Wednesday, January 1, 2020

प्यार

ये सृष्टि, सारी कायनात, किसका किया धरा है, कौन जाने। शायद इसी कौन जाने का नाम अबूझ, अगोचर ‘ईश्वर‘ है। सृष्टि के कर्ता, रचयिता को ले कर वेद-उपनिषदों में कम माथाफोड़ी नहीं। कर्ता भाव से श्रेय उत्पन्न होता है। इसलिए हम कर्ता नहीं, निमित्त मात्र बने रहें। वैसे भी ‘किए‘ के बजाय ‘हुआ‘, पवित्र भी होता है और अधिक स्थायी भी।

फिर बात प्यार की हो तो सहज याद आता है, 1974 में आई फिल्म ‘कसौटी‘ के लिए इंदीवर ने गीत लिखा था- ‘‘हो जाता है प्यार, प्यार किया नहीं जाए। न बस में तुम्हारे, न बस में हमारे। खो जाता है दिल, दिल दिया नहीं जाए।‘‘ और फिर दुहराया गया, 1983 में ‘वो सात दिन‘ आई, जिसमें आनंद बक्शी का लिखा गीत था- प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है। दिल दिया नहीं जाता, खो जाता है। इसी तरह प्यार करना न पड़े, बस होता रहे ...

4 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    प्यार को कोई नाम नहीं, अनजाने, अनदेखे लोग भी कब एक हो जाते हैं,पता नहीं चलता
    नववर्ष मंगलमय हो आपका!

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  2. बढ़िया!! सर जी
    आंग्ल नववर्ष की बधाई

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  3. वाकई... जो प्यार है वह तो spontaneously होता है । जो induced है वह प्यार हो ही नहीं सकता ।

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  4. उम्र के इस पड़ाव मे प्यार का विवेचन यो ही तो नहीं.....! नव वर्षकी शुभकामनाए।

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