आजादी के बाद का दौर। मध्यप्रांत यानि सेन्ट्रल प्राविन्सेस एंड बरार में छत्तीसगढ़ का कस्बा- अकलतरा। अब आजादी के दीवानों, सेनानियों की उर्जा नवनिर्माण में लग रही थी। छत्तीसगढ़ के गौरव और अस्मिता के साथ अपने देश, काल, पात्र-प्रासंगिक रचनाओं से पहचान गढ़ रहे थे पं. द्वारिकाप्रसाद तिवारी 'विप्र'। यहां संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत है उनकी काव्य रचना स्वर्गीय डा. इन्द्रजीतसिंह और ठा. छेदीलाल-
बैरिस्टर ठाकुर छेदीलालजन्म-07 अगस्त 1891, निधन-18 सितम्बर 1956
पं. द्वारिकाप्रसाद तिवारी 'विप्र'
जन्म-06 जुलाई 1908, निधन-02 जनवरी 1982
लाल साहब डॉ. इन्द्रजीतसिंह
जन्म-28 अप्रैल 1906 (पासपोर्ट पर अन्यथा 05 फरवरी 1906), निधन-26 जनवरी 1952
अकलतरा में सन 1949 में सहकारी बैंक की स्थापना हुई, बैंक के पहले प्रबंधक का नाम लोग बासिन बाबू याद करते हैं। डा. इन्द्रजीतसिंह द्वारा भेंट-स्वरूप दी गई भूमि पर बैंक का अपना भवन, तार्किक अनुमान है कि 1953 में बना, इस बीच उनका निधन हो गया। उनकी स्मृति में भवन का नामकरण हुआ और उनकी तस्वीर लगाई गई। लाल साहब के चित्र का अनावरण उनके अभिन्न मित्र सक्ती के राजा श्री लीलाधर सिंह जी ने किया। इस अवसर के लिए 'विप्र' जी ने यह कविता रची थी।
स्वर्गीय डा. इन्द्रजीतसिंह(1)
जिसके जीवन के ही समस्त हो गये विफल मनसूबे हैं।
जिस स्नेही के उठ जाने से हम शोक सिंधु में डूबे हैं॥
हम गर्व उन्हें पा करते थे - पर आज अधीर दिखाते हैं।
हम हंसकर उनसे मिलते थे अब नयन नीर बरसाते हैं॥
वह धन जन विद्या पूर्ण रहा फिर भी न कभी अभिमान किया।
है दुःख विप्र बस यही- कि ऐसा लाल सौ बरस नहीं जिया॥
(2)
सबको समता से माने वे- शुचि स्नेह सदा सरसाते थे।
छोटा हो या हो बड़ा व्यक्ति- सबको समान अपनाते थे॥
वे किसी समय भी कहीं मिलें- हंस करके हाथ मिलाते थे।
वे अपनी सदाचारिता से - हर का उल्लास बढ़ाते थे॥
वह कुटिल काल की करनी से - पार्थिव शरीर से हीन हुआ।
वह इन्द्रजीत सिंह सा मानव- क्यों ''विप्र'' सौ बरस नहीं जिया॥
(3)
राजा का वह था लाल और, राजा समान रख चाल ढाल।
राजसी भोग सब किया और था राज कृपा से भी निहाल॥
जीते जी ऐसी शान रही- मर कर भी देखो वही शान।
हम सभी स्वजन के बीच ''विप्र'' सम्मानित वह राजा समान॥
तस्वीर भी जिसकी राजा का संसर्ग देख हरषाती है।
श्री लीलाधर सिंह राजा के ही हाथों खोली जाती है॥
थोड़े बरस बाद ही डा. इन्द्रजीतसिंह के निधन का शोक फिर ताजा, बल्कि दुहरा हो गया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, युग-नायक बैरिस्टर छेदीलाल नहीं रहे, तब 'विप्र' जी ने कविता रची-
ठा. छेदीलाल अकलतरा के दो जगमग सितारे थे-
दोनों ने अमर नाम स्वर्ग जाके कर लिया।
विद्या के सागर शीलता में ये उजागर थे -
दोनों का अस्त होना सबको अखर गया॥
काल क्रूर कपटी कुचाली किया घात ऐसा-
छत्तीसगढ़ को तू वैभव हीन ही कर दिया-
एक लाल इन्द्रजीत सिंह को तू छीना ही था-
बालिस्टर छेदीलाल को भी तू हर लिया॥
छेदी लाल छत्तीसगढ़ क्षेत्र के स्तम्भ रहे-
महा गुणवान धर्म नीति के जनैया थे।
राजनीति के वो प्रकाण्ड पंडित ही रहे-
छोटे और बड़े के समान रूप भैया थे।
राम कथा कृष्ण लीला दर्शन साहित्य आदि-
सब में पारंगत विप्र आदर करैया थे।
गांव में, जिला में और प्रान्त में प्रतिष्ठित क्या-
भारत की मुक्ति में भी हाथ बटवैया थे॥
छिड़ा था स्वतंत्रता का विकट संग्राम -
छोड़कर बालिस्टरी फिकर किये स्वराज की।
आन्दोलनकारी बन जेल गये कई बार -
चिन्ता नहीं किये रंच मात्र निज काज की।
अगुहा बने जो नेता हुए महाकौशल के -
भारत माता भी ऐसे पुत्र पाके नाज की।
ऐसा नर रत्न आज हमसे अलगाया 'विप्र'-
गति नहिं जानी जात बिधना के राज की॥
बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल जी पर एक पोस्ट पूर्व में लगा चुका हूं, उन पर लिखी पुस्तक की समीक्षा डॉ. ब्रजकिशोर प्रसाद ने की है। अंचल के प्रथम मानवशास्त्री डॉ. इन्द्रजीत सिंह जी का शोध पुस्तककार सन 1944 में प्रकाशित हुआ, उनसे संबंधित कुछ जानकारियां आरंभ पर हैं इस पोस्ट की तैयारी में तथ्यों की तलाश में पुष्टि के लिए उनका पासपोर्ट (जन्म स्थान, जन्म तिथि के अलावा कद 6 फुट 2 इंच उल्लेख सहित) और विजिटिंग कार्ड मिला गया, वह भी यहां लगा रहा हूं-
ऐसे अतीत का स्मरण हम अकलतरावासियों के लिए प्रेरणा है।
बैरिस्टर साहब का जन्मदिन, हिन्दी तिथि (तीज-श्रावण शुक्ल तृतीया) के आधार पर पं. लक्ष्मीकांत जी शर्मा के ''देव पंचांग'' कार्यालय, रायपुर द्वारा परिगणित है।
beautiful,collectable nice post.
ReplyDeletei love it .they are our role model.
thanks sir .
श्रद्धांजलि का अनुपम तरीका ।
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति के लिए ।।
कविता के बारे में सुना था,जल्दी में देखा था ,आज मिल भी गयी ,मेरी प्रारंभिक रूचि और अपने विषय चयन पर मुझे संतोष है .मेरी यह पोस्ट पापुलर भी हुई थी .मुझे इस विषय पर और पढ़ना लिखना है ...
ReplyDeleteअकलतरा के इन नगीनों को श्रद्धांजलि देती यह पोस्ट अपने आप में विशिष्ट बन गयी है.
ReplyDelete'विप्र' जी ने अपनी काव्य-प्रतिभा से ठाकुर इन्द्रजीत जी और छेदीलाल जी का यशोगान भी कर दिया और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि भी अर्पित कर दी.अलकतरा के तीनों सितारे धन्य हैं !
ReplyDeleteतीसरे यानि विप्र जी अकलतरा से घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे, लेकिन अकलतरा उनका जन्म स्थान नहीं.
Deleteवो दौर हा अइसे रिहीस कि अकलतरा जागीरदार परिवार के हर दूसरा विलायत जाके पढ़के आ जात रिहिन अयू भारत माता सेवा म लग जात रिहीन हे अकलतरा के सिसोदिया परिवार के नाम दूर दूर तक हे काबा पुराना सियान मन बहुत तपस्वी रिहिंन हे काबा कि भारत आजादी से लेके सियान मन जबतक रिहिन तबतक ध्रु तारा रिहिन, क्थे ना राजपूत मनके सूर्य कभी अस्त नई होय कहां मारवाड़ ले सिसोदिया परिवार के पूर्वज मन सेना के नेतृत्व करत सेनापति के रूप मां आईंन कब आइन १७ वी शताब्दी के मध्य म लगथे इहां अकलतरा क्षेत्र के हवा पानी हा रास आ गईस फेर का इहें के होके रहीगें अऊ फेर अकलतरा के अपन इतिहास हे, आजादी के लड़ाई के सेनानी पूज्य बालिस्टर साहब छेदीलाल सिंह जी,पूज्य डाक्टर इंद्रजीत सिंह जी के द्वारा गोंड मन के ऊपर लिखे किताब आज भी लखनऊ विश्वविद्यालय म चलथ हावे लगथे अकलतरा सिसोदिया परिवार ल लक्ष्मी
Deleteअऊ सरस्वती के वरदान प्राप्त हे , वो मन हृदय सम्राट रिहिन वो मन ब लिखना याने सुरज ल दीया दे खाना हे,अभी लिखना ह जारी रही फिलहाल ब लिखना बंद करत हन जी
जय छत्तीसगढ़ महतारी
पूज्य द्वारिका प्रसाद विप्र जी ल सत सत नमन वो एक महान व्यक्तित्व के धनी रिहिन हे ऊकर छत्तीसगढ़ हा सदा ऋणी रही। जय छत्तीसगढ़ महतारी
Deleteवाह, आप इतिहास को सामने लाने का काम बहुत अच्छी तरह कर रहे हैं, आभार!
ReplyDeleteअलकतरा के इन ज्वाजल्य्मान नक्षत्रों को नमन !
ReplyDeleteअलकतरा नामकरण का भी कोई विवेचन उपलब्ध है क्या ?
ओह दृष्टि भ्रम से अकलतरा का अलकतरा पढता गया :( सारी !
ReplyDeleteस्वर्गीय डा. इन्द्रजीतसिंह के बारे में लिखी विप्र जी की कविता की पहली पंक्ति कुछ कन्फयूजिंग सी लगी, शायद मैं ही नहीं समझ पाया
ReplyDeleteइस पोस्ट में दी हुई बहुत सी जानकारी मेरे लिए भी नयी है. इतने साल अकलतरा में रहते हुए भी.द जानकारी के लिएधन्यवाद
ReplyDeleteपढा।
ReplyDeleteमेरी हैरानी The Gonwana and the Gonds के अध्ययन के समय को लेकर है बड़ा कठिन समय रहा होगा क्षेत्रीय अध्ययनों के हिसाब से !
ReplyDeleteयह उपलब्धि असाधारण है !
Gonwana = Gondwana
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ को जानने-समझने की प्रक्रिया में लगे हमारे जैसे विद्यार्थियों के लिए बेहद उपयोगी...
ReplyDeleteप्रणाम
बिकास के शर्मा
वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अकलतरा के इन सितारों को जानना अच्छा लगा.
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी..
जिन्होने समाज और क्षेत्र को कितना कुछ दिया, उनके सम्मान में कुछ स्मृति-पुष्प चढ़ाना हमारा कर्तव्य है, आपको इस कर्म में अग्रणी रहने का आभार।
ReplyDeleteपाठकों के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि अकलतरा के दोनों सितारों की चमक राष्ट्रीयस्तर पर महसूस की गयी थी .अकलतरा के सितारे से यह आशय लिया जाना चाहिए कि इन दोनों क जन्म स्थान अकलतरा था .सितारे तो ये राष्ट्रीय थे
ReplyDeleteउन्हें यूं याद करना ही सच्ची श्रद्धांजलि है ......
ReplyDeleteबहुत कुछ जानने समझने को मिलता है यहां आकर।
ReplyDeleteमेरे लिए नई और अच्छी जानकारी...
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ की इन महान विभूतियों के विषय में गूढ़ जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह! आपका अनेकानेक आभार इन जानकारियों को साझा करने हेतु।
ReplyDelete'अलकतरा' शब्द का कस्बा भी है! पहले तो यही चौंकने की बात हुई अपने लिए। फिर अलकतरे की रोशनी में नहा भी गये।..बहुत खूब।
ReplyDeleteakaltara.
Deleteउपर अरविंद जी को भी यही भ्रम हुआ है और यहां संजय जी ने स्पष्ट कर ही दिया है ''अ क ल त रा'' न कि ''अ ल क त रा''
Deleteहे भगवान! भयंकर दृष्टि भ्रम ! कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ। इसका प्रायश्चित करने के लिए 10 बार लिखना पड़ेगा..अकलतरा।
Deleteसुंदर प्रस्तुति , आभार
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ReplyDeleteछत्तीसगढ़ की विभूतियों पर आप लगातार काम कर रहे हैं और साथ ही इन्हें सहेज भी रहे हैं, यह देखकर बड़ा सुख मिलता है।
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteसार्थक और सटीक
ReplyDeleteआभार इन जानकारियों को साझा करने हेतु
इस शोधपरक आलेख बहुत सारा इतिहास समेटे है. धन्यबाद इस जानकारी को साझा करने हेतु. बधाई एवं आभार राहुल जी.
ReplyDeleteआह..कितना विनम्र...कितना हृदयस्पर्शी श्रद्धांजलि...अभिभूत कर गयी..
ReplyDeleteआजकल शोधपूर्ण लेखन चल रहा है .....मतलब आप हमारे साथ कम्पीटीशन में हैं ....जय हो ...!
ReplyDeleteआप शायद विषय तय कर शोध कर रहे हैं केवल जी, मेरा काम जरा मनमाना किस्म का है, जो मिल गया उसे ही शोध शैली में प्रस्तुत कर दिया, यानि कहां ब्लागरी-शोध और कहां डिग्री-शोध. (हम ठहरे हुए से हैं, बल्कि ठिठक-ठिठक कर पीछे देखते हुए और आप लगातार आगे बढ़ते हुए, कम्पिटीशन कैसा? आपका मार्ग प्रशस्त हो, शुभकामनाएं).
ReplyDeleteमैंने भी लगातार इसे अलकतरा ही पढ़ा था अगर टिप्पणियों पर निगाह न पड़ती तो ...
ReplyDeleteऐसा क्यों ...
लगता है कि पोस्ट का शीर्षक पढ़ने में अधिक सजग रहने और प्रूफ में गलतियों की संभावना/कारण की ओर भी ध्यान दिला रहा है.
Deleteछत्तीसगढ़ की इन महान विभूतियों के विषय में गूढ़ जानकारी देने के लिए बहुत२ आभार,....
ReplyDeleteMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
ज्ञानवर्धक पोस्ट यहाँ आकर इन महान विभूतियों के बारे में इतने विस्तार से पढ़ने का मौका मिला बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteविप्र जी द्वारा रचित गाथा अदभुत.............बढिया पोस्ट.............रोचक शैली.........बधाई भैया......
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ के बारे में बहुत सुंदर जानकारी मिली । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । । धन्यवाद ।
ReplyDeleteस्थानीय इतिहास को सामने लाने का आपका यह अभियान जारी रहे।
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ReplyDeletemy web blog; tantric massage in London expalined
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करने के लिए आपको सादर धन्यवाद
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