20 किलोमीटर दूर गांव चरौदा-धरसीवां
सड़क पर बांई ओर द्वार दिखाई देता है
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मंदिर के सामने जल कुंड में गज-ग्राह दिखते हैं
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मंदिर के अंदर मंडप में शिलान्यास का फलक लगा है
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मुक्तेश्वर शिव मंदिर
कही जाने वाली संरचना के
शिलान्यास फलक पर तो रस्म अदायी खुदी है
लेकिन लोगों के मन में आज भी
श्री बाबू खान का नाम स्थापित है
जिनकी पहल और अगुवाई में
गांव और इलाके भर के श्रमदान से
यह मंदिर बना
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यहां दो संरचनाएं एक ही चबूतरे पर साथ-साथ हैं
मंदिर-मस्जिद
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वापस चरौदा के शिव मंदिर में
मंडप की भीतरी दीवार सचित्र दोहों से सजी है
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चित्र के साथ दोहा है-
''राधा जी के हाथ में, ऐसा फूल सफेद।
हंसी हंसी पूछे राधिका, कृष्ण नाम नहीं लेत॥''
दोहे का संदर्भ खोजा जा सकता है
किंतु बात लोक मन की है.
राधा लौकी के फूल का नाम पूछ रही हैं
कृष्ण बूझकर भी प्रचलित छत्तीसगढ़ी नाम
तूमा (राधा को 'तू मां') कैसे उचारें ?
अकथ, ओझल लोक मन के
श्रृंगार, भक्ति, औदार्य-ग्राह्यता का
भाव और रस-सौंदर्य (एस्थेटिक) सहज होता है.
धमतरी के श्री दाउद खान रामायणी को याद करते हुए
लंबी सूची के बिना भी महसूस किया जा सकता है.
टीप - इस आलेख का उपयोग बिना पूर्व अनुमति के किया जा सकता है, किंतु उपयोग की सूचना मिलने पर आपको अपने धन्यवाद का भागी बना सकूं, इस अवसर से वंचित नहीं करेंगे, आशा है.