मेरे स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहे थे। पूछा- कहां गए रहे अतेक दिन ले, उनकी गंभीरता और उपरी सख्ती के बावजूद मैं उनसे ठिठोली की छूट ले लेता था। मैंने मजाकिया जवाब दिया- घूमे गए रहें। इस पर भावुक हो गए और नारियल का टुकड़ा दे कर बोले, परसाद झोंक, तोर बर नरियर बदे रहें। उनकी अस्वस्थता का समाचार पाकर उनके स्वास्थ्य की कामना मैंने भी की, लेकिन उन्हें वापस स्वस्थ पा कर प्रसाद नहीं खिला सका। उनकी इन स्मृतियों के साथ मेरे भाव वे महसूस कर पाए होंगे, मेरा अटल विश्वास है।
छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के पुरोधा खुमान साव का जन्म 5 सितंबर 1929 को हुआ। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकधुनों को उन्होंने परिमार्जित किया साथ ही समकालीन छत्तीसगढ़ी काव्य को लोकधुनों में बांधा। छत्तीसगढ़ की सबसे प्रतिष्ठित लोकमंच संस्था ‘चंदैनी गोंदा‘ के वे एक आधार स्तंभ थे। सन 2016 में संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। 9 जून 2019 को उनके निधन के पश्चात् संस्कृति विभाग के सहयोग से स्मारिका ‘श्रद्धांजलि खुमान साव‘ 18 जून को प्रकाशित की गई, जिसमें मेरा यह संस्मरण भी शामिल है।
छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के पुरोधा खुमान साव का जन्म 5 सितंबर 1929 को हुआ। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकधुनों को उन्होंने परिमार्जित किया साथ ही समकालीन छत्तीसगढ़ी काव्य को लोकधुनों में बांधा। छत्तीसगढ़ की सबसे प्रतिष्ठित लोकमंच संस्था ‘चंदैनी गोंदा‘ के वे एक आधार स्तंभ थे। सन 2016 में संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। 9 जून 2019 को उनके निधन के पश्चात् संस्कृति विभाग के सहयोग से स्मारिका ‘श्रद्धांजलि खुमान साव‘ 18 जून को प्रकाशित की गई, जिसमें मेरा यह संस्मरण भी शामिल है।
बड़े दिन बाद आपके ब्लॉग में आया। पढ़ कर खुशी हुई। आभार
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