दिल्ली-6 पर मिली टिप्पणियों के बाद 'सास गारी ... ' पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोक गीत का मूलतः रिकार्डेड 'ऑडियो' और 'टेक्स्ट' देना जरूरी लगा, इसी दौरान एक छत्तीसगढ़ी फिल्म में फिर से यह गीत आया है। हबीब तनवीर जी की टीम द्वारा गाये इस गीत के बोल हैं -
सास गारी देवे, ननंद मुंह लेवे, देवर बाबू मोर।
संइया गारी देवे, परोसी गम लेवे, करार गोंदा फूल।
केरा बारी में डेरा देबो चले के बेरा हो॥
आए बेपारी गाड़ी म चढ़िके।
तो ल आरती उतारव थारी म धरिके हो॥ करार...
टिकली रे पइसा ल बीनी लेइतेंव।
मोर सइकिल के चढ़इया ल चिन्ही लेइतेंव ग॥ करार...
राम धरे बरछी लखन धरे बान।
सीता माई के खोजन बर निकलगे हनुमान ग॥ करार...
पहिरे ल पनही खाये ल बीरा पान।
मोर रइपुर के रहइया चल दिस पाकिस्तान ग॥ करार...
इस सिलसिले में बात करते हुए सर्वश्री लाल रामकुमार सिंह, मिर्जा मसूद, दीपक हटवार, महेश वर्मा, अनूप रंजन पांडे, राकेश तिवारी, अनुज शर्मा, अनुमोद राजवैद्य आदि ने और भी कई जानकारियां दीं। जैसे - आज से लगभग 50 साल पहले छत्तीसगढ़ी का पहला 78 आरपीएम (तवा) रिकार्ड बना, जिसके 'ए' साइड में श्री अमृतलाल परमार का गाया गीत 'हाय रे डुमर खोला, छतिया ल बान मारय, तरसत हे चोला' तथा 'बी' साइड में 'नरवा तीर म मोर कारी संवरेंगी संवर पंडरी, टोरथे भाजी नरवा तीर म' गीत था।
लगभग 40 साल पुराने रिकार्ड के 'ए' साइड में 'तो ल जोगी जानेंव रे भाई, तो ल साधु जानेंव ग' था, जिसके 'बी' साइड में यह गीत 'सास गारी देवे' था, इस गीत के समूह स्वर में हबीब जी की आवाज साफ पहचानी जा सकती है।
पूरे क्रम में इस गीत के गीतकार रूप में श्री गंगाराम शिवारे अथवा गायिकाओं के रूप में जोशी बहनों का एकदम सीधा कोई ताल्लुक नहीं जुड़ सका। श्री शिवारे के गीतों और जोशी बहनों की गायकी, विशेषकर सुश्री रमादत्त, जो गायकी के साथ लोक कलाकार कल्याण में भी अत्यंत सक्रिय हैं, की सराहना आमतौर पर सभी ने की।
फौरी जरूरत नहीं हुई इसलिए व्यक्तिगत तौर पर किसी जानकारी की मैंने स्वयं पुष्टि नहीं की है। बहरहाल अब, जब कम से कम 50 छत्तीसगढ़ी फिल्में बन चुकी हैं और छत्तीसगढ़ी गीतों के रिकार्ड बनने का 50 साल का इतिहास है तब जरूरत बनने लगी है कि इस पर कोई गंभीर, अधिकृत अध्ययन हो।
राहुल भैय्या बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteआज मैं आपको एक काम से याद भी कर रहा था। काम यह था कि मैं शनिवार को अपने चार-पांच दोस्तों के साथ बिलासपुर जा रहा हूं। सोच रहा हूं कि जाते-जाते ताला, कोटमीसुनार या फिर कुछ और देख लूं। क्या ठीक रहेगा यह आप ब्लाग पर आकर या फिर फोन कर बता देंगे तो आभारी रहूंगा।
इस लोकगीत को सुनना अच्छा लगा । उम्दा पोस्ट । आभार
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार. हमारे जैसे, पारंपरिक विरसे से बहुत दूर रहने वाले लोगों के लिए तो आप जैसे सुधि कर्मी सर्वाधिक सशक्त कड़ी हैं. आपके प्रयास के बिना मैं कभी यह पारंपरिक रचना नहीं सुन पाता. पुनश्च आभार.
ReplyDeleteफ़िल्मों के लोग इस तरह की उठाइगिरी करते ही रहते हैं और पैसे के चलते ये लोग क्रेडिट तक देने से मुंह चुराते हैं.
लोकगीत को सुनना अच्छा लगा ...
ReplyDeletesrimaan ji bahut bahut shukriya habib ji ki jivan par bane ek verit chitr mein is geet ki live parstuti bhi aap dekh sakte hain ubki team naya theater ke paas ye ho sakti hai vo bhi behtrin hai baaki aapne ye kaam bahut achha kya lok geeton ko aajkal bazar bahut bhuna rahaa hai jabki lok kalakaar apne liye aate daal ka parbandh karne mein bhi saksham nahi hain dahnyawad
ReplyDeleteगांव में रेडियो पर बजते हुए इन गीतों पर हम बचपन में सैकड़ों बार थिरक पढ़ते थे भईया, इस ब्लॉग पर पुराने गीतों के मुखड़े और सास गारी देवय को संपूर्ण पढ़ कर, सास गारी देवय को सुनकर मन पुन: उसी समय में खो गया. बहुत बहुत धन्यवाद भईया.
ReplyDeleteदिल्ली 6 के बाद क्षेत्रीय स्तर पर प्रकाशित समाचारों को पढ़ते हुए जो गीत मानस के सुसुप्त कोनो में बार बार बजता था वह यही गीत है जिसे आपने यहां प्रस्तुत किया है. इस गीत में जोशी बहनों की आवाजें मेरी स्मृति में भी नहीं है जिसे आपका यह वाक्य बल देता है- पूरे क्रम में इस गीत के गीतकार रूप में श्री गंगाराम शिवारे अथवा गायिकाओं के रूप में जोशी बहनों का एकदम सीधा कोई ताल्लुक नहीं जुड़ सका।
'तरसथे चोला काहे भुलाये हरि भजन ला ....' और 'तोला जोगी जानेव रे भाई, तोला साधु जानेव रे भाई लंकापति रावन तोला जोगी जानेव रे भाई ....' जैसे गीतों के साथ साथ उसी समय का गीत 'पहिरे हरा रंग के सारी ओ लोटा वाले दूनो बहिनी .....' को आज जब छत्तीसगढ़ी ब्रम्हानंद में लीन होता हूं तो गाता हूं किन्तु जितना लिखा हूं उतना ही गा पाता हूं आगे पता नहीं. भईयाख् हो सके तो इन गीतों के आडियो एवं इन पर जानकारी भी देंवें.
ReplyDeleteराहुल जी बहुत शानदार जानकारियां पढ़ने को मिली ब्लाग पर , गीत भी बहुत शानदार है ॰॰॰॰॰ शुभकामनायें ॰॰ राजेश बिस्सा
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिेए साधुवाद
ReplyDeleteकेरा बारी यानि केला बाड़ी दुर्ग में 27 साल बिताये हैं ... मज़ा आ गया यह गीत सुनकर ।
ReplyDeleteबहुत ही मधुर लोकगीत है यह ।
ReplyDeleteआभार !
ReplyDeleteबहुत बढिया राहुल भाई
ReplyDeleteलोकगीतों की अपनी अलग ही मिठास है।
आपकी पोस्ट की चर्चा यहां भी है,क्लिक करें
I dont know how to thank you for the MOST Wanted song I had been looking out for, for so much time. My patience gave way when I heard the distorted version of this song in Delhi-6. Mujhe laga jaise kisi ne meri property pe BEJA KABJA karliya hai....Ha Ha Ha ....
ReplyDeletePar ab , when I know that the old ORIGINAL song is available and I have access to it, I am OK.
Thanks to your efforts and Sone pe suhaga is the additional valuable information you have provided in JAN HIT... Cheers to you....
I just agreed to mr aniruddha.
ReplyDeletevakai is gane ki talash ek lambe samay se kar raha tha, galti yah kiya ki bas aapke paas nahi gaya....
shukriya, shukriya aur shukriya bhai sahab.
vakai yah jankar accha laga ki chhattisgarhi gano ke record ka itihas 50 sal purana hai. sach me adhyayan ki jarurat hai is par to...
bahut khub
ReplyDeleteसुंदरतम लोकगीत।। सादर।।
ReplyDelete... मज़ा आ गया ...आभार !
ReplyDeleteAadarniy Singh Saaheb
ReplyDeleteAabhaar swiikaarein. Paryaawaran par likhaa aalekh bhii man ko bhaa gayaa.
बहुत दिनों से तलाश रही थी इस मूल गीत को.बहुत बहुत आभार आप का.
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट.. धन्यवाद मूल रचना पढवाने के लिए.
ReplyDeleteपर ऑडियो का लिंक खुल नहीं रहा...
Good Article .Congrats
ReplyDeleteप्रिय राहुल जी,
ReplyDeleteइस तरह की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। किसी भी उपलब्धि के लिए व्यक्ति को श्रेय मिलना चाहिए। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि सही आदमी को उसका श्रेय मिलना ही चाहिए ताकि वो लोग, वो प्रतिभा सामने आए जो संसाधनों के अभाव में अक्सर ग़ुमनामी के अंधेरे में ओझल होकर रह जाते हैं। ऐसा कई बार उन लोगों के साथ भी होता है जिन्हे लोग जानते तो हैं लेकिन आम आदमी तक उनके कामों की जानकारी ही नहीं होती। ऐसी जानकारियां कहीं ना कहीं मीडिया के उन साथियों को भी कठघरे में खडा करती हैं जो कई बार अतिउत्साह या कई बार बिना जांच परख के खबरें प्रकाशित या प्रसारित कर देते हैं।
रवीन्द्र
बहुत बहुत धन्यवाद इस दुर्लभ गीत के लिए...क्या आप जोशी बहनों का गाया हुआ यही गीत भी सुनवा सकते हैं?या कोई और लोकगीत उन्हीं बहनों की आवाज़ में ?
ReplyDelete***आप पोस्ट पर इसी अपलोड का लिंक ले कर प्लयेर भी लगा सकते हैं -जिससे यहीं सुनने में सुविधा हो.-Player code ke liye यहाँ रविरतलामी जी की एक उपयोगी पोस्ट है.
http://raviratlami.blogspot.com/2009/11/3.html
इसके अलावा www.divshare.com
ka player bhi blog posts par sahi chalta hai.
Regards
app ki khoj vakai kaile tarif hai ajj ke samay men kiske pass in sari baton ke liye waqt hai nischit hi yeh gane kuch dino mein durlabh ki shreni mein aa jayenge
ReplyDeleteregards
rahul bhaiya ye jan ke bahut achha lagis. jon wastwik hakdar he wola credit jana chahi. au ab hamar producer director man film me lokgit la shamil karthe. bahut achha shuruwat he.age mahu ha paramprik git la shamil karhu kabar ki hamar lokgit se badhke kuch nai he. prakash awasthi.
ReplyDeleteIt is one of my favourite songs and I was trying to find the deep roots of this song.Thanks so much for link.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteIts a buitiful song with a very good recorded viersion i've enjoyed listining habib sahab's voice Thanks for recreating and atteract towards this old treditinal song thank you.
ReplyDeleteYeh geet Chhattisgarh ki or se Hindhi film industry ko ek tohfe ke samaan hai. Jaisa aapne kaha hai ki Chhattisgarhi geeto ke record par gambhir adhyayan ho, Asha karta hu ki Chhattisgarhi geeto se aise aur bhi sundar aur lokpriya rachnaye niklengi jo pure desh me aur desh ke bahar bhi sarahi jayengi.
ReplyDeleteMai jab Delhi6 film dekhi thi to yah geet bahut achchha laga tha, par jab pata chala ki yah chhattisgarhi gane ka remix hai to aur bhi achchha laga. par maine kabhi socha nahi tha ki is gane ko chhattisgari me sun payenge,par aaj audio, text ke sath sunane mila. bahut bahut Dhanyavad Sir
ReplyDeleteAadarniy
ReplyDeleteBahut kam log hote hain jo jaankaarii ke srot kaa ullekh apanii kisii prastuti mein karate hain, un kam logon mein ek aap bhii hain. Yeh baat 'Saas gaarii deve' blog mein aapane siddh kar dii hai. Aap nishchit hii prashansaa ke paatr hain. Is geet ko ek baar sun kar mujhe santushti nahin milii aur maine ise kai-kai baar sunaa, text ko bhii kaii baar padhaa. Kaii vichaar aate rahe aur niind bhaag gaii. Jab rahaa nahin gayaa to raat mein 3 baje phir se computer on kar ke ise sunane lagaa. Darasal In dinon main ek Chhattisgarhii lok mahaakaavy par kaam kar rahaa hun aur sach kahun to aapakaa yeh aalekh aur geet sahi samay par mujh tak panhuchaa hai. Kaaran, isase mujhe apane is kaam mein bahut sahyog milaa hai. Aabhaar.
Saadar
Harihar Vaishnav
I am very delighted to listen oldest Chhattisgarhi song. This Chhattisgarhi song has been listen by me in 1972in my childhood.
ReplyDeleteDear Singh Saheb! Today I could go through your all posts which are enough to show your versatility. I have much to say or express but time and hunger are not allowing[BHOOKHE BHAJAN NA HOYE GOPALA]. But in short it all is interesting and worth reading. Thanx.
ReplyDeleteparam sradhey rahul bhai yadi sambhav ho to laxman masuturiha ji ka geet mor sang chalav re unki hi awaj mein jo hum logo ne kabhi bahut suna hai ko bhi post kare
ReplyDeleteChachu, aapka "saas gari dewe" suna. Sunkar bahut badhiya kaga wa man prafullit hua. Bahut interesting, karnpriya, sumadhur wa sadabahaar geet-sangeet. Ek baar sun kar man nahi bharta wa baar baar sun kar bhi wahi freshness mahsus hoti hai jo pahli baar sun kar mahsus hui thi. Shayad yahi loksangeet ki madhurta hai ki wah kabhi baasi nahi hoti,hamesha naye khile hue phool k samaan taazgi liye hue hoti hai.Asha hai bhavishya me bhi aapke blog k madhyam se hame nayi rochak jaankaariyan,sumadhur geet wa aapke saargarbhit vichaarbinduon ko jaan ne ka labh prapt hota rahega.gyanvardhak jaankaari wa sumadhur geet k liye aapka saadar dhanyawaad-BALMUKUND
ReplyDeleteIt is a wonderful post. thanks for sharing with us. Your posts are always interesting.
ReplyDeleteबड़ा अच्छा लगा इस गीत के मूल रूप को पढ़कर .
ReplyDeleteसंजीत से आपके ब्लाग का लिंक मिला .
लोक गीत तो जन जन के होते हैं
कौन गीतकार और कौन गायक :)
बचपन मे इलाहबाद मे एक गाना अक्सर सुनने मे आता था ,शब्द हुबहू तो याद नही पर....'ढूँढ लूँगा बीवी मुट्ठी मे मेरे दाम,जिसकी बीवी कलि,उसका भी बदनाम,सुरमे सा लगा लो....'
ReplyDeleteबाद में इसी गीत को रूपांतरण के बाद अमिताभ बच्चन की फिल्म 'लावारिस' में सुना.
तो भैया ये तो शुरू से होता आया है,समरथ को नही दोष गुसांई.
हा हा हा
इस दुर्लभगम्य गीत को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने के लिए कोटिशः धन्यवाद.
ReplyDeletelok mein prachalit,jan manas mein basi rachanaon ka aisa upayog pahale bhi hota raha hai.maulikata ko chhipakar lok kritiyan prastut ki jati rahi hain,jisake peechhe aarthik tatha anya swarth ho sakate hain.
ReplyDeletechhattishgarh ki dharohar ko ujagar karane ke prayason mein aapaka yah post bhi safal raha,sadhuwad-subhakamanayein.
aise hi agale post ki pratiksha hai.
mahesh sharma
mahamantri,cg sanskar bharti.
दुर्लभ गीत के लिए आभार! बहुत जानकारी बढ़ाता आलेख।
ReplyDeletei saw it, it's quite soothing.
ReplyDeleteregards,
rajiv seth
यह लोकगीत बहुत बढ़िया है..इसमें कोई दो मत नहीं..लेकिन, यह समूचा ब्लॉग इतना सुन्दर और उपयोगी है, जिसका कोई जवाब नहीं..राहुल जी को कोटि-कोटि बधाई...
ReplyDeleteबहुमूल्य जानकारियां सबको बाँटने के लिए हार्दिक धन्यवाद..
pyare chachu, saas gaari deve k vaastavik dhun ko sun ne k baad delhi-6 ki dhun fiki lagne lagi hai. vaastavik dhun dene k liye dhanyawaad-HARISINGH KSHATRI
ReplyDeleteभईया पायलागी
ReplyDelete"सास गारी देवे" के ओरिजनल गीत अउ धुन ल सुन के मन मोहा गे भईया ये गीत ला सुनके मोर ननपन सुरता आगे गाँव के बियारा म साँझकन धान मिजात रहय ता बेलन चढ़े के साध म चल देन अउ धान के पैर म कस के उलानबांटी खेलत एक झन टुरी के "सोन के नथली" गंवागे बिकट खोजई म घलो नई मिलिस पांच छै घंटा के बेलन चलई, दू बेर के कोढ़ीयई अउ आखिर म पंखा ओसाय के बेर दू बजे रात म सुपा ले अलग से चमकत "सोन के नथली" मिलगे वईसने "सास गारी देवे" के ओरिजनल गीत ल सी डी, डी वी डी ले पटाय बाजार ले चालीस पैतालीस बछर जुन्ना गीत ल निमार के निकाल के सुनवाय हव, रहिस बात दिल्ली- ६ के "सास गारी देवे" बहुत हिट होगे एकर सेती नही कि ये छत्तीसगढ़ के लोकगीत अउ धुन ए हिट तो एकर सेती होय कि ये गीत म दम हे धुन म दम हे जिहा के लोकगीत अउ धुन म दम हे वो तो हिट होनाच हे चाहे कोनो राज के होय या बोली भाखा के हाँ क्रेडिट के हक़दार जरुर बनथे, अब जरुरत हे अइसन गीत ल निमारे के (नि मारे के )
Hemant Vaishnav
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ReplyDeleteRahul bhiya
ReplyDeletepranam ....
Gana la sunnen bahut badhiya lagis haway
dhanyvad aau bahut akan badhai
Sukhnandan Rathore
Janjgir
Kruti Deo ki TippaNi -
ReplyDeleteराहुल भैया
प्रणाम
गाना ल सुनेन भैया............ अब्बड़ मजा आइस हे
गाड़ा भर धन्यवाद अउ बहुत बहुत बधाई..............
सुखनंदन राठौर
जॉजगीर
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ReplyDeleteचाणक्य फोंट से की गई टिप्पणी -
ReplyDeleteआदरणीय राहुल सिंह जी,
आपने बहुत ही उल्लेखनीय कार्य किया। गीत सुनकर आनंद आ गया। आपका और हमारा काम यहीं खत्म नहीं हो जाना चाहिए। अगर शुरूआती दौर की दो प्रमुख छत्तीसगढ़ी फिल्में 'कहि देबे संदेसÓ और 'घर दुवारÓ के गीत इंटरनेट पर आप उपलब्ध करा सकें तो और भी बेहतर होगा। संभवत: दोनों गीतों के रिकार्ड्स आकाशवाणी रायपुर के पास हैं लेकिन अफसोस की बात है कि पिछले 10 साल में कम से कम मैनें एक बार भी इन गीतों को आकाशवाणी से नहीं सुना। इन दोनों फिल्मों के गीत मोह मद रफी, सुमन कल्याणपुर, मन्ना डे, महेंद्र कपूर और मीनू पुरूषोत्तम की आवाज में है। 'मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिएÓ, लिहाजा कोशिश करिए शायद किसी के निजी संग्रह में इन दोनों फिल्मों के गीत मिल जाए। मैनें कुछ भोजपुरी साइट का मुआयना किया है उनमेें पुराने भोजपुरी गीत पूरे विवरण के साथ उपलब्ध हैं। हमारा संस्कृति विभाग क्या ऐसी कोई पहल कर सकता है?
मोहमद जाकिर हुसैन
पत्रकार, भिलाई नगर
09425558442
... क्या बात है ... अदभुत प्रस्तुति ... बहुत बहुत बधाई!!!
ReplyDeleteमेरे ख़याल से ये रेकॉर्डिंग उस समय की है जब आदरणीय स्वर्गीय हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ी लोक गीतों और परम्पराओं के संकलन के लिए गाँव गाँव घुमा करते थे. गाँव वालों से मिलकर वे गाने के बोल सुनते उनका मीटर ठीक करते और इन्ही गानों से उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में समाँ बांध जाया करता. राम दत्त बहनों ने ख्याति बटोरने ने लिए तमाशा खड़े करने की कोशिश की थी. अब ममता चंद्राकर इस गाने को गाकर अमर होना चाह रहीं हैं. दरअसल delhi -६ के सास गारी.. ने साबित कर दिया है की हम अपनी ही संस्कृति और परम्पराओं पर संदेह करते हैं. ऐसा होता तो सास गारी के कॉपी राईट के लिए पूरा छत्तीसगढ़ खड़ा हो गया होता. हम कॉपी करने और बनी बनाई थाली पर हाथ साफ़ करने में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं. ऐसे सैकड़ों गीत हैं जो हिट हो सकते हैं पर इनके लेखकों के सुर के कारण कोई उन्हें हाथ नहीं लगाना चाहता. राहुल सिंह के बाद आप लोग बधाई के पात्र हैं जिहोने ये सार्थक पहल की. रिसर्च के एक दो नामों ने निराश किया. उनका ऐसे पुराने रिकॉर्ड में ज़िक्र करना व्यक्तिगत रूप से उचित नहीं लगा मुझे ....वैसे आप ज्यादा समझदार हैं.
ReplyDeleteवाह भइया ये गाना ल सुनके लगीस कि ओरिजिनल अऊ रीमिक्स में अंतर होथे - बहुत अंतर होथे.
ReplyDeleteमोरो फरमाईस हे - लोटा वाली दुनो बहिनी ल कहूं से खोज के सुनाव.
इस पोस्टह की खबर रायपुर सिटी भास्केर, 14 जून, सोमवार को प्रमुखता से छपी। पोस्ट पर प्रतिक्रिया के फोन कॉल, एसएमएस और ई-मेल मिले, जिनमें अधिकतर छत्तीसगढ़ी के अन्य पुराने गीत इसी तरह उपलब्धप कराने के लिए कहा गया है। ऐसे सभी के विश्वा़स का आभार मानते हुए स्पहष्ट करना चाहूंगा कि यह मेरी रुचि का क्षेत्र है, लेकिन अधिकार और विशेषज्ञता का कतई नहीं। मामले की लगातार चुप्पीक और लगभग सन्नाभटे से बेचैन होकर, (इसीलिए देर से, पिछले पोस्टत दिल्ली-6 के बाद) यह पोस्टस लिखा गया।
ReplyDeleteइस सिलसिले में कई कीमती जानकारी मिली, जिनमें से इस एक का उल्लेीख जरूरी है। 'सास गारी देवे' पारंपरिक ददरिया की पुनर्प्रतिष्ठाी सन 1973 में हबीब जी के रायपुर नाचा वर्कशाप में हुई, जब यह गीत इसी वर्कशाप में रचे नाटक 'मोर नांव दमांद, गांव के नांव ससुरार' के अंत के लिए कम्पोसज किया गया। यह खंडन-मंडन के लिए नहीं बल्कि इस तथ्यर को उजागर करने के लिए है। ऐसी ढेरों संबंधित बातें हैं, जो अलग पोस्टि में हो सकती हैं।
इन जानकारियों में कोई संशोधन-सुझाव हो तो उसका भी सम्मासनपूर्वक स्वाछगत रहेगा। विशेषज्ञ इस दिशा में आगे काम करेंगे, ऐसी अपेक्षा है। यह भी सोचना होगा कि मधुर और प्रभावी पारम्पारिक छत्तीेसगढ़ी धुनों की पहचान कर, उनका इस्तेंमाल छत्तीऔसगढ़ी फिल्मों में क्योंी नहीं हो रहा है? वह बरास्तेस बालीवुड क्यों आती है, सीधे क्योंऔ नहीं? बहरहाल...
पोस्टऔ तैयार करने में श्री संजीव तिवारी, श्री सुब्रमनियन जी और सुश्री अल्पोना वर्मा के तकनीकी सुझाव का लाभ मिला और अन्य पोस्टब की तरह इसके लिए भी श्री किशोर साहू ने सुझावों को अमल में लाने की मदद की। सभी के प्रति आभार।
शानदार, बेहतरीन, यह दोनों शब्द गीत के लिए नहीं है। यह आपके लिए मैंने कहा है, शूक्रिया राहूल दादा।
ReplyDeleteहमेशा की तरह ही सुरीला पोस्ट, बहुत आभार ,,
ReplyDeleteसास गारी देवे.....सुना.....लिखा.............स्ग्र्हनीय पोस्ट .........
ReplyDeleteसास गारी देवे.....सुना.....लिखा.............स्ग्र्हनीय पोस्ट .........
ReplyDeleteसास गारी देवे.....सुना.....लिखा.............स्ग्र्हनीय पोस्ट .........
ReplyDeleteसास गारी देवे.....सुना.....लिखा.............स्ग्र्हनीय पोस्ट .........
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