जशपुर जिले का फरसाबहार विकासखंड नागलोक कहा जाता है। यह क्षेत्र विषैले सांपों, नदी-नालों में पाए जाने वाले स्वर्ण-कण और टमाटर की उपज के लिए जाना जाता है। पिछले दिनों इस इलाके से चर्चा में सुनिता रही। ग्राम बांसाझाल के सुरेन्द्र टोप्पो की संतान 15 वर्षीय सुनिता, तीन बेटियों और एक बेटे में सबसे छोटी, आठवीं कक्षा की छात्रा है।
सुनिता पिछले साल से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना में लगी रहती और एक दिन उसने मां दुर्गा से विवाह करने की घोषणा कर दी। परिजनों ने उसका फैसला मान लिया और शादी के लिए 17 जून 2013, सोमवार तिथि तय हुई। बाकायदा निमंत्रण पत्र बांटे गए। शादी के कार्ड में 'सुनिता टोप्पो संग मां दुर्गा का शुभ विवाह' छपा है। साथ ही 'महिलाओं का निमंत्रण इसी पत्रिका द्वारा स्वीकार करें' भी मुद्रित है। घर की दीवार को पहले 'सुनिता' संग बाद में नीचे 'मां दुर्गा' लिख कर सजाया गया। निर्धारित तिथि पर दिन में 11 से 12 बजे के बीच विवाह सम्पन्न हुआ, जिसमें सुनिता (वधू?) की मांग में सिंदूर भराई हुई। विवाह में परिजनों सहित आसपास के ग्रामीण इकट्ठे हुए साथ ही सीमावर्ती राज्य झारखंड और उड़ीसा से भी लोग आये।
विवाह सम्पन्न कराने वाले पुरोहित सर्प विज्ञानी डॉ. अजय शर्मा ने कहा कि ''बालिका किसी मनोरोग से ग्रसित नहीं है, बल्कि यह उसकी मां दुर्गा के प्रति असीम श्रद्धा है। ... मां दुर्गा एवं सुनीता दोनों ही कन्या होने के नाते भारतवर्ष के लिए अटपटा लगता है। पर इसे पागलपन करार नहीं दिया जा सकता।''
इतिहास विभाग, जशपुर महाविद्यालय के प्रो. डॉ. विजय रक्षित ने कहा है कि ''वनवासी समाज में ऐसा मामला पहले भी सामने आया है। समाज में अंधविश्वास की जड़े काफी गहरी है। वनवासियों को आसपास का परिवेश भी प्रभावित करता है।''
मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. विवेक रंजन का कहना है कि ''यह मनोविकृति है। इसे डेल्युजनल डिसऑर्डर कहते हैं। सुनीता 'ग्रेडियोस टाइप' की डिसआर्डर की शिकार है। इसमें व्यक्ति को ऐसा विश्वास हो जाता है कि उसका किसी पौराणिक पात्र से रिश्ता है।''
एसडीएम, जशपुर ने कहा है कि ''ऐसे मामलों का संबंध आस्था से होता है। कानून ऐसे विवाह को मान्यता नहीं देता है। बाल विवाह की शिकायत पर प्रशासन द्वारा कार्रवाई की जाती है। इस प्रकरण में किसी भी ओर से शिकायत नहीं मिली है।''
सीधा हिसाब लगाएं तो मामला समलैंगिक बाल विवाह का माना जा सकता है, लेकिन सुनिता की सोच में शक्तिशाली का वरण, भक्त और भगवान के एकाकार हो जाने से दैवीय-शक्ति सम्पन्न होने की चाह (महिला सशक्तीकरण), संतानोत्पत्ति और वंश-वृद्धि से इतर विवाह-प्रयोजन, जीवन-साथी के रूप में स्थायी-निर्विघ्न साथ, इसके अलावा उसका परिवेश, उसके परिजन जैसे और क्या कारक निर्णायक हुए होंगे, विचारणीय है। बहरहाल, विवाह के लिए 'मंगल' और 'कल्याण' समानार्थी जैसे प्रयुक्त होते हैं...इस विवाह के सालगिरह पर खबर पाने का इंतजार तो रहेगा ही।
यह खबर दैनिक भास्कर, रायपुर में 15 जून को पृष्ठ 10 पर, नई दुनिया, बिलासपुर, 18 जून को मुखपृष्ठ पर तथा अन्य समाचार माध्यमों पर आई, इसके अलावा छायाचित्र व जानकारियां जशपुर के शशिकांत पांडेय जी से प्राप्त हुईं।