बचपन में पूर्व जन्म की यादें ताजा रहती हैं।
बड़े होने पर धुंधली पड़ती जाती हैं, खोने लगती हैं।
कथावाचक कहानी सुना रहे हैं।
बच्चा कहानी सुन रहा है।
तैंतीस कोटि योनियां हैं।
मनुष्य तन बड़े भाग्य से मिलता है।
पंचतंत्र की कहानियां।
गज-ग्राह, मगर-बंदर।
बुद्ध के पूर्वजन्म की कहानियां सुनता है।
जातक कथा सुनता है।
अब बच्चा असमंजस में है।
उसके मन में दुविधा होने लगी है।
उसे कभी लगता कि पंछी है, तितली है, शेर है।
चींटी, मधुमक्खी, चूहा, हाथी।
कभी लगता मछली है, सांप है।
सांप-सीढ़ी का खेल है।
यह मेरे पूर्वजन्मों के कारण है।
मानव तन मिला है, लेकिन पूर्वजन्मों से मुक्त न हुआ।
पिछले जन्म की योनियों का असर इस जन्म में भी बाकी रह गया है।
वह कोतवाल चिड़िया की कहानी पढ़ता है।
उसे आकाश में उड़ते चील का पीछा करते देखता है।
कभी वह बड़ों से झगड़कर भी छोटों को बचा लेने की बात सोचता है।
क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल, हनी बजार्ड, फिशिंग आउल, किंगफिशर।
क्या ऐसा औरों को भी लगता है।
साथी बच्चे उसकी हंसी उड़ाते।
हर दिन ऐसा होता।
संयुक्त परिवार है।
स्कूल जाता है।
किसी ने डांटा, किसी ने पुचकारा।
झगड़ा होते देखा, भागमभाग देखा।
सजा मिली, नजर बचा लिया।
अपनी किसी पूर्व योनि में भटकने लगता।
अपने खुद की खोज में भटकने लगता है।
मेरे साथ क्या होता है और मैं हूं कौन?
आत्म संधान, स्व की खोज, अपने आप की तलाश।
जीव, आत्मा, देह।
संचित, क्रियमाण, प्रारब्ध का ऋत।