ग्राम देवताओं के थान पर माथा टेकने निकला तो सबसे पहले सुमिरन किया देवाधिदेव ठाकुरदेव का। ग्राम देवताओं में सर्वाधिक शक्तिशाली-प्रभावशाली माने गये हैं, ठाकुरदेव। बस्ती के एक सिरे पर इनकी स्थापना है, लक्खी तालाब के किनारे। गांव पर आने वाली विपत्तियों, विघ्न-बाधाओं का रास्ता रोके, ठाकुरदेव बस्ती की सीमा पर घोड़ाधार व हरदेलाल, दो अन्य देवताओं के साथ एक चबूतरे में माने-पूजे जाते हैं। पहले कोई भी यहां से जूता पहने या वाहन पर सवार होकर नहीं गुजरता था और किसी प्रकार से इस थान का परोक्ष अपमान करने से भी प्रत्येक ग्रामवासी या ग्राम में प्रवेश करने वाला बचता था।
ग्राम देवताओं में प्रमुख, गांव के मालिक-देवता, ठाकुरदेव का बड़ा-सा सफेद बकरा दिखाई पड़ता है, भोले बाबा के गंभीर लेकिन अलमस्त नंदी की तरह। ठाकुरदेव पर बलि नहीं दी जाती बल्कि उनकी पूजा कर, सफेद बकरा यूं ही छोड़ दिया जाता है। बकरे व अन्य सभी सामान्य पूजा की व्यवस्था गांव के गौंटिया/प्रमुख करते हैं और बैगा के माध्यम से पूजा सम्पन्न होती है। सामने ही ठाकुराइन दाई स्थित है जो अपेक्षाकृत नयी स्थापना है। पहले किसी घर में इनका वास था, किन्तु बैगा ने पूजा-पाठ कर इन्हें यहां उपयुक्त स्थान में स्थापित कर दिया है।
पर्री तालाब के पार में चबूतरे पर पत्थर का एक स्थापत्य खंड और त्रिशूल गड़ा है यहां अघोरी बाबा और कालिका देवी की स्थापना हैं, जाति और प्रयोजन-विशेष के ये देवता आमजन द्वारा पूजित नहीं हैं, किन्तु अन्य देवताओं की भांति होली, छेरछेरा, हरेली में इनकी पूजा बैगा करता है, दशहरा के दिन विशेसरी या विश्वेश्वरी देवी का ध्वज-स्तंभ यहां लाकर गाड़ा जाता है, ये देवता पूजा में होम, फूल, दूब के साथ शराब व बकरा भी लेते हैं।
बस्ती के बीच तीन देवी-देवता पास-पास ही स्थापित है- सत्ती दाई, परऊ बैगा और मुड़िया बाबा। इनमें सत्ती दाई, पुराने समय की सती हुई कोई स्त्री का स्थान है, जहां पत्थर मिट्टी का चबूतरा है। परऊ बैगा को प्राचीन, अत्यंत शक्तिशाली और प्रसिद्ध बैगा बताया जाता है, जो ईंटों के छोटे से चबूतरे पर किसी प्राचीन मूर्ति-खंड व अन्य अनगढ़ पत्थर के टुकड़े के रूप में हैं। मुड़िया बाबा के रूप में पीपल के वृक्ष के नीचे चबूतरे पर रखा कलश के आकार का पाषाण खंड और लकड़ी की गदा हैं। विवाह के अवसर पर महिलाएं देवतल्ला में ठाकुरेदव, घोड़ाधार, हरदेलाल, ठकुराइन दाई, विशेसरी के साथ इन तीनों पर भी हल्दी चढ़ाती हैं; बाकी ठौर पर बैगा जाया करता है।
अन्य देवताओं में मुख्यतः रामसागर तालाब के पार की महामाई है, जहां अब मंदिर बन गया है। होली जलने के दिन और चैत की नवरात्रि में इनकी विशेष पूजा होती है। यहां पूजा में बकरे के अलावा रेशमी चूड़ी, सिन्दूर आदि भी चढ़ाया जाता है। इसी के पीछे कुर्रूपाठ देवता है, जिनका अस्तित्व अब लगभग लुप्त हो चुका है। पालतू मवेशियों को रोग-बीमारी हो तो बघर्रा पाठ की पूजा की जाती है। चेचक होने पर शीतला माता की और हैजा के समय चण्डी दाई की पूजा होती है।
गांव के एक छोर पर गोपिया तालाब के किनारे अधियारी पाठ है। ठाकुरदेव आपत-विपत पड़ने पर अपने सफेद घोड़े पर सवार हो, यहां तक आया करते हैं और ग्राम-प्रमुख, बैगा आदि को भी सूचना दिया करते हैं। इनके घोड़े की टाप सुनने की बात कितने ही ग्रामवासी विश्वासपूर्वक बताते हैं। अंधियारी पाठ भी ग्राम सीमा के देवता है। अर्थात गांव में किसी भी प्रकार के अशुभ को प्रवेश नहीं करने देते।
दाऊ साहब को गोंड़ों-नायकों का देवता बताया जाता है। सीवाने के दो अन्य देवता हैं- डंगरादाई और ओंगनपाठ। डंगरादाई को सबसे पहले विशेष रूप से तब पूजा जाता है, जब कोई व्यक्ति मवेशी खरीदकर यहां से गुजरता है। वैसे डंगरदाई की मूर्ति किसी प्राचीन मंदिर के द्वारपाल की है जिस पर सिन्दूर लगा है और उसे परिधान से ढक दिया गया है। ओंगनपाठ देवता का अस्तित्व सामान्यतः सीवाने पर ही हुआ करता है और यहां से जो भी वाहन वाला- गड़हा निकलता है, देवता पर थोड़ा सा ओंगन तेल चढ़ा देता है, ताकि उसकी यात्रा निर्विघ्न हो।
लगभग पूरे गांव का चक्कर लगाकर मैं वापस आता हूं, और पुनः नमन करता हूं उस सहज-सरल, आदिम-आस्था को और आस्था के केन्द्र बिन्दु व सांस्कृतिक-धार्मिक समन्वय के प्रतीक ग्राम देवताओं को।
छत्तीसगढ़ के ग्राम-देवताओं की जानकारी, शौकिया व अनियमित तौर पर, जुटाने का सिलसिला तीसेक साल पुराना है। अकलतरा के तीन निखाद बइगा- मेरे लिए गुरुतुल्य बहादुर, भगोली और मुड़पटका (ऐसे ही नाम पुकारे जाते और इसी तरह याद है) और नंदू मुनीमजी कहे जाने वाले गंवई-गूगल जैसे श्री नंदकुमार सिंह से पूछताछ करते इसकी शुरुआत हुई, तब अपने गांव के 25 से भी अधिक ग्राम-देवताओं और उनसे जुड़ी परम्पराओं के बारे में कुछ जान पाया, और यही आरंभिक जानकारी बाद में अन्य इलाकों में पूछताछ के लिए, संवाद स्थापित करने में सहायक होती रही।
(यहां इस्तेमाल कुछ तस्वीरें, श्री यशोदा ने भेजी हैं।)
ग्राम्य देवताओं की एक अति प्राचीन विरासत है .....हमारे यहाँ बीर लोगों का थान है -बन्हवारे बीर बाबा ...चम्मुख नाथ बाबा -लगता है यह शैव सम्प्रदाय या शक्ति के उपासकों का किया धरा है ....वे आज भी गाँव गिराव के कितने ही दैनंदिन कार्यों -अनुष्ठानों में प्रथम वन्दनीय है ..
ReplyDeleteआपकी यह ग्राम परिक्रमा गणेश परिक्रमा से कुछ कम नहीं :-)
उत्कृष्ट प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी !
सूचनार्थ!
आपके ब्लॉग में बहुत ही अलग और रोचक जानकारी मिलती है.
ReplyDeleteठाकुरदेव के बारे में जाकारी लाभप्रद रही ......! और बहुत से सन्दर्भ उद्घाटित किये हैं आपने इस पोस्ट में ......!
ReplyDeleteग्रामीण भारत की गैर शास्त्रीय धार्मिक परंपरा और लोक विश्वास की चिरंतन छवि से भरपूर पस्त जिसे पढते डाक्यूमेंट्री का आनंद प्राप्त हुआ ..
ReplyDeleteहमेशा की तरह पठनीय।
ReplyDeleteश्री ग्राम देवताभ्यो नमः । गांव के सारे देवताओं से परिचय कराने का आभार ।
ReplyDeleteअनूठी चर्चा के लिए आभार आपका ! बचपन से परिवार में किसी शुभ कम से पहले, कालेदेव की पूजा आवश्यक बतायी गयी है !
ReplyDeleteअनूठी पोस्ट है आपकी !
मुझे लगा, आप मेरे गॉंव पीपलोन का वर्णन सुना रहे हैं। सब कुछ बिलकुल वैसा ही।
ReplyDeleteगॉंव, केवल गॉंव होता है। कहीं का भी हो।
ग्राम देवताओं के विषय में अच्छी जानकारी। ग्रामीण अंचल में इन देवताओं की भेंट पूजा के बिना कोई कार्य संभव भी नहीं है।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक, जानकारी भरा , बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ के ग्रामदेवताओं के बारे में बढ़िया खोजपरक जानकारी. संयोग है कि यहाँ तमिलनाडु के "अय्यनार" और अन्य ग्राम देवताओं के बारे में कुछ सामग्री जुटा रहा था. वे सब वैदिक परम्पराओं से इतर माने गए हैं.
ReplyDeleteबस्तर में दशहरे के समय विभिन्न ग्राम देवताओं की पालकियां/छत्रियां इकट्ठी होती हैं जो सदैव कौतूहल का विषय हुआ करता था. ऐसी परम्पराएँ लगभग सभी राज्यों में हैं. संकलित कर एक पुस्तक प्रकशित की जा सकती है.
ग्रामदेवता पुरानी परम्परा है, ग्राम की आत्मा और ग्राम के सम्मिलित विकास का आधार..
ReplyDeleteहर गाँव मे ऐसी आस्था के सतम्भ आज भी मौजूद हैं जो लोगों मे जीवन के प्रति विश्वास की भावना देतें हैं। बहुत रोचक जानकारी है। धन्यवाद।
ReplyDeleteहर गाँव का अपना इतिहास होता है ... बहुत अच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteअद्भुत जानकारी. आभार.
ReplyDeleteग्राम देवताओं का गढ़ छत्तीसगढ़ .जिनके निवास और गरिमा का सुन्दर वर्णन आपके पोस्ट की शोभा में चार चाँद लगाता है .मैं गाँव का ही रहनेवाला हूँ सो तीज त्यौहार शादी ब्याह और अन्य मांगलिक कार्यों में सर्वप्रथम इनका ध्यान करके आशीर्वाद प्राप्त कर कार्य की शुरुवात करते हैं .सदैव की भांति ग्राम देवता के साथ आप भी प्रणाम स्वीकार करें.
ReplyDeleteआज सुबह ही एक टिपण्णी दर्ज की थी. न मालूम क्यों नहीं दिख रही है. शायद मैंने कहा था कि छत्तीगढ़ के ग्राम देवताओं के बारे में बहुत ही अच्छा संकलन मिला. बस्तर के ग्राम देवताओं की पालकी/छतरी दशहरे के समय जगदलपुर में इकट्ठी होती थी और बड़ा कौतूहल हुआ करता था. संयोग है की यहाँ तामिलनाडू के "अय्यनार" के बारे में कुछ जानकारियाँ प्राप्त कर ही रहा था की आप की यह पोस्ट आई. यहाँ के ग्राम देवता वैदिक परम्पराओं से इतर हैं. ऐसी परम्पराएँ सभी प्रदेशों के ग्राम्यांचलों में पायी जाती हैं. कोई मेहनत करे तो एक अच्छी पुस्तक प्रकाशित हो सकती है.
ReplyDeletesingh sahab,bata nahi sakta dil k kitne karib hai gaon,abhi bhi mitti ki khusbu apne man me mahsoos karta hoon,bahut hi rochak jaankari.thanks
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी......
ReplyDeleteआपका आभार
अनु
इनदिनों कई लेख आए आपके! नया चित्र भी! सब देखा। यहाँ भी थोड़ा पढ पाया हूँ। बाकी बाद में...
ReplyDeleteबस चंदन, महीने में चार का हिसाब चल रहा है.
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बेहतरीन रचना
सावधान सावधान सावधान सावधान रहिए
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ सावधान: एक खतरनाक सफ़र♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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प्रताप पारख जी की टिप्पणी-
ReplyDeletebhaiyaji ye thakurdeo wala lekh har bane lagis. mor jigysa ye har hai ki cg ke to har gaun me thakur deo rahite jon har gaon ke raksha karthe. aisne ka aur des videsh ke gaon me bhi thakur deo ke upsthithi
mile hai ka. thakur deo ta cg ke culture ma rache base hai bane lagis.
छत्तीसगढ़ म ठाकुरदेव कस बुढ़ादेव, लिंगो अउ खुडि़यारानी कस कत कोनो देंवता हावंय.
Deleteरंजन मोडक जी की टिप्पणी-
ReplyDeletegram devtaon aur unse judi jankariyan bahut rochk hai. is hetu hum aapk aabhari hain...... dhanyavad..
बहुत ही सुन्दर जानकारी दी है चित्र भी बहुत अच्छे लगे |
ReplyDeleteआशा
आपके लेख हमेशा प्रभावित करते हैं। गहन शोध पर आधारित एक पठनीय आलेख।
ReplyDeleteहमने तो खैर कुलदेवता देखे नहीं, बस सावन के महीने में एक दिन गूगा के नाम पर मीठे पूडे बनते थे और जल्दी से कहीं खुली जगह(खेत तो बचे ही नहीं थे आसपास) में उनका हिस्सा डालकर गरम गरम मीठे पूडे खाने को मिलते थे, वो याद है|
ReplyDeleteउद्देश्य हमारे अंदर आस्था पैदा अकरने का ही रहा होगा, कोई भी शुभ कार्य हो या अमंगल का डर, आस्था हमें विश्वास देती है|
मन तृप्त करते हैं ऐसे आलेख आपके।
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी है चाचा जी
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी है चाचा जी
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