भारतीय मूल के नितिन नोहरिया 1 जुलाई 2010 को हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के डीन का पदभार ग्रहण करेंगे। 1988 में यहीं वे सबसे कम उम्र के प्रोफेसर बने थे। आइआइटी के केमिकल इंजीनियर नोहरिया पढ़ाई के दौरान ही 'मुझे केमिकल इंजीनियर नहीं बनना' तय कर चुके, बताए जाते हैं। पढ़कर याद आता है 'थ्री ईडियट्स'।
नेतृत्व सिद्धांत और व्यवहार के अध्येता नोहरिया के इंजीनियर से प्रोफेसर-डीन बन कर पटरी बदलने के साथ हमारे दो महान नेताओं के पटरी-बदल को एक प्रसंग के साथ याद करना रोचक होगा- बैरिस्टर-महात्मा गांधी के, पदरहित लेकिन सर्वमान्य जन नेता रहते हुए 1939 में उनके समर्थित योग्य प्रत्याशी पट्टाभि सीतारमैया, सिविल सेवा से राजनीति में आए सुभाषचंद्र बोस से चुनाव हारते हैं, यद्यपि बोस अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं।
कुछ उदाहरणों पर नजर डालते चलें- इन्जीनियर, प्राध्यापक, आईपीएस, आईएएस से जनप्रतिनिधि और छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने श्री अजीत जोगी, आयुर्वेद चिकित्सा की पढ़ाई कर डॉक्टरी करने वाले छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पायलट-प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी, इस तरह की लंबी सूची बन सकती है, जिनमें से कुछ खास और अलग तरह के लोग बतौर आंचलिक उदाहरण याद आते हैं-
छत्तीसगढ़ के पाली-तानाखार क्षेत्र के वर्तमान विधायक श्री रामदयाल उइके सरपंच रहे हैं। पटवारी बनकर शासकीय सेवा में आए। फिर मरवाही, जो (चिकित्सक) मंत्री रहे डॉ. भंवरसिंह पोर्ते की सीट और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, से भाजपा के विधायक चुने गए लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी, मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी के लिए इस्तीफा दिया। आगे चलकर गोंड़वाना के गढ़ और अपराजेय-से नेता तानाखार के विधायक (शिक्षक) श्री हीरासिंह मरकाम के विरुद्ध इस नये क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित हुए। नवागढ़ ब्लाक के एक सज्जन, कई सालों से कमाने-खाने बाहर जाते थे। गांव में रहने के दौरान पंचायत चुनाव आया, सरपंच प्रत्याशी बने और चुनाव जीत गए, इन सरपंच ने 2007 में कहा कि सरपंची जम नहीं रही है, इस साल के बाद फिर कमाने-खाने के लिए बाहर जाने का इरादा है। कोरिया कुमार (फोटोग्राफी, शोध रुचि सम्पन्न) डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव का अलग तरह का उदाहरण चर्चित रहा है। अत्यंत लोकप्रिय जननेता और सफल मंत्री, पिछले चुनाव में स्वयं टिकट के लिए मना कर प्रत्याशी नहीं बने।
पहली नजर या जल्दबाजी में व्यतिक्रम दिखता भी कई बार स्वाभाविक अनुक्रम साबित होता है। विसंगतियां, बैठ जाने पर संगत मान ली जाती है। पेशा और रुचि, शिक्षा-प्रशिक्षण से अलग रोजगार और विशेषज्ञता, धारा के साथ अनुकूल और निर्धारित भविष्य के बजाय अपवाद बनकर सिद्धांत को पुष्ट करने वालों की कमी नहीं। यही जीवन-सुर को पूरा करता है, ताल बिठाता है। 'लीक छोड़ तीनों चलैं शायर, शेर, सपूत।' इस 1 जुलाई को शैक्षणिक सत्र आरंभ होने के साथ हम भारतीय, गौरव सहित अपना पाठ दुहरा सकते हैं।
शोध परख आलेख. वैसे हमने 'थ्री इडियट्स'नहीं देखी.
ReplyDeleteराहुल जी थ्री ईडियत की ये कहानी त्रेता मे अयोध्या के युवराज से वन्वासी राम की लन्का विजय से शुरू होती है और आपके दिये उदाहरणो से इतर डा. कुमार विश्वास के इंजीनियर बनने का सपना खतम कर आज का सबसे लोकप्रिय और चर्चित गीतकार के रूप मे जारी है.
ReplyDeleteआज सुबह ही अचानक थ्री ईडियट के तीनों पात्रों के व्यक्तित्व पर सोंच रहा था क्योंकि मेरा बच्चा इसके मूल पात्र के अपने विषय के प्रति लगन, मेहनत और प्राप्त स्वांत: सुखाय सफलता से परे दोनों सहायक पात्रों की मनमाफिक सफलता से रीझ रहा था. और मैं उसे तत्वज्ञान देने की बेवजह प्रयास कर रहा था.
ReplyDeleteअभी आपके इस पोस्ट नें और इसमें दिये गये शाश्वत उदाहरणों नें मेरे चिंतन को बल दिया है, धन्यवाद भाई साहब.
दैनिक नवभारत समाचार पत्र 11 मई के संपादकीय पृष्ठ-4 पर 'अभिमत' में यह प्रकाशित हुआ, तब से फोन पर लगातार प्रतिक्रियाएं मिली, अधिकतर में कुछ और उदाहरण जैसे इंजीनियर-क्रिकेटर अनिल कुंबले और वैज्ञानिक-चिंतक-राष्ट्रपति और प्राध्यापक डा. कलाम साहब का जिक्र जरूरी बताया गया. जानकारी के बोझ में विचार दब गए भी कहा गया है. सुधी पाठकों का सादर आभार.
ReplyDeleteआलेख .....
ReplyDeleteउद्देश्यपूर्ण है
आभार .
PkjkSnk ds f”ko eafnj rks cgqr igys ls gS ysfdu bls cukus dh igy ,d eqfLye ds }kjk fd;k x;k ;g tkudkjh nsdj vkius lkekftd ln~Hkkouk dks c<+kus dk iz;kl fd;k gSA vkidks tkudkjh gks fd eksgEen vdcj fo/kk;d fd }kjk d`’kh mit eaMh jk;iqj ds lkeus jke eafnj dk fuekZ.k djk;k x;k gS tks fd n”kZuh; gS voyksdu djuk pkgsaxsA
ReplyDelete;qxy frokjh
vuqokn laLd`fr foHkkx
NRrhlx<+
थ्री इडियट्स फिल्म बस आमिर खान की एक चालाकी का नतीजा है और कुछ नहीं।
ReplyDeleteसारगर्भित लेख
ReplyDelete