तब जो कुछ करता था, वह 'क्या करते हो?' के जवाब में पूरा नहीं पड़ता था, इसलिए 'बेरोजगार' शब्द टालने के लिए ही नहीं, तब उसकी तासीर समझने में भी काम आया था। लगभग बिना प्रयोजन तब लिखा अपना यह नोट 'कोरबा' के साथ मिल गया, ब्लागरी होती तो तभी लग जाता, अब सही...
बिलासपुर जिले के कोरबा-गेवरा की खुली कोयला खदान, दुनिया की अपने तरह की सबसे बड़ी खदानें हैं, जिनमें कभी न बुझने वाली आग धधकती रहती है, और कोयले के आग की तासीर भी कुछ खास होती है। राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम, एनटीपीसी, कोरबा के छंटनीशुदा कर्मचारी, 33 वर्षीय कामेश्वर सिंह ने नियमित सेवा में लिये जाने की मांग पूरी न होने के कारण 26 फरवरी को शाम 6 बजे आत्मदाह की घोषणा की थी।
समय से पहले लोग वहां जमा होने लगे और उत्तेजना बढ़ने लगी थी। उधर कामेश्वर एनटीपीसी कार्यालय के पास नाले पर किनारे-किनारे लुकता-छिपता आगे बढ़ रहा था। उसने मैले-कुचैले कपड़े पहन रखे थे, उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं था। 6 बजे के कुछ ही मिनटों बाद वह गेट नं. 2 पर प्रकट हुआ और माचिस की तीली से पेट्रोल बुझे अपने कपड़ो में आग लगा ली। लोगों का ध्यान इस भभकते शोले की ओर गया। कुछ ने रेत और धूल से आग बुझाने की कोशिश भी की किन्तु देखते-देखते वह 80 प्रतिशत झुलस चुका था, उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। 22 घंटे की उसकी इस जद्दोजहद ने दम तोड़ा, 27 फरवरी को शाम 4 बजे और उसने अपनी धमकी को इस तरह कारगर कर दिखाया।
इस दुर्घटना की पृष्ठभूमि समझने के लिये कुछ दिन पीछे जाना होगा। कामेश्वर सिंह ग्राम रेवा, थाना सरैया, जिला मुजफ्फरनगर, बिहार का निवासी था। सन 1975 में मुजफ्फरपुर से बीए किया। 1978 तक बी.टी.ट्रेनिंग की। नवंबर 1978 में किसी रिश्तेदार के कहने-सुनने पर उसे एनटीपीसी में काम मिल जाने की बात बनी। 80 वर्षीया विधवा मां व 18 वर्षीय अपाहिज भाई का सहारा यह युवक कोरबा चला आया।
तब से 1 जनवरी 81 तक उसे समय-समय पर दैनिक भुगतान पर काम में रखा जाता रहा। कुछ अन्य सहकर्मियों की भांति उसे काम पर नियमित नहीं किया गया तो उसने इस आशय का एक पत्र एनटीपीसी के महाप्रबंधक को लिखा। पत्र पर कोई आशतीत प्रतिक्रिया न देखकर 16 जनवरी को आमरण अनशन पर बैठ गया। 2 दिन पश्चात ही पुलिस ने उस पर दफा 309, आत्महत्या का मामला बना दिया। इसके बाद उसका धैर्य जवाब देने लगा और अंततः उसने आत्मदाह की घोषणा कर डाली, किन्तु 2 फरवरी को महाप्रबंधक को एक पत्र में उसने लिखा कि आपके मौखिक आश्वासन पर अपने आत्मदाह की घोषणा वापस लेता हूं लेकिन आत्मदाह की तारीख 26 फरवरी निकट आते-आते उसने पुनः आत्मदाह की घोषणा कर दी।
इस घटना के बाद आत्मदाह के विभिन्न मसले इतने विवादग्रस्त हो गए कि कुछ मूल तथ्यों को छोड़ किसी भी बात पर दो मत एक जैसे नहीं है। कामेश्वर किस अमानवीयता का शिकार हुआ कि उसने अपना सहेजा-संभाला धैर्य पुनः खो डाला, कहना जरा मुश्किल है। किन्तु उसके आत्मदाह के पश्चात एनटीपीसी की ओर से दिये गये ब्यौरे के कुछ वाक्यों से स्थिति का काफी कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे- (एनटीपीसी की) ''फिर मानसिकता यह भी थी कि कोई क्यों आत्मदाह करेगा।'' ''प्रबंध तंत्र द्वारा काम पर वापस लेने के आश्वासन के उत्तर में वे कहते रहे कि अब वे एनटीपीसी में नौकरी करने में रूचि नहीं रखते। अंततः वे कतिपय तत्वों के बहकावे में आकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर आत्मदाह करने में सफल रहे'' आदि। यह भी उल्लेखनीय है कि आयुक्त, जिलाधीश और पुलिस उपमहानिरीक्षक उस दिन कोरबा में ही मौजूद थे।
अब इस घटना पर विभिन्न तरह की चर्चाएं हो रही हैं। एक नेता ने तो इस कांड की न्यायिक जांच की मांग करते हुए स्वयं भी आत्मदाह करने की घोषणा कर दी है। न जाने और किन-किन स्वार्थों की रोटी इस आग में सेंकी जायेगी। हो सकता है सरकार की ओर से मृतक के परिवार को कुछ सहायता दे दी जाय और एनटीपीसी प्रशासन को कुछ कड़े निर्देश दे दिये जाएं। किन्तु अब कामेश्वर नहीं हैं, लेकिन उनके पीछे उठने वाले सवाल जरूर हैं। आत्मदाह की स्थितियां पैदा करने के कारण और तात्कालिक परिस्थितियां, इसे रोका क्यों नहीं जा सका और सवाल यह भी कि एक बेरोजगार को अपनी स्थिति से ज्यादा सुखद जलकर मर जाना लगे तो बेरोजगारी के आग की तासीर क्या होगी।
अफ़सोस! दुखद घटना है। समस्याओं को एक मानवीय दृष्टिकोण की तलाश आज भी है।
ReplyDeleteसवाल का जवाब बहुत भयावह है| बेरोजगारी की आग में दाह निरंतर होता है और अकेले का नहीं होता, आश्रितों का भी होता है|
ReplyDeleteओह ....भयावह ..वेलफेयर स्टेट ?
ReplyDeleteदुर्भाग्यपूर्ण.
ReplyDeleteसंवेदना शून्य लोगों को जगाने के लिए यह एक अच्छा माध्यम है। रोज-रोज मरने से अच्छा है एक बार ऐसे मरो कि कम से कम मरने के बाद तो लोग महसूस करें कि उन्होने अपराध किया है। अब जिम्मेदारी हवाओं की है कि वे इस आग को कितनी देर तक जलाये रख सकते हैं। अग्नी कुण्ड में खुद को हवन कर देने वाले की इच्छा भी यही होती है कि आग जोर पकड़े और दुष्ट आत्माएं इसकी तासीर में जलकर स्वाहा हो जांय।
ReplyDeleteकामेश्वर नहीं है लेकिन दुआ करें कि कामेश्वर का बलिदान दूसरे बेरोजगारों की राह आसान करे, उन्हे भी हार कर ऐसा अनर्थ कदम न उठाना पड़े।
बेरोजगारी की पीड़ा समझना बहुत कठिन है, वह भी जब आप पर ही सबका उत्तरदायित्व हो। मार्मिक घटना।
ReplyDeleteउफ़ !
ReplyDeleteपीड़ा और अवसाद की गहन अनुभूति कराता आपका आलेख अनेक अनेक कामेश्वरों के गुमनाम अस्तित्व का पता देता है
अफ़सोस ! बहुत अफ़सोस !!
बेहद दुखदायी प्रकरण ...
ReplyDeleteकामेश्वर जैसों को बचाने की कोशिश कोई नहीं करता .
बड़ा मार्मिक कष्ट-प्रद, सारा यह दृष्टांत ।
ReplyDeleteअसहनीय जब परिस्थित, सहज लगे प्राणांत ।
सहज लगे प्राणांत, प्रशासन की अधमाई ।
या कोई षड्यंत्र, समझ मेरे ना आई ।
पर प्राणान्तक कष्ट, झेल तू प्रियजन खातिर ।
बिन तेरे परिवार, मिटा दे दुनिया शातिर ।
आज के दौर में ये घटना होती तो कई टीवी कैमरे उस पर फ्लैश कर रहे होते, लेकिन उसकी आग़ बुझाने की किसी को फिक्र नहीं होती...
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जय हिंद...
berojgari ki aaG N JANE KITNU KO SWAHA KARTI HAI
ReplyDeleteMushkilen chain reaction ki tarah aati hain ... ek ke baad ek. Eki to berojgari upar se aatmdaah ke baad ki rajniti . Afsos !
ReplyDeleteIs mahattvpoorn mudde ko hamse share karne ke liye aapka dhanyvaad chahaji ! Ummeed hai ki aisa aage na ho iske liye sab milkar prayas karenge .
मरना- आत्म हत्या समाधान नहीं ...
ReplyDeleteनिसंदेह.
Deleteये एक ऐसी समस्या है जिसका निदान खद्दर वेश धारी के लिए कोई प्राथमिकता नहीं रखती।
ReplyDeleteमार्मिक..... बहुत दुखद होती हैं ऐसी परिस्थितियां
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
बड़े हिम्मत का काम है खुद को मिटाना और
ReplyDeleteकितना त्रासद है कोई सहारा न मिलना.
शायद मरने की पीड़ा जीने से ज्यादा रही होगी .
जियादा नहीं आसूं न छलकें
बेरोजगारी बड़ा भद्दा सब्द है यह न सिर्फ रुपए से सम्बद्ध है बल्कि आदमी को यह अहसास भी करता के दुनिया के उसका होना या न होना कोई मायने नहीं रखता.यही निर्थकता का अहसास ही इसकी सबसे बुरी चीज है.फिर भी आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान तो नहीं है .पर आदमी भी तो आखिर आदमी ही है. इस पर अटल बिहारी बाजपाई की कविता की लाइन मुझे याद आ रही है. आदमी को चाहिए की वह परिस्थियों से लड़े | अगर उसका एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गड़े ||
ReplyDeleteमेरी एन्क्यावन कविता से
कामेश्वर सिंह को श्रद्धांजलि सहित
- विवेक राज सिंह, अकलतरा
At a time when Print and Electronic Media is incompetent to raise such issues and help enable individual to be Strengthen, such an initiation from your side (individually) is milestone to the development of alternate media...
ReplyDeleteGone are the days when Media used to write on such issues. In CG itself (esp Korba and Bilaspur)none of the newspapers are publishing news concerning irregularities in wages and other issues that may be of some help to people working out there in these specific areas.
Sir, Salute you for this Post.
Learning a lot from your posts...
Regards
Bikash K. Sharma
बेरोजगारी के आगे की स्थिति अराजकता है.
ReplyDeleteयहाँ से चमचागिरी का दौर शुरू होता है. दो जून की रोटी के खाते वक़्त शायद इंसान अपने द्वारा की जा रही नौकरी के काम से एक बरगी असंतुष्टि भी अंतर्मन में महसूस करता होगा..लेकिन परिवार के आगे वो इन सब बातों को भूलने की कोशिश में लगा रहता हैं..सुबह फिर उस "नौकरी" की और आगे बढ़ जाता है...
कम से कम समकालीन दौर में तो येही हो रहा हैं....बड़ा अधिकारी छोटे अधिकारी को निचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता है..
ये शासकीय और गैर शासकीय दोनों जगह लागु है..
बेहद अच्छा विषय
सादर
बिकास के शर्मा
संवेदनहीनता दुखद है , न जाने कितने कमेश्श्वर सिंह ,,,इस व्यवस्था में आत्मदाह करते रहेंगे...... कब तक
ReplyDeleteप्रश्न तो कई हैं हैं किन्तु उत्तर....?
ReplyDeleteसवाल मजबूत हो कर ही उत्तर की तलाश के लिए मजबूर करते हैं, वरना कठिन सवाल मानकर, आसान प्रश्नों को हल कर, पासिंग मार्क ले कर, व्यवस्था प्रगति के रास्ते तय कर लेती है.
Deleteसंवेदनहीनता की सीमा कहाँ तक जायेगी समझनहीं पाती .कहीं से कोई आसरा मिलता तो शायद वह इतना बड़ा कदम न उठाता.अत्यंत दुखद !
ReplyDeleteइस घटना के साथ दिल्ली विश्वविद्यलय छात्र स्व गोस्वामी द्वारा मंडल के विरोध में किये गए आत्मदाह की भी चर्चा की जानी चाहिए तभी बेरोजगारी और बेरोजगार रह जाने की भीति पर पूरी मानसिक यंत्रणा को समग्र रूप से देखा जा सकेगा और "राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है " जैसे बलिदानी,कवी ,साहित्यकार और जाने क्या -क्या ? की असलियत को
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