कहावत है- 'दोनों हाथों से ताली बजती है' या 'एक हाथ से ताली नहीं बजती', मगर ... मगर-अगर, किंतु-परंतु, लेकिन, बल्कि, जबकि, तो, इसलिए, गोयाकि, चुनांचे कुछ नहीं, सीधी-सादी बात, जिसका एक सिरा इसी कहावत में है। आमतौर पर यह 'द्वेष' के संदर्भ में कहा जाता है, आशय होता है कि लड़ाई-झगड़े के लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार होते हैं और इसी तरह यह 'राग' के लिए भी प्रयुक्त होता है। यानि कहावत बैर-प्रीत दोनों के मामलों में फिट और संबंध सिर्फ कर्ता-दृष्टा या मंच-कलाकार जैसा नहीं, बल्कि जहां दोनों पक्षों की सक्रिय भूमिका हो।
नागपुर-हावड़ा रेल लाइन पर सफर करते हुए बिलासपुर जंक्शन के बाद बमुश्किल पंद्रह मिनट बीतते बाईं ओर दलहा पहाड़, लीलागर नदी का पुल, मिट्टी के परकोटे वाला खाई (प्राकार-परिखा) युक्त गढ़-बस्ती-कोटमी सुनार स्टेशन, जयरामनगर के बाद और अकलतरा से पहले है। आपको भान नहीं होगा कि आप मगरमच्छ संरक्षण परियोजना के अनूठे केन्द्र से हो कर गुजर रहे हैं। लंबी दूरी की मेल-एक्सप्रेस गाड़ियां यहां रूकती भी नहीं, अभी आगे बढ़ जाइये। फिलहाल यह कुछ तस्वीरों में देख सकते हैं।
ताली बजने को थी कि मगर बीच में आ गया। छत्तीसगढ़ में कहा जाता है- 'चले मुंह ...' बातूनी और मुंहफट अपनी जबान पर काबू नहीं रख पाता, लेकिन जो फिसलती न चले वो जबान क्या, वह तो रिकार्डेड आवाज हुई। खैर! यहां मामला जरा अलग, बतरस का है-
कोई 45 साल पुरानी बात है। उत्तरप्रदेश, बस्ती जिले का निवासी 25 वर्षीय युवा, गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के बजाय घर-बार छोड़कर, बरास्ते हनुमानगढ़ी, अयोध्या इस गांव कोटमी आया और तब से वह यानि सीतारामदास वैष्णव 'बाबाजी', जोगिया तालाब के किनारे रामजानकी मठ में सेवा कर रहे हैं। 'जात न पूछो साधु की', लेकिन मैं दुनियादार पूछ ही लेता हूं- 'कौन जमात, कौन अखाड़ा, कौन गुरू। सिलसिला आगे बढ़ता है। माया जगत है, बाल-ब्रह्मचारी बाबाजी ने एक अलग गृहस्थी बना ली, जिसमें अगर-मगर नहीं सचमुच के मगर(मच्छ) रहे हैं।
कोटमी में मगरमच्छ शाश्वत हैं, यानि कब से हैं, कहां से और क्यों-कैसे आ गए, इसका इतिहास क्या है, अब लोगों की स्मृति में कालक्रम अतिक्रमित करते हुए समष्टि चेतना का हिस्सा बनकर थे, हैं और रहेंगे हो गया है। अनुमान होता है कि मगरमच्छ, लीलागर नदी के रास्ते कभी आए होंगे और तालाब बहुल इस गांव को अनुकूल पाकर इसे पक्का डेरा बना लिया। यह भी माना जाता है कि यहां छत्तीसगढ़ के विशिष्ट, मिट्टी के परकोटे वाले प्राचीन किले (गढ़) के चारों ओर की खाइयों में कभी सुरक्षा के लिए जहरीले और खतरनाक जीव-जंतुओं के साथ मगरमच्छ भी छोड़े गए। किला-गढ़ का वैभव तो राजाओं की पीढि़यों की तरह चुक गया, लेकिन मगरमच्छ, पुश्त-दर-पुश्त, खइया के अलावा बंधवा तालाब, मुड़ा तालाब, जोगिया तालाब सहित अन्य तालाबों में बसर करते, फलते-फूलते रहे।
इस तरह न जाने कब आए मगरमच्छ और अब आए सीतारामदास वैष्णव 'बाबाजी'। रामजानकी मठ-मंदिर की सेवा के साथ के बाबाजी मगरमच्छों का ख्याल रखने लगे और मंदिर के सामने का जोगिया तालाब हैचरी बन गया। कोटमी के लोगों की बातों पर यकायक भरोसा नहीं होता। गांव वाले बताते हैं- गरमी में रात पहर रहते ही 'खातू पालने' के लिए गाड़ा फांदा जाता। पानी कम हो जाने के कारण यही समय होता जब मगरमच्छ एक तालाब से दूसरे तालाब जाते होते। गाड़ा के रास्ते में मगरमच्छ आ जाता तो दो गड़हा मिलकर उसे बगल में ले कर उठाते और गाड़ा में डाल कर तालाब तक पहुंचाते फिर किनारे पर घिसला देते। मगरमच्छ धीरे से सरक कर तालाब में उतर जाता।
गांव के आम लोग मगरमच्छ जानकार हैं ही लेकिन बाबाजी तो विशेषज्ञ के साथ-साथ मगरमच्छ सेवक, पालक, अभिभावक भी हैं। वे बताते हैं कि चैत-बैसाख अंडा देने का समय है। मगरमच्छ, तालाब के किनारे दो फुट या अधिक गड्ढा खोद कर उसमें अंडा देते हैं। अंडे सेते हुए दो-तीन हफ्ते वे कुछ नहीं खाते। दो माह बीतते-बीतते जेठ-आषाढ़ में बरसाती गर्जना से अंडे दरकते हैं और गिरगिट आकार के बच्चे निकल आते हैं। ये बच्चे मिट्टी खाकर रहते हैं। बाबाजी बताते हैं- एक मगरमच्छ दूसरे के बच्चों को भी खा जाता है। बाबाजी, लंबे समय तक स्वयं तय की जिम्मेदारी का पालन करते हुए जोगिया तालाब की अपनी हैचरी में मगरमच्छ के बच्चे पाल कर, बड़ा कर, तालाबों में छोड़ते रहे हैं। बाबाजी के अनुसार इनका मुख्य आहार मछली है, जिसे सीधे निगलकर, कछुए को उछालते-लपकते, अन्य भोज्य को नोच-नोच कर या कीचड़ में दबा कर, सड़ना शुरू होने पर खाते हैं।
आज परियोजना वाले मुड़ा तालाब में ज्यादातर, कर्रा नाला बांध में 5-7 और इक्का-दुक्का अन्य तालाबों में मिला कर 150 से अधिक मगरमच्छ हैं। उल्लेखनीय यह कि इनमें शायद एक भी ऐसा नहीं जिसे बाबाजी ने दुलराया-सहलाया न हो।
कोटमी में मानव-मगरमच्छ सहजीवन की अनूठी मिसाल है। पिछले चालीसेक साल में कुछ दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें अब तक दो-तीन जानें गई और दो अपंग हुए हैं। एक घटना 1 अप्रैल 2006 को शाम चार बजे बाबाजी के साथ घटी। जोगिया तालाब के किनारे मगरमच्छ अंडे से रहा था, कुछ बच्चे वहां आए और उसे छेड़ने लगे। बच्चों को डांट कर भगाने के लिए बाबाजी बाहर निकले और बेख्याली में मगरमच्छ की जद में आ गए। मगरमच्छ, उनका बायां हाथ दबोच कर, खींचते हुए पानी में ले गया। बाबाजी मजे से बताते हैं- अंदर ले जा कर गोल-गोल घुमाते हुए खेलाने लगा और तली में ले जाकर गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। लगा कि गड़ा देगा। उन्हें बस गज-ग्राह के नारायण याद आए। शायद तभी, बच्चे फिर अंडों की जगह की ओर बढ़े और मगरमच्छ, बाबाजी को छोड़कर बच्चों की ओर लपका। समरस बाबाजी हंसकर बताते हैं कि वे झिंझोड़ा-लटकता अपना हाथ, दाहिने हाथ में पकड़े, रामजी की कृपा से बाहर निकल आए। बच गया तो लगा कि अभी और सेवा करनी है, भगवान की, मगरमच्छों की।
बाबाजी कहते हैं- सरकारी मदद मिली, इलाज हुआ, मैंने डॉक्टर से कहा हाथ काम का नहीं रहा, जहर फैल जाएगा, काट दीजिए। शरीर तो नश्वर है। सरकार ने और दो-दो हाथ बनवा दिए, लेकिन नकली है, बोझा लगता है। मैंने कहा कि हाथ कटा के आप तो चतुर्भुजी बन गए, वे ठठाकर हंसते हैं और बात का मजा लेते, मेरा इरादा भांपते हुए कहते हैं, फोटो खींच लीजिए और जोगिया तालाब के किनारे ठीक वहीं चतुर्भुजी बन कर खड़े हो जाते हैं, जहां मगरमच्छ ने उन्हें दबोचा था। सोच रहा हूं, तस्वीर में अहिंसा के पुजारी का निष्काम कर्मयोग कैसे दिख पाए। बाबाजी निरपेक्ष, पूछते हैं अब हाथ टांग दूं वापस झोले में।
पिछले दो साल में छः-सात लोग सरकार की ओर से चेन्नई जा कर मगरमच्छ का प्रशिक्षण ले कर आए हैं। एक मगरमच्छ का इलाज कराना था। प्रशिक्षित, हिम्मत नहीं जुटा पाए तो बाबाजी की टीम काम आई।
बाबाजी के हांक लगाने पर मगरमच्छ तालाब से बाहर आ जाते हैं, लेकिन सुस्त-बीमार जीव को मुड़ा तालाब में पानी के अंदर जा कर निकालना पड़ा, जिसे इलाज के बाद फिर छोड़ा गया। बाबाजी कहते हैं कि मगरमच्छ समझदार जीव है और इसकी आंख ढंक दी जाए फिर उस पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। पूछने पर कि प्रशिक्षितों ने नया क्या सीखा, बाबाजी हंसकर कहते हैं वे लोग तो ठीक से बताते नहीं, लेकिन लगता है कि मगरमच्छ से डरना सीख कर आए हैं।
बाबाजी का मगरमच्छ प्रेम पूर्ववत बना हुआ है अब उनके लिए क्या कहें- 'ताली दोनों हाथों से बजती है' या 'एक हाथ से भी ताली बजती है', खूब बज रही है।
जांजगीर जिला के कोटमी सोनार में 86 एकड़ रकबा वाले मुड़ा तालाब को ही क्रोकोडायल पार्क (मगरमच्छ संरक्षण आरक्षिति) विकसित किया गया है।
यह अपने किस्म की देश की पहली परियोजना बताई जाती है। यहां लगातार पर्यटक आते रहते हैं। छुट्टी के दिनों में यह संख्या हजार तक पहुंच जाती है, जिनमें विदेशी भी होते हैं।
इस मगरमच्छ संरक्षण परियोजना का शिलान्यास 09 मई 2006 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रीजी और लोकार्पण 23 अगस्त 2008 को वनमंत्रीजी (के करकमलों) की गरिमामय उपस्थिति में हुआ, अंकित है। लेकिन इसमें शायद बाबाजी का हाथ भी है, जो नहीं है।
एक महान वन्यजीव प्रेमी से परिचय कराया आपने। बहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteबाबा जी का उद्यम सराहनीय है,ताली भी एक हाथ से बज रही है।
ReplyDeleteकोटमी सोनार के मगरमच्छों के विषय में सुनते आए हैं। एक दिन वहां जाने के लिए बिलासपुर से निकल लिए थे पर रतनपुर पहुच गए।
वाकई में यह परियोजना देश की एकमात्र परियोजना है।
शानदार यात्रा वृतंत के साथ परिचय कथा!!
ReplyDeleteसाथ ही उद्यमशीलता के प्रतीक की पहचान
बहुत ही उपयोगी पोस्ट
ReplyDeleteबाबा जी के इस कार्य की जितनी सराहना की जाए कम है...
शुक्रिया उनसे परिचित करवाने का.
शायद अंतिम पंक्तियों के लिए इस आलेख को लिखा गया है... एक हाथ से ताली बजाने वाले बाबाजी को नमस्कार...
ReplyDeleteएक महान वन्यजीव प्रेमी से परिचय कराया आपने। धन्यवाद|
ReplyDeleteकमप्यूटर पर बैठ सैकड़ो लोग संरक्षण की बाते करते हैं पर मगरो का अपना हाथ अर्पित कर चुके बाबा का प्रेम अद्वितीय है हमेशा की तरह आपके द्वारा एक बेहतरीन लेख पढ़ने को मिला धन्यवाद
ReplyDeleteताली बजाने पर मेरा कहना है कि यह कहावत शायद खुशी के लिए बनी होगी। क्योंकि ताली बजाने का अर्थ खुशी से ही है। अर्थात जब तक दोनों पक्ष खुश नहीं हो, खुशी नहीं मिलती। झगड़ा तो एक पक्ष के करने से भी हो जाता है। मगरमच्छ और बाबाजी की जानकारी बेहद उपयोगी है।
ReplyDeleteबाबा के बारे में जानकार अच्छा लगा ...एक से एक बेहतरीन लोग गुमनामी और बिना यश की चाह रखे, पर्यावरण और जीवों की रक्षा में लगे हैं ! यह मार्गदर्शक हैं आने वाली पीढ़ी के ...
ReplyDeleteआभार एवं शुभकामनायें !
अद्भुत रिपोर्ट -वन्य जीव प्रेमी अवश्य आनंदित होंगें -
ReplyDeleteचित्र कुछ और अच्छे आने चाहिये थे-मैं महज यह देखना चाहता था कि कहीं
घड़ियाल को तो आप मगरमच्छ नहीं कह रहे हैं :)
यह अभी भी स्पष्ट ही नहीं हो पा रहा -कृपया एक ऐसा चित्र दें जिसमें थूथन साफ़ दिखे .
यह भी ताज्जुब है कि बाबा ने घड़ियाल पलने में क्यों रूचि नहीं दिखायी ...
मगरमच्छ तो मनुष्य के लिए खतरनाक होते ही हैं .घडियाल निरापद!
कमाल के मनई हैं बाबाजी! हमारा एक हाथ चबाया होता तो उस ही नहीं, अनेक मगरमच्छ मार दिये होते हमने!
ReplyDeleteपर शायद इसी लिये वे संत हैं। और हम एक छुद्र रेलकर्मी! :-(
यह तो देखने लायक जगह है।
ReplyDeleteसीताराम दास जी वैष्णव का मगर प्रेम चकित कर देने वाला है। 45 वर्षों तक हिंसक मगरों को दुलार देना और उनका दुलार पाना अद्भुत है। मैं तो उन्हें मगरों का सालिम अली कहूंगा।
ReplyDeleteसीताराम जी अगर पढ़े-लिखे होते तो वे मगरों पर अब तक कई किताबें लिख चुके होते। मगर उन्हें किताब लिखने की क्या जरूरत, वे तो स्वयं एक चलती-फिरती किताब हैं- 4500 पृष्ठों की। आप पहले भाग्यशाली हैं जो उस जीती-जागती किताब के कुछ पन्नों को पढ़ सके।
ऐसे ही न जाने कितने सीताराम अपनी छाती पर अनबांची किताबें बांधे इस दुनिया से चुपचाप चले जाते हैं। किसे कहूं कि वह बाबा जी के 45 वर्षों के मगरानुभव को कलमबद्ध कर ले ?
र्इमेल पर प्राप्त डॉ. ब्रजकिशोर प्रसाद जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteकोटमी वाले मगर मच्छ प्रोजेक्ट के बारे में मेरे छात्रों ने भी बताया कि गाँव वालों के साथ उनका सामंजस्य हो गया है 'पुकारने पर आ जाते हैं मगर .फिर सुना कि मगर हिंसक हो गए हैं सो वीडिओ ग्राफी की योजना छोडनी पडी .बिना प्रशिक्षण के ही डरना सीख गया.
एक अभुत सुंदर जानकारी, लेकिन जब मगर मच्छ बाबा को जानते हे तो उन्होने बाबा पर ही हमला क्यो किया? बाबा की तो ताली बज ही जाती....
ReplyDeleteर्इमेल पर प्राप्त संजय भास्कर जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट
बाबा के बारे में जानकार अच्छा लगा
बाबा जी के इस कार्य की जितनी सराहना की जाए कम है..............शुक्रिया राहुल जी
र्इमेल पर प्राप्त कौशलेन्द्र जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteआदमी ने जमुना से मगरमच्छ को पकड़ -पकड़ कर अपनी हबस का शिकार बना लिया ...अब वहां खोजे से भी नहीं मिलते ...उन्हीं आदमियों के बीच से बाबा जी ने यहाँ छतीसगढ़ में आकर शायद उसी का प्रायश्चित करने की प्रतिज्ञा की है. इस अभयारण्य के बारे में मुझे भी जानकारी नहीं थी. आपको धन्यवाद. और बाबा जी को सादर नमन उनके अनूठे प्रायश्चित के लिए.
बाबा जी के कार्य को जन जन तक पहुंचाना चाहिये और सरकार को इसका रिकग्निशन लेना चाहिये...
ReplyDeleteबाबाजी भारत के स्टीव इरविन हैं. क्रोकोडाइल मैन ऑफ़ इंडिया.
ReplyDeleteKudos to Baba ji for his true dedication and efforts !!!
ReplyDeleteइस पोस्ट के तेवर आपके स्थापित मिजाज से बिलकुल ही मेल नहीं खाते। क्षणांश को भी नहीं लगा कि किसी पुरातत्ववेत्ता का लिखा हुआ पढ रहा हूँ। पूरे समय लगता रहा मानो आपके सामने, विशाल श्रोता समुदाय में बैठ कर कोई लोक कथा सुन रहा हूँ। गोया, महत्वपूर्ण जानकारी और उपयोगी सूचनाऍं बिलकुल ऐसे मिली मानो, नानी की कहानी के अन्त में किसी दुखी राजा के दिन बहुरे।
ReplyDeleteमजा आ गया।
बाबा जी से परिचय कराने का आभार.बहुत जानकारीपरक और शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteबाबाजी का कार्य और इन जीवों के प्रति समर्पण सराहनीय है...... सहजीवन की सीख है रिपोर्ट ....
ReplyDeleteनिश्चय ही बड़ा सराहनीय प्रयास, पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
सुन्दर आलेख,
बाबाजी और उनके काम पर एक डॉक्युमेन्ट्री प्लान करिये सर... मैं सोचता हूँ कि डिस्कवरी, बीबीसी या नेशनल ज्योग्राफिक जैसे कई चैनल रूचि लेंगे उसमें...
...
सुन्दर वृत्तांत... बाबा जी का प्रयास सराहनीय है
ReplyDeleteधन्यवाद इस रोचक प्रस्तुती के लिए|
ReplyDeleteमैंने अपने पिछले लेखों में यह लिखा है कि बाबाजी को बिना देर राज्य में वन्य प्राणी संरक्ष्ण विभाग का मुखिया बना दिया जाना चाहिए| यह तो तय है कि वे राजनेताओं को नियमित धन मुहैया नही करवा पायेंगे इस पद के एवज में पर यह भी तय है कि हमारे जंगल और वन्य जीव बच जायेंगे|
आज बरबस ही इस वीडियो का स्मरण हो आया|
MNN.COM›Earth Matters›
Animals
Man and croc become BFFs
http://www.mnn.com/earth-matters/animals/videos/man-and-croc-become-bffs
डुप्लीकेट बाबा बजार ले पटाय ए देश म असली अउ दुर्लभ बाबा के खोज छत्तीसगढ़ म...........
ReplyDeleteखोजकरईया अउ बाबा जी ल दण्डावत प्रणाम।
जांजगीर जिला के कोटमी सोनार में 86 एकड़ रकबा वाले मुड़ा तालाब को ही क्रोकोडायल पार्क विकसित किया गया है।...
ReplyDeleteinformative
निश्चय ही बाबा जी पर्यावरण विद हैं और वे पर्यावरण को बचाने का सफल प्रयास कर रहे हैं
ReplyDeleteभालो जानकारी.. बोले तो अच्छा जानकारी.. :)
ReplyDeleteसुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
गजब के प्रेरक व्यक्ति हैं बाबा. पढ़ कर लग रहा है कि जाने ऐसे कितने ही अनजान लोग दुनिया संभाले हुए हैं!
ReplyDeleteधन्यवाद, राहुल जी .. इस रोचक जानकारी व अच्छी प्रस्तुती के लिए । आपके लेख को पढ़कर लगा कि यह तो देखने लायक जगह है। यश की चाह नहीं रखने वाले बाबाजी का कार्य सराहनीय है ।
ReplyDeleteआभार एवं शुभकामनायें – डा. जेएसबी नायडू ।
rarest of rares की तर्ज पर अपनी नजर में हिंदी ब्लॉगिंग की bestest of best पोस्ट। बाबाजी के लिये ताली. हमारे दोनों हाथों से जो होकर भी नहीं हैं।
ReplyDeleteइटावा के पास चंबल नदी में भी प्रोजैक्ट क्रोकोडाईल चल रहा था लगभग बीस साल पहले की बात है और एक ऐसा ही प्रोजैक्ट कुरुक्षेत्र के पास भी देखा था।
अब आप अकलतरा बुलाकर ही मानेंगे:)
र्इमेल से प्राप्त टिप्पणी-
ReplyDeleteNamastay
"Magar " highlights an untouched face of the Crocodile Park of Kotami Sonar
thanx n regards
namita
एक और अनसंग हीरो से यह मुलाक़ात दिल को छू गयी...पटना के चिड़ियाखाने में एक बाघ की देखरेख करने वाले व्यक्ति का नामही बाघ बहादुर रख दिया था. बाघ से वह बच्चों की तरह प्यार करता था. यहाँ टक कि अपने परिवार से मिलने के लिए छुट्टी भी नहीं ले पाता था. कहता था मैं चला गया तो इसका ख्याल कौन रखेगा!!
ReplyDeleteराहुल सर! आपको पढ़ना एक अनुभव की शीतल छाया प्रदान करता है!!
राहुल भाई चूँकि अकलतरा अपना गाँव है और कोतामिसुनार पड़ोस इसीलिए इसके बारे में पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा वास्तव में अब ऐसा लगने लगा है कि शायद 5 -7 सालों में यह मगर पार्क देश के नक्से पर दिखाई देने लगे सीताराम बाबा की बात ही कुछ और है अभी कुछ दिन पहले ही विवाह में आये रिश्तेदारों को लेकर कोटमी गया वंहा हमेशा की ही तरह सीताराम जी ने आवाज दी और लगा मनों मगर उनकी आवाज सुनने का ही इन्तेजार कर रहे थे आश्चर्य होता है कि कोई जानवरों के साथ वह भी इतने खूंखार जानवरों के साथ भी इतना आत्मीय हो सकता है
ReplyDeleteशाशन के स्तर पर इस मगर पार्क के भ्रमण के लिए लोगों को प्रेरित किये जाने की आवस्यकता महसूस होती है
ईश्वर खंदेलिया
पुनः आपका लेख पढ़कर अज्ञेय जी की पंक्तिया याद हो आयी
ReplyDeleteसर्प तुम सभ्य तो हुए नहीं शहर में बसना तुझे आया नहीं
एक बात तो बता ये जहर कहाँ से पाया ये डसना कहाँ से सीखा
एक हाथ से भी ताली बजती है', खूब बज रही है। एक अलग तरह की जानकारी लिए ..आभार.
ReplyDeleteबाबाजी का यह वन्य प्रेम पढ़ कर अच्छा लगा ... रोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteराहुल भाई ,
ReplyDeleteकोतमिसोनार के मगरमच्छ प्रोजेक्ट और बाबा जी पर बहुत अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद् . जब मैं कालेज के बच्चों को लेकर कोतमिसोनार गया था तो हमें गाइड करने के लिए उन्हीं बाबा जी बुलवाया गया था . हमने देखा की उनके बुलाने पर मगर किनारे आ जाते थे .
बाबाजी को नमन
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपका लेख रोचक ज्ञानवर्धक तथा आम आदमी को जागरूक करने वाला है। बधाई!
ReplyDelete======================
प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
उस रास्ते यात्रा के दौरान कोटमी सुनार की उस गढ़ी की हमेशा प्रतीक्षा रहती और मन करता कि वहां घूम आयें. पर वह कभी न हो सका. कुछ कुछ मल्हार जैसा लगा करता. सीतारामदास जी को नमन जिनकी लगन से प्रेरित होकर ही वहां क्रोकोडायल पार्क विकसित किया जा सका होगा. चेन्नई की तुलना में कोटमी का पार्क अधिक विशाल और खूबसूरत लग रही है. इस नवीन जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteDear sir,hanksalot for making yr presence felt onmy blog.I am really thankfulfor the same.Yr comments show that u have a poetic sense atleast.
ReplyDeleteyr post shows how so many aspect of writing can take place in one article.It is memoirs,article,an eye opener whtever u may call it.My best wishes.
dr.bhoopendra
rewa
mp
भारत में सरकार ने 10 करोड़ नेटयुजर्स का मुंह बंद करने के लिए 11 अप्रेल से आई टी एक्ट में संशोधन करके संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का गला घोंटने की कवायद शुरु कर दी है। अब तो ब्लॉगर्स को संन्यास लेना पड़ेगा। इसके लिए मदकुद्वीप से अच्छी जगह कोई दुसरी नहीं हो सकती। आईए मद्कुद्वीप में धूनी रमाएं एवं लैपटॉप-कम्पयुटर का शिवनाथ नदी में विसर्जन करें।
ReplyDeleteVanya-jeev-premii baabaajii ke vishay mein jaan kar bahut hii achhaa lagaa. Baabaajii kii saadhanaa stutya hai aur anukarniiya bhii. Undhein kotishah pranaam. Post kii antim pankti "इस मगरमच्छ संरक्षण परियोजना का शिलान्यास 09 मई 2006 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रीजी और लोकार्पण 23 अगस्त 2008 को वनमंत्रीजी (के करकमलों) की गरिमामय उपस्थिति में हुआ, अंकित है। लेकिन इसमें शायद बाबाजी का हाथ भी है, जो नहीं है।" ke antim teen shabdon "जो नहीं है।" mein vyakta piidaa ko bakhuubii mahsuusaa jaa sakataa hai.
ReplyDeleteIs apratim vanya-jiiv-premii se bhent karwaane ke liye aabhaar.
बड़ी रोमांचक पोस्ट... बाबा के बारे में जानकार बहुत आनंद आया.. ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए... झूठ-मूठ के संगठन बनाके 'एनिमल लवर' कहलाने वाले लोग सेलेब्रिटी बने फिर रहे हैं.. ऐसे निष्काम लोगों को कोई जानता ही नहीं.. जगह जाके देखने लायक है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपका हर लेख कुछ अलग विशेषता लिए होता है। इस बार भी।
ReplyDeleteबाबा का साहस और प्रयास वन्दनीय है।
पोस्ट को पढने का थ्रिल अवर्णनीय है। शैली का तो कायल हूं ही। आपकी खोजी निगाह और पारखी नज़र को सलाम!!
अगर मगर नहीं मगर वाले बाबा के काम को यहां सबके बीच लाने के लिए आप सचमुच बधाई के पात्र हैं। 5 जून तो अभी और दो दिन दूर है। पर यह इस पर्यावरण दिवस की सबसे अच्छी पोस्ट होनी चाहिए।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी और आपने एक महान शख्सियत से परिचय करवाकर हम सबपर एहसान किया है ... धन्यवाद ...
ReplyDeleteकभी मौका मिला तो ज़रूर जाके देखूंगा यह जगह ...
आपके लिखने का तरीका भी बहुत बढ़िया और दिलकश है ...
यह प्रविष्टि एकदम अलग हटके है। जानकारी का शुक्रिया। आपके ब्लॉग के यूआरऐल "अकलतरा" का अर्थ जानने की उत्कंठा थी, सो भी आज पता लग गया। टिप्पणियों में दिये गये सुझावों पर भी ध्यान दिया जाये, धन्यवाद!
ReplyDeleteaise baba ji ko naman..........inke is prayas ki tarif men shabd kam pad jayenge
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली धन्यवाद
ReplyDeleteshashta bhuji baba (blog wale baba ke do milakar) pranam, achhe kamo ko ase hi dusara hath milata jaye to TALI ki gunj door tak pahuchegi
ReplyDeletepichhale paryavaran divas ke samay apse batchit ko our apkei post ko phir yad kar raha hu ...... jo ramkrishna aashram ke ayojan ke sandrbh me thi. .......... aaj paryavaran ke sandrbh me ntpc sipat me show hai natak our geet . agraj ki chal rahi workshop ki prastuti hogi . offer tha to jal chakkar taiyar kar liya .workshop ka main production taigor ki kahani APARICHITA par based hoga .drama workshop GURUDEV RAVINDRANATH par dedicate ki hai . 15 june ko samapan hai. yadi aap bilaspur me ho... AAKAR ke karan shayad honge hi to samay nikal kar ,tilak nagar school aaye.
ReplyDeleteफेसबुक पर श्री उमाशंकर मिश्र जी की टिप्पणी-
ReplyDeleteAAPKE DWARA PRADAN KI GAI JANKARI ACHCHHI EVM ROMANCHAK RAHATI HAI GYANMILANE KE SATH MAZA BHI AATA HAI THANKS
अद्भुत ! आनंदम् ! शब्द कम ! बहुत मनोयोग-पूर्ण , सधी प्रविष्टि , !!
ReplyDeleteमहान वन्यजीव प्रेमी से परिचय कराया आपने। बहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर जानकारी के साथ साथ टिप्पणियाँ भी अलग हट के वाली मिलती हैं| आप ने वैष्णव प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है| अथाई, चौपाल वाली बातें पढ़ने को मिल रही हैं यहाँ पर|
ReplyDeleteबाबाजी हंसकर कहते हैं वे लोग तो ठीक से बताते नहीं, लेकिन लगता है कि मगरमच्छ से डरना सीख कर आए हैं।......अतिउत्तम!
ReplyDeleteअद्भुत, बड़ी जानकारी, धन्य है बाबाजी
ReplyDeleteमगरों के इस अद्भुत संसार के इतने जीवंत दृश्यांकन ने भी इनके प्रति सहानुभूति न दिखाई। रुचिकर बात यह है कि आपका ब्लॉग मैंने उस वक्त पढ़ा था, जब मैं भोपाल में था। इस दौर में एक छोटे बच्चे को मगरमच्छ ने बड़े तालाब में निगल लिया था। रही सही इस जीव के प्रति सहानुभूति भी जाती रही। सिद्धत: यही है कि हिंसा दीर्घतर गतिमान नहीं रह सकती।
ReplyDeleteबहुत सुब्दर और उपयोगी पोस्ट. मगरमच्छ का एक क्लोसयूप चित्र होता तो पता चलता की गान्गेस क्रोक है की मार्श क्रोक?
ReplyDeleteमुझे भी एक बार इस मगरमच्छ का संरक्षण केन्द्र जाने का और बाबा जी से मिलने का मौका मिला। बहुत अच्छी जगह है और घूमने लायक जगह है।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ।।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ।।
ReplyDelete