शहर में शहर रहता है
शहर में सिर्फ शहर होता है
हर शहर का अपना वजूद है
उसका अपना वजूद, अपने होने से
चिरई-चुरगुन, तालाब-बांधा, मर-मैदान
गुड़ी-गउठान, पारा-मुहल्ला
बाबू-नोनी, रिश्ते-नाते
शाम-ओ-सहर सब
या समाहित या शहर बदर
अब शहर में बस शहर ही शहर
शहर में सिर्फ शहर होता है
हर शहर का अपना वजूद है
उसका अपना वजूद, अपने होने से
चिरई-चुरगुन, तालाब-बांधा, मर-मैदान
गुड़ी-गउठान, पारा-मुहल्ला
बाबू-नोनी, रिश्ते-नाते
शाम-ओ-सहर सब
या समाहित या शहर बदर
अब शहर में बस शहर ही शहर
बहुत खून
ReplyDeleteWah! Kya bat hai. Bahut sundar.
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मंगल पाण्डेय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteवाह दिल को छू लेने वाली पोस्ट ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर, दो पंक्तियां पेश हैं
ReplyDeleteशहर के डगर-डगर पर
शहर-शहर है हमसफर
भाव - पूर्ण, चिंतन ।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह अनुपम
ReplyDelete