‘मैं सोचता हूं, अतः मैं हूं।’ 17 वीं सदी में डेन्यूब के किनारे किसी सैन्य शिविर में युवा फौजी रेने देकार्त के चिंतन का परिणाम। यह वाक्य विधि स्नातक, गणितज्ञ देकार्त का दार्शनिक आधार पद बना और सोच की नई राहें खुलीं, जिनमें से एक 20 वीं सदी का अस्तित्ववादी चिंतन भी है। मनुष्य के अस्तित्व पर अलग ढंग से विचार होने लगा, वह खुद अस्मिता के लिए अधिक सचेत हुआ और उसकी पहचान सिर्फ अपने और गैर का मामला नहीं रह गया, बल्कि सार्वजनिक, सामाजिक और व्यवस्था की जरूरत बन गई।
अब दुनिया अंकों में तब्दील, डिजिटाइज हो रही है। फूल का रंग, चिड़िया की उड़ान, स्वाद और महक का सोंधापन भी अंकों में बदल सकता दिख रहा है। विचार, शब्दों में बदलते हैं और शब्द अंकों में परिवर्तित हो रहे हैं। मूर्त और अमूर्त के बीच का रिश्ता भी भाषा और अंकों से ही जुड़ता है। ‘प्रेम’ का भाव शब्दों में अभिव्यक्त होता है और ढ़ाई के आंकड़े में भी। अंकों का यह सिलसिला आगे बढ़ा है, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के गठन और देश के प्रत्येक नागरिक को विशिष्ट पहचान संख्या देने की तैयारियों के साथ, जिसमें मतदाता परिचय पत्र के दौर को ध्यान में रखना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति अमीर-गरीब, अगड़े-पिछड़े, सभी के लिए सामान्यतः जिन दैनंदिन और वैधानिक स्थितियों में आयु-जन्म तिथि की आवश्यकता होती है वे हैं- जन्म-मृत्यु पंजीयन, विवाह पंजीयन व आयु, बालिग-नाबालिग, मतदान आयु, सेवा की आयु सीमा और सेवा निवृत्ति, वरिष्ठ नागरिकता आदि।
इस तरह हर नागरिक की पहचान संख्या सरलतम और विशिष्टतम होनी ही चाहिए। इस दृष्टि से व्यक्ति के जन्म का वर्ष, माह, दिनांक, समय (घंटा, मिनट और सेकंड) तथा इसके बाद सरल क्रमांक के तीन अंक और पंजीयन क्षेत्र का क्रमांक तीन अंक, इस प्रकार कुल 20 अंक, व्यक्ति की विशिष्ट पहचान संख्या होनी चाहिए। यानि 31 मार्च 2010 को शाम चार बजकर पैंतीस मिनट छत्तीस सेकंड पर पैदा होने वाले बच्चे की विशिष्ट पहचान संख्या होगी- 20100331163536। ठीक इसी वक्त पैदा होने वाले एकाधिक बच्चों के लिए पंजीयन क्रम में तीन अंकों में सरल क्रमांक दिया जा सकता है तथा इसके बाद पंजीयन क्षेत्र को तीन अंकों में दर्ज किया जा सकता है।
विशिष्ट पहचान संख्या का आधार यही होना चाहिए। इससे व्यक्ति द्वारा अपनी विशिष्ट संख्या को याद रखना आसान होगा। इसमें आवश्यकतानुसार तथा संभावित आंकड़ों को दृष्टिगत कर आंशिक परिवर्तन किया जा सकता है, जैसे जन्म के समय में सेकंड को छोड़ा जा सकता है और यह आगे चल कर वैश्विक स्तर पर भी स्वीकार और मान्य होगा, यह मानते हुए सरल क्रमांक के लिए चार अंक निर्धारित किए जा सकते हैं साथ ही पंजीयन क्षेत्र की संख्या को इसमें जोड़ने, न जोड़ने पर विचार किया जा सकता है। लेकिन जन्म के वर्ष, माह, तिथि, घंटा और मिनट के 12 अंक तो इसी प्रकार रखना होगा।
29 सितंबर को 12 अंकों का
विशिष्ट नंबर, 782474317884 वाला 'आधार' परियोजना का पहला यूआईडी कार्ड, महाराष्ट्र
के तेम्भली गांव की रंजना सोनावने को जारी किया गया है।
आज ही के अखबार में समाचार है कि उइडा के बदले "आधार" का प्रयोग किया जावेगा
ReplyDeleteI think this is the right way to promote chhattisgari culture.
ReplyDeleteTapash Kumar Basak
I REALLY ADMIRE YOUR EFFORT RAHUL JI!
ReplyDeleteWE CANNOT BECOME DEVELOPED; UNLESS, WE TAKE INSPIRATION FROM OUR ACHIEVEMENTS.
ALWAYS PROUD ON YOUR MOTHERLAND
JAI HIND JAI CHHATISGARH!