सितम्बर का महीना, खासकर आखिरी सप्ताह में पद्म पुरस्कारों के लिए सक्रियता बढ़ जाती है, भारत सरकार के गृह मंत्रालय में प्रविष्टि पहुंचने की तारीख 1 अक्टूबर तय हुआ करती है। 25 जनवरी निर्धारित होती है, पद्म पुरस्कारों की घोषणा के लिए और इन्हीं दो तारीखों के बीच पुरस्कार समारोह होता है।
पद्मश्री पुरस्कार के प्रमाण पत्र और पदक |
इसी बीच छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लिए गए निर्णय की खबरें अखबारों में आईं-
18 अप्रैल 2012, बुधवार को दैनिक भास्कर, रायपुर के मुखपृष्ठ पर समाचार छपा कि ''पद्म पुरस्कारों से सम्मानित लोगों को मासिक सम्मान निधि देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। यह निधि 5 हजार रुपए होगी। राज्य कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। ... राज्य में दस पद्म पुरस्कार प्राप्त हस्तियां हैं। इनलोगों ने राज्य का गौरव बढ़ाया है इसलिए सरकार ने उन्हें मासिक सम्मान देने का फैसला किया है।''
18 अप्रैल के दैनिक नवभारत, रायपुर के पृष्ठ-6 पर समाचार के अनुसार ''कैबिनेट के इस फैसले से राज्य के 17 पद्म पुरस्कार विजेताओं को लाभ मिलेगा। ... इसके लिए पद्म पुरस्कार विजेताओं को कोई आवेदन देने की आवश्यकता नहीं होगी।''
19 अप्रैल के दैनिक देशबन्धु, रायपुर के कैपिटल जोन संपादकीय में इस फैसले पर कई सवाल उठाते हुए कहा गया कि ''बेहतर हो कि शासन इन निर्णय पर पुनर्विचार करे। अगर नहीं तो जो सक्षम विभूतियां हैं उन्हें स्वयं इस सम्मान राशि लेने से सविनय इंकार कर देना चाहिए।''
18 अप्रैल के दैनिक नवभारत, रायपुर के पृष्ठ-6 पर समाचार के अनुसार ''कैबिनेट के इस फैसले से राज्य के 17 पद्म पुरस्कार विजेताओं को लाभ मिलेगा। ... इसके लिए पद्म पुरस्कार विजेताओं को कोई आवेदन देने की आवश्यकता नहीं होगी।''
19 अप्रैल के दैनिक देशबन्धु, रायपुर के कैपिटल जोन संपादकीय में इस फैसले पर कई सवाल उठाते हुए कहा गया कि ''बेहतर हो कि शासन इन निर्णय पर पुनर्विचार करे। अगर नहीं तो जो सक्षम विभूतियां हैं उन्हें स्वयं इस सम्मान राशि लेने से सविनय इंकार कर देना चाहिए।''
पद्म पुरस्कार 2010 समारोह का समूह चित्र |
इस सिलसिले में पद्म पुरस्कारों और छत्तीसगढ़ से संबंधित कुछ पक्षों पर ध्यान गया, उसमें सबसे खास तो यह कि पद्म पुरस्कारों की सूची में किसी वर्ष में एक राज्य से जितने व्यक्ति सम्मानित हो जाते हैं, छत्तीसगढ़ के हिस्से आए अब तक के कुल पुरस्कारों की संख्या भी इससे कम है। यह भी लगता है कि किसी वर्ष के लिए छत्तीसगढ़ से जाने वाली कुल प्रविष्टियां भी बमुश्किल उतनी होती है, जितनी किसी अन्य राज्य के पुरस्कृतों की संख्या। संभवतः इसके पीछे सबसे बड़ा कारण शायद जानकारी का अभाव है। इस हेतु निर्धारित प्रक्रिया और प्रपत्रों सहित समय पर प्रविष्टि की प्रस्तुति आवश्यक होती है। सम्मान/पुरस्कार के लिए प्रतिभा और योग्यता के साथ जागरुकता और उद्यम भी जरूरी होता है।
पद्म पुरस्कारों के लिए प्रविष्टियों के लिए प्रोफार्मा इंटरनेट पर उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त 1954 से 2011 तक के पद्म पुरस्कृतों की वर्षवार सूची तथा खोज सुविधा भी है। निजी स्तर पर जुटाई जानकारी के साथ नेट पर मिली वर्षवार सूची की मदद से छत्तीसगढ़ से संबंधित, जिनकी जन्मभूमि/कर्मभूमि या गहरा जुड़ाव छत्तीसगढ़ से रहा, पुरस्कृतों की सूची बनाने का प्रयास किया, इसमें वर्षवार सूची का सरल क्रमांक और राज्य का नाम दर्शाया गया है, वह इस प्रकार है-
डा. दि्वजेन्द्र नाथ मुखर्जी -1965–पद्मश्री 46 पश्चिम बंगाल
पं. मुकुटधर पाण्डेय -1976–पद्मश्री 58 छत्तीसगढ़
श्री हबीब तनवीर -1983-पद्मश्री, 2002-पद्मभूषण 65 दिल्ली 22 मप्र
श्रीमती तीजनबाई -1988-पद्मश्री, 2003–पद्मभूषण 19 मप्र, 1 छत्तीसगढ़
श्रीमती राजमोहिनी देवी -1989–पद्मश्री 20 मप्र
श्री धरमपाल सैनी -1992–पद्मश्री 91 मप्र
डा. अरुण त्र्यंबक दाबके -2004–पद्मश्री 23 छत्तीसगढ़
सुश्री मेहरुन्निसा परवेज -2005–पद्मश्री 68 मप्र
श्री पुनाराम निषाद -2005–पद्मश्री 67 छत्तीसगढ़
डा. महादेव प्रसाद पाण्डेय -2007–पद्मश्री 81 छत्तीसगढ़
श्री जॉन मार्टिन नेल्सन -2008–पद्मश्री 82 छत्तीसगढ़
श्री गोविंदराम निर्मलकर -2009–पद्मश्री 90 छत्तीसगढ़
डा. सुरेन्द्र दुबे -2010–पद्मश्री 62 छत्तीसगढ़
श्री सत्यदेव दुबे -2011–पद्मभूषण 11 महाराष्ट्र
डा. पुखराज बाफना -2011–पद्मश्री 43 छत्तीसगढ़
श्रीमती शमशाद बेगम- 2012-पद्मश्री छत्तीसगढ़
श्रीमती फुलबासन बाई यादव– 2012-पद्मश्री छत्तीसगढ़
श्रीमती शमशाद बेगम - श्रीमती फुलबासन बाई यादव |
यहां उल्लेख है कि विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण योगदान के लिए विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित व्यक्तियों के बारे में खोजना भ्रामक और समय लगाने वाला कार्य है। भारतीय राष्ट्रीय पोर्टल अंतनिर्मित खोज सुविधा के साथ विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों पर सत्यापित जानकारी प्रदान करता है, लेकिन इस सूची में श्री नेलसन का नाम 2008 व 2009, दो बार है, जबकि डा. पुखराज बाफना का नाम नहीं है।
मीडिया/कैमरा उन्मुखता में समय के साथ अंतर आया है? |
पुनश्चः 25 जनवरी 2013 को हुई घोषणा से पद्मश्री सूची में छत्तीसगढ़ से कला क्षेत्र में स्वामी जी.सी.डी. भारती उर्फ भारती बंधु का, 2014 में कला-प्रदर्शनकारी कला क्षेत्र में अनुज (रामानुज) शर्मा का, 2015 में खेल क्षेत्र में सुश्री सबा अंजुम का, 2016 में कला-लोक संगीत क्षेत्र में श्रीमती ममता चन्द्राकर का, 2017 में अन्य (पुरातत्व) क्षेत्र में श्री अरुण कुमार शर्मा का नाम जुड़ गया है।
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आपने सही कहा कि जानकारी के अभाव में नामांकन भेजा ही नहीं जाता।
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ReplyDeleteपुरुष्कारों की श्रेणी में कोई भी पुरुष्कार दिए जाएँ प्राप्त कर्ता को अपनी योग्यता को स्वयम सिद्ध करके देना अटपटा सा लगता है बारीकियां नहीं जानता किन्तु मन संदेह से भर जाता है . मूल्याङ्कन कर्ता निःसंदेह योग्य है और रहे हैं . भविष्य में भी कोई संदेह नहीं . तीन चार ऐसे चहरे जो सम्मानित हैं मेरे सामने गुजरते हैं जिन्हें किसी भी कोण से योग्य नहीं माना जा सकता है तब मैं सोचता हूँ मेरे कार्य का मूल्याङ्कन किया गया तो मुझे कम से कम राष्ट्रपति पुरुष्कार के लिए सीधे बुलाया जाना चाहिए किन्तु मेरी योग्यता कौन बतलायेगा .यही पीड़ा सभी योग्य प्रत्याशी के मन में आ जाना स्वाभाविक है जब निहायत अयोग्य व्यक्ति इनाम पाकर इतराता फिरता है .मेरे मन में भी यही कुविचार कभी कभी पैदा हो जाता है.इसीलिए मैंने कभी फार्म को लेने का साहस नहीं किया क्योकि नियम सब पर लागू होते हैं . सदा की भांति आपके पोस्ट से एक नई बात सिखता हूँ .यहाँ भी धैर्य का पाठ मिला . सादर नमन आपके तथ्यगत जानकारी के लिए .
ReplyDeleteजुगाड़ है तो पुरुष्कार है..
ReplyDeleteसही सवाल। इस तरह से किए जाने वाले चुनावों में अक्सर ऐसा ही होता है। जो प्रविशिष्टयां आती हैं उन्हें ही परखना होता है।
ReplyDeleteहमेशा की तरह जानकारीपूर्ण लेख है. इन महत्त्वपूर्ण जानकारियों के लिए धन्यवाद चाचाजी !
ReplyDeleteनयी जानकारी के लिए आभार आपका ! छत्तीसगढ़ की विभूतियों को प्रणाम !
ReplyDeleteऊंची बात, गहरी बात|
ReplyDeleteकर्मशीलता की स्वस्थ परम्परा का वहन कर रहा आपका राज्य।
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास है राज्य का.
ReplyDeleteसामयिक और सुघड लेखन ...सम्मान करना सिर्फ शासन की जिम्मेदारी नही ..
ReplyDeleteसराहनीय और अनुकरणीय प्रयास..... जानकारीपरक पोस्ट
ReplyDeleteइन पुरस्कारों का भी राजनीतिकरण हो गया है या यूं कहें कि राजनीति के बहुत सारे दल हो गए हैं। पहले केवल कांग्रेस ही थी लेकिन अब तो सभी के उम्मीदवार भी हैं। आपके द्वारा दी गयी जानकारी बहुत ही श्रेष्ठ है।
ReplyDeleteपुरस्कारों का पूर्णतया और बेशर्मी की हद तक राजनीतिकरण हो गया है टिपण्णी सभी सम्मानित विभूतियों के लिए नहीं है पर कम से कम ३०% पुरस्कारों के पीछे यही कहानी है एक उदहारण तो ऐसा भी है कि पद्म सम्मानित व्यक्ति ने जीवन भर किसी और क्षेत्र और विधा में काम किया है (?) सम्मान किसी और क्षेत्र में योगदान के लिए दिया गया है
ReplyDeleteकभी हम आपका नाम भी देख पाते-शुभकामनाएं!
ReplyDeleteअभी अलबरूनी की पुस्तक पढ़ रहा हूँ उसमें एक जगह लिखा है कि भारतीयों को निगमन प्रणाली की जानकारी नहीं है उनके पास गोबर का ढेर भी है और वहीं मोती भी है। पद्म पुरस्कारों पर आपके ब्लाग में छिड़ी बहस के बाद वो प्रतिक्रिया याद आ रही है।
ReplyDeleteअपने यहाँ की चयन प्रक्रिया दोषपूर्ण प्रतीत होती है. स्पष्टतया अब सब कुछ मीडिया/केमरा उन्ब्मुख ही तो है.
ReplyDeleteshakuntala sharma April 26/2013
ReplyDeleteवीरभोग्या वसुंध्ररा,
'कर्मन्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन' 'हे अर्जुन ! कर्म पर तुम्हारा अधिकार है ,फल पर
नही ,अत: तुम कर्म करो और फल की चिंता मत करो !