मेरी शतकीय पोस्ट, मेरे सैकड़ा फालोअर, सौ पार टिप्पणियां, ऐसा कुछ भी नहीं है इस पोस्ट के साथ, इसलिए यह क्या खाक पोस्ट, यह तो अपोस्ट है, लेकिन अपनी है इसलिए मान लिया कि 'अ' जुड़कर, पोस्ट से एक कदम आगे है, सो आगे बढ़ें। पोस्ट, फालोअर, फीड बर्नर पाठक, टिप्पणी के शतक और विजिट संख्या पर पोस्ट लगाने का चलन रहा है। हिंदी ब्लागिंग के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में अर्द्धशतक पर और दशक पर भी पोस्ट लगा करेगी। गहन चिंतन कर रहा हूं मैं। सिर खुजाने की मुद्रा से आगे, ठुड्ढी पर हाथ देने की नौबत आने लगी है।
मुझ चिंतित-भ्रमित जिज्ञासु की मुलाकात ब्लागाचार्य पं. चतुरानन शास्त्री 'दशरूप' जी से हो गई। उन्होंने समझाया कि जमाना क्रिकेट का है, देखते हो क्रिकेट का क्रेज, हर रन पर रिकार्ड और रन न बने तो भी रिकार्ड। इसी तरह हर पोस्ट रिकार्ड और पोस्ट न लिखो तो भी पोस्ट। आगे आने वाले कुछ दिनों में कोई पोस्ट न लिखनी हो तो उसकी पोस्ट। कुछ दिनों का अंतराल रहा तो उस पर पोस्ट, लौटे तब तो पोस्ट की बनती ही है, उसकी गिनती भी ब्लाग पेज पर और चर्चा-वार्ता, संकलक मंच पर भी। क्यों न रहे रिकार्ड इनका। रिकार्ड न रखने के कारण ही हम पिछड़ जाते हैं। आंकड़े तो जरूरी हैं, जनगणना से मतगणना तक। इसी के दम पर चलती है देश-दुनिया। चांदनी की ठंडक और उजास, नदी की धारा, फूलों का रंग और खुशबू, बच्चे की खिलखिलाहट, मुंह में घुलता स्वाद सब डिजिटलाइज हो रहा है और अब तो तुम्हारा अस्तित्व ही यूआइडी का अंक होगा। लगता है अपनी परम्परा का ढाई आखर का प्रेम भी याद नहीं तुम्हें।
निजी आक्षेप होता देख, हम भी उतारू हो गए और बात का रूख मोड़ना चाहा। पूछा- लेकिन ब्लाग पर रोज-ब-रोज पोस्ट, सार्थकता..., औचित्य..., स्तर..., विषय कहां से आएंगे। थोड़ा चिढ़ाया भी, तुकबंदी नमूना बात कह कर कि-
यहां अखबारी खबरों की तरह रोज इतिहास बन रहा है,
और महीना बीतते-बीतते हर महान रद्दी में बिक रहा है।यहां अखबारी खबरों की तरह रोज इतिहास बन रहा है,
वे पहले तो उखड़े, नश्वरता का सिद्धांत निरूपित किया, फिर धारा-प्रवाह शुरू हो गए। ब्लागर के लिए हर दिन नया दिन, हर रात नई रात होनी चाहिए। अंतःदृष्टि, चर्म-चक्षु और मोबाइल कैमरे की आंख, बस, अगर प्रतिभा हो तो दिन भर में एक पोस्ट तो बनती ही है। ब्लागरी का सार्थक जीवन व्यतीत करते, दृष्टि-संपन्न ब्लागर के लिए ऐसा दिन हो ही नहीं सकता, जो पोस्ट-संभावनायुक्त न हो। घर से बाहर निकलो तो पोस्ट, घर में ही बने रहो तो पोस्ट। जिस तरह मछली अपने तेल में ही पक सकती है वैसे ही कुछ न हो तो ब्लाग, ब्लागर, ब्लागरी, ब्लागर सम्मेलन, ब्लागर मिलन या टिप्पणियों और पोस्ट पर भी तो पोस्ट बनती है। फिर भी कसर रहे तो जयंती, जन्मतिथि, पुण्यतिथि, श्रद्धांजलि, बधाई, शुभकामनाएं, और कुछ नहीं तो पता कर लो साल के 365 में 465 नमूने के डे होने लगे हैं आजकल...। निरर्थक प्रश्नों में मत उलझो, वृथा ही दिग्भ्रमित होते हो। बस, अंतर्जालीय महाजाल के असीम को असीम से पूर्ण करते चलो। ब्लाग साहित्य का भंडार समृद्ध करो, तथास्तु।
हम तो यों ही अपना ब्लाग पेज बना कर कभी-कभार, नया-पुराना कुछ डालते रहे हैं। लगा कि ब्लागरी के ऐसे संस्कार नहीं मिल पाए हमें, क्या करें। लेकिन यह समझ में आया कि ऐसे ब्लाग, जिसके फालोअर या फीड बर्नर पाठकों की संख्या चार-पांच शतक पार हो, ऐसी पोस्ट, जिस पर टिप्पणियां सैकड़ा पार करती हों, अथवा पेज विजिट हजार से अधिक हों, (चाहे जितने आरोप लगते रहें लेन-देन, खुजाल-खुजाई के) इससे हिंदी ब्लॉगिंग के भविष्य का संकेत मिल सकता है और इतिहास की तस्वीर साफ हो सकेगी। ब्लागाचार्य जी के इस 'पोस्टमार्टम' का असर है, अपोस्ट जैसी यह ब्लागरी पोस्ट, उन्हीं को समर्पित..., तेरा तुझको सौंपता...।
पुनश्च- विशेषज्ञों ने टिप्पणियों का परीक्षण 'दाढ़ी में तिनका' तर्ज पर करने का आश्वासन दिया है।
दिल की बात कलम से लिख डाली है।
ReplyDeleteमतलब पोस्ट और वह भी हिन्दी के अ के साथ अपोस्ट! हमने तो आँकड़ा हटा दिया है अपने ब्लाग से और मेरे पास तो कई तरकीब है टिप्पणियों की संख्या को बढ़ाने की लेकिन क्या फायदा? कुछ वैसा ही कह दिया है आपने जैसे कहते हैं न कि हम सोच रहे हैं कि क्या सोचें। वैसे वास्तव में हर दिन पोस्ट लिखी जा सकती है लेकिन वह पोस्टमार्टम के लायक ही रह जाएगी।
ReplyDeleteयह भी तो सेल्फ प्रमोशन की ही एक स्टाईल है थोडा लजाते हुए -अवगुंठित!:)
ReplyDeleteएक समय था जब फिल्मों की सफलता उनकी जुबिली से आंकी जाती थी, ऐक्टर जुबिली कुमार कहे जाने लगे... कमाल अमरोही चाहते थे कि उनकी फिल्म "दिल अपना और प्रीत पराई" फ्लॉप हो जाए ताकि किशोर साहू को नीचा दिखाया जाए, अपना नाम प्रोड्यूसर से हटा लिया और कहा कि जुबली हुई तो तुम्हें अम्बेसडर गाड़ी दे दूंगा.. फिल्म जब जुबिली के करीब पहुँच गयी तो फिल्म में बतौर प्रोड्यूसर अपना नाम दाल दिया, पोस्टर बदल दिए.. फिल्म जुबिली हो गयी और किशोर साहू का कहना था कि मुझे आज भी गाड़ी मिलने का इंतज़ार है..
ReplyDeleteफिर फ़िल्में जुबिली होती ही नहीं थी, टाइम किसके पास था..शुरू हुआ सौवां दिन मनाने का सिलसिला...
होता है राहुल सर! अपने बच्चे का जन्मदिन मनाने की तबियत होती है, भले अपना भूल जाएँ.. और यह सबकुछ दूसरों के लिए ही तो है (अच्छा या बुरा पता नहीं) खुशी बांटने के लिए!! स्वर्णजटित सिंहासन की किसे चाह होगी अगर सिंहासन से नीचे कोइ प्रजा दिखाई न दे!!
मनाते हैं लोग, ब्लॉग की छमाही और सालाना, पोस्टों के अर्धशतक और शतक, फोलोवर की संख्या वगैरह के जश्न.. ये सालगिरह, शतक वगैरह इसलिए मनाते हैं कि पता नहीं कब तेरवीं मनाने की नौबत आ जाए! वैसे भी किसी ने कहा है ब्लॉग जगत में सब दिनभंगुर है. ऐसे में सौ दिन, सौ पोस्टें जमा लेना उपलब्धि है!! जश्न तो बनाता है!! कुछ मीठा हो जाए!!
श्री श्री १००८ ब्लौगाचार्य जी से हमारा परिचय नहीं करायेंगे?
ReplyDeleteअकविता, अकहानी के बाद अब अपोस्ट? अब डर है कि देरिदा की तर्ज पर ब्लौगिंग में विखंडन वाद न चल पड़े.
कहते हैं कि एक डॉक्यूमेंट्री में एक फ़िल्मकार देरीदा के पुस्तकालय में घूमते वक़्त उनसे पूछता है - क्या आपने ये सारी किताबें पढ़ी हैं?
इसके जवाब में देरीदा ने कहा, "नहीं. मैंने केवल चार किताबें पढ़ीं मगर मैंने उनको बहुत, बहुत सावधानी से पढ़ा".
आपको अपने ब्लौग के लिए ऐसे बहुत से पाठक ज़रूर मिलेंगे :)
"हम तो यों ही अपना ब्लाग पेज बना कर कभी-कभार, नया-पुराना कुछ डालते रहे हैं। लगा कि ब्लागरी के ऐसे संस्कार नहीं मिल पाए हमें, क्या करें। लेकिन यह समझ में आया कि ऐसे ब्लाग, जिसके फालोअर या फीड बर्नर पाठकों की संख्या चार-पांच शतक पार हो, ऐसी पोस्ट, जिस पर टिप्पणियां सैकड़ा पार करती हों, अथवा पेज विजिट हजार से अधिक हों,''.... यह ब्लोगरों पर व्यंग्य है... आपकी अपोस्ट भी गहरे अर्थ रखती है...
ReplyDelete@
ReplyDeleteनिजी आक्षेप होता देख, हम भी उतारू हो गए और बात का रूख मोड़ना चाहा। पूछा- लेकिन ब्लाग पर रोज-ब-रोज पोस्ट, सार्थकता..., औचित्य..., स्तर..., विषय कहां से आएंगे। थोड़ा चिढ़ाया भी, तुकबंदी नमूना बात कह कर कि-
यहां अखबारी खबरों की तरह रोज इतिहास बन रहा है,
और महीना बीतते-बीतते हर महान रद्दी में बिक रहा है।-----
--यह भी खूब रहा,आभार.
बात अच्छी है, तो उसकी हर जगह चर्चा करो,
ReplyDeleteहै बुरी तो दिल में रक्खो, फिर उसे अच्छा करो।
... हम याद कर रहे हैं आज कवि गुरु को उनकी पुण्य तिथि पर .. सादर आमंत्रित हैं ...
आज तो कुछ अलग ही हल्के फुल्के अंदाज में है पोस्ट ...मस्त राप्चिक :)
ReplyDeleteवैसे ये बात तो है कि लोग सौवीं पोस्ट ....हजारवीं पोस्ट के नाम अपनी पोस्टें लिखते हैं...लिखना बनता भी है, आखिर इस ब्लॉगरीय मकड़जाल में इतना लिख ले जाना भी सराहे जाने की बात है। लेकिन कुछ ऐसी भी पोस्टें दिखती हैं जिसका कोई तुक न बने...मसलन....
आज अचानक चाचा की याद आई......चाचा की याद के साथ उनके गमछे की याद आई.....गमछे की याद के साथ उसकी धूल-पसीने की याद आई.....इसलिये आज पोस्ट लिखने का मन हो रहा है - पसीने के प्रकार :)
उसके बाद क्यावाद शुरू होता है :)
क्या आप पसीने से डरते हैं
क्या आप पसीना पोंछने के लिये गमछा इस्तेमाल करते हैं
क्या आप पसीना सुखाने के लिये ड्रायर इस्तेमाल करते हैं :)
क्या..
क्या...
@मुझ चिंतित-भ्रमित जिज्ञासु की मुलाकात पं. ब्लागाचार्य शास्त्री 'दशरूप' जी से हो गई। उन्होंने समझाया कि जमाना क्रिकेट का है, देखते हो क्रिकेट का क्रेज, हर रन पर रिकार्ड और रन न बने तो भी रिकार्ड।
ReplyDeleteदुनिया क्षणभंगुर है, लोग आते और जाते हैं, इसलिए रिकार्ड तो सहेजने ही चाहिए और अवगत भी कराना चाहिए। हम भी गुरुओं की शास्त्रिय परिपाटी पर चल पड़े।
बिना गुरु के ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना पहचान नही।
पहचान बिना मान नहीं, मान बिना सम्मान नहीं॥
साहि्र का शेर याद आता है--
दुनिया ने तजुर्बातो हवादिश की शक्ल में।
जो कुछ मुझे दिया वो लौटा रहा हूँ मैं ॥
धुंवधार शतक की शु्भकामनाएं।
कुल मिला कर अपने मन की बात हिंदी ब्लॉग के लिए कहने के लिए भी एक पोस्ट यानी अपोस्ट तो बन ही गई | लिखना तो लिखना होता है किसी भी विषय पर लिखा जाये कुछ इन विषयों पर भी कमाल का लिख लेते है और कुछ वही धिसी पिटी वाली पोस्ट दे देते है फर्क तो दिख ही जाता है |
ReplyDeleteha ha ha ....... aur ek lambi se :-)
ReplyDeleteमुझे तो लगा कि इसका शीर्षक "उत्तर आधुनिक ब्लाग " होना चाहिए .आप के पोस्ट पर पहले दस कमेन्ट में शामिल होना संभव नही हो पा रहा है , इतनी तेजी से कमेन्ट आते हैं .
ReplyDeleteक्या लागे मेरा,
ReplyDeleteऊँ जय जगदीश हरे।
सबसे पहले इतने दिनों बाद मिली आपको प्रणाम आज दो बार पोस्ट पड़ी
ReplyDeleteयहां अखबारी खबरों की तरह रोज इतिहास बन रहा है,
और महीना बीतते-बीतते हर महान रद्दी में बिक रहा है।
अच्छा व्यंग |
ठीक कहा आपने, सार्थक लेखन का अभाव है. लोग अपने में मस्त हैं ....हमें तो अपना जन्म दिन तक याद नहीं ( कभी मनाया ही नहीं).फोन नंबर तो जैसे-तैसे याद कर पाया.
ReplyDeleteपर सोचता हूँ यह शतक-दशक मनाना भी तो एक स्ट्रेस रिलीजिंग फैक्टर है........इसलिए मनाने दो. हाँ ! यह चाचा के गमछे की याद पर पोस्ट ........:))
इधर कई कारणों से ब्लोग्स से थोड़ा दूर हूँ पर आपकी पोस्ट तो सीधा इन्बोक्स में डीलिवर हो जाती है तो छूटी नहीं एक भी... हाँ टिप्पणियाँ कर और पढ़ नहीं पाया.. वो टू डू लिस्ट में है :)
ReplyDeleteकल से परीक्षाएं हैं तो पढ़ाई में लगा था अभी और आपकी पोस्ट की होम डिलीवरी हुई.. पढके टिप्पणी करने से नहीं रोक पाया... प्रणाम स्वीकारें..
लग रहा है अपनी कलम से मेरी बात लिख दी आपने.. मैं तो ऐसी पोस्ट लिखने वालों की दाद देता हूँ.. इतनी लगन!!! मैं तो लिखने से पहले इतना सोचता हूँ जैसे नोबेल प्राइज़ के लिए एंट्री भेजनी हो.. ये और बात है कि इतना सोच के लिखने के बाद पोस्ट रद्दी ही निकल के आती है :) इसी चक्कर में अपनी ब्लोगिंग तो लगभग बंद ही हो चली है... लगता है गुरूजी का बताया तरीका ही अपनाना पडेगा..
अटिप्पणी-
ReplyDeleteगद्य की एक नई विधा से रू-ब-रू हुआ - ललित व्यंग्य !!
यह वाकई नई बात है - अपोस्ट, एक नई विधा...
ReplyDeleteअपोस्ट...यह मंत्र ज़रूर काम में लिया जायेगा ...महाराज...
ReplyDelete'अन्धों का हाथी' हो गई आपकी यह 'अपोस्ट' तो। जिसे जो समझाना हो, समझ ले - अपनी हसरत पूरी न होने का अफसाना? दूसरों की कामयाबी देख कर मन में उठी जलन? बिल्ली का खम्भा नोचना? अपने आलस्य को शालीन और साहित्यिक पुट से छुपाना? .........? सब कुछ कह कर अपनी ओर से कुछ न कहने की अदा में आपने सब कुछ हम नासमझ पाठकों की समझदारी पर छोडने की चतुराई बरत ली है। बिलकुल, 'जाकी रही भावना जैसी' की तर्ज पर।
ReplyDeleteसाफ लग रहा है, आप चुनाव लडने की तैयारी में हैं। 'राहुलजी संघर्ष करो! हम तुम्हारे साथ हैं।'
शतकीय पोस्ट का जश्न मनाने का अंदाज भी कीर्तिमान में शामिल होगा , आपका अपोस्ट नव-ब्लागरों के लिए कंपोस्ट का काम करेगा ,बधाई .
ReplyDeleteग़ज़ब कर दिया जी। कम्पोस्ट के कुछ अन्य क्लासिक उदाहरण (मुकदमे की धमकी से बचने के लिये नाम व पात्र काल्पनिक कर दिये गये हैं):
ReplyDelete- लेखक ज़, घ, क और ग को आज ईमेल करके बता दिया है कि जिस विषय को मैंने कभी पढा ही नहीं उस विषय के बारे में उनकी लिखी हर बात ग़लत है
- इतने दिन से ज़ुकाम था, आज इतनी बार नाक बही
- आज इतने कप कॉफ़ी पीने के बाद भी नित्यक्रिया नहीं हुई
- हर पोस्ट की तरह यह पोस्ट भी 20 साल से रोज़ घिसट कर मर रहे चुटकुले का भूत है
- मेरी पोस्ट "क" पढने के लिये मेरी पोस्ट "ज़" पर चटका लगायें और इस प्रकार कभी न टूटने वाला चक्र चलायें
- बेनामी प्रतियोगिता के लिये अपनी रचना भेजें - हम कौन हैं, इससे आपको क्या?
- उन्होने मुझसे मुलाकात पर 7 पोस्ट लिखीं, मैं उनसे मुलाकात पर 77 लिखूंगा।
....
पोस्ट लिखने के कई नए विकल्प भी सुझा दिए आपने. आभार. :-)
ReplyDeleteअब देखिए आपकी यह अपोस्ट भी हमारे ब्लागरोल में एक नए रूप में दिख रही है। उसके आईकान में आपकी तस्वीर नजर आ रही है। इसलिए इस अपोस्ट से भी एक नया रिकार्ड तो बना ही रहे हैं।
ReplyDelete*
बहरहाल आपने जो लिखा और भिगो भिगो को मारा है, उसका भी अपना अंदाज तो है ही। कभी कभी ऐसी पोस्ट भी लिख ही लेनी चाहिए ताकि अपने साथ साथ औरों की धूल भी झड़ जाए।
हासिले महफ़िल कमेंट अशोक बजाज जी का है "आपका अपोस्ट नव-ब्लागरों के लिए कंपोस्ट का काम करेगा" हा हा हा (वैसे भी लालबत्ती वालों की हर चीज खास ही होती है) ब्लागाचार्य पं. चतुरानन शास्त्री 'दशरूप' जी से हमे भी मिलवाईये हो सकता है कि मिले भी हों पर आपकी तरह मुलाकात न हुयी हो :)
ReplyDeleteराहुल जी,
ReplyDeleteआज का जमाना प्रचार प्रसार और शोमैनशिप का है। भारी विज्ञापनों से कचरा भी हीरे के मोल बिक जाता है और विज्ञापन के अभाव में सच्चा हीरा भी पानी के मोल बिकने के लिए तरसता रहता है। ब्लोगिंग में तो टिप्पणी ही आपकी कमाई है, इसलिए अपने पोस्टों का विज्ञापन करना भी निहायत जरूरी है।
बेहतर है कि आप भी स्वयं को जमाने के अनुरूप बदल लीजिए। जो लोग जमाने के साथ नहीं चल पाते उनकी पहचान ही लुप्त हो जाती है इसलिएः
जैसी चले बयार पीठ तैसी कर लीजे!
हा हा हा ..
ReplyDeleteचलिए मैंने भी कमेन्ट करने का एक रन बना लिया
शुरू से आखिर तक व्यंग्य की जबर्दस्त फुलझड़ियाँ हैं इस आलेख में
ReplyDeleteएक बारगी तो लगा किसी राष्ट्रीय अखबार का कॉलम पढ़ रहा हूँ| आप का साथ गर्व का आभास दिलाता है|
'रद्दी में बिक रहा' वाला हिस्सा बता रहा है कि आप के अन्तर्मन में अभी कई सारी पोस्ट्स आकार ले रही हैं|
लहुट के फ़ेर आ गेंव गा,माटी राख मांहगी होगे।
ReplyDeleteबने कस के मींजे हस, गऊ किन, मजा आगे॥
अभी एक पईत अऊ आए ला लागही ए डहर ॥:)
आप विचारों के धनी हैं. जब विषय था तो पोस्ट, नहीं है तो अ-पोस्ट. इसी श्रृंखला में एक संभावना और मेरे मस्तिष्क में प्रस्फुटित हुई कि जब पोस्ट अ-पोस्ट हो तो कैसा होगा जब कोई बिना पढे टिप्पणी कर दे और कौन जाने ब्लॉग पर टिप्पणी करने की होड में ऐसा हो भी चुका हो. संयोग से वह प्रासंगिक भी प्रतीत हुई हो. इसलिए पोस्ट करते रहिये उसे कोई नाम ना दीजिए...
ReplyDeleteबढ़िया अंदाज़ रहा ये भी....एकदम अलग सी अपोस्ट
ReplyDeleteवैसे सब सच ही लिखा है आपने....
kuchh sahi baatein kahi hai aapne...par jise khujal-khujaayi kehte hai, blogging ka kuchh had tak mool wohi sab logo ko ek doosre se jodne kaa hai..star aur anushaasan ke mudde to log khud tay karenge
ReplyDeletehumaara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
khujaal-khujaayi!!!
सही लिखा है सर, कुछ अलग सा हल्का पुलका पढकर बहुत अच्छा लगा .. मज़ा आ गया , अब रेगुलरली आया करूँगा .. बहुत बधाई ...
ReplyDeleteआभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
गज़ब ढ़ाते है आप भी। हरदिल अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत खूब कहा है आपने ....अंदाज पसंद आया ...आभार
ReplyDeleteआपकी इस अपोस्ट मेँ सफल ब्लागिँग के कई नये गुण भी हैँ अगर ब्लागर चाहे तो पोस्टोँ का टोटा समाप्त कर सकता है। व्यंगात्मक लहजे मेँ आपने अच्छी क्लास लगाई है।
ReplyDeleteismaliye........a....tippani...
ReplyDelete:):):)
pranam.
पोस्ट से अपोस्ट, अब तो डर है कि कहीं मामला कुपोस्ट तक न पहुंच जाए।
ReplyDelete------
बारात गई उड़ !
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
आज तो अलग अन्दाज़ में लिखा है आपने :)
ReplyDelete@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी-
ReplyDeleteसुपोस्ट की सोचें, कंपोस्ट की सोचें और कुपोस्ट की आशंका घटाते चलें. वैसे 'अ', 'कु', 'सु' तो पोस्ट के साथ आरंभ से ही अस्तित्व में हैं.
बढ़िया है , सच भी तो !
ReplyDeleteवाह कुछ नहीं बहुत बड़ी बात है इस अपोस्ट में जो सर खुजलाने नहीं बल्कि दिल थामकर बैठ जाने को मजबूर कर रही है
ReplyDeleteसात्विक मनोरंजन हुआ. दो दिनों से अंतरजाल सुप्त है. अभी अभी ही चालू हुआ.
ReplyDelete(अ)टिपण्णी ........के लिए हाजरी
ReplyDeleteराहुल भाई इसे पोस्ट कहें या अपोस्ट क्या फरक पड़ेगा आपकी तो हर बात ही इतनी उम्दा रहती है कि जब भी समय मिले पढने को जी चाहता है मुझे तो लगता है कि आपका ब्लॉग पढने वाले हर व्यक्ति को आपकी यह पोस्ट तो अन्दर तक छू ही लेगी
ReplyDeleteअटीप ,
ReplyDeleteब्लॉग जगत के तेंदुलकर साहेबान पे ऐसी छींटाकशी ना कभी देखी ना सुनी :)
राहुलजी शुक्रिया इतनी अच्छी बहस चलाने के लिए। सिर्फ टिप्पणियों या फिर सर्वाधिक पोस्ट के लिए अंधाधुंध ब्लागिंग ने हिंदी ब्लागर की मंशा पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। सर्वाधिक सूचनाएं देने की भी होड़ मची हुई है। इन सब के बीच टिप्पणियों की चाह ने कई विकार भी पैदा किए हैं। हालांकि ब्लागिंग जैसी मीडिया की खासियत भी है कि आप पाठक से सीधे टकराते हैं। बीच में कोई रोक नहीं होती। बाकी मीडिया में पाठक सीधे आपसे रूबरू नहीं होता। तो टिप्पणियां इस मायने में पाठक से आपको सीधे जोड़ती हैं। मगर इन टिप्पणियों की माया पर कई मित्रों को एतराज भी है। हिंदी ब्लागिंग एसोलिएशन चला रहे डा. अनवर जमाल साहब ने तो इस संदर्भ में कुछ और ही कह डाला है। इस लिंक में हैं उनके विचार-- http://mankiduniya.blogspot.com/2011/08/frogs-online.html । शुरुआत कुछ ऐसी है।---
ReplyDeleteFrogs online
पाताल को जाती हुई हिंदी ब्लॉगिंग का गुज़र दिल्ली के एक कुएँ से हुआ तो उसे कुछ मेंढकों ने लपक लिया और ब्लॉगिंग शुरू करते ही उस पर एक छत्र राज्य की स्कीम भी बना ली । वे चाहते थे कि तमाम हिंदी ब्लॉगर्स की नकेल उनके हाथ में रहे ताकि ब्लॉगिंग में वही टिके जिसे वे टिकाना चाहें और जो उनकी चापलूसी न करे , उसे वे उखाड़ फेंके चाहे वह एक सच्चा आदमी ही क्यों न हो। ------
मैंने भी अपनी टिप्पणी दी जो यह है------
Dr. Mandhata Singh said...
अनवर भाई यह सही है कि अच्छा और सामयिक लेखन किसी कमेंट का मोहताज नही लेकिन माहौल ही हिंदी ब्लागिंग का कुछ ऐसा बना कि मैंने कई ब्लाग लेखकों को अपने लेख पर कमेंट नहीं होने से हताश व निराश होते देखा है। शायद आपके विचारोत्तेजक लेख से तसल्ली मिले। अगर आपके विचार थोड़े भी लोगों तक पहुंचते हैं तो इसे ही उपलब्धि माननी चाहिए। कमेंट देने वाले की भी जय और बिना कमेंट वाले पाठकों की भी जय।
August 7, 2011 8:57 PM
जहाँ कुछ नकारात्मक रुख अपनाया नहीं कि 'अ' जोड़ दिया...
ReplyDeleteजहाँ परिपाटी से कुछ हटकर क्या चले कि 'अ' जोड़ दिया...
अरे Sir जी, 'अ' का उपसर्ग जोड़ कभी-कभी सामान्य को अ-सामान्य बना देता है. साधारण को अ-साधारण कर देता है.
इंग्लिश शब्द 'पोस्ट' को हिंदी-संस्कृत परिवार के उपसर्ग 'अ' का साथ दिलाकर आपने अनजाने में 'अनमेल विवाह' को तवज्जो दी है.
:)
सुधार :
ReplyDelete'अनमेल को अंतरजातीय लिखना चाहता था'
पर दोनों ही से मतलब सही लगता है.
@ प्रतुल वशिष्ठ जी-
ReplyDeleteइंग्लिश, हिंदी-संस्कृत के साथ इस पोस्ट को ''तवज्जो''(उर्दू) देने का आपका यह ''मेल'' (अंगरेजी) अनूठा है.
वाह भई वाह ,ब्लॉग -शब्दावली /चिठ्ठा -शब्द कोष में एक शब्द जुडा-"अ -पोस्ट " .कृपया "अ-चिठ्ठा" कहने का लोभ संवरण न करें ,चिठ्ठा आखिर चिठ्ठा है ,अभी दिमाग में एक शब्द आया -चिठ्ठु बा -तर्ज़ मिठ्ठू .भाई साहब कुछ लोगों को जैसे हम यह सब करना आता भी नहीं हैं ,लिखने के बाद वह मुक्त हो जाता है विरेचन हो जाता है ,हमारे ब्लॉग पे काउंटर हमारे भांजे ने लगाया था ,ब्लॉग भतीजे ने लगाया था ,फोटो वगैरा सब हमारी बेटी ने लगाया था .पहले वह पोस्ट के साथ चित्र भी चस्पा कर देती थी .२००८ के बाद २०११ में वह अलग किस्म की जिम्मेवारी में मुब्तिला है ,हमारी प्रकाशित पोस्ट अकेले "राम राम भाई "पर हमारी-४०७२ पोस्ट हैं काउंटर का पाठ है - ७०,८५० (सत्तर हज़ार आठ सौ पचास केवल ).लिखना और पढ़ना पढ़ते रहना ज़िन्दगी से लगातार रिश्ते तनाव से बचाए रहने की कोशिश में खासा असरकारी सिद्ध हुआ है .इति "आपकी "दो टूक "/खरी -खोटी ,प्रभु -चायवाला की तरह आक्रामक नहीं थी .शालीन थी . .http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteबुधवार, १० अगस्त २०११
सरकारी चिंता
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Thursday, August 11, 2011
Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "
बढ़िया अंदाज़ में ...एकदम अलग सा आलेख
ReplyDeleteसच को बेहतरीन लिखा है आपने....राहुल जी
मजेदार है जी। भौत मजेदार!
ReplyDeleteजाकिर जी की बात सुनकर मजा आया। कुपोस्ट। अच्छा है, किसी का लिखा पसन्द नहीं आए तो कुपोस्ट है, कहकर निकल सकते हैं।
ReplyDeleteमंधाता जी ने लिखा है कि बहस चलाने के लिए धन्यवाद। पता नहीं इसमें बहस कहाँ हैं।
प्रतुल जी,
नया नहीं है काम। लाठीचार्ज, जिलाधिकारी, कम्पयूटरीकृत जैसे शब्द पहले से हैं।
वैसे मैंने भी एक जगह कु-चिट्ठेकार लोगों के लिए एक नया शब्द चोट्टेकार गढ़ा था।
वाह क्या बात है , मन के भावो को शब्दों में बाँध दिया है आपने ,
ReplyDeleteअब इसे कहू क्या बस इसी दुविधा में हूँ करारा व्यंग्य कहू या सच्ची बात कहू पर जो भी है लाजवाब है
वैसे मै आपके पीछे पीछे ही आ रहा हूँ ,
विषय की बाध्यता .. आपको नहीं .. ।
ReplyDeleteबधाई ..
- डा.जेएसबी नायडू (रायपुर)
रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसत्य को भी मीठा बना दिया आपने...
ReplyDeleteआपकी अपोस्ट और अनुराग जी की कुपोस्ट मोबाईल पर देख ली थीं, लेकिन मोबाईल से अटीप की अव्यवस्था/कुव्यवस्था नहीं थी।
ReplyDeleteचिट्ठाजगत के दिनों में ऐसी दो लाईना सुपोस्ट्स भी देखीं थीं जिनमें लेखक ने लिखा था कि एक घंटे से कई ब्लॉग्स पढ़े हैं, अब चाय पीकर फ़िर आयेंगे।
अभी एक पुस्तक पढ़कर हटा हूँ जिसमें एक फ़ौजी अफ़सर पर कुछ आरोप लगाकर अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की गई थी। सक्षम अधिकारी ने नोट लिखा कि ’फ़ौज जब मुझ जैसे बंदर को बर्दाश्त कर सकती है तो एक और सही।’ मामला खत्म। राहुल जी, आज अपना भी यही कहने का मन है, जब ब्लॉगिंग में ’मो सम’ जैसे खप सकते हैं तो इसका मतलब है कि हर किसी के लिये गुंजाईश है।
पोस्ट पढ़कर हमेशा की तरह सत्चित आनंद की प्राप्ति हुई।