Saturday, October 8, 2022

तुलाराम गोपाल

तुलाराम जी के नाम से मेरा पहला परिचय 1980 में कुलदीप सहाय जी के माध्यम से हुआ। इस दौरान मैं ‘जांजगीर का विष्णु मंदिर‘ शोध निबंध के लिए नियमित जांजगीर जाता था। कुलदीप सहाय जी अनुभव, जानकारियों और संस्मरणों का खजाना थे। भीमा तालाब के सूख जाने और उसे साफ कराने के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया था कि विष्णु मंदिर, शिखर रहित, अधूरा होने के कारण नकटा मंदिर या साथ लगे तालाब के नाम पर भीमा मंदिर कहा जाता है। मगर गर्भगृह में देव-प्रतिमा न होने के कारण पूजित नहीं है, इसलिए यह सूना मंदिर है और इसी नाम ‘सूना मंदिर‘ शीर्षक से तुलाराम गोपाल जी ने खंड काव्य की रचना की है। संयोग कि तब मेरी जानकारी इस चर्चा तक ही सीमित रही, किंतु स्मृति में यह बात बनी रही। इस स्मारक के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए साहित्यिक रचना करने वालों को यह नाम भा गया। साहित्यकार अश्विनी कुमार दुबे ने इस मंदिर पर लेख लिखा था, जिसका शीर्षक कुछ यूं था- ‘मैं सूना मंदिर हूं, मुझमें दीप धरो‘। 

तुलाराम जी के ‘सूना मंदिर‘ और साहित्यिक अवदान के प्रति मेरी जिज्ञासा बनी रही। पुनः अब संयोग बना कि मेरी मुलाकात तुलाराम जी के पुत्र सूर्य कुमार जी की पुत्री, अर्थात तुलाराम जी की सुयोग्य पौत्री अकलतरा निवासी श्रीमती वर्षा यादव से हुई, श्री रमाकांत सिंह जी माध्यम बने। वर्षा जी ने उत्साहपूर्वक सहयोग करते हुए तुलाराम जी की पुस्तक ‘शिवरीनारायण और सात देवालय (सोलह पुष्पों सहित)‘ का अवलोकन कराया, जानकारी दी कि ‘सूना मंदिर‘ के प्रकाशन की योजना है और तुलाराम जी के जीवन-वृत्त से भी परिचित कराया।

वर्षा जी से जानकारी मिली कि तुलाराम गोपाल जी का जन्म 31 जनवरी 1934 को चंद्रग्रहण के महामूल में हुआ था, जिससे यह बालक गरहन (ग्रहण) कहलाया। शाला-प्रवेश के समय गुरुजी ने तुलाराम गोपाल नामकरण किया। {संभवतः गुरुजी के मन में 1857 के क्रांतिवीर हरियाणा के अहिरवाल (यादव) तुलाराम राव की छवि थी।} बी.ए. एल.एल.-बी शिक्षा प्राप्त कर 1954 में सरकारी सेवा में आए। मगर शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे कर 1968 से वकालत करने लगे। जांजगीर में ‘सांस्कृतिक विकास मंडल‘ की स्थापना में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसके अंतर्गत सांस्कृतिक, धार्मिक एवं मानस के प्रचार प्रसार में उत्कृष्ट कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. शांतिलाल गोपाल के सहयोग से स्वजाति बंधुओं के लिए संविधान एवं आचार संहिता का निर्माण किया। वे यादव महासभा के निर्वाचित अध्यक्ष भी रहे। आप मां शारदा के अनन्य भक्त थे। नवरात्रि पर्व में पूरे नौ दिवस मौन रह कर उपवास एवं हवन किया करते थे। आप के द्वारा निर्मित जांजगीर कचहरी चौक में स्थित मां शारदा मंदिर में आज भी नवरात्र में हवन एवं पूजन पूरे परिवार द्वारा किया जाता है। 19 अक्टूबर 1990 को एकादशी के दिन मां दुर्गा का विसर्जन हो रहा था, आप विधिवत नवरात्रि व्रत पूरा कर गो-लोक प्रस्थान कर गए।
 
‘बलिदान‘ और ‘पेकिंग सुनले मोर कबीर‘ के पश्चात पुस्तक ‘शिवरीनारायण और सात देवालय (सोलह पुष्पों सहित)‘ का प्रकाशन 1975 में जांजगीर से हुआ था। पुस्तक में कुल आठ मंदिरों- शिवरीनारायण का मंदिर, पीथमपुर का शिवालय, खरौद का अखलेश्वर मंदिर, अमरकंटक का नर्मदा मंदिर, चंद्रपुर की चंद्रसेनी देवी का मंदिर, चांपा की समलेश्वरी का मंदिर, जांजगीर का जगदंबा मंदिर और मैहर की शारदा माता मंदिर, पर काव्य रचना है। साथ ही शीर्षक अनुरूप, कुलदीप सहाय जी के शब्दों में ‘सोलह प्रार्थना-पुष्पों को इस पुस्तक में स्थान दिया है- वे षोडशोपचार पूजन की विविध विधियों के काव्यात्मक प्रतीक हैं।‘ 

पुस्तक में प्रकाशक सूर्य कुमार गोपाल, जांजगीर का वक्तव्य है। विस्तारपूर्वक भूमिका लिखी है, कुलदीप सहाय, अधिवक्ता (एवं सेवा, लोकमत, पीपुल्स व्हाइस आदि के यशस्वी भूतपूर्व संपादक) ने। जगदीश चन्द्र तिवारी, अधिवक्ता, जांजगीर के ‘दो शब्द‘ हैं। प्रकाशक की ओर से शुद्धिपत्र लगाया जाना उल्लेखनीय है। इसी तरह आमुख में रचनाकार तुलाराम गोपाल ने मार्के की बात कही है कि ‘प्रस्तुत पुस्तक के बोलते हुये मंदिरों के माध्यम से मैंने अपने साहित्यिक बंधुओं से एक आत्मीय निवेदन किया है कि वे कुतुबमीनार, ताजमहल, अजंता, एलोरा तथा विदेशों के कई स्थलों और प्रसंगों पर बहुत कुछ लिख चुके हैं। अब वे कृपया अपने घर और आसपास स्थित कथा वस्तुओं पर भी लिखने का कष्ट करें, जिन पर हमने समीपता के कारण सदा से उपेक्षा की है।‘ 

तुलाराम जी की भावना और विचारों के अनुरूप मेरा मानना रहा है कि हम सभी अपनी प्रत्येक स्थिति-संदर्भों के कारण विशेष-सुविधायुक्त होते हैं, (स्वाधीनता संग्राम के दौरान जेल में की गई रचनाएं इसका उदाहरण हैं।) इसका लाभ लेना चाहिए, साथ ही यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि आसपास ‘ स्थान, वस्तु, व्यक्ति, घटना‘ पर ध्यान रहे, क्योंकि यह हमें ही करना होगा, हम ही बेहतर कर सकते हैं और शायद हम न कर सके तो अन्य कोई करने नहीं आएगा। 

इस क्रम में तुलाराम गोपाल जी और उनके कृतित्व का स्मरण करते हुए गौरव-बोध हो रहा है।

4 comments:

  1. पूर्णतः सहमत,अपने आसपास ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए चाहे कृतित्व निर्माण में या मदद करने में 🙏

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  2. शानदार 🙏

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  3. सराहनीय रचना ये हमारे संस्कृति के परिचायक है।रचनाकार तुलाराम गोपाल जी को विन्रम श्रंद्धाजलि।

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