इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी के रचना उत्सव एवं सम्मान समारोह के इस आयोजन में आज प्रस्तुति देने वाले कलाकारों, सभा में पधारे गुणीजन और इंडिया टुडे परिवार के सदस्य, यों मेजबान लेकिन हमारे मेहमान, आप सभी का सादर अभिवादन।
हिंदी साहित्य और उसके प्रतिनिधि लेखकों को मुख्य धारा के पाठकों तक पहुंचाने में साहित्य वार्षिकी ने अहम् भूमिका निभाई है साथ ही हिंदी की अपनी जमीन के अलावा दूसरी भाषाओँ के प्रतिनिधि लेखकों तक भी पहुंच बनाई है। साहित्य वार्षिकी में रचनाओं की गुणवत्ता के साथ देश के प्रमुख चित्रकारों की भागीदारी, इसका उल्लेखनीय पक्ष है। 2002 में वार्षिकी का सिलसिला रुक जाने के बाद 2017 में यह फिर से शुरू हुआ। इस दौर में नई टेक्नोलॉजी के साथ पाठकों की रुचियां बदलीं, पर डेढ़ दशक के बाद प्रकाशित साहित्य वार्षिकी के अंक को दोबारा छापने की जरूरत हुई। वार्षिकी की यह सफलता, स्वयं अपना प्रतिमान है और आश्वस्त करती है कि साहित्य के पाठक उसी अनुपात में आज भी हैं।
इंडिया टुडे ने यहां आठ सौ बरस निर्विघ्न राज्य करने वाले कलचुरियों के वंशजों की खोज-खबर ली थी। संगीत-तीर्थ रायगढ़ की परंपरा और राज परिवार के हालात को टटोला। विश्वदाय स्मारक सूची की तैयारी वाले प्राचीन राजधानी-नगर सिरपुर की कहानी कही। मिसाल-बेमिसाल में छत्तीसगढ़ के अनूठे और अल्पज्ञात तथ्यों, चरित्रों को रेखांकित किया और कला-साहित्य की हलचल से हमेशा बाखबर रखा है। इस पत्रिका ने समाचार के दायरे को राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार, दुर्घटना से आगे विस्तृत कर सामाजार्थिक सरोकार को भी जोड़ा। स्वास्थ्य, शिक्षा, नवाचार और उद्यम की रोचक-प्रेरक कहानियों के साथ सोच-समझ को साफ और विकसित करने का मसौदा उपलब्ध कराया। पिछले साल यहां इंडिया टुडे का ‘कान्क्लेव छत्तीसगढ़‘ हुआ था और अब यह रचना उत्सव, इसकी कड़ियां हैं।
छत्तीसगढ़ के इतिहास में रचना का सतत उत्सव घटित होता रहा है। कालिदास के मेघदूत की रचना स्थली और प्राचीनतम नाट्यशाला की मान्यता वाले रामगढ़ में अजंता और बाघ से भी पुराने चित्र हैं, बाइस सौ साल पहले सुतनुका-देवदीन की प्रेम-अभिव्यक्ति गुफा की दीवार पर उत्कीर्ण है तो दूसरी तरफ हजारों साल से चली आ रही वाचिक परंपरा के मौखिक साहित्य का विपुल भंडार भी छत्तीसगढ़ में है। भरथरी और पंडवानी गायन में महिलाएं आगे हैं तो धनकुल जगार गाथा गायन पर ‘गुरुमाएं‘ महिलाओं का एकाधिकार है। गौर सींग, करमा, ददरिया, पंथी, सुआ, राउत, सैला महज नृत्य-गीत शैली और मंचीय प्रस्तुति तक सीमित नहीं, लोक जीवन का समवाय हैं। राजनांदगांव की सौगात, कोई डेढ़ सौ साल पहले, निजी पहल से देश का पहला संग्रहालय आरंभ हुआ तो सन 1956 में खैरागढ़ में एशिया का पहला संगीत विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। रायगढ़ की सांगीतिक परंपरा ने कत्थक को विशिष्ट आयाम दिया। नाचा-गम्मत का लोक ‘नया थियेटर‘ के माध्यम से विश्व मंच पर थिरकता रहा।
सत्रहवीं सदी इस्वी में गोपाल मिश्र के ‘खूब तमाशा‘ से आरंभ परंपरा में यहां ठाकुर जगमोहन सिंह की फैंटेसी ‘श्यामा स्वप्न‘ उपन्यास में साकार हुई। जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु‘ ने हिन्दी साहित्यशास्त्र की बुनियाद रखी। माधवराव सप्रे ने ‘छत्तीसगढ़ मित्र‘ पत्रिका और ‘एक टोकरी भर मिट्टी‘ कहानी से इतिहास गढ़ा। सरस्वती संपादन की परंपरा संवाहक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने ‘क्या लिखूं‘, 'क्यों लिखूं' और 'मैं क्या पढ़ूं' जैसे शीर्षक निबंधों के साथ, क्या लिखें-पढ़ें का दस्तावेज रचा। मुकुटधर पांडेय के छायावादी मन ने प्रवासी कुररी की व्यथा सुनी और मेघदूत को छत्तीसगढ़ी में आत्मसात-अभिव्यक्त किया। मुक्तिबोध का यहां कभी ‘अंधेरे में‘ होना, अब भी प्रकाश-स्तंभ है।
हम धान का कटोरा, सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि यहां धान अधिक उपजता है, इसलिए भी नहीं कि यहां का मुख्य भोजन चावल है, बल्कि इसलिए भी कि हमने साढ़े तेइस हजार धान-प्रकारों को इकट्ठा करने का जतन किया है, बचाया है और सिर्फ बचा कर नहीं रखा, उनके गुण-धर्म पर शोधपूर्ण जानकारी जुटाई है। इनके राम-लक्ष्मण जैसे स्थानीय नाम को भी सहेजा है।
हम 44 प्रतिशत वन आच्छादित प्रदेश हैं, यह महज आंकड़ा नहीं, इसके पीछे वन संरक्षण और प्रबंधन की परंपरा, पवित्र वन खंड ‘सरना‘ हैं, प्रकृति और पर्यावरण के सम्मान के ‘पंडुम‘ हैं, वनों के व्यावसायिक दोहन के सामने आरे के निषेध को मोरध्वज की पौराणिक कथा से जोड़ कर अपनाया है, अपनी परंपरा का अंग बनाया है। बस्तर दशहरा का रथ आज भी बिना आरा के बनता है।
बस्तर का दशहरा पचहत्तर दिन का देवी का अनुष्ठान है न कि राम-रावण का उत्सव। उत्तर-पूर्वी छत्तीसगढ़ में गंगा दशहरा महत्वपूर्ण है। यह विजयादशमी तो है ही, कुछ इलाकों में गढ़ जीतने की परंपरा का त्यौहार है। यहां रावण भांठा और रावण की मूर्तियां हैं और अन्य ग्राम देवताओं के साथ रावण को समभाव से पूजा दी जाती है। जाति-जनजाति, धर्म-संप्रदाय पर प्रभावी सौहार्द की ऐसी समावेशी सतरंगी संस्कृति की भावभूमि है यह प्रदेश।
यहां ‘अरपा पैरी के धार...‘ है, महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, रेणु, मांद का प्रवाह है, तो जोड़ा तालाबों की संख्या भी कम नहीं। फिर ऐसे भी गांव हैं जहां सात आगर सात कोरी यानि 147 तालाब हैं, जल प्रबंधन की समझ, हमारी समष्टि चेतना में दर्ज है।
वन और धान की हरियाली हमारी समृद्धि है तो सोनाखान के स्वर्ण भंडार और उत्तरी छत्तीसगढ़ का काला कोयला, मध्य का सफेद चूना और दक्षिण का लाल लोहा इस राज्य की सुनहरी तकदीर रचते हैं, जिसके साथ टिन की चमक है और अलेक्जेंड्राइट के नगीने भी जड़े हैं।
संस्कृति-समृद्ध छत्तीसगढ़ में इंडिया टुडे समूह के इस रचना उत्सव में कला-संस्कृति के विविध पक्षों को संयोजित किया गया है, मानों मार्कंडेय-वज्र के उस प्रसिद्ध पौराणिक संवाद को मूर्त किया जा रहा हो, जिसमें मूर्तिशिल्प-चित्रकला के साथ नृत्य, वाद्य, साहित्य और गीत को जरूरी बताते, कला की समग्रता प्रतिपादित है।
इस आयोजन के उद्घाटन में आप सबके समक्ष अपनी माटी का गुणगान करते हुए बांटनवारे के रंग में रंगा हूं। पुनः अभिवादन और सादर आभार।
22 जून 2019 को रायपुर में इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी का आयोजन हुआ। इसमें उद्घाटन वक्तव्य का जिम्मा मेरा था, वह प्रस्तुत आलेख के आधार पर था।
इसी कार्यक्रम में तीजनबाई, विनोद कुमार शुक्ल (चित्र में चि. शाश्वत), अरुण कुमार शर्मा, मिर्जा मसूद जैसे संतों के साथ संस्कृति सम्मान के लिए पांचवां नाम मेरा था।
Thanks for sharing this article
ReplyDeleteDirect Admission in MS Ramaiah Institute of Technology
Hindi humlog ki rastta bhasa hai ,Maine bhi ek blog banaya hu www.itechpoints.net .
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