कटहल और आम, पलाश और सेमल, कोयल की कूक के साथ महुए की गंध का मधु-माधव मास। चैती-वैशाखी का महीना, धर्म-अर्थ और काम से गदराया हुआ। खरीफ जमा है और रबी की आवक हो रही है। मेलों में मनोरंजन, खरीद-फरोख्त हुई। मेल-जोल में बात ठहरी, वह अब रामनवमी और अक्ती-अक्षय तृतीया की मांगलिक तिथियों पर वैवाहिक संबंधों के साथ रिश्तों तक आ गई, नई गृहस्थी जमने लगी है। खेती-बाड़ी का भी नया कैलेंडर शुरू हो रहा है।
रायपुर से उत्तर में 25 किलोमीटर दूर मोहदी के 1 मई, मजदूर दिवस का रंग लाल नहीं, बल्कि हरित होता है। 15 अप्रैल से 15 दिन की छुट्टी के बाद 'सौंजिया' फिर सालाना काम पर लगेंगे। कोई 15 साल पहले वैशाख अधिक मास होने से समस्या आई कि बढ़े महीने का हिसाब कैसे हो, तब आपसी मशविरे से यह काम-काज अंगरेजी तारीख से चलने लगा। सौंजिया, किसानी की अलिखित संहिता का पारिभाषिक शब्द है, जिसकी व्याख्या में कृषक जीवन के विभिन्न पक्ष उजागर हो सकते है। सामुदायिक जीवन की कल्पना सी लगने वाली हकीकत गांवों में सहज रची-बसी है, जिसकी शब्द-रचना भी मुझ जैसे के लिए कठिन है, लेकिन तोतली भाषा में स्तुति करते हुए संक्षेप में सौंजिया (सउंझिया- साझीदार/साझा) यानि खेती में श्रम भागीदारी से उपज के एक चौथाई का अधिकारी। बाकायदा सौंजिया संगठन है यहां, जो इसी दौरान अपनी कमाई के दम पर सांस्कृतिक आयोजन करता है।
लगभग 4000 आबादी वाला छोटा सा गांव, मोहदी। अब एटीएम, मोबाइल, मोटर साइकिल, भट्ठी, सरपंची, गरीबी रेखा, नरेगा के चटख रंग ही दिखाई पड़ते हैं, पड़ोसी लोहा कारखाने का भी असर हुआ है, फिर भी गांव की संरचना के ताने-बाने को कसावट देने वाले कई समूह-वर्ग ओझल-से लेकिन सक्रिय हैं। पारा-मुहल्ला, टेन (गो-धन स्वामी आधारित वर्ग), पार (जाति आधारित वर्ग), दुर्गा मंदिर समिति और सबसे खास ग्रामसभा, गांव के पंच-सरपंच और प्रमुख नागरिकों की 25 सदस्यीय समिति, जो रामकोठी का संचालन करती है।
पुरानी बात, गांव में दशहरे का उत्साह है। भजन, माता सेवा, रामायण तो चलता ही रहता है, लेकिन अब की झांकी और लीला की खास तैयारी है। धूमधाम से त्यौहार मना। रामलीला की चढ़ोतरी में इकट्ठा हुआ धान इस बार किसी गांवजल्ला काम में खर्च नहीं किया जा रहा है, उसे जमा कर दिया गया है। अब मोहदी में भी रामकोठी है। 85 बरस पहले और आज भी। 'कोठी' यानि कोष्ठ या भण्डार और 'राम' विशेषण-उपसर्ग का यहां आशय होगा- शुभ, वृहत् और निर्वैयक्तिक। पुरानी रामकोठी छोटी पड़ने लगी तो बड़ा भवन बन गया।
छत्तीसगढ़ में देशज ग्रामीण बैंक जैसी संस्था रामकोठी कांकेर, धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा और रायपुर जिले में अधिक प्रचलित है। दुर्ग जिले के तेलीगुंडरा की रामकोठी प्रसिद्ध है। आसपास के गांवों गोढ़ी, नगरगांव में भी रामकोठी है, लेकिन मोहदी की बात कुछ और है। यहां आज भी लगभग डेढ़-दो सौ क्विंटल धान क्षमता यानि कम-से-कम दो लाख रूपए मूल्य की जमा-पूंजी है। सवाया बाढ़ी (ब्याज) पर दिये जाने वाले कर्ज की दर अब 15 प्रतिशत सालाना कर दी गई है। त्रुटि और समस्या रहित ग्रामीण प्रबंधन। गांव में रामलीला मंडप भी बन गया। गांव के लोग मिलकर ही रामलीला करते थे, लेकिन चटख रंगों का असर हुआ और पिछले दशहरा में एक सप्ताह के लिए लीला पार्टी पड़ोसी गांव कचना से आई।
रामलीला मंडप पर नाम लिखा है- श्री मुकुंदराव। इस मंच के सामने बछरू (बछड़ा) बंधा दिखा। मेरा देहाती मन भटक जाता है। भंइसा, बइला-बछरू, किसान की ताकत। बछड़े के गले में लदका है, गर्दन पर हल का जुआ रखने का अभ्यास कराया जा रहा है। नाक नाथने का काम किसान कर लेता है, लेकिन सबसे जरूरी बधिया, अब गांव में कोई नहीं कर पाता, पास के पशु औषधालय में जाना पड़ता है। लदका, नथना और बधिया, किसान के जवान होते, मचलते पुत्र के साथ जुड़ रहा है, चाहें तो आप अपनी तरह से सोच कर देखें।
वापस, मुकुंद नाम पर। इसका खास महत्व है, रायपुर और छत्तीसगढ़ के लिए। वैसा ही जो 'शिकागो' नाम का है, दिल्ली और देश के लिए। यानि वह नाम, जो महान व्यक्तियों, नेताओं-अभिनेताओं की आवाज दूर-दूर पहुंचाने का साधन रहा है।
मोहदी में रामकोठी की तलाश करते हुए जो सूत्र मिला, उससे रास्ता तय हुआ मुकुंद रेडियो तक का। यह इतिहास की रामकोठी, खजाने जैसा ही है, जहां रायपुर और छत्तीसगढ़ पधारी हस्तियों की सचित्र स्मृति जतन कर रखी है।
रामकोठी की इस रामकहानी में एक रावण भी है, लेकिन यह रावण खलनायक नहीं, बल्कि सहनायक जैसा है और ग्राम देवताओं की तरह सम्मान पाता है।
82 वर्षीय इस रावण प्रतिमा की प्रतिदिन पूजा होती है, मनौती मानी जाती है, नारियल भी रोज ही चढ़ता है। इस क्षेत्र के अन्य ग्रामों की तरह पड़ोसी गांव बरबन्दा में भी रावण प्रतिमा है। गांववासियों से पूछता हूं- 'कस जी, तू मन रावन के पूजा करथव ग।' मेरे सवाल में जिज्ञासा के साथ चुभने वाली फांस भी है, लेकिन जवाब सपाट है- 'हौ, वहू तो देंवता आए एक नमूना के बपुरा (बेचारा) ह।' सटपटा कर, सभी ग्राम देवताओं सहित रावण को हमारी राम-राम।
हड़प्पायुगीन विशाल अन्नागारों को सामुदायिक प्रयोजन का माना गया है। नियमित लेखन के सबसे पुराने, चौबीस सौ साल पहले के दोनों नमूने इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। महास्थान (बांग्लादेश) के मागधी प्रभावित प्राकृत लेख में धान्य और कोठागल (कोष्ठागार) शब्द मौर्यकालीन ब्राह्मी में उत्कीर्ण है, जिसमें कर्ज लेन-देन का भी उल्लेख है। इसी तरह सोहगौरा, उत्तरप्रदेश वाले ताम्रपत्रलेख में भी ‘दुवे कोट्ठागालानि‘ (दो कोष्ठागार) अंकित है। छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के मदकू घाट (मदकू दीप) से मिले अट्ठारह सौ साल पुराने शिलालेख में अक्षयनिधि का उल्लेख भी इसी परंपरा का आरंभिक प्रमाण माना जा सकता है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी सिरपुर की खुदाई से हाल ही में बारह सौ साल पुराने अन्नागार प्रकाश में आए हैं।
अक्षय तृतीया पर परिशिष्टः
1 मई, श्रम दिवस है। 2 मई, सत्यजित राय की जन्मतिथि और इस वर्ष आज 6 मई को अक्षय तृतीया, इन तीन तिथियों का संयोग, छत्तीसगढ़ और रावण के साथ जुड़ कर पंचमेल बन रहा है, यह भी देखते चलें।
कहानी की पृष्ठभूमि इस उद्धरण से स्पष्ट है- ''दुखी ने सिर झुकाकर कहा- बिटिया की सगाई कर रहा हूं महाराज। कुछ साइत-सगुन विचारना है। कब मर्जी होगीॽ'' लेकिन छत्तीसगढ़ में रामनवमी और अक्ती (अक्षय तृतीया), ऐसा साइत-सगुन है, जिस पर कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में जाति-सौहार्द की परम्परा और तथ्यों के ढेर उदाहरण हैं (रावण भी देव-तुल्य है), लेकिन सद्गति में अनुसूचित जाति के लिए प्रयुक्त शब्द अब न सिर्फ निषिद्ध है वरन विस्फोटक हो सकता है। इन सब बातों का सार यह कि प्रेमचन्द और सत्यजित राय जैसे पंडितों के सामने हमारी स्थिति कहानी के 'दुखी' की नहीं तो चिखुरी गोंड़ से अधिक भी नहीं और इस दृष्टि से कहानी और फिल्म 'सद्गति' की देश-काल प्रासंगिकता प्रश्नातीत नहीं।
प्रेमचंद पर टिप्पणी करते हुए बख्शी जी के निबंध 'छत्तीसगढ़ की आत्मा' का उद्धरण तलाश रखा है- ''जो सामाजिक समस्या प्रेमचन्द जी की ग्राम्य-कहानियों में विद्यमान है, उनके लिए यहां स्थान नहीं है।''
अलसुबह गांव और रामकोठी की अच्छी और जीवंत यात्रा के लिये शुक्रिया.
ReplyDeleteसिरजी बहोत दिन से कुछ काम की बज्य्से आप की पोस्ट पढ़ नही पाया था.पर अभी थोडासा टाइम मिला था तो सोचा की कुछ नया ज्ञान प्राप्त करे.तो जब आपकी ब्लॉग खोला तो और एक उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट मिलगया.बहोत अच्छा पोस्ट. अन्नागार का परंपरा अद्य इतिहास काल से चल आरहा हे.और सर जी सिरपुर के अन्नागार के बारे में थोडासा उल्लेख का जरुरत था. बहोत बहोत धन्यवाद्.
ReplyDeleteआपकी यात्रा आची लगी ...एक नया सफर हो गया
ReplyDeleteगाँव खेत खलियान पर इतनी रोचक पोस्ट पढ़ कर आनंद आ गया...
ReplyDeleteनीरज
नवीन जानकारी, आभार।
ReplyDeleteरामकोठी का शानदार यात्रावृतांत !!
ReplyDeleteराम की कोठी में ही बड्ड्पन के भाव, बेचारे रावण को भी सम्मान!!
कोठी, कोष्ठागार ही है अपभ्रंश होकर कोठार और कोठी हुआ। कोठारी पद राज-कोष्ठागार की सार सम्भाल लेने वालो को दिया जाता था, आप कोठारी एक उपनाम है।
सुधार
ReplyDeleteआज कोठारी एक उपनाम है।
रोचक पोस्ट...
ReplyDeleteअच्छी और जीवंत यात्रा के लिये शुक्रिया
ReplyDeleteप्रिय राहुल जी,
ReplyDeleteइस गाँव से मेरा बड़ा गहरा नाता रहा है. मुकुंद राव मोह्दिवाले के एक भाई श्री श्रीधर राव मोह्दिवाले थे, उनके ज्येष्ठ चिरंजीव, मनोज राव मोह्दिवाले, काफी लम्बे समय तक, तकरीबन १५ साल तक हमारे रायपुर स्थित घर पर किरायेदार रहे. उस परिवार से हमारा प्रगाढ़ सम्बन्ध बन गया है. मैं कई बार मोहदी जा चुका हूँ. आपको एक खास बात बताऊँ. गोढ़ी में एक ठाकुर परिवार भी रहता था. अगर मैं गलत नहीं हूँ तो उस परिवार में एक गौकरण ठाकुर भी हुआ करते थे. उस परिवार में एक वयोवृद्ध व्यक्ति थे जो कि ज्योतिष विद्या में प्रवीण थे.
आज जब मैं आपका ब्लॉग पढ़ा तो मोहदी में बीता एक-एक पल फिर से जीवंत हो आया. आपका आभार कि आपने अपने लेखन के माध्यम से मुझे मेरे अतीत से परिचय कराया.
सादर,
जी. मंजूसाईनाथ
बेंगलूरू
I even remember to have attended Ram Leela in this village twice. I had for the first time saw Ram Leela in that village. I make a candid statement that it was not so impressive show but yet, what fascinated me was that the advent of television as an impact of 'Ramayan', could not kill Mohdi's Ram Leela. Hope the show still goes on.
ReplyDeleteReg.
G Manjusainath
Bangalore
राम कोठी के बारे में पढना रुचिकर लगा . आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...अनूठे विषय के साथ साथ आपकी सरलता हर बार मन को भाती है ! सादर शुभकामनायें !!
ReplyDeleteशब्दों की तरलता बनी रही रामकोठी के विवरण में .
ReplyDeleteआपका लेखन ऐसा है कि लेख खत्म होने पर अफ़सोस होता है ।
ReplyDeleteशहरीकरण गांवों की संस्कृति को लील रहा है, ऐसे में रामकोठी और उससे जुड़ी परम्पराओं को जीवित रखने का उद्यम प्रशंसनीय है।
ReplyDeleteशहरों में पले बढे लोगों के लिये ये रामकोठी वृतांत एक ताजा अनुभव है । रावण की पूजा वाह भई एकदम नई बात भारत में । पढ कर मजा आया .
ReplyDeleteमुझे अभी भी बहुत अच्छा लगता है गांव को अपनी स्मृतियों में पाकर.. पहले अभाव था, लेकिन आनन्द था. अब आनन्द खत्म होता जा रहा.. शहर की अपनी आवश्यकता है, लेकिन गांव की सरलता, सहजता, नदी तालाब, ट्यूबवैल, फसलें, बाग, पगडण्डी, जंगल सबकुछ अपनी ओर खींचता है, बिल्कुल किसी तिलिस्मी फंतासी की तरह...
ReplyDeleteअतेक विकट लिखत हवय रे ददा! तोर पोस्ट ले महुआ ला खूशबू घलो निकलत हे.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी.
ReplyDeleteNicely written .
ReplyDeleteसर आपके साथ ये यात्रा सुखद रही.
ReplyDeleteआपके साथ उस अंचल विशेष की नई नई जानकारी आपकी विशिष्ट शैली में पढ़ना बड़ा ही रुचिकर लगता है।
ReplyDeleteरावण की पूजा वाला प्रसंग रोचक है। इसके बारे में जानकारी नहीं थी।
बहुत ही रोचक जी धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर ! आपके ब्लोग को फ़ालो कर रहा हूँ । आश्वस्त हुआ कि स्तरीय लेखन की तड़प वाला एक अच्छा ब्लोग मिला।
ReplyDeleteग्यान लाभ करने आता ही रहूँगा। कफी चीजें इकट्ठा कर देते हैं आप, ऐतिहासिकता , आँचल की सौरभ , भाषा का कोमल-कान्त रूप..! सुन्दर !!
आभार !
फेसबुक पर श्री गौरव घोष की टिप्पणी-
ReplyDeleteRamkahani ke Ravan ki Puja! Mohdi toh hum Anaryo ke liye thirth-sthal ho gya :) Jana hi padega.
एक जीवंत यात्रा कथा !
ReplyDeleteRam kothi aur Ravan ka adbhut milan is gaon main hai sunder laga jaan kar......
ReplyDeletejai baba banaras...........
उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर
कभी हमारे ब्लॉग में भी पधारे.. हमे खुशी , होगी नया जो हूँ...
avinash001.blogspot.com
इंतजार रहेगा आपका
पुरे इतिहास को समेटे हुए यह जानकारी भरी पोस्ट बहुत कुछ नया दे गयी .....आपका शुक्रिया
ReplyDeleteबढि़या जानकारी। मुझे याद है मेरे गांव में भी दशहरे के अवसर पर रावण की करीब 10-12 फीट ऊची प्रतिमा बनाई जाती थी। अब तो शहरों में कागज का रावण ही देखने को मिलता है।
ReplyDeleteराहुल जी, लगभग चार हजार की जनसंख्या है तो गांव तो अच्छा खासा मानने को मन करता है। बछड़े वाली लाईन तो पंचलाईन है, कुछ न कहकर भी कुछ न छोड़ा। और एक निवेदन है कि ग्राम्य जीवन, पुरातत्व और विलुप्त होती संस्कृति पर आपके लेख बहुत शानदार होते हैं, इन्हें शेयर करते रहियेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteरावण की पूजा वाला प्रसंग रोचक है। इसके बारे में जानकारी नहीं थी।
कम शब्दों में कहूँ तो बस यही कहना होगा कि जब तक आप जैसे लोंग हैं ये परम्पराएं,परिपाटियां, भग्नावशेष और धरोहरें विलुप्त नहीं हो सकतीं..
ReplyDeleteकल जल्दी में देखा था, पोस्ट की गंभीरता को देखते लग गया की इसे प्रात: काल में पढना ठीक है तभी कोमेंट कर पाऊंगा. इतिहास की पुस्तकों के अनुसार किसानों की
ReplyDeleteआर्थिक सहकारिता की व्यवस्था अंगरेजी काल में समाप्त हो चुकी थी और उसका स्थान महाजनों और बैंकों ने ले लिया था. इस प्रसंग से मालूम हुआ कि स्वाभाविक सहकारी संस्थाएं अभी भी कार्यरत हैं और अच्छे से हैं.लोक कला का जारी रहना भी उत्साहवर्धक रिपोर्ट है.आधुनिक सभ्यता का हावी होना भी समझ में आया मुझे क्यों कि ये अब पशुओं को बधिया नहीं कर पाते , इस काम के लिए चिकित्सालय पर निर्भर हो गए हैं. इस समाज वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए साधुवाद .
AAP NE KYA KHOOB LIKH HAI KI KHAL NAAYAK SAH NAAYAK KEE BHOOMIKA ME AA GAYA.
ReplyDeleteMAY DAY LAL NAHEE HARA HAI.
MOHDA GAON ME RAM AUR RAAVAN KA SUNDAR SAMNVYA.
'लोक' वस्तुत: 'सर्वलोक' ही लगता है। मालवा-राजस्थान में भी, अन्न भण्डारण हेतु, मिट्टी (गारे) की 'कोठी' ही बनाई जाती है। यदि कमरे में भण्डारण किया गया है तो उस कमरे को 'कोठार' कहा जाता है।
ReplyDeleteआप दोनों हाथों से लुटा रहे हैं और आयुवार्धक्य के चलते, यादों की गठरी में काफी-कुछ बँधा नहीं रह पाता। सन्तोष इसी बात का है कि आपका दिया सब कुछ 'नेट' पर उपलब्ध है - जब जी चाहा, खोल कर देख लिया।
सभ्यता के अनखुले अध्याय अभी भी बहुत स्थानों पर दबे हुये अपनी अभिव्यक्ति की बाट जोह रहे हैं। सुन्दर वृत्तान्त।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का आपका अंदाज .. आपकी तरह सरल व सहज है .. इसे पढ़ना बड़ा ही रुचिकर लगता है। ज्ञान-लाभ .. ग्राम्य जीवन, पुरातत्व और विलुप्त होती संस्कृति पर तथा गांव से जुड़ी परम्पराओं को जीवित रखने के आपके इस प्रयास की प्रशंसा .. केवल मैं ही नहीं बल्कि .. हर कोई करता है .. जिनको भी मैंने बताया है .. या जिनसे भी .. आपके बारे में चर्चा होती है .. डा. जेएसबी नायडू
ReplyDeleteरामकोठी से बपुरा रावण तक काफ़ी रुचिकर जान्कारियाँ प्रस्तुत की हैं
ReplyDeleteआपके साथ-साथ हमारी भी ये यात्रा अच्छी रही....
ReplyDeleteधन्यवाद !!
राम कोठी .. छत्तीसगढ़ ... और उससे जुड़ा इतिहास ... रावण की पूजा का प्रसंग ... गाँव के साथ जुड़ा अनोखा इतिहास ... बहुत ही खोजी और रोचक पोस्ट ...
ReplyDeleteanchalkitaa kaa poshan aur sanrakshan kar rahen hain aap .
ReplyDeleteshukriyaa .
veerubhai .
जिज्ञासा को शांत करने का ठिकाना है आपका दरबार !ऐसी जानकारियों की आज की नई पीढ़ी को ज़्यादा ज़रूरत है !
ReplyDeleteरोचक जानकारी ......सादर!
ReplyDeleteअछूती विषयवस्तु पर बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteकुंठाग्रस्त हैं वे मानुस जो कहते हैं कि उन्हें आपकी प्रविष्टियों में रूचि नहीं :(
राम कोठी पढ़ कर जाकारी में इजाफा हुआ खास तोर पर रावण के बारे में जो लगभग सारे उतरी भारत में खलनायक के रूप में पहचाना जाता है.अंदाजेबयां तारीफ़ के काबिल है .संजो कर रखे गए चित्रों के लिए राम कोठी धन्यवाद की अधिकारी है.पढवाने के लिए आभार
ReplyDeleteएक नया सफर,बहुत ही रोचक, धन्यवाद
ReplyDeleteरोचक पोस्ट ...सादर!
ReplyDeleteसुंदर लेखन शैली में रोचक जानकारी देती ज्ञानवर्धक पोस्ट सार्थक ब्लॉगिंग का एक अच्छा उदाहरण पेश करती है।
ReplyDeleteआपके लेख सरसरी नज़र में नहीं पढ़े जा सकते हैं.इन्हें हमेशा फुर्सत में तल्लीनता के साथ पढता हूँ.छत्तीसगढ़ के सामुदायिक जीवन का सुन्दर चित्र ऐतिहासिक कैमरे के द्वारा......
ReplyDeleteबहुत्र ही सुन्दर. रावण को तो प्रणाम करना ही पड़ेगा.
ReplyDeleteजब राम ने भी लक्ष्मण को शर-शैय्या पर पड़े रावण से ज्ञान दिलवा दिया तो बाकी दुनिया भी रावण के अच्छे और बुरे पहलुओं को विभक्त्त करके देख सकती है।
ReplyDeleteसदगति, छोटी लेकिन बहुत अच्छी फिल्म है जो जातिवाद पर कठोर प्रहार करती है।
आज जब हम सभी शहरों की ओर अंधाधुंध दौड़ रहें हैं तब रामकोठी की परमपरा का निर्वहन सचमुच ही प्रसंशनीय है रोचक एवं ज्ञानपरक लेख के लिए साधुवाद साथ ही आपकी यायावरी को प्रणाम
ReplyDeleteSach kahaa shri Arun kumar Nigam ji ne ki आपके लेख सरसरी नज़र में नहीं पढ़े जा सकते हैं.इन्हें हमेशा फुर्सत में तल्लीनता के साथ पढता हूँ. Mahatwapuurn jaankaariyaan,prwahmaan bhaashaa aur baandh lene waalii shailee! adbhut lekhan! Pranaam swiikaarien.
ReplyDeleteएक खुबसूरत जानकारी एक खुबसूरत अंदाज के साथ बहुत अच्छा लगी ये यात्रा |
ReplyDeleteएसा लगा हम भी खेत खलियानों में घूम रहे हैं इस शहर के शोर से दूर बहुत दूर |
सुन्दर पोस्ट |
is post se chhattisgarh ke saamajik arthshaastr kee bhi ek jhalak milti hai. aapke sabhi post sankalit ho kar ek pustak ki shakl mein aayen to bahut upyogi hoga .araajak blogs ki bheed mein singhavalokan ne ek rachanatmk blog ki pahchaan banayi hai. aapko shubhkamnayen...
ReplyDeleteइतिहास और छत्तीसगढ़ पर जब आप लिखते हैं तो एकदम शोधार्थी बन जाते हैं। जल्द ही ऐसे लेखों को पढ़ूंगा। तब तक इतना बयान स्वीकार किया जाय।
ReplyDeleteराहुल जी , रावण की पूजा करना एक नई जानकारी है । लेकिन कारण समझ नहीं आया ।
ReplyDeleteहमेशा की जगह सुन्दर जानकारी। रावण की पूजा भारत में कई स्थानों पर होती है और कई जगह बाक़ायदा मन्दिर भी हैं।
ReplyDeleteWhat's up colleagues, its wonderful piece of writing about educationand completely explained, keep it up all the time.
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मोहदी के Ravan ko Ram Ram.
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