Saturday, February 4, 2017

इमर

छत्तीसगढ़ में हाथी के पुराने संदर्भों से वाकिफ हूं, एक नाम आठवीं सदी ईस्वी का उद्योतनसूरिकृत ग्रंथ 'कुवलयमाला' है, जिसमें छत्तीसगढ़ के हाथियों का पहला और रोचक उल्लेख मिलता है। मुगल काल में कलचुरियों द्वारा और देशी रियासतों के दौर में राजाओं द्वारा छत्तीसगढ़ के हाथी उपहार में दिए जाने की जानकारी मिलती है। कैप्टन जे फारसिथ की पुस्तक में छत्तीसगढ़ के हाथियों से जुड़े तथ्य और ढेरों रोचक जानकारियां हैं।

अपने सरगुजा प्रवासों में कुछ साल पहले डीपाडीह-कुसमी के रास्ते पर हाथियों का पूरा झुंड हमारे बगल में था और पिछले साल महेशपुर में अकड़ा आमने-सामने मिल गया था। हाथी वालों में समकालीन शरद वर्मा जी, जगदलपुर-बिलासपुर वाले को सपरिवार जानता हूं, माइक पांडेय से मिल चुका हूं, पार्वती बरुआ के नाम और काम से परिचित हूं, अंबिकापुर के अमलेन्दु मिश्र, प्रभात दुबे से भी बातें हुई हैं, वन विभाग के डीएफओ, सीसीएफ साहबान को भी जानता हूं। अपनी इन जानकारियों-सूचनाओं-संपर्कों के बावजूद ठिठका हूं...

पता लगा कि जशपुर-सरगुजा में अब भी, खासकर तपकरा के लोग हैं, जिनका हाथियों से पुश्तैनी रिश्ता है, जो हाथी को रास्ता दिखा देते हैं, बिना झिझक खदेड़ सकते हैं, और अब मुलाकात हुई अंबिकापुर को जल-आपूर्ति करने वाले बांकी बांध पर बसे पहाड़ी गांव गंझाडांड़ निवासी 22 वर्षीय युवक से, लगा कि इसका नाम एंथनी गोंजाल्विस से कुछ कम न होगा, पता लगा कि पिछले दिनों अंबिकापुर शहर में आ गए हाथियों को इन्होंने खदेड़ा था। बाप-दादा को देख-सुन कर सीखा है, हाथी खदेड़ना, हाथी से डर नहीं लगता उसे। हमलोग चर्च के पास खड़े बात कर रहे हैं।

मैं उसका नाम नोट कर रहा हूं, वह दुरुस्त कराता है कि उसके नाम खलखो में ल आधा नहीं पूरा है और वह स्पेलिंग केएच के बदले एक्स यानि एक्सएएलएक्सओ लिखता है, पूरा नाम इमर वल्द श्री रामधनी खलखो (उरांव)। सरगुजा के हाथियों के सिलसिले में इसका नाम मैंने अब तक किसी से नहीं सुना था, लेकिन वह जोड़ता है कि उसके साथ 26 वर्षीय भीखम वल्द श्री चोनहास तिर्की भी थे। इमर, दसवीं तक पढ़े हैं, शायद पास, शायद फेल।

थोड़ी बात 'खलखो' के साथ कुडुख-उरांव बोली पर। खलखो का अर्थ एक पक्षी है, और इसमें ख नुक्ता लगाकर लिखा जाता है। थोड़े उच्चारण भेद से पित्ताशय का अर्थ देने वाला शब्द, जो लगभग खळखो उच्चारित होता है, बन जाता है, लेकिन इन दोनों में ल और ळ की तरह ख के उच्चारण में भी फर्क है तथा लिखने में सामान्यतः पक्षी अर्थ वाला ख नुक्ता सहित और पित्ताशय वाला बिना नुक्ता 'खर्च' में उच्चारित होने वाले ख की तरह है। एक और सरनेम शब्द है 'खेस्स', यानि धान, जिसे अंगरेजी में केएचइएसएस के बजाय एक्सइएसएस लिखा जाता है, इसी तरह के दूसरे शब्द् 'खेंस' (खून) से समझने में मदद मिल सकती है, जो नुक्ता लगा कर लिखा और लगभग 'खबर' वाले ख की तरह उच्चारित होता है। ऐसा ही अन्य शब्द खाखा (नुक्ता वाला, एक्सएएक्सए) है, जो सामान्यनतः 'ओड़ा-खाखा' (यानि चिडि़या-विडि़या या चिरई-चुरगुन) इस्तेमाल होता है।

इस तरह 'खलखो' और 'खेस्स ' का ख (जो खळखो और खेंस के ख से भिन्न है), संभवतः भाषाविज्ञान में काकल्य स्पर्श यानि Glottal stop कही जाने वाली ध्वनि वाला है, जिसे 'क्स' (एक्स वाले) जैसे उच्चारण, जिसमें ह जैसी स्पर्शरहित कंठोष्ठ्य ध्वनि भी है, से बेहतर स्प‍ष्ट किया जा सकता है, इसलिए अंगरेजी में 'खलखो', 'खेस्स' या 'खाखा' जैसे शब्दों को लिखने के लिए यह केएच के बजाय एक्स अधिक संगत होता है। यह जोड़ना आवश्यक होगा कि कुडुख को भी केयूआरयूएक्स भी लिखा जाता है और झारखंड के डा. नारायण ओरांव द्वारा कुडुख के लिए बनाई गई वर्णमाला तोलोंग सिकी (कुँड़ुख़ और तोलोङ सिकि, लिखा जाता है) में भी दो ख हैं, बिना नुक्ता वाला ख, जिसे केएच लिखा जाता है और दूसरा नुक्ता वाला, जिसे एक्स लिखा जाता है। कहा जा सकता है कि वस्तुतः कुडुख की इस वर्णमाला में नुक्ता सहित लिखा जाने वाला ख, जो अगरेजी के 'एम' की तरह लिखा जाता है, की ध्वनि ही एक ऐसी है, जो नागरी में संभव नहीं है और जिसके कारण अलग लिपि की आवश्यकता महसूस की गई होगी।

मेरे साथ जगदेवराम भगत हैं, उरांव भाईचारा पनप गया, इमर अधिक सहज हो गए हैं। वे यह भी बताते हैं कि गंझाडांड़ के लगभग सभी निवासी उरांव और कोरवा इसाई बदल गए हैं, लेकिन वे और उनका परिवार नहीं। जाने कैसे दोनों ने बिना किसी प्रसंग, जान लिया है कि दोनों अनबदले उरांव हैं। प्रकृति और परम्परा से जुड़े, जल-जंगल-जमीन से अभिन्न।

हाथी का सामना होने पर हमने अपने लिए टिप्‍स मांगे, इमर ने कहा, बहुत आसान। अक्‍सर होता यह है कि हाथी पीछे पड़ जाए तो लोग उससे दूरी बनाने के लिए सरपट दौड़ लगाते, भागने की कोशिश करते हैं लेकिन ऐसा करके हाथी से नहीं बचा जा सकता, जबकि करना बस यह होता है कि सीधे भागने के बजाय एकदम दायें या बांयें भागें, नब्‍बे अंश पर मुड़कर। हाथी ऐसे नहीं मुड़ पाता, आप तक नहीं पहुंच सकता और आप सुरक्षित रह सकते हैं।

इमर, बांध से मछली पकड़ते हैं। अफसोस सहित बताते हैं कि एक बार इसी जाल में बदक फंस गई थी, कैसी थी पूछने पर जेब से स्मार्ट फोन निकाल कर 'रेड क्रेस्टेड पोचर्ड' की तस्वीर दिखा देते हैं। यहां आने तक जमा सूचनाओं की गठरी अब इन बातों के बाद बोझ लग रही है। घंटे भर के साथ में इमर के बोले गए 20-25 वाक्यों से कितना कुछ सुन-जान लिया है। उम्मीद है चुप्पे-से इमर, अगली किसी लंबी मुलाकात में मुखर होंगे और वह मेरे लिए अपनी समझ झाड़-पोंछ करने का बेहतर अवसर होगा।

8 comments:

  1. बढ़िया मुलाकात, हाथियों के साथ निभाने में पारस्परिक ज्ञान ही काम आएगा।

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  2. सुग्घर जानकारी

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  3. आपके अपने अंदाज़ में आलेख अच्छा लगा।

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  4. As usual amazing article .... really fantastic .... Thanks for sharing this!! :) :)

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  5. Very good info. Thanks for putting it here. Hope he will be more talkative in next meeting.

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