''आपने लोक गीत गायकों से इतने अलग ढंग का गाना रिकॉर्ड कराया। आप हमेशा कुछ नया और अलग प्रयोग करते हैं।'' लता मंगेशकर ने आमिर खान को शुभकामनाएं तो दी ही हैं मुझे लगता है कि वे इस ट्वीट में फिल्म 'पीपली लाइव' के छत्तीसगढ़ी गीत 'चोला माटी के' (और बुंदेली रामसत्ता जैसा गीत 'मंहगाई डायन') गीत को बरबस गुनगुना भी रही हैं।
13 अगस्त को रिलीज होने वाली इस फिल्म का नायक 'नत्था' छत्तीसगढ़ के कलाकार ओंकार दास मानिकपुरी हैं इसके साथ छत्तीसगढ़वासी (नया थियेटर के) कलाकारों की लगभग पूरी टीम, चैतराम यादव, उदयराम श्रीवास, रविलाल सांगड़े, रामशरण वैष्णव, मनहरण गंधर्व, और लता खापर्डे फिल्म में हैं। अनूप रंजन पांडे के फोटो वाली होर्डिंग तो पूरी फिल्म में छाई है।
पीपली, वस्तुतः मध्यप्रदेश के रायसेन जिले का गांव बड़वई बताया जाता है। फिल्म के निर्देशक दम्पति अनुशा रिजवी और दास्तांगो महमूद फारूकी, नया थियेटर और हबीब जी से जुड़े रहे हैं, इससे कलाकारों के अलावा फिल्म का छत्तीसगढ़ से और कुछ रिश्ता फिल्म आने के बाद पता लगेगा। फिलहाल यहां बात 'चोला माटी के हे राम' गीत की। छत्तीसगढ़ के 'सास गारी देवे' के बाद अब यह गीत चर्चा में है। यह वास्तव में प्रायोगिक लोक गीत ही है, जो अब इस फिल्म के गीत के रूप में जाना जाने लगा, लेकिन इसकी और चर्चा से पहले यह गीत देखें-
हबीब जी की झलक के साथ नगीन तनवीर |
यह गीत अब यू-ट्यूब पर है, लेकिन मैंने काफी पहले से सुनते आए इस गीत की पंक्तियां नगीन जी के गाये हबीब जी के जीवन-काल में रिकॉर्ड हो चुके गीतों की सीडी से ली है, जिसे आप यहां से सुन सकते हैं। दोनों में कोई खास फर्क नहीं है।
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे।
द्रोणा जइसे गुरू चले गे, करन जइसे दानी
संगी करन जइसे दानी
बाली जइसे बीर चले गे, रावन कस अभिमानी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई आही सब के पारी
एक दिन आही सब के पारी
काल कोनो ल छोंड़े नहीं राजा रंक भिखारी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
भव से पार लगे बर हे तैं हरि के नाम सुमर ले संगी
हरि के नाम सुमर ले
ए दुनिया माया के रे पगला जीवन मुक्ती कर ले
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
बात आगे बढ़ाएं। यह गीत छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती मंडलाही झूमर करमा धुन में है, जिसका भाव छत्तीसगढ़ के पारम्परिक कायाखंडी भजन (निर्गुण की भांति) अथवा पंथी गीत की तरह (देवदास बेजारे का प्रसिद्ध पंथी गीत- माटी के काया, माटी के चोला, कै दिन रहिबे, बता ना मो ला) है। इसी तरह का यह गीत देखें -
हाय रे हाय रे चंदा चार घरी के ना
बादर मं छुप जाही चंदा चार घरी के ना
जस पानी कस फोटका संगी
जस घाम अउ छइंहा
एहू चोला मं का धरे हे
रटहा हे तोर बइंहा रे संगी चार घरी के ना।
अगर हवाला न हो कि यह गीत खटोला, अकलतरा के एक अन्जान से गायक-कवि दूजराम यादव की (लगभग सन 1990 की) रचना है तो आसानी से झूमर करमा का पारंपरिक लोक गीत मान लिया जावेगा। यह चर्चा का एक अलग विषय है, जिसके साथ पारंपरिक पंक्तियों को लेकर नये गीत रचे जाने के ढेरों उदाहरण भी याद किए जा सकते हैं।
एक और तह पर चलें- छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले का एक बड़ा भाग प्राचीन महाश्मीय (मेगालिथिक) प्रमाण युक्त है। यहां सोरर-चिरचारी गांव में 'बहादुर कलारिन की माची' नाम से प्रसिद्ध स्थल है और इस लोक नायिका की कथा प्रचलित है। हबीब जी ने इसे आधार बनाकर सन 1978 में 'बहादुर कलारिन' नाटक रचा, जिसमें प्रमुख भूमिका फिदाबाई (अपने साथियों में फीताबाई भी पुकारी जाती थीं।) निभाया करती थीं।
बहादुर कलारिन के एक दृश्य में हबीब जी और फिदाबाई |
फिदाबाई मरकाम की प्रतिभा को दाऊ मंदराजी ने पहचाना था। छत्तीसगढ़ी नाचा में नजरिया या परी पुरुष होते थे लेकिन नाचा में महिला कलाकार की पहली-पहल उल्लेखनीय उपस्थिति फिदाबाई की ही थी। वह नया थियेटर से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहुंचीं। तुलसी सम्मान, संगीत नाटक अकादेमी सम्मान प्राप्त कलाकार चरनदास चोर की रानी के रूप में अधिक पहचानी गईं फिदाबाई के पुत्र मुरली का विवाह धनवाही, मंडला की श्यामाबाई से हुआ था। पारंपरिक गीत 'चोला माटी के हे राम' का मुखड़ा हबीब जी ने श्यामाबाई की टोली से सुना और इसका आधार लेकर उनके मार्गदर्शन में गंगाराम शिवारे (जिन्हें लोग गंगाराम सिकेत भी और हबीब जी सकेत पुकारा करते थे) ने यह पूरा गीत रचा, जो बहादुर कलारिन नाटक में गाया जाता था।
बहादुर कलारिन का नृत्य दृश्य |
दहरा :
13 जुलाई को पीपली लाइव के ऑडियो रिलीज के बाद से हेमंत वैष्णव (फोन +919424276385), नीरज पाल (फोन +919711271596), संजीत त्रिपाठी (फोन +919302403242), गोविंद ठाकरे (फोन +919424765282)जैसे परिचितों ने इसकी चर्चा में मुझे भी शामिल किया।
करमा प्रस्तुति और परम्परा की विस्तृत चर्चा की कमान राकेश तिवारी (फोन +919425510768) के हाथों रही। करमा लोक नृत्य, पाठ्यक्रम में शामिल होकर पद चलन, भंगिमा और मुद्रा के आधार पर (झूमर, लहकी, लंगड़ा, ठाढ़ा), जाति के आधार पर (गोंड, बइगानी, देवार, भूमिहार) तथा भौगोलिक आधार पर (मंडलाही, सरगुजिया, जशपुरिया, बस्तरिहा) वर्गीकृत किया जाने लगा है। अंचल में व्यापक प्रचलित नृत्य करमा के लिए छत्तीसगढ़ के नक्शे की सीमाएं लचीली हैं।
छत्तीसगढ़ की प्राचीन मूर्तिकला की विशिष्टताओं के साथ लगभग 13 वीं सदी के गण्डई मंदिर के करमा नृत्य शिल्प की चर्चा रायकवार जी (फोन +919406366532) लंबे समय से करते रहे हैं।
ओंगना, रायगढ़ जैसे आदिम शैलचित्रों में नृत्य अंकन की ओर भी उन्होंने ध्यान दिलाया। यहां फिलहाल करमा नृत्य की प्राचीनता को आदिम युग से जोड़ने की कवायद नहीं है। यह उल्लेख सहज प्रथम दृष्टि के साम्य से प्रासंगिक और रोचक होने के कारण किया गया है।
'बस्तर बैण्ड' और 'तारे-नारे' वाले अनूप रंजन (फोन +919425501514) ऊपर आए संदर्भों और पीपली लाइव फिल्म के साथ तो जुड़े ही हैं उनके पास हबीब जी और नया थियेटर से जुड़े तथ्यों और संस्मरणों का भी खजाना है। छत्तीसगढ़ की लोक कला के ऐसे पक्ष, जो बाहर भी जाने जाते हैं या चर्चा में रहे हैं, उनमें कई-एक हबीब जी से जुड़े हैं।
कहा जाता है 'दू ठन कोतरी दे दय, फेर दहरा ल झन बताय' कुछेक की विद्वता का यही बिजनेस सीक्रेट होता है। लेकिन मेरे दहरा का पता बताने में आपकी सहमति होगी, मानते हुए पोस्ट में आए सभी नामों के प्रति आदर और आभार।
पुनश्चः कुछ विस्तार और परिवर्तन सहित यह उदंती.com में प्रकाशित हुआ है।
म्यूजिक लांचिंग से लौटे कोल्हियापुरी, राजनांदगांव के श्री अमरदास मानिकपुरी से बात हुई. उन्होंने बताया कि यह गीत पहली बार पारागांव महासमुंद के वर्कशाप में तैयार हुआ था. शुरुआती दौर में इसे टोली के फिदाबाई, मालाबाई, भुलवाराम, बृजलाल आदि गाया करते थे लेकिन तब से लेकर फिल्म के लिए हुई रिकार्डिंग में मांदर की थाप उन्हीं की है.
23 जुलाई को शाम 6.30 बजे इस पर विशेष लाइव कार्यक्रम के लिए अनूप रंजन जी के साथ मुझे सहारा के रायपुर स्टूडियो में आमंत्रित किया गया. कुछ और चैनलों पर यह समाचार बना है. दैनिक भास्कर के बिलासपुर संस्करण में यह खबर छपने की जानकारी मिली है और 29 जुलाई को दैनिक भास्कर, रायपुर में इस ब्लॉग के उल्लेख सहित समाचार प्रकाशित हुआ है. आभार.
...प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteEKAR KAA BHAROSA,CHOLA MAATI K HE RAAM, CHOLA MAATI K HE RE... Bahut sundar aur arthapurn geet aur behad sundar jaankaariyan. Chachu,aapkay maadhyam say humen bhavishya me bhi aise hi sundar aur arthapurna geet sunne ko milenge,isi asha aur vishwas k saath - BALMUKUND
ReplyDelete13 जून को पीपली लाइव के ऑडियो रिलीज के बाद से हेमंत वैष्णव (फोन +919424276385), नीरज पाल (फोन +919711271596), संजीत त्रिपाठी (फोन +919302403242), गोविंद ठाकरे (फोन +919424765282)जैसे परिचितों ने इसकी चर्चा में मुझे भी शामिल किया। करमा प्रस्तुति और परम्परा की विस्तृत चर्चा की कमान राकेश तिवारी (फोन +919425510768) के हाथों रही। करमा लोक नृत्य, पाठ्यक्रम में शामिल होकर पद चलन, भंगिमा और मुद्रा के आधार पर (झूमर, लहकी, लंगड़ा, ठाढ़ा), जाति के आधार पर (गोंड, बइगानी, देवार, भूमिहार) तथा भौगोलिक आधार पर (मंडलाही, सरगुजिया, जशपुरिया, बस्तरिहा) वर्गीकृत किया जाने लगा है। अंचल में व्यापक प्रचलित नृत्य करमा के लिए छत्तीसगढ़ के नक्शे की सीमाएं लचीली हैं। छत्तीसगढ़ की प्राचीन मूर्तिकला की विशिष्टओं के साथ लगभग 13 वीं सदी के गण्डई मंदिर के करमा नृत्य शिल्प की चर्चा रायकवार जी (फोन +919406366532) लंबे समय से करते रहे हैं।
ReplyDelete१३ जून की जगह १३ जुलाई लिखें .............. बहुत बहुत धन्यवाद आपने इतनी अच्छी जानकारी सभी के सामने रखने का कार्य किया
बहुत अच्छा जानकारी पूर्ण आलेख।
ReplyDeleteछत्तीसगढ के समृद्ध कला जगत की धूम विश्वमंच पर भी मच रही है।
आभार
पिपली के बाकी गाने भी जो इंडियन ओसान ने गएँ हैं बहुत अच्छे हैं . इंडियन ओसान ने पहले भी छत्तीसगढ व मध्य प्रदेश के ऊपर गाने गएँ हैं. माँ रेवा. पिपली के गाने में भी rock के साथ साथ मिटटी की खुसबू हैं
ReplyDeleteइस खोजपरक जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भईया. उस दिन संजीत नें मुझे इस गीत के संबंध में फोन किया तो तत्कालिक मुझे ध्यान नहीं आया था, किन्तु बाद में ध्यान आया कि अनूप रंजन पाण्डेय भईया से इस फिल्म की शूटिंग के बाद रायपुर आने पर मेरी बात हुई थी और मैने जब ब्लॉग के लिए इस फिल्म का डिटेल देने को कहा था तो उन्होंनें कहा था कि आमिर नें फिल्म के रिलीज होते तक इस फिल्म के संबंध में कुछ भी कहने से मना किया है। .... सो अनूप भईया की फिल्म का हम इंतजार कर ही रहे थे। बीच में किसी समाचार पत्र नें इस फिल्म की पृष्टभूमि के संबंध में कुछ जानकारी दी भी थी किन्तु हमें फिल्म का इंतजार था। इस फिल्म में यह छत्तीसगढ़ी गाना है वो भी नगीना जी के आवाज में यह जानकर बहुत खुशी हुई।
ReplyDeleteआपने इस गीत के संबंध में बहुत विस्तार से लिखा है, इसके लिए पुन: धन्यवाद।
(इन दिनो स्लो नेट कनेक्शन के कारण परेशान हूं, यूट्यब लगभग एक घंटे में लोड हुआ और डिवशेयर का गाना तो सुन ही नहीं पाया।)
सुन्दर समीक्षा, फिल्म देखी जायेगी।
ReplyDeleteअच्छा लिखा और चित्र दुर्लभ लगाया है आपने ...
ReplyDeletehttp://pratipakshi.blogspot.com/
bahut bahut hi jankari bhari post bhai sahab.....
ReplyDeletejis din aapko phone kiya tha bas news banane ka kam tha...isliye jitni jankari mili uske aadhar par news bana diya aur ab dekh raha hu ki kahi bhi galat nahi hua mai. ye alag baat hai ki mere news chhaapne ke baad ek aur local newspaper ne bhi is news ko carry kar liya.
lekin aap ki yah post ko meri, us aur local newspaper se bhi badhkar sabit ho rahi hai....
shukriya is mahtvpurna jankari ke liye....
ज्ञानवर्धक आलेख - धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा जानकारी
ReplyDeleteCongratulations to Peepli Live team for pulling out such innovative endeavor with an important message. Hemant Vaishnav, Neeraj Pal, Sanjeev Tripathi, Govind Thackeray, Rakesh Tiwari aur aapko bahot dhanyavad is jankari k liye. Karma nritya ki tasveere is post par kafi kuch kah deti hai.
ReplyDeleteOnce again an enlightening and informative post from you sir. Congratulations.
शानदार प्रस्तुति. समूह नृत्य की मूर्तियाँ और शैल चित्र लगा कर तो गजब कर दिया.
ReplyDeleteराहुल भाई पालागी बहुत ही सुन्दर पोस्ट है आपका वास्तव में यह अत्यंत सुखद है की लोग फिर से पुराने लोक गीतों की ओर आकर्षित हो रहे हैं निश्चित ही पुराने गीतों एवं लोक गीतों की मिठास अलग ही है आज भी यदि पुराने गीत सुनाने को मिल जाएँ तो ऐसा लगता है मानों कानों में मिश्री घुल रही है आज भी श्री लक्स्मन मस्तुरिहा का गीत मोर संग चलव रे याद आता है तो मन भाव विभोर होकर पुराणी स्मिरितियों में खो जाता है इस फिल्म से सम्बंधित कुछ समाचार पत्रों में भी पढ़ने को मिला वह बाद की बातें है ,, इतने सुन्दर पोस्ट के लिए साधुवाद ईश्वर खंदेलिया
ReplyDeleteइतने सुन्दर विषय पर लिखने के लिए बधाई शाला के पूर्व छात्र जब ऐसे विषयों को उठाते हैं तो शाला को निश्चित ही गर्व होता है
ReplyDeleteराजेंद्र कुमार सिंह उच्चतर माध्यमिक शाला अकलतरा
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDelete''पीपली में छत्तीसगढ़'' गहन खोजपरक जानकारी ल पढ़ के लागिस कि अब ''पीपली में छत्तीसगढ़'' नहि '' छत्तीसगढ़ मे पीपली ''
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.
हेमन्त वैष्णव
man ke judawat le paros dethas Rahul Ka kahi daroun,kae-kae chhap daroun;akkal nai purai ji.
ReplyDeleteDr.Akhilesh
आदरणीय सर
ReplyDeleteआपके द्वारा दी गई जानकारी छत्तीसगढ को स्थापित करने का सफल प्रयास है.
धन्यवाद
लेख के माध्यम से पीपली लाइव और छत्तीसगढ़ के लोकगीत के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई. आभार.
ReplyDeleteवाह राहुल जी। बहादुर कलारिन व छत्तीगढ़ की प्राचीनता के साथ पीपली लाइव पर यह पोस्ट बेहद रोचक है।
ReplyDeleteबधाई आपको,इस तरह की समसामयिक और महत्वपूर्ण जानकारी सामने रखने के लिए। अब तो पीपली लाइव ने पुरस्कार जीतना भी शुरू कर दिया। यह भी हमारी लोकसंस्कृति का सम्मान ही है।
ReplyDeleteब्लाग जगत में आप बहुत महत्वपूर्ण और कुछ अलग तरह का रेखांकित किया जाने वाला काम कर रहे हैं। शुभकामनाएं।
सिंह साहब ,
ReplyDeleteजब तक यहां पहुंचा काफी देर हो चुकी है इसलिए इतना ही कहूँगा कि सुन्दर अभिव्यक्ति !
इंटरनेट एक्सप्लोरर में आपका ब्लॉग खुला नहीं पर आज गूगल क्रोम में हाथ आजमाया तो फट से खुल गया ! फिलहाल आपके ब्लॉग को फालो करने लगा हूं तो आगामी पोस्ट की जानकारी स्वतः मिल जाया करेगी !
बहुत अच्छा विवरण
ReplyDeleteBahut Hi achacha laga ...
ReplyDeleteBhuwaneshwar rathore
e-mail:rathoreinsurance@gmail.com
आदरणीय राहुल भैया देर से प्रतिक्रिया दे रहा हूँ। छत्तीसगढ़ी गीतों में मेरी भी दिलचस्पी है और थोड़ा बहुत संग्रह भी है। इस बारे में ऐसी चीजें सामने लाने की जरूरत है जिससे आज की पीढ़ी को यह पता लग सके कि छत्तीसगढ़ की लोक परम्परा कितनी समृ़द्ध है। आजकल छत्तीसगढ़ी में जो प्रयोग चल रहा है, उसके मुकाबले पुराने गीतों को लोगों के सामने रखने की जरूरत है। जैसे हिन्दी फिल्मों के पुराने गीतों को ओत्ड-इज-गोल्ड की तरह पेश किया जाता है, उसी तरह छत्तीसगढ़ी के भी गोल्ड गीतों को लाना चाहिए। इस दिशा में आपका प्रयास सराहनीय है।
ReplyDeleteरुद्र अवस्थी, बिलासपुर
बहुत ही अच्छी जानकारी आपने दी है, अब तो ये फिल्म दिखनी ही पड़ेगी.
ReplyDeletebahut din baad idhar aa saka. ispost ke baare me maine sun rakha tha.dekh kar andazaa lagaaraha hoo,ki logo ko kitani mahatvpoorn jankariyaan mili hongee. badhai rahulbhai, aise sakaratmak lekhan kliye.
ReplyDeleteसमृद्ध लोकशैलियों से अवगत कराता एक महत्वपूर्ण आलेख।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है! बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट के दौरान! धन्यवाद !
ReplyDeleteachhchi abibyakti hai. bhavishaya ko bhoot ke aaine se bhee dekha ja sakta hai . dhanyawad
ReplyDeleteहाल ही में चर्चित इस गीत के बारे में बहुत सी जानकारियां देता हुआ बुकमार्क करने लायक लेख है.
ReplyDeleteश्वेत श्याम चित्रों ने जान डाल दी है.
गीत फिल्म वाला सुना है ,मूल गीत दिव्शेर पर अभी सुनती हूँ.
आभार.
अल्पना
सिहांवलोकन का अवलोकन किया .मन प्रसन्न हो गया .
ReplyDeleteकई आलेख बहुत रोचक हैं . पिपली लाइव पर प्रस्तुतिकरण
मन को भा गया . बधाई और शुभकामनाएं.
स्वराज्य करुण
क्या नेट में किसी साइट में छत्तीसगढ़ी गीत मिलेंगे ? यदि किसी के ध्यान में हों तो कृपया साइट का लिंक दें...
ReplyDelete- आनंद
राहुल जी..धन्यवाद आपके आगमन का और आभार एक नई जानकारी से परिचित कराने का... हमारी शृंखला की अंतिम कड़ी इन बातों पर प्रकाश डालेगी... सारे तकनीकी पक्ष की चर्चा होगी..हबीब तनवीर साहब पूज्य हैं और अनुषा जी का यह प्रयास एक सकसच्ची श्रद्धांजलि है उस महा नाटककार को!!!
ReplyDeleteआपके आगमन और महत्वपूर्ण कथन के लिए कोटिशः धन्यवाद । "पीपली में छत्तीसगढ़" अच्छी जानकारी देने वाली पोस्ट , बधाई ।
ReplyDeleteBahut hi vadhia ! Congratulations for doing such a good job.
ReplyDeleteसचमुच एक दस्तावेजी आलेख! चोला माटी गीत कालजयी है !
ReplyDeleteप्रिय राहुल जी,
ReplyDeleteपीपली में लाइव छत्तीसगढ़ एक महत्वपूर्ण और शोधपूर्ण पठनीय, संग्रहणीय आलेख है, बधाई. आप बहुत ही अभिनंदनीय कार्य कर रहे हैं.
-डॉ विमल पाठक
(19 अगस्त को नवभारत समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित इस आशय के आलेख पर प्राप्त एसएमएस से)
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ
ReplyDeleteDear RKS Saheb,
ReplyDeletetoday I could go through Piplee.... in your blog it shows how minutely you go into a hiddedn, rather untouched- neglected point- matter and focus it as the basic and unavoidable, unforgetable aspect or cause of a present very popular- famous figure. So after reading your blog and the article in Nav Bharat [and also the Chola Mati... song from Peepli... is now on through a mobile handset] I must call it "Peepli Live In Chhattisgarh'. Thanx. B.R.Sahu
अभी बिना पूरा पढ़े लिख रहा हूँ कि वह गीत हाल ही में सुना है और अच्छा लगा लेकिन आश्चर्य है भाषा भोजपुरी से बहुत मिलती-जुलती है।
ReplyDeleteपूरा पढ़ लिया। बहुत कुछ कहने का मन है। पहली बात फिल्मी कलाकार एक दूसरे की टांग-खिंचाई खूब करते है और प्रशंसा भी जैसे लता ने की है आमिर खान की। यही आमिर खान सुना है आस्कर के मंच से भारतीय संगीत को गाली देते हुए उतरे थे।
ReplyDeleteअब अकलतरा क्या है, कुछ बताएंगे? लग रहा है जगह का नाम है। मैं आज तक इसे अकल तारा ही समझता रहा हूँ।
यही तो हाल है फिल्म में आ जाय तो गीत बड़ा और पुरस्कार के योग्य बन जाता है नहीं तो ढीचिक-डमचक और फालतू रिमिक्स ही अच्छा लगता और माना जाता है इनके द्वारा। वरना लोकगीत को पूछता कौन है? इस गीत का भोजपुरी अनुवाद कर रहा हूँ, शायद बहुत समानता है भाषा की। फिल्म मैंने हाल में देखी है। पहले नहीं देखा था। आपके लिंक से पुराना वाला डाउनलोड कर रहा हूँ। फिल्म से सुनने पर मुझे लगा था भोजपुरी जैसा ।
देखिए भोजपुरी अनुवाद:
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे।
द्रोणा जइसन गुरूओ गइलन करन जइसन दानी
भइया करन जइसन दानी
बाली जइसन बीरो गइलन, रावन कंस अभिमानी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
केहू रहल ना केहू रही भाई आई सब के बारी(केहू रही ना केहू रहल भी हो सकता है लेकिन मैं ये समझने में असमर्थ रहा कि रिहिस भविष्यकाल के लिए है या भूतकाल के लिए। अगर भूतकाल हो तो ठीक है और भविष्यकाल हो तो 'केहू रही ना केहू रहल भाई, आई सब के बारी' होगा)
('कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई आही सब के पारी' इस का पूरा अर्थ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।)
एक दिन आई सब के बारी
काल केहू के छोंड़लस ना राजा रंक भिखारी
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
भव से पार लगावे के बा त हरि के नाम सुमर ल भइया(संगी के लिए साथी भी लिख सकते हैं)
हरि के नाम सुमर ल
ई दुनिया माया के रे पगला जीवन मुक्ती कर ले
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा.....
आपके लेखों की विशेषता रही है की आप विषय एक बार चुन लेने के बाद उसमें पूरा घुस जाते हैं और जब तक तलहटी तक न पंहुच जाएँ जाते ही जाते है। यह लेख भी उसी अंदाज़ का एक बेहतरीन नमूना है। आपकी मेहनत और जानकारी का मेरे जैसे पाठक पूरा पूरा आनंद उठाते हैं। 24 कैरेट की ऐसी सामग्रियां देते रहिये। ब्लॉग तक पंहुचने में बीच बीच में समय लग जाता है पर एक बार पढने के बाद संतुष्टि पूरी मिलती है।
ReplyDelete👌👌👌👌
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