Tuesday, May 30, 2023

लाल साहब पुनः

शब्दों के अर्थ की ठीक समझ के लिए शब्दकोश से बाहर, आगे जाना होता है। भौतिक जगत के लिए जीव-वस्तुओं के साथ शब्दों का मेल-जोड़ बिठाना होता है तो मानवीय गुणों के लिए उसे व्यक्तियों के साथ जोड़ कर समझ बनती है। अपने बचपन की याद करते हुए मुझे लगता है कि पांडित्य, सदाचार और अनुशासन जैसे शब्द, पं. रामभरोसे शुक्ल जी और उनके परिवार के गोरेलाल जी, मुरारीलाल जी, मदनलाल जी, वेंकटेश जी के साथ मेरे लिए सार्थक होते हैं। डॉ. मदनलाल शुक्ला जी के साथ अन्यान्य कारणों से मेरा संपर्क उनके जीवन काल में बना रहा, उनका पिछला लेख और यह, उनके लिए मेरी श्रद्धांजलि भी है।
पं. रामभरोसे शुक्ल जी परिवार


अकलतरा वाले ठाकुर डॉ. इंद्रजीत सिंह (लाल साहब) का शतीय जन्म दिवस आज 

डॉ. इंद्रजीत सिंह: अद्भुत व्यक्ति, अद्वितीय व्यक्तित्व

■डॉ. मदनलाल शुक्ला 

स्वर्गीय ठाकुर डा. इंद्रजीत सिंह का जन्म 5 फरवरी 1906 बिलासपुर जिले के जांजगीर तहसील में स्थित ग्राम अकलतरा में हुआ था. उनके स्वर्गीय पिताजी राजा मनमोहन सिंह पच्चीस गांव के मालगुजार थे. उन दिनों मालगुजारों के निवास स्थान को ‘बखरी‘ कहते थे. गांव में दो बखरी थे- बड़ी बखरी, छोटी बखरी. ये दोनों परिवार इलाके में अपने जनकल्याण कार्यों के लिये प्रसिद्ध थे. उनकी ‘बखरी‘ बड़ी बखरी कहलाती थी. डा. इंद्रजीत सिंह की शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुयी थी. विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के उपरान्त इंद्रजीत सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय चले गये. वहां एन्थ्रोपालाजी के विभागाध्यक्ष डा. मजूमदार के मार्गदर्शन में इनने तत्कालीन छत्तीसगढ़ के बैगाओं, आदिवासियों की जीवन शैली, रहन सहन को अपना विषय बनाकर पी एच डी. की उपाधि प्राप्त की. 
दैनिक ‘नवभारत‘, 5 दिसंबर 2006, मंगलवार, संपादकीय पृष्ठ की कतरन 

उनके व्यक्तित्व कृतित्व तथा उपलब्धियों का वर्णन निम्नानुसार है. 

उनका दैहिक व्यक्तित्व आकर्षक था. मृदुभाषी एवं सहृदयता के धनी ठाकुर साहेब पूरे क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय थे. वे लाल साहेब के नाम से अपने परिवार जनों तथा जरुरतमंदों में जाने जाते थे. वे सहायता करने में इतने प्रवीण थे कि आम लोग उन्हें गरीबों का मसीहा कहते थे. स्वभाव से शालीन संवेदनशील तथा अहंकार विहीन व्यक्ति थे. उनकी व्यवहार कुशलता प्रसिद्ध थी. उनके चार पुत्र रत्न राजेंद्र कुमार (बड़े बाबू), संत कुमार, बसंत कुमार तथा धीरेंद्र कुमार एवं एक बहन बीना सिंह. इन चार भाइयों में से पहले तीन की मृत्यु हो चुकी है. अभी धीरेंद्र कुमार पूरे परिवार का भार सम्हाले हुए हैं. स्वर्गीय राजेंद्र कुमार के सुपुत्र भूतपूर्व डा. राकेश सिंह भूतपूर्व विधायक थे. अब वे अकलतरा में प्रेक्टिस करते हैं. लाल साहिब के मृदुभाषी होने का पारिवारिक गुण सब भाईयों में था. डा. राकेश भी सगाजसेवा और जन कल्याण के काम में लगे रहते हैं. धीरेंद्र कुमार सिंह बिलासपुर में रहते हैं तथा अपने स्व. पिता के नाम से ‘ठाकुर इंद्रजीत सिंह काम्पलेक्स‘ उच्च न्यायालय के सामने बनवाया है. उसमें शहर के वरिष्ठ अधिवक्तागण रह रहे है. स्व. संत कुमार सिंह के सुपुत्र राहुल सिंह उम्र 45 वर्ष स्थानीय पुरातत्व विभाग उप संचालक के पद पर कार्यरत है. 

मदनलाल शुक्ल जी के सुपुत्र
विनय शुक्ला जी
हमारे विभागीय संचालक रहे,
उनके हस्ताक्षर से जारी
मेरे परिचय पत्र की तस्वीर
स्व. लाल साहेब की आज भी उनके तीन प्रमुख उपलब्धियों के लिये स्मरण किया जाता है. प्रसिद्ध शिकारी, प्रथम श्रेणी के स्पोर्ट्समेन, तथा पर्यटन प्रेमी. अकलतरा गांव से तीन मील पर ‘कटघरी‘ गांव में उनके द्वारा एक बहुत बड़ा बगीचा बनवाया था. जिसमें देश के सभी प्रसिद्ध प्रकार के आम के वृक्ष लगे हुये हैं, दशहरी, चौसा, लंगड़ा आदि. अपने समय में लाल साहब उस बगीचे में ही अतिथिजनों का स्वागत करते थे. मनोरंजन के तौर पर कार-मिकेनिजम में वे माहिर थे, उस समय जर्मनी से मंगाया गया ‘हंसा‘ कार वे रखते थे तथा लोगों को उसमें बैठाकर क्षेत्र के रमणीय स्थानों पर ले जाते थे. पच्चीस गांव के मालगुजार होने के नाते वे ग्रामीण भाईयों को प्रेम करते थे, न्यायप्रिय थे तथा उनके पूरे इलाके में संतोष व्याप्त था. अकलतरा शहर के प्रसिद्ध हरिकीर्तनकर्ता पं. स्वर्गीय रामभरोसे शुक्ल से अत्यंत प्रभावित थे. उनके हरिकीर्तन सुनने के लिये हर जगह पहुंच जाते थे. श्रद्धा आस्था और निष्ठा के प्रेमी लाल साहिब सदैव स्मरण किये जायेंगे. 

लाल साहिब के गुण ग्राह्यता भी अपने किस्म की एक ही थी. स्व. पं. गोरेलाल शुक्ल पुत्र रामभरोसे शुक्ल ने सन् 1941 में नागपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. आनर्स (अंग्रेजी) की डिग्री प्रथम श्रेणी में ली तथा उनकी प्रतिभा कितनी तीक्ष्ण थी कि एक वर्ष के ही अंदर वे असिस्टेंट प्रोफेसर अंग्रेजी हो गये. स्व. लाल साहिब इस अपूर्व सफलता से प्रभावित होकर गोरेलाल जी को स्वयं शाबासी देने आये थे तथा उनके सम्मान में उन्होंने एक भोज का भी आयोजन किया. हमारा शुक्ल परिवार सदैव उनका आभार मानेगा तथा शहर के पुराने लोग भी उनकी विशेषता को बताते रहते हैं. वैभव और शालीनता का अदभुत समन्वय. 

स्व. लाल साहिब राजनीति से दूर ही रहते थे. लेकिन संयोग की बात है कि सन् 1947 में हमारा देश स्वतंत्र हुआ. सन् 1950-51 में संविधान पारित हुआ और सन् 1952 में विधायिका के लिये प्रथम चुनाव ठा. लाल साहिब अकलतरा क्षेत्र के विधायक का चुनाव लड़े किंतु दुर्भाग्यवश वे उस चुनाव में पराजित हुये. इस पराजय को लाल साहिब बर्दाश्त नहीं कर पाये और सन् 52 में उनका 46 वर्ष में निधन हो गया. विनम्र श्रद्धांजलि. से.नि. सिविल 

सर्जन, पी- 38 क्रांति नगर, बिलासपुर.

4 comments:

  1. Thanks for sharing this. Growing up, we heard the name “लाल साहब” with a lot of respect in our family but this article explains why he was so respected.

    ReplyDelete
  2. एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी आदरणीय को सादर नमन

    ReplyDelete
  3. कुछ बिभूतियाँ शताब्दियों मे एकाध बार जन्म लेती है और युगों तक उनका नाम अमर हो जाता | अकलतरा क्षेत्र मे आज भी उनका नाम अमर है | उनके बारे मे बहुत हो रोचक जानकारी |

    ReplyDelete
  4. Thanks for sharing this. लाल साहब | अकलतरा क्षेत्र मे आज भी उनका नाम अमर है |

    ReplyDelete