श्री गणेशाय नमः। सर्वविदित है कि मुख्यतः पेशवाओं में प्रचलित गणपति पूजन को सन 1893 में तिलक जी ने समानता, एकता और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरोध का सार्वजनिक उत्सव बना दिया। छत्तीसगढ़ में इस उद्देश्य-पूर्ति का एक प्रमाण पुराने दस्तावेजों में मिलता है-
14 सितंबर 1934 को बेमेतरा के श्री विश्वनाथ राव तामस्कर किसी केस के सिलसिले में रायपुर आए और लौटे क्रांतिकुमार भारतीय के साथ। बेमेतरा में बालक शाला और सप्रे वकील के घर, गणेश प्रतिमा स्थापित की गई थी। क्रांतिकुमार को यहां रामायण पाठ के लिए आग्रह किया गया।
17 सितंबर को स्कूल के कार्यक्रम में छात्रों सहित करीब 100 लोग उपस्थित हुए। क्रांतिकुमार ने यहां प्राच्य और पाश्चात्य सभ्यता के मिश्रण से होने वाली बुराइयां बताईं, उन्होंने छात्रों को बौद्धिक और शारीरिक रूप से सबल बनने की प्रेरणा दी, ताकि आवश्यक होने पर उनकी शक्ति काम आए। उन्होंने खादी पहनने और मात्र स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की नसीहत देकर 'पराधीन सपनेहु सुख नाहीं' की व्याख्या की।
सप्रे जी के निवास पर लगभग 400 लोग जमा हुए। यहां क्रांतिकुमार ने रामायण के भरत मिलाप प्रसंग को सही मायने में सुराज, संदर्भ लिया। उन्होंने कहा कि तब लोग राजा के प्रति पूर्ण समर्पित होते थे। राजा भी उनकी सलाह से काम करता था, जबकि आज साम्राज्यवाद से लोग परेशान हैं। उन्होंने कहा कि मातृभूमि की सेवा और स्वाधीनता के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए वह ज्ञान प्राप्ति से हो चाहे चोरी या हत्या ही क्यों न हो। इस मौके पर उन्होंने सिविल नाफरमानी, सेना के लिए किए जाने वाले गौ-वध, स्वदेशी, छुआ-छूत और नशा-मुक्ति की बातें भी कहीं।
इस घटना ने तत्कालीन प्रशासन की नींद फिर हराम कर दी, क्योंकि उन पर पहले भी कई बार शासन विरोधी गतिविधियों के कारण कार्रवाई हुई थी। 7 से 10 अप्रैल 1934 को 'नेशनल वीक' के दौरान नागपुर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हें रामायण प्रवचन के लिए कहा लेकिन उनके भाषणों को राजद्रोह प्रकृति का मान कर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 108 के अंतर्गत 14 अप्रैल को चालान किया गया। इस सिलसिले में 27 अगस्त को सिटी मजिस्ट्रेट, नागपुर के समक्ष उनका लिखित बयान दाखिल कराया गया, जिसमें क्रांतिकुमार भारतीय ने कहा था कि वे रामायण प्रवचन करते रहेंगे, लेकिन भविष्य में शासन विरोधी अथवा राजद्रोह के भाषण नहीं करेंगे "It is already known to the Court that I am contesting these proceedings. I deny that my speeches in quistion wewr seditious. I delivered discourses on Ramayan only which I propose to do herwafter also. But I can say that I will not deliver any anti-Government or seditious speech in future." लेकिन वे फिर बेमेतरा में 'रामायण प्रवचन' कर 19 सितंबर को रायपुर लौटे। इस तरह खास रहा छत्तीसगढ़ में सन 1934 का गणेशोत्सव।
प्रसंगवश :
गणेश, बुद्धि के देवता माने जाते हैं और बुद्धिमत्ता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही सार्थक होती है। अभिव्यक्ति में गणेश के साथ जैसी छूट ले ली जाती है, वैसी शायद किसी अन्य धर्म में अथवा हिन्दू धर्म के दूसरे देवता के साथ संभव नहीं है। इस संदर्भ में एक प्रसंग का जिक्र। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण, छत्तीसगढ़ आए। सड़क मार्ग से यात्रा करते हुए उन्हें जहां कहीं भी बंदर या गणेश प्रतिमा दिखाई पड़े, न जाने क्यों, कार रुकवा लेते। बंदर और गणेश, मनुष्य के शायद यही दो सर्वप्रिय कार्टून रूप हैं।
गणेश के स्वरूप, पौराणिक कथाओं, पुरानी चित्रकारी से लेकर 'बाल गणेशा', 'माई फ्रेन्ड गणेशा' और गणेशोत्सव में स्थापित की जाने वाली प्रतिमाओं में मजाकिया पुट के साथ कल्पना, सृजनशीलता और अभिव्यक्ति के न जाने कितने रंग-रूप दिखते हैं। दूध पीने-पिलाने का मजाक भी तो गणेश जी के साथ ही हुआ है। खैर...
कालीबाड़ी, रायपुर के कलाकार राजेश पुजारी बताते हैं कि लोग ट्रैफिक पुलिस, बॉडी बिल्डर या किसी अभिनेता के रूप में गणेश प्रतिमा बनाने की भी मांग करते हैं। यहां पुजारी परिवार द्वारा बनाई मूर्ति का चित्र है। युवा राकेश पुजारी (फोन +919669016175) मूर्ति में रंग और बारीकी का काम करते हैं, ने बताया कि यह प्रतिमा सन 2005 में स्थानीय सदर बाजार में स्थापित की गई थी।
डीपाडीह, सरगुजा के प्राचीन कलावशेष को युगल और ब्रह्मा की उपस्थिति से, शिव विवाह की प्रतिमा के रूप में पहचाना जा सकता है। ऐसी अन्य प्राचीन प्रतिमाओं की भांति यहां भी शिव-पार्वती के पुत्र गणेश सशरीर अपने भाई कार्तिकेय (प्रतिमा के दायीं ओर) के साथ पार्वती परिणय के साक्षी बने हैं।
आदि न अंतः उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित 'उर्दू-हिन्दी शब्दकोश' के संकलनकर्ता मुहम्मद मुस्तफा खां 'मद्दाह' (अहमक) का लिखा प्राक्कथन का अंश यहां उद्धरण योग्य है- ''कोश लिखने का शौक मुझे पागलपन की हद तक शुरू से ही रहा है। अब से 15-16 वर्ष पहले इसका श्री गणेश पाली-उर्दू शब्दकोश से हुआ।''
जय गजानन।
(इस पोस्ट का एक अंश 'नवभारत' समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर 14 सितंबर को प्रकाशित हुआ है.)
गणों के ईश होने के कारण वैदिक काल ईश्वर का एक नाम गणेश भी प्रचलित है। कालांतर में इसे पौराणिक स्वरुप मिला,जो कि अब हमारे सामने है।
ReplyDeleteसारगर्भित लेखन के लिए आभार
बहुत सी नई जानकारी मिली, बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteगणेशचतुर्थी की शुभकामनाएँ।
छत्तीसगढ़ और मराठा संस्कृति की निकटता तिलक ,गणेश उत्सव , क्रांति कुमार भारतीय तथा ताम्रस्कर जी के माध्यम से अच्छी तरह समझ में आता है .परिश्रम सार्थक हुआ .
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ReplyDeleteसामयिक आलेख । असल में श्री गणेश्ा शब्द का इस्तेमाल एक मुहावरे के तौर पर भी किया जाता है। मुहम्मद मुस्तफा खां ने उसी रूप में किया है। और भाषा तो सबकी होती है।
ReplyDelete.
ReplyDeleteगणेश, बुद्धि के देवता माने जाते हैं और बुद्धिमत्ता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही सार्थक होती है। अभिव्यक्ति में गणेश के साथ जैसी छूट ले ली जाती है,...
राहुल जी,
बहुत अच्छा लेख है। मेरे लिए बिलकुल नयी जानकारी। अब मैं भी गणपति जी की उपासक बन कर कुछ बुद्धि मांगूंगी। इतने सुन्दर लेख एवं जानकारी के लिए आपका आभार। गणेसोत्सव के लिए शुभ-कामनाएं।
जय गजानन।
..
अति सुन्दर. हमारे लिए भी यह जानकारियाँ नयी हैं. पारवती विवाह में गणपति की उपस्थिति का एक और शिल्प देखने मिला. आभार.
ReplyDeletemazaa aa gaya rahul bhai..ganesh ji kee sthapana se pahale achchhe lekh se shriganesh ho gayaa. aitihasik jankaree se ham jaise anek logo ka kuchh gyaan barhaa. dhanyvaad.
ReplyDeleteमजा आ गया राहुल भाई अकलतरा के स्कूल के गणेशोत्सव की यादे ताजा हो गई वो भी क्या समय था समझ में नहीं आता बुद्धि के देवता गणेश ने अकलतरा के सार्वजनिक गणेसोत्सव के मामले में हम सब की बुद्धि क्यों हर ली
ReplyDeleteगणेश स्थापना के ठीक पहले ब्लॉग पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा
इस अवसर पर एक बुजुर्ग की बात याद हो आती है ^ कस गा गणेश भगवान ह आज कल के कुछ दुर्बुधि हो गए कुछ लईका मन ला अपने कास दाई ददा मन के मान करेके आशीर्वाद दे देतिस त कटका बढ़िया दुनिया होतीस मैं हर तो भगवान ले ओतकेच मान्गहू^^
ईश्वर खंदेलिया
गणेशोत्सव कि पूर्व संध्या गणेशजी पर सामाजिक समरसता लिए भावपूर्ण लेख का श्रीगणेश
ReplyDeleteअच्छा और ज्ञानवर्धक है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है। धन्यवाद
ReplyDeleteवाह भईया, भारत में गणेश पर्व का पेशवा और तिलक जी नाता तो ज्ञात था किन्तु छत्तीसगढ़ के संदर्भ में जानकारी नहीं थी.
ReplyDeleteधन्यवाद भईया.
@राजेश उत्साही जी,
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार. श्री गणेश आमतौर पर मुहावरे के रूप में ही इस्तेमाल होता है, किंतु शब्दकोश जिस मुस्लिम का पागलपन हो और वह शुरू करने को आगाज या इब्तिदा कह कर बिस्मिल्लाह करने के बजाय श्री गणेश शब्द चुने तो सौहार्द्र और उदारता के कारण उल्लेखनीय तो है ही और यहां इसी कारण इसका जिक्र है, किंतु मेरे पोस्ट में यह स्पष्ट नहीं हो सका हो तो अपनी कमी स्वीकारता हूं. गणेश, पर्यूषण और ईद की पर्व युति मुबारक.
aap sabhi ko Ganesh chaturthi aur Ied ki mubarak baad
ReplyDeleteजयति गजानन।
ReplyDeleteस्वतंत्रता संग्राम की सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किये जाने से पूर्व महाभारत के लिप्यांकन का प्रसंग भी स्मरण योग्य है और ये भी कि माता पिता को सम्पूर्ण ब्रम्हांड के समतुल्य स्थापित करने का श्रेय भी उन्हें है ! प्रथम पूज्य को बुद्धि रिद्धि सिद्धि से जोडनें के अलावा शायद आपको पता ही होगा कि वामाचार से भी जोड़ा गया है !
ReplyDeleteपुरातत्व विषय के शिक्षक मित्र के पास मैंने इस आशय का एक आलेख देखा है और उसकी पुष्टि स्वरुप एक छाया चित्र भी ! संभव हुआ तो मित्र से लेकर उसे ब्लाग पर डालता हूं अन्यथा आपको प्रतिलिपि भेजता हूं !
एक अच्छी प्रविष्टि के लिये आपका आभार !
sanjeev tiwari jee se sehmat hote hue yahi kahna chahunga bhaiya ki desh me ganeshotsav ke nate ki to jankari thi lekin yahi jankari chhattisgarh ke sandarbh me nahi thi, aaj aapne is sandarbh me jankari dekar , bahut hi badaa gyaan vardhan kiya hai. bahut hi aabhaari hu, mai aapke is lekh ko sangrahniya manta hu, fir ek baar shukriya...
ReplyDelete@ अली जी,
ReplyDeleteयहां गणेश विषय-वस्तु नहीं आधार मात्र हैं, 'स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति' और 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को यथासंभव संक्षेप में प्रसंगानुकूल स्थानीय संदर्भों के साथ जोड़कर रेखांकित करने के लिए. इससे संबंधित कुछ ब्लॉग पर आए तो जरूर देखना चाहूंगा, स्वागत रहेगा. बहुत-बहुत आभार और गणेश, पर्यूषण और ईद की पर्व युति आपको मुबारक.
गणेशोत्स पर हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
हमीरपुर की सुबह-कैसी हो्गी?
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
राहुल जी आपकी बात सही है। पर मैं फिर कहूंगा कि मुहम्मद मुस्तफा अगर एक शब्दकोश की रचना कर रहे हैं तो वे उन सब बातों से ऊपर हैं,जहां हम संस्कृतियों को खांचों में बांट देते हैं। इसीलिए मैंने कहा कि भाषा तो सबकी है। और उनका यह उर्दू-हिन्दी शब्दकोष बहुत महत्वपूर्ण है मैं स्वयं वर्षों से उसे उपयोग करता रहा हूं।
ReplyDeleteऔर अभी आपकी यह पोस्ट फिर से पढ़ते हुए मुझे किशोरकुमार का गाया एक पुराना फिल्मी गीत याद आ गया। फिल्म का नाम मुझे याद नहीं आ रहा पर पंक्तियां कुछ इस तरह हैं-
प्रिय प्राणेश्वरी,यदि आप मुझे आदेश करें तो हम प्यार का श्री गणेश करें।
मुहावरे के रूप में इसका यह प्रयोग सुनकर मैं हमेशा चमत्कृत होता रहता हूं।
आपको भी ईद,गणेश चतुर्थी और तीज की शुभकामनाएं।
गणेशचतुर्थी और ईद की मंगलमय कामनाये !
ReplyDeleteनई जानकारी मिली, बहुत बहुत धन्यवाद
इस पर अपनी राय दे :-
(काबा - मुस्लिम तीर्थ या एक रहस्य ...)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html
maja laga des ga rahul buti kas damdamaa ge. teej-tihaar ma kaahi kuchhu jaal as feke hobe,a pay ke kochkeon; ta ihan GARU-GANESH haru ban ke baithe have.LAGE RAHO..............
ReplyDeleteDr.Akhilesh
@ राजेश उत्साही जी,
ReplyDeleteहम दोनों का आशय समान है. आपके शब्दों में कहने का प्रयास करूं तो मुहम्मद मुस्तफा जी खांचों में बंट जाने वाली संस्कृति से ऊपर होने के कारण ही उल्लेखनीय हैं. थोड़ी बात और कर लें. पुराने मंदिरों के प्रवेश द्वार के चौखट के ऊपरी हिस्से को सिरदल कहा जाता है, इस पर ललाट बिंब कहलाने वाले स्थान पर यानि मध्य, मुख्य भाग में उस देव का अंकन होता है, जिसे मंदिर समर्पित होता है. 13-14 सदी से यह धीरे-धीरे बदलने लगा और न सिर्फ यह स्थान गणेश ने ले लिया बल्कि स्थापत्य अंग सिरदल का नाम भी गणेश पट्टी हो गया और वहां गणेश का अंकन न हो तब भी यह गणेश पट्टी ही कहलाने लगा.
आपका प्रत्येक पोस्ट मैं बड़े मनोयोग से पढ़ता हूं और कायल हो जाता हूं आपकी शोध-दृष्टि का. वषिय की गहराई तक पहुंचते हैं आप. जैसे महासागर की अनंत गहराइयों से मोती ही खोज लाते हैं. समय की कमी के कारण चाहते हुए भी लंबी प्रतिक्रिया नहीं दे पाता, क्षमा कीजिएगा.
ReplyDeleteआपका
हरिहर वैष्णव
सरगीपाल पारा
कोण्डागांव 494226
बस्तर - छत्तीसगढ़
फोन : (+91)07786242693
मो. : (+91)09300429264
... behad saargarbhit va prabhaavashaalee post !!!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
राहुल जी ,
ReplyDeleteशुक्रिया मुझ तक आने के लिए .....
मैं तो मूल रूप शायरा हूँ ....इस तरह के आलेख रूचि में नहीं .....
हाँ निचली पोस्ट में कवि रमन की छोटी छोटी क्षनिकाएं बेहद अच्छी लगी ....
एक पत्ता उम्मीद का
इतना भारी पड़ा
नये-नये पत्ते आने लगे
बहुत खूब ....कभी मुझ तक पहुंचा तो ये संग्रह जरुर पढूंगी .....!!
एक खोजपरक, नई जानकारी देते सुन्दर आलेख के लिए आपका आभार सर..
ReplyDeleterahul ji apna templete degine change kijiye, main isme likha padh nahin paa raha hu
ReplyDeleteगणपति वंदन का छत्तीसगढ़ से जुड़ा यह ऐतिहासिक विवरण सचमुच नई जानकारी है। धन्यवाद राहुल जी।
ReplyDeleteसर आपके द्वारा जो जानकारी दी गई है, वह युवा वर्ग के लिए ज्ञान वर्धक है. गणेशोत्सव के शुरूआत कैसे हुई इसकी जानकारी मुझे पहले नहीं था, आपने सारगर्भित जानकारी दी है
ReplyDeleteधन्यवाद
किशोर साहू
१८९३ तथा १९३४ के गणेशोत्सव का उल्लेख कर आपने उत्सव के मूल उद्देश्य का प्रकाशन किया है ,जो आज के समय की बड़ी मांग है.कभी-कभी तो लगता है क़ि हमारी नयी पीढ़ी आधुनिकता के प्रभाव में भटकती जा रही है. पूजा की पवित्रता का ध्यान न रखते हुए नए -नए प्रयोग उचित नहीं है .आपने इस विसंगति की ओर इशारा कर सोचने के लिए दिशा दी है,जिसके सुपरिणाम भविष्य में दिख सकते है.
ReplyDeleteसम सामायिक विषय के माध्यम से दिशा दर्शक ब्लॉग के लिए एक बार फिर साधुवाद!
महेश शर्मा 09425537851
गणेश जी बुद्धि के देवता हैं और बुद्धिमत्ता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही सार्थक होती है.आपकी ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी,चाचू. वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें ये अवसर प्रदान करती है की हम किसी व्यक्ति या विषयवस्तु के अच्छे-बुरे पहलु के बारे में जान सकें और नीर-क्षीर विवेक से युक्त होकर,दिग्भ्रमित न होते हुए उचित निर्णय ले सकें.बुद्धि के देवता श्री गणेश जी की उपासना करना तब और अधिक सार्थक होगा यदि हम नीर-क्षीर विवेक और ज्ञान में वृद्धि की आकांक्षा को ह्रदय में स्थापित करें और उसका कभी भी,कभी भी विसर्जन न होने दें.क्यूंकि जहाँ बुद्धि है,वहीँ लक्ष्मी भी और शक्ति भी.
ReplyDeletesir,
ReplyDeletejai johar,
aapke lekh padhe bar milis, ek pankti ma kaihav ki aap ke lekh har hamar bar sandarbh bani ho jathe..ye khas lekh me ganesh pujan ke chattisgarh ma itihas sachmuch nava jankari hois..ha prasnagwash ..bhag me jen baat ke ullekh he ten har ganesh pujan aur pratima ke samay ke sath howat badlaw ke bangi he..aur akhir me wo prasang Shri Ganesh ke...sahi bhi he wola dekh ke mahu har ,aapke lekh ma tippdi ke Shri Ganesh karat havav.
aapke lekhni hamar sandarbh la badhawat rahay...subhkamna..
vikas sharma
raipur (chattisgarh)
09329444278
09826828588
is mahotsav ki mahtta to aap logo k posts hi pata chalti hai..
ReplyDeleteBhiya JI
ReplyDeleteSadar Pranan.
Aap ke blog se nitnayi jankariy mili rahi hai.ganesh ji ki kripa hum sab par bani rahe.isi Aasha aur Shubhkamnao ke sath......
Sukhnandan Rathore.
Dy.S.P.[PHQ RAIPUR]
अच्छी जानकारी । शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteऐसा बहुत कम होता है कि सही व्यक्ति सही जगह पर हो, आप ऐसी जगह में काम कर रहे हैं जहां सचमुच आप अपनी प्रतिभा से हमे काफी कुछ दे रहे हैं। अचानक आपका ब्लाग दिखा, आपकी तारीफ हमेशा से सुनता रहा हूं आज इसका सीधे अवलोकन करने का मौका भी मिल गया।
ReplyDeleteराहुल जी ,यह बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है । गणेश जी की प्रतिमाओं के विविध रूपं को लेकर महाराष्ट्र मे कुछ समय पहले तक मूल गणेशोत्सव के उपरांत एक और गणेशोत्सव होता था जिसे " मस्कर्या गणपति कहते थे । मस्करया यानि मसखरी से सम्बन्धित । अभी आपने जिस प्रतिमा का चित्र दिया है मुझे याद आया मल्हार में गर्भगृह मे उतरने से पहले प्रवेशद्वार के पैनल पर गणेश का प्रणय मुद्रा मे एक शिल्प है ,आपने अवश्य देखा होगा ।
ReplyDelete@ शरद कोकास जी,
ReplyDeleteमल्हार की जिस प्रतिमा का आप जिक्र कर रहे हैं, वह संभवतः पातालेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार के भीतरी पार्श्व में अंकित गणेश वैनायिकी की प्रतिमा है. आपकी स्मृति से आपकी रुचि और प्राचीन मूर्तिकला के प्रति आपके लगाव का अनुमान होता है. मस्करया परम्परा की मुझे जानकारी नहीं है, यह बड़ा मजेदार लगा, अगर इसका इतिहास तलाशा जाए तो शायद और भी रोचक बातें पता लगेंगी. बहुत-बहुत आभार आपका.
उपयोगी लेख के लिए बधाई स्वीकरें. नवभारत वाला वर्शन कुछ संक्षिप्त था यहाँ पढ़ कर ज़्यादा संतोष मिला.
ReplyDeleteमहेश वर्मा, अंबिकापुर
Aadarniya Rahul Bhaiya,
ReplyDeleteLekh Bahut hi rochak aur gyanvardhak hai..
abhivadan sahit ravindra...
आपका यह आलेख जानकारी से परिपूर्ण और रोचक रहा । तिलक जी की शुरु की हुई परंपरा छत्तीस गढ में भी चलती रही जान पाये । गणेश जी की प्रतिमा भी अनोखी लगी और मूषक राज भी ।
ReplyDelete@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteधन्यवाद, आपने इतनी रुचि और बारीकी से ध्यान दिया. वैसे हमारे कुछ मित्रों ने बताया कि जो चित्र चूहा कैनवास पर उतार रहा है, वह हाथी बन रहा है, यह मेरे लगाए चित्र में स्पष्ट नहीं होता, यदि वास्तव में ऐसा है, तो मुझे खेद है.
रोचक जानकारी,
ReplyDeleteधन्यवाद !