फक्क गोरिया, कुसुवा मुहां बड़े भारी मुड़ वाला अंगरेज रहंय डांक गाड़ी के ड्रैभल, तोर-हमर जांघ बरोबर तो यंह (दोनों हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच बित्ते भर का अंतर रखते), ओ कर भुजा रहय, अउ इहां ले छाती भर के लीले फुलपेंट पहिरे रहंय, गेलिस वाला। बेर बुड़तहूं, कभी टेम नइ झुकय, उड़नताल पया मेरा हबरय, तहां चिचियाय, किल्ली पारे बर धर लय, सिवनाथ पुलिया के नाहकत भर ले धडांग खडांग, गुंजा जाय पूरा इलाका।
सरगांव के मालगुजार अकबर खान 11 दिसंबर 1944 को जन्नतनशीं हुए, जिनके नाम पर सरगांव का अकबर खान का बाड़ा, बिलासपुर में अकबर खान की चाल और अमेरीकांपा का टुकड़ा गांव अमेरी अकबरी है, की ऐसी ढेरों कहानियां उस पूरे इलाके में चाव से सुनी-सुनाई जाती हैं, उनके और भी कई किस्से हैं, जैसे- मालगुजार अकबर खान का मुख्तियार खान मालिक रेल की पटरी के उपर सायकिल चलाता था... ... ... हाजी मोहम्मद अकबर खान देवी भक्त थे, उन पर देवी आती थी, उनके पांव में पदुम था, जिसे लात मार देते थे, उसकी बरक्कत होती थी ... ... ... अकबर खान के पास 57000 एकड़ जमीन थी, सरगांव में पथरिया के रास्ते जाने पर दाहिनी ओर 100 एकड़ रकबा वाला एक चक खेत था ... ... ... एक बार शिवरीनारायण मठ वाले ओनहारी का बोरा बिछाते गए तो मुकाबले में मलार के साव ने टक्कर ली धान के बोरे बिछाते गए तब सरगांव के अकबर खान के नगदी पैसा के बोरे बराबरी में बिछाए थे ... ... ... मृत्यु के समय उनके खजाने में सवा दो लाख रुपये नगद और चांदी की एक-एक मन की चालीस सिल्ली थी ... ... ... अकबर खान की मृत्यु बैतलपुर अस्पताल में हुई, वहां आज भी उनकी फोटो लगी है, जो उनकी एकमात्र तस्वीर है।
तओ भइ गे एक दिन अखबर खान ल ताव चढ़ गे, कहिस रहि तो रे अंगरेजवा, ओतका कस के भगाथस गाड़ी ल, धन्न रे तोर पावर, फेर ओ आय तो मसीन के बल म। त मैं देखाहंव तो ल एक दिन। फेर होइस का के चिहुर पर गे पूरा इलाका म। रेस बद देहे हे मालिक ह, ओती डांक गाड़ी अउ एती ओ कर घोड़ी। अउ अपन घोड़ी म सवार मंझनिया ले आ गे पया मेरा। इलाका भर के मन्से सकलाय रहंय, इहां-उहां ले, घुंच देव रे लइका-पिचका मन, झोरसा जाहा, लाग-लुगा दिही। चिहुर मत पारो, खमोस खाओ, सब खबरदार, गाड़ी का टेम हो गया है। ऐ जी, जड़ा रस्ता छोड़के, आस्ते न धिल्लगहा। बस, धक धक धइया, तिहां ले तडांग भडांग। डांक गाड़ी पया ल नहाक ले लिस त एक घरी चुको के अखबर खान के घोड़ी ढिलाइस। गै रे बबा, पछुआही झन। इहां ले उहां, बेल्हा टेसन के हबरत ले सल्लग मन्से। कोइ टाइम नइ लगिस फैसला टुट गे। अखबर खान बेल्हा टेसन के बाहिर म हबर ले लिस, त थिरका दिस अपन घोड़ी ल। अउ लहुट के देखिस जेवनी बाजू ल, इंजिन रहय, नहीं भी त, बीस हांथ पाछू। तओ। अउ का तओ, लुआठ ल चाट ले अंगरेज। ड्रैभल दांत निपोर के हांथ हलाइस, टा टा। अउ अखबर खान घोड़ी के चुंदा ल अंगठी म खजुआत, कोरत रहय।
हं! फेर अंगरेज रहंय बात के सच्चा, कानून के पक्का। कहिस के आज ले अखबर खान के नांव के एक फस्क्लास के डब्बा लगिही डांक गाड़ी में, तिसमें उसका घर परिवार कुटुम, बेडाउस, जब चाहय, जिहां चाहय, जा आ सकत हे। लेकिन कई झन कथें कि तेहि डब्बा खाली रथे त कई बार रेलवाही के बड़े साहब मन सीट नइ पांय त ओइ म लुका के बइठे भी रथें।
मजा आ गे बबा, जोरदार किस्सा। हौ ग, फेर किस्सा नो हय, असली बात आय, सिरतो, ओ कर नांव के डब्बा ह सबूत आय, आज भी। पतियास नहीं त बेलासपुर टेसन म जा के देख लेबे, गाड़ी ठढ़ा होही तओ। हौ, हौ, अउ कस ग, घोड़ी के का नांव रिसे। वह दे, घोड़ी भाई घोड़ी, ते कर का नांव। हं, रेस के थोड़े दिन म गुजर गए रिसे। गजब सुग्घर, सात हांथ के घोड़ी, चिक्कन, फोटो बरोबर। चल जान्धर सुरता नइ आत होही त, आने कहूं ल पूछ लीहंव। अउ का ल पूछबे, हमर जंवरिहा तो रुख-राई नइए ग इलाका भर म। त कस ग बबा मन, अउ ए ह कब के बात होही, तइहा के गोठ आय ग। तभो ले कोन सन के। वो दे, चार कच्छा पढ़ का लिस तिहां ले तो ओ कर से गोठियाए के धरम नइए, तइहा के बात ए ग ते जमाना म कहां के सन पाबे, अउ कहां के संबत, हं, फेर लबारी नोहय, पतियाबे तओ।
हिंदी में कुछ यूं कह सकते हैं-
फक्क गोरे, भूरे-से, बड़े सिर वाले अंगरेज होते थे डाक गाड़ी के ड्राइवर, तुम्हारे-हमारे जंघा के बराबर तो इतना (दोनों हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच बित्ते भर का अंतर रखते), उनकी भुजा होती, और यहां तक छाती तक चढ़ा फुलपैंट पहने होते, गेलिस वाला। दिन ढलते, कभी समय नहीं टलता था, उड़नताल के पुल के पास पहुंचते, शोर होने लगता, शिवनाथ पुल पार करते धड़ांग-खड़ांग पूरा इलाका गूंज जाता।
फिर तो बस, अकबर खान को ताव आया, कहा, रुको रे अंगरेज, इतना तेज दौड़ाते हो गाड़ी को, बहुत पावर है तुम्हारा, लेकिन है तो वह मशीन के बल पर। तो मैं तुमको दिखाऊंगा एक दिन। फिर हुआ क्या कि पूरे इलाके में शोर हो गया। मालिक रेस करेंगे, उधर डाक गाड़ी और इधर उनकी घोड़ी। और अपनी घोड़ी पर सवार दोपहर से ही आ गए पुल के पास। पूरे इलाके के लोग इकट्ठा थे, यहां-वहां तक, सरक जाओ बच्चे-कच्चे, चपेट में आ जाओगे, चोट लग जाएगी। शोर मत मचाओ, खमोश रहो, सब खबरदार, गाड़ी का समय हो गया है। ए जी, रास्ता छोड़के, धीरज से, संभल के। बस, धक-धक धइया, फिर तडांग-भडांग। डाक गाड़ी पुल से निकल गई उसके बाद पल भर रुक कर अकबर खान की घोड़ी छूटी। बाबा रे, पिछड़ न जाए। यहां से वहां, बिल्हा स्टेशन तक लगातार लोग। समय नहीं लगा और फैसला हो गया। अकबर खान बिल्हा स्टेशन के बाहर पहुंच चुके, तो अपनी घोड़ी को रोका। और पीछे मुड़ कर दाहिनी ओर देखा, इंजन था, नहीं भी तो बीस हाथ पीछे। तो! और क्या तो, ठेंगा चाट ले अंगरेज। ड्राइवर खीस निपोरते हाथ हिलाया, टा टा। और अकबर खान घोड़ी के अयाल पर उंगलियां फिराते, संवारते रहे।
हां! अंगरेज थे बात के सच्चे, कानून के पक्के। कहर कि आज से अकबर खान के नाम का फस्क्लास का डब्बा लगेगा, डाक गाड़ी में, जिसमें उसका घर-परिवार, कुटुम्ब, मुफ्त बिना टिकट, जब चाहे, जहां चाहे, आ-जा सकता है। लेकिन कई लोग कहते हैं कि वह डिब्बा खाली रहता है तो कई बार रेलवे के बड़े अधिकारी, सीट न मिलने पर उसी में छिप कर बैठते भी हैं।
मजा आ गया बाबा, जोरदार किस्सा। हां! लेकिन किस्सा नहीं यह असल बात है, सचमुच, उयके नाम का डिब्बा सबूत है, आज भी। विश्वास नहीं तो बिलासपुर स्टेशन में जा कर देख लेना, गाड़ी खड़ी होगी तब। हां, हां, और क्यों भई, घोड़ी का नाम क्या था। ये देखो, घोड़ी भई घोड़ी, उसका क्या नाम। हां, रेस के कुछ दिन बाद चल बसी। बहुत सुंदर, सात हाथ की घोड़ी, चिकनी, मानों तस्वीर। ठीक है, रहने दो याद नहीं आ रहा हो तो, और किसी से पूछ लूंगा। और किसको पूछोगे, हमारे हमउम्र तो पेड़ भी नहीं इलाके भर में। तो क्यों बाबा लोग, और यह कब की बात होगी, पुरानी बात है भई। फिर भी किस सन की। ये लो, चार कक्षा पढ़ लिए फिर तो उससे बात करने का भी धर्म नहीं, पुरानी बात है। उस जमाने में कहां सन पाओगे और कहां का संवत, हां, लेकिन झूठ नहीं है, भरोसा करो तो।
सीत बावा-देउर, ताला के पुजेरी मूरितदास वैष्णव, खन्तहा के समारू गोंड़ और पंवसरी के मिलउ साहू से सन 1987 में सुनी कहानी, जितनी और जैसे याद रही। 15 अगस्त के आसपास अक्सर याद आती है।
इन सुनी-सुनाई की होनी-अनहोनी, मैंने अपने मन का मान जस का तस रखा है।
Had heard directly from u in Hindi. I felt that chhattisgarhi is not so easy. Can we arrange some photographs
ReplyDelete:)
Deleteअद्भुत!
ReplyDeleteधन्यवाद :)
Deleteगजब :)
ReplyDeleteधन्यवाद :)
Deleteआप हमर बर छत्तीसगढ़ के इनसाइक्लोपीडिया हवव
ReplyDeleteधन्यवाद :)
Deleteजबरजस्त अखबर खान के दन्त कथा ,,,औ ,, भासा के जबरजस्त खेल,,,,किस्सागोई ल लेखनीबद्ध करे के ये मानक उदाहरण है सर,,,,शब्द बोलत हे,,,नवा नवा अरथ,,, बार बार पढ़े ले मजा दुगुना देथे
ReplyDeleteधन्यवाद :)
Deleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डेंगू निरोधक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteइस कहानी और इस प्रस्तुतीकरणको पूरी तरह विज़ूअलायज़ कर पाया. आप ने तो फ़िल्म ही दिखा दी।
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