18 अक्टूबर की शाम लखनऊ में घटित, अरविंद केजरीवाल वाली घटना के बाद समाचारों में हमला और हादसा शब्द बार-बार आने लगा।
घटना, हमला और हादसा न कही जाए तो समाचारों की दुनिया सूनी होने लगती है शायद, क्योंकि बात चप्पल-जूते चलने तक हो तो यह कोई समाचार हुआ, वह तो कहीं भी, कभी भी हो जाता है।
अखबारों में यह खबर मुखपृष्ठ पर प्रमुखता से छापी गई थी, लेकिन (गनीमत रही कि) एक अखबार जो हमला-हादसा शब्द से बच रहा था, वह 'चप्पल चला दी' और 'चप्पल फेंक कर मारी' तक सीमित रहा, किन्तु इस अखबार में खबर एक कालम में सिमट गई है।
खबरों में बताया गया है कि अन्ना ने इसे लोकतंत्र पर हमला कहा है। यह भी कि श्री केजरीवाल पर हमले के बाद जितेंद्र की इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों ने जम कर पिटाई की। बाद में श्री केजरीवाल ने हमलावर को माफ भी कर दिया।
इस संदर्भ में कुछ सवाल हैं-? हमला, हादसा और हमलावर शब्द का इस्तेमाल,
? घटना को लोकतंत्र पर हमला कहा जाना,
? इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों द्वारा जितेंद्र की जम कर पिटाई,
? पीटने वाले सचमुच इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य थे,
? ऐसी जम कर पिटाई भी 'हमला' कही जा सकती है,
? जितेंद्र की पिटाई पर वक्तव्य/कार्रवाई।
ऐसा हर ''हमला-हादसा'' मेरी दृष्टि में असहमति-योग्य है।
इस बीच यह भी खबर है कि 6 नवम्बर 2001 को नागपुर में अरविंद केजरीवाल का भाषण हुआ और इस मौके पर 'घंटानाद' संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध किए जाने पर उनके कार्यकर्ताओं ने विरोधियों की जम कर पिटाई की है।
शब्दों पर जब भारी पड़ती है सनसनी, तब ऐसी रिपोर्टिन्गें बनती हैं।
ReplyDeleteआयोजित या अतिप्रचारित।
ReplyDelete@ ? नम्बर १,
ReplyDeleteनहीं इसे ना तो हमला कहा जा सकता है और ना ही हादसा और ना ही इस मामले में लिप्त पक्षकार द्वय को हमलावर अथवा पीड़ित !
यह क्रिया और प्रतिक्रिया पर आधारित एक सांकेतिक कृत्य है जिसमें पक्षकार द्वय अपने अपने तरीके से विरोध ( असहमति ) प्रदर्शन करते हैं ! चप्पल और शब्द अगर सांघातिक अस्त्र ना होकर भी सांघातिकता की प्रतीति देते हों तो पत्रकारों को हिंसा और हमला जैसा भ्रम हो सकता है क्योंकि यही एक कौम है जो लोकतंत्र के पांचवें स्तंभ होने के भ्रम में जीती है जबकि यह केवल एक सैद्धांतिक आशय मात्र है वास्तविकता नहीं :)
@ ? नम्बर २,
जी नहीं ,लोकतंत्र पर हमले का मतलब है बाहुबल / धनबल के आधार पर सत्ता पर काबिज हो जाना और जनगण के अधिकारों का नाजायज उल्लंघन और सत्ता का निज हित में दुरूपयोग :)
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दुरूपयोग की क्रिया पर प्रतिक्रिया लोकतंत्र पे हमला नहीं मानी जा सकती !
@ ? नम्बर ३,
यह हिंसा है , कानून को अपने हाथ में लेना है ,सांकेतिक विरोध का जबाब बल से देना है ,घोर अनैतिक है ,गुंडागर्दी है !
@ ? नम्बर ४,
इंडिया भारत में ना रहे तो सब का भला है :)
हिंसक गिरोहबंदी का नमूना है ये जो शांतिप्रिय आन्दोलनों की आड़ में छुपे लोगों को बेनकाब करता है :)
@ ? नम्बर ५,
जी यह कानून के राज्य को बलात 'हामिला' करने जैसा है :)
आगे आप जो भी समझें ! जो भी कहें :)
@ ? नम्बर ६ ,
राजनीति के अंदेशे ना हों तो हिम्मत की जा सकती है :)
बहरहाल एक शानदार पोस्ट के लिए बधाई और आपकी असहमति से सहमत !
हम आपसे सहमत हैं
ReplyDeleteगनीमत है प्रलय भूकंप जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं हूआ ा
ReplyDeleteशत प्रतिशत सहमत ....!
ReplyDeleteअहिंसा की परिभाषा बदल गई है...
ReplyDeleteहिंसा एक आदमी करता है...जब सौ आदमी किसी एक को पीटते हैं तो वो अहिंसा होती है...
जय हिंद...
वाह जी, अब लोकतंत्र का पर्याय केजरीवाल…मीडिया जो न कहे, करवाए और हाँ, पिटवाए…
ReplyDeleteप्रचार का युग है।
ReplyDeleteहर कोई अपना-अपना काम कर रहा है।
हम भी पढ़-सुन और बहस कर!
अन्ना संसद से ऊपर और केजरीवाल लोकतंत्र के पर्याय !
ReplyDeleteइनकी खींचातानी में तो समझ ही नहीं आ रहा कि कौन सही है कौन गलत !!!
hajare ke changoo mangoo ko pressne sir chadha rakha hai ,enki niyat ,enka bayan sabhi asahmati hi nahi kandam kiya jana chahiye ,ye desh ki yvkon ko gumrah karne ke doshee hai ,enki pol patti khul chuki ,hajare bhi kapda odh ke panee pe rahe hai ya fir kisi shadyantr me fans gaye hai na ugalte ban raha hai na nugalte
ReplyDeleteजनता को कुछ भी समझ में न आए .. यही जनतंत्र है !!
ReplyDeleteप्रचार का युग ... सच है पता नहीं कौन करवाता है... क्यों करवाता है ... और करने वाला क्यों करता है ...
ReplyDeleteरिपोर्टरों से भाषाविद् होने की अपेक्षा करना मैंने बहुत पहले ही छोड़ दिया था...
ReplyDeleteऐसे मुद्दों पर बहस समय और संसाधन का दुरूपयोग है...
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । मेर नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteSahmat hun aapse.....aise prasang loktantr ke virodh me jaate hain.
ReplyDeleteऐसी ख़बरों को नजरअंदाज करने का वक्त आने वाला है शायद ...
ReplyDeleteकेजरीवाल को लोकतंत्र मानने का मन नहीं होता...
आज-कल खबर यही है,आभार.
ReplyDeleteसहमत हूँ......इन्हें ख़बरें नहीं कहा जा सकता ... यह सनसनी फैलाना है....
ReplyDeleteआधारभूत किन्तु अत्यधिक असुविधाजनक प्रश्न। पत्रकारों ने आपके प्रश्नों को अपने विचार-विमर्श का विषय बनाना चाहिए। हिन्दी के सन्दर्भों में इतनी बारीकी से सोचना आज की पहली आवश्यकता है।
ReplyDelete@ मनोज जी, काजल जी, अरुण जी, विष्णु जी...
ReplyDeleteभाषा के अनुचित बरताव से उसकी अर्थवत्ता का संकट हमारे पूरे बौद्धिक संसार के छल-छद्म को उजागर करता है.
ऐसी घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं "बदनाम हुये तो क्या नाम न होगा?" वाली मानसिकता दिखती है।
ReplyDeleteजब तक मिर्च मसाले न लगाकर शीर्षक बनाएं अखबारों में खबरों को पढेगा कौन......? (ये हकीकत है या नहीं यह तो समझ नहीं आया पर अखबारवाले इस तथ्य को मानते जरूर हैं)
ReplyDeleteकई बार होता यह है कि शीर्षक कुछ और होता है और अंदर खबर में कुछ और। सनसनी फैलाने शीर्षक को बढा चढाकर पेश किया जाता है।
बहरहाल अच्छी प्रस्तुति।
अली जी से सहमत होने के अलावा कोई चारा नहीं दीखता.
ReplyDeleteहाट न्यूज :)
ReplyDeleteऐसे भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग कर वे पाठकों/दर्शकों को खींचना चाहते हैं..पर भाषा के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं...जिसकी उन्हें कोई फ़िक्र नहीं होती.
ReplyDeleteहमला हादसा के जघा म कुकृत्य लिखई ल कुकृत्य समझिस होही
ReplyDeleteआगे देखते हैं...
ReplyDeleteयह तो आजका दुर्भाग्य है सच शोर में कहीं को जाते हैं।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट शब्दों के प्रयोग पर है। अच्छा विश्लेषण किया है आपने। आज की पत्रकारिता शब्दों का प्रयोग सोच समझकर नहीं कर रही है। उसका नुकसान यही है कि शब्द अपनी सत्ता खो रहे हैं। आपकी असहमति पर हमारी सहमति है।
ReplyDeleteअखबारों का तो काम है सनसनी फैलाना ।
ReplyDeleteसहमत हूं आपसे। सौ-प्रतिशत।
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