Wednesday, March 26, 2025

परीक्षक गुरु

परीक्षक रहे गुरुओं की याद, जिन्होंने परीक्षा में नंबर दिए, उससे अधिक अपने व्यवहार से सिखाया, किसी विद्यार्थी के लिए दुर्लभ, वह सम्मान मुझे इनसे मिला। ऐसे तीन- रमानाथ मिश्र जी, रहमान अली जी और बालचंद्र जैन जी। 

डॉ. रमानाथ मिश्र 1980-81, स्नातकोत्तर अंतिम की परीक्षा के वैकल्पिक प्रश्न-पत्र के वाह्य परीक्षक। लघु शोध-निबंध विकल्प के लिए डॉ. लक्ष्मीशंकर निगम मार्गदर्शन थे। विषय था- ‘जांजगीर का विष्णु मंदिर: एक अध्ययन‘ था। जांजगीर का भीमा या नकटा कहा जाने वाला यह मंदिर बार-बार देखा हुआ था, गृह-ग्राम अकलतरा के करीब था, कई कथाएं चलती थीं, छमासी रात, मंदिर के दो हिस्से, भीम बली और उसकी छेनी-हथौड़ी। इन सबको समझने-बूझने का मन होता। इसके बावजूद इस पर काम करने के लिए हिचक थी, निगम सर से मैंने कारण बताया कि ‘मैटर नहीं मिलता‘, इस पर उन्होंने कहा, फिर तो इसी पर काम करो, यह बात मैंने हमेशा के लिए गांठ बांध ली। निबंध लिखने की तैयारी के दौरान मार्गदर्शन के लिए वे स्वयं भी जांजगीर आए। जहां कहीं अटका, स्नातक कक्षाओं के गुरु डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर इसके लिए मार्गदर्शन देते रहे। निगम सर मेरे लिखे को बार-बार जांचते रहे, इसके लिए ऐसा भी अवसर आया कि वे कॉलेज के बाद साथ लगे हॉस्टल के मेरे कमरे में आ गए।  

परीक्षा का परिणाम आया। शोध-निबंध में मुझे आशा से अधिक नंबर मिले थे। निगम सर ने बताया कि वाह्य परीक्षक भारतीय और कलचुरि कला-स्थापत्य के बड़े विद्वान थे, उन्होंने इसे बहुत पसंद किया। कुछ साल बाद निगम सर ने किताब दिखाई, जिसमें मेरे शोध-निबंध से लिया गया जांजगीर के इस विष्णु मंदिर की भू-योजना का रेखांकन उल्लेख सहित शामिल था, मेरे लिए इससे बढ़कर और क्या हो सकता था कि रमानाथ मिश्र जैसे विद्वान की पुस्तक में इसे स्थान मिला है। 


तब तक मैं मिश्र सर से कभी नहीं मिला था। उनकी यह पुस्तक आने के कुछ साल बाद एक सेमिनार में मैं उनसे मुलाकात हुई, उन्हें बस अपना नाम बता पाया कि उन्होंने तुरंत याद किया, ‘जांजगीर का विष्णु मंदिर‘। मैं उनका आभार व्यक्त करूं इसके पहले ही उन्होंने खेद व्यक्त किया कि आपके शोध-निबंध के रेखांकन का उपयोग मैंने किया था, इसका उल्लेख करते हुए आपका नाम नहीं दे पाया था। फिर उन्होंने पूछा कि आपको इसमें अंक तो ठीक मिले थे न, मैंने जवाब दिया मेरी आशा से भी अधिक सर- 86/100। 

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डॉ. रहमान अली 1981, एम.ए. अंतिम के स्थापत्य प्रश्न-पत्र के परीक्षक थे। रायपुर से एम.ए. की परीक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए प्राच्य निकेतन में प्रवेश लेने भोपाल गया। भोपाल पहली बार जा रहा था, वहां डेरा-डंडा था और जान-पहचान के नाम पर ’प्राच्य निकेतन‘ के प्राचार्य डॉ. राजकुमार शर्मा। (जबलपुर हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील सतीशचंद्र दत्त, मेरे पिता और चाचा के करीबी थे, जिनकी बहन डॉ. शर्मा की पत्नी थीं।) डॉ. शर्मा से मिला, उनके निर्देशानुसार एडमिशन फार्म भरकर जमा कर दिया। तब प्राच्य निकेतन, बिरला मंदिर के पीछे होता था। ग्राउंड फ्लोर पर म्यूजियम और पहली मंजिल पर संस्थान-कक्षाएं, जिसमें बीच का हॉल लाइब्रेरी-रीडिंग रूम। लाइब्रेरी में इंतजार करने को कहा गया, वहां पहले-पहल लाइब्रेरियन पंडित मैडम से परिचय हुआ। 

प्रश्न-पत्र, जिसमें क्र. 7 पर
खजुराहो के मंदिर पर प्रश्न है।
कुछ देर में प्रवेश-प्रभारी डॉ. रहमान अली के सामने उपस्थित होने का बुलावा हुआ। अली सर ने बैठने का इशारा किया, नजर फार्म पर, मुख-मुद्रा गंभीर। पूछा, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से? परीक्षा में ‘स्थापत्य‘ आप्शन था? खजुराहो के मंदिर वाले प्रश्न के उत्तर में कंदरिया महादेव की भूयोजना का रेखांकन था? जवाब में जी हां, जी हां के साथ थोड़ी घबराहट के साथ मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। तब उन्होंने मेरे प्राप्तांक बताते हुए कहा- ‘आपका यह पेपर मैंने जांचा था। आपकी हैण्डराइटिंग मुझे ध्यान थी, एडमिशन फार्म पर वैसा ही देखा तब स्थापत्य वाला पेपर और कंदरिया रेखांकन याद आया। वह पेपर जांचते हुए मैंने सोचा था, इस विद्यार्थी से कभी मुलाकात होगी। डिप्लोमा पढ़ाई के दौरान और उसके बाद भी अली सर का विशेष अनुग्रह मुझ पर बना रहा। उस पेपर में मिले अंक से मुझे भी ऐसा लगा था कि कभी इन उदार परीक्षक को जान पाता, उनसे मिल पाता- मुझे अंक मिले थे 69/100। 

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श्री बालचंद्र जैन, 1981-82, संग्रहालय विज्ञान स्नातकोत्तर पत्रोपाधि परीक्षा के प्रैक्टिकल में वाह्य परीक्षक थे, तब इन उद्भट विद्वान को न के बराबर समझ पाया था। 1984 से शासकीय सेवा में आया, बिलासपुर कार्यालय था और नियंत्रक उपसंचालक कार्यालय, जबलपुर होता था। जैन साहब तब तक सेवा-निवृत्त हो चुके थे, निवास जबलपुर में था। विभागीय बैठकों के लिए जबलपुर जाना होता था। अब तक उनकी विद्वत्ता और साथ ही विशिष्ट प्रशासनिक कौशल के बारे में कई बातें जानने-समझने लगा था। 

1986 में बैठक के लिए जबलपुर गए और विभागीय वरिष्ठ सहयोगी अधिकारी रायकवार जी के साथ जैन साहब के निवास उनसे मिलने गया। गंभीर-रिजर्व और कड़क माने जाने वाले जैन साहब का मेरे प्रति व्यवहार सहज, बल्कि आत्मीय था। विदा लेते हुए उन्होंने धीरे से ध्यान कराया, जिसे मैं पूरी तरह भूल वुका था, प्राच्य निकेतन में तुमने मेरे सारे सवालों का जवाब बहुत अच्छी तरह दिया, अब विभाग में आ गए हो, काम करने का मौका है, खूब काम करो, कहते हुए अपने ‘उत्कीर्ण लेख‘ वाले काम को आगे बढ़ाने का आशीर्वाद रायकवार जी के साथ मुझे दिया। हमें संतोष है कि वह काम यथामति तैयार कर विभाग से प्रकाशित करा सके। 


जैन साहब का 12/11/86 को मेरे नाम लिखा पत्र, जिसमें दीपावली और नववर्ष की शुभकामनाएं के साथ श्री रायकवार जी व अन्यों को सादर नमस्कार लिखा है। दूसरा पत्र 1/6/87 का श्री रायकवार के नाम है, जिसमें उन्होंने कृपापूर्वक लिखा- ‘श्री राहुल के प्रति मुझे भारी स्नेह हो गया है। उनसे बहुत आशाएं हैं। जैन साहब के निधन पर मैंने उन पर श्रद्धांजलि लेख लिखा था, जो तब 1995 के जून दूसरे सप्ताह में ‘हरिभूमि‘ समाचार पत्र के संपादकीय पेज पर पूरे आठवें कॉलम में छपा था, जिसकी कतरन सुरक्षित नहीं रख पाया। महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर में उन्होंने अपनी सेवा के महत्वपूर्ण वर्ष बिताए थे, नवंबर 2024 में यहीं उनकी जन्मशती के आयोजन में उन्हें प्रति अपनी भाव-श्रद्धांजलि समर्पित करने का अवसर आया। 

इन तीन परीक्षक गुरुओं के अलावा तीन ऐसे गुरु हैं, जिन्होंने कक्षाओं में नहीं पढ़ाया, मगर अनमोल सिखाया- डॉ. प्रमोदचंद्र, श्री कृष्ण देव और श्री मधुसूदन ए. ढाकी, इन पर फिर कभी, फिलहाल सारे गुरुजन का पुण्य स्मरण।

Saturday, March 22, 2025

कोचिंग

1996-97। संयोगवश प्रतियोगी परीक्षा और कोचिंग से जुड़़ गया। हुआ यूं कि पता चला मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार की तैयारियां हो रही हैं। वह दौर ऐसा भी आया था कि दो-तीन सत्रों की मुख्य परीक्षा के परिणाम आ गए थे और कुछ समय के अंतर से साक्षात्कार होने थे। मैंने जानने की कोशिश की, किस तरह तैयारी कराई जाती है। जानकर अजीब लगा कि साक्षात्कार के लिए पिछले वर्षों में पूछे गए सवालों की सूची इंदौर से आ जाती है, फिर उसके प्रश्नों के जवाब लिखवाए जाते हैं और अधिकतर प्रतियोगी नोट्स ले कर, प्री और मेन्स की तैयारी की तरह इन जवाबों को रट लेते हैं। मुझे लगा कि यह अजीब है, साक्षात्कार की तारीख आने में थोड़ा वक्त था, इसलिए मैंने अपनी निशुल्क सेवा देने का प्रस्ताव रखा। धीरे-धीरे माहौल बदला। प्रतियोगी किसी कोचिंग के हों, मुझसे आ कर मिलने लगे, कई घर पर भी आने लगे। 

इस दौरान की ढेरो यादें हैं, जिन कुछ समझाइशों के लिए जोर होता था, यहां उनमें से कुछ-

# हां-नहीं, सही-गलत के बजाय सहमत -असहमत, उचित-अनुचित, उपयुक्त-अनुपयुक्त, जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें, जजमेंटल हो, विश्लेषण करें। 
# उत्तर देते हुए भावुक नहीं संवेदनशील हों, विषयगत नहीं वस्तुगत तथ्यात्मक रहें। जब तक आवश्यक न हो माता-पिता, भाई-बहन के बजाय परिवार-अभिभावक, रिश्तेदार-परिचित जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें। अखबार, पत्रकारिता की भाषा चिन्ताजनक, दुर्भाग्यपूर्ण, कलंक जैसे शब्दों और अपावश्यक विशेषण के इस्तेमाल से बचें।
# अपनी प्रामाणिकता और असलियत (आथेन्टिक और जेनुइन होने) का भरोसा रखें। अपने विचारों को स्पष्ट तार्किकता के साथ प्रस्तुत करें, न कि भावनात्मक प्रतिबद्धता से। प्रश्नों के जवाब में जानकारी, दृष्टिकोण को प्रस्तुति-कौशल होना चाहिए, शोध की गहराई या विशेषज्ञ की तरह के बजाय सामानज्ञ की सहजता और सतर्क जागरूकता अधिक जरूरी है। 
# एक सवाल अधिकतर होता कि क्या शासन/तंत्र की किसी नीति के विरुद्ध बोल सकते हैं/ सरकारी योजना की आलोचना कर सकते हैं? तंत्र के हिस्से के रूप में शासन की आलोचना या कमी का जिक्र सुधार-पूर्ति के सुझाव सहित किया जा सकता है। जैसे आधा गिलास पानी में आधा भरा होना आशावाद और आधा खाली होना निराशावाद है तो आधा खाली को कैसे भरा जा सकता है की दृष्टि से देखना तथ्यगत सकारात्मक है, जिसे साक्षात्कारवाद कह सकते हैं। 

सिलसिला बना रहा। बैंक, डिफेंस, एसएससी, पुलिस आदि के साक्षात्कार की तैयार वालों से संपर्क होता गया, मानता हूं कि अलग-अलग पृष्ठभूमि के युवाओं से लगातार मिलते रहने से अधिक साफ सोच पाने और बेहतरी में सहायक हुई होगी। 2012-13 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का पैटर्न बदला, इस दौरान कई भूमिकाओं में आयोग से जुड़ गया, इसलिए अपनी मर्यादा तय कर ली। इस भूमिका के साथ खास तौर पर कहना है कि परीक्षा परिणाम के बाद चयनितों की दुनिया बदल जाती है, उनसे संपर्क न रहे, मेरा यथासंभव प्रयास होता, मगर जिनका चयन नहीं हो पाया, उनमें से कई ऐसे हैं, जो चयनितों से बेहतर स्थिति में हैं। 

1998.99 में पुलिस सब-इंस्पेक्टर की लिखित परीक्षा के बाद, उनके फिजिकल और साक्षात्कार के लिए बिलासपुर में मेरा नियमित जुड़ाव रहा। रेलवे ग्राउंड में फिजिकल का अभ्यास होता था। इस परीक्षा में चयन न हो पाने वाले एक प्रतियोगी को पत्र लिखा था, वह यहां है- 
प्रिय ..., 
शुभकामनाए 

कल शाम लगभग सभी लोग इकट्ठे हुए, श्री पी. जी. कृष्णन भी लगभग डेढ़-दो घन्टे रुके, पंकज अवस्थी भी आया था, मुझसे अलग से चर्चा हुई, वह अपना परिचय बताया और एकदम घरू बालक निकला. 

लगभग पूरे समय सब लोग (मेरे आलावा) तुम्हारी चर्चा करते रहे, और तुम्हारे सलेक्ट न होने पर आश्चर्य तो शायद किसी को नहीं था, अफसोस जरूर सबको था, पी. जी. का कहना था कि उनके लाड़ ने तुम्हारा नुकसान किया, वरना तुम्हें फिजिकल में 70 तक नन्बर मिलना था, लेकिन देर से आना, उनकी सहानु‌भूति और स्नेह के इच्छुक रहना, इस दिशा में तुम अधिक प्रयासरत रहे। 

तुम्हारे सभी मित्रों का यह मानना था कि जहाँ भी उन्हें किसी जानकारी के लिए मुश्किल होती थी, किसी किताब के बजाय तुम्हारी जानकारी पर अधिक भरोसा होता था, लेकिन तुम्हारे चयन की संभाव‌ना को लेकर कहीं-न-कहीं शंकित सभी थे, ऐसा क्यों हुआ तुम अधिक अच्छा विश्लेषण कर सकते हैं। 

इन्टरव्यूज (मॉक) के दौरान के लिए मैं तुमसे बार-बार जो कहता रहा, वह यहाँ दुहराने की जरूरत नहीं समझता. 

अब यह विश्लेषण करो कि तुम्हारी योग्यता (जो सचमुच तुममें है) का विश्‌वास तुम उन सभी लोगों को दिलाने में सफल रहे हो, जो तुम्हारा चयन करने वाले नहीं है, और चयन करने वालों के लिए अपनी उर्जा और क्षमता बचाकर नहीं रख पाये, तुम्हारे इस प्रयास ने तुम्हें सबकी सहानुभूति का पात्र बनाया, यदि तुम्हें इससे तसल्ली मिल रही हो, तो कम से कम मेरा ऐसा उद्देश्य नहीं है, क्योंकि बधाई का पात्र, सहानुभूति का पात्र बन जाये तो इस पर गुस्सा ही आ सकता है, मैं अपने लिए यह जरूर दुहराना चाहूँगा कि मेरे प्रति किसी का सहानुभूति दिखाना मुझे सबसे घृणास्पद लगता है और इसीलिए किसी अन्य के प्रति भी कुशलता (या चतुराईपूर्वक) सम्वेद‌ना प्रकट नहीं कर पाता, मुझे ऐसा लगता है कि किसी को या किसी की सहानुभूति, सच्ची वही होती है जो सहयोग के रूप में सामने आए. 

खैर पुनः दुहराता हूँ अपना विश्लेषण तुम करो, तुम्हारा मूल्यांकन न सिर्फ मैंने बल्कि उपरोक्त उल्लेख के अनुसार सभी ने किया है, और अपनी क्षमता और योग्यता सिर्फ वहाँ साबित करना सीखो, जहां वह आवश्यक है, हर सडक चलते बेकार के आदमी या चाय-पान ठेले पर अपने बुद्धि कौशल का प्रकाश फैलाना सार्थक नहीं होता है लेकिन यदि यह अभ्यास मानकर किया जाय तो इसे भी उपयोगी बनाया जा सकता है, अपनी योग्यता और अपनी सफलता के बीच सीधा और हक का रिश्ता कायम करने का प्रयास करो न कि अवैध संबंध स्थापित करने का, बीच के लोग सहयोगी हो सकते हैं निर्णायक नहीं, निर्णायिक सिर्फ तुम हो सकते हो और दूसरे लोग, अधिकृत लोग, उसे अटेस्ट कर सकते हैं, उन्हें उनके द्वारा तुम्हें सत्यापित किया जाय, इसके लिए मजबूर किया जा सकता है, यानि अगर परीक्षा केन्द्र उल्टा-पुल्टा हो तो ज्यादा जिद के साथ अपने लक्ष्य के लिए प्रयास करना, अपने को झोंककर अपनी सफलता खुद तय करना, पुनः शुभकामनाएं. 

राहुल 15-4-2000 

प्रतियोगी परीक्षा के दौर के बाद तब संपर्क में आए युवा अब भी यदा-कदा संपर्क करते हैं, तब की कोई बात याद दिलाते हैं, जिनमें से एक ऊपर वाला पत्र है, इसी तरह एक चयनित ने याद दिलाया था, वह यह है- 

प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद मिलने आने वालों से मैं कहा करता- Be an average officer, who is constantly trying to improve his average ... ’

तुम एक ऐसे औसत अधिकारी बनो जो सदैव अपने औसत को बेहतर करने की कोशिश कर रहा हो।’ न कि Excellent या Best बनो। बस अपने औसत को लगातार सुधारते चलो। 

मेरी इस बात की याद दिलाते हुए एक चयनित, अब वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की- बच्चे बुजुर्गों की बात सुनते ही कहां हैं... मैं भी अपनी मस्ती में रहता था। कभी उनका कहना मानता नहीं था, पर आज उनकी कही बात याद आती है बहुत और मानने की कोशिश भी होती है। 

वो कहते थे कि औसत होने का अभिमान नहीं पकड़ता। बेहतरीन होने का अभिमान पकड़ सकता है। औसत के आगे बेहतर दिशा में भी बहुत कुछ है, पीछे भी बहुत कुछ ... स्कोप बहुत है औसत इंसान के पास बेहतर होने का...

औसत व्यक्ति विनम्र होता है, क्योंकि वो औसत है, वो बहुत कुछ नहीं जानता। ’मेरी ही बात सही है, ऐसा उसका आग्रह नही होता। आपकी भी बात आपके Point of View (दृष्टिकोण) से सही है, ऐसा मानने में उसे कोई दिक्कत नहीं। सबकी दृष्टि का कोण एक हो, ऐसा संभव भी नहीं।’ 

औसत का नियम यह भी बताता है कि सिर्फ एक इंसान के साथ भी बेहतर या खराब संबंध आपके संपूर्ण औसत को बहुत बेहतर या बहुत खराब तरीके से प्रभावित कर सकता है, यदि वो इंसान बेहद प्रभावशाली हो। So, 

 Always pick your battles carefully...Avoid unnecessary battles ... लड़ो तभी जब उससे आपके औसत के बेहतर होने की संभावना हो...’ अब समझ पा रहा हूं कि मेरा प्रयास होता था, साक्षात्कार को एक पड़ाव माना जाए, प्रतियोगी युवा इसे अंतिम लक्ष्य की तरह न देखें और साक्षात्कार में कामयाबी के गुर, सुखी और सफल जीवन के लिए भी लगभग उतने ही अनुकूल और आवश्यक होते हैं।

सिंहावलोकन पर संबंधित अन्य पोस्ट के लिंक- 

Thursday, March 20, 2025

सुरेन्द्र परिहार का पत्र 19-5-1987

सुरेन्द्र परिहार सर, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग (यूटीडी) मैं मैं उनका/ यूटीडी का विद्यार्थी नहीं रहा, मगर पुस्तकालय और परिचितों के कारण, (1976-1981) लगभग प्रतिदिन 3 नंबर सिटी बस से वहां जाता था। (कहा जाता था कि जो यूटीडी में नहीं पढ़ा, उसकी आधी जिंदगी बेकार और जिसने वहां पढ़ाई कर ली उसकी पूरी...!🙂) समाजशास्त्र के इंद्रदेव सर, भाषा विज्ञान के रमेशचंद्र मेहरोत्रा सर, भूगोल के पीसी अग्रवाल सर किसी भी विद्यार्थी की जिज्ञासा समाधान के लिए सहज तैसार हो जाते। परिहार सर की बात निराली थी, कोई भी जिज्ञासु कभी भी उनसे मिलने उनके निवास पर जा सकता था (वे आजन्म अविवाहित रहे), वहां चाय भी मिल जाती थी, पुस्तक पढ़ने को ले सकते थे, लाइब्रेरी से किताब चाहिए और विद्यार्थी को न मिल पा रही हो (मैं उस लाइब्रेरी की सदस्य नहीं था, रीडिंग रूम की सुविधा ले लेता था और बाद में जान-पहचान हो जाने के कारण शोध-संदर्भ खंड में भी जा सकता था।), तो अपने खाते से निकलवा कर देते थे।

विश्वविद्यालयीन पढ़ाई के बाद भी उनके जीवन भर, उनसे मेरा संपर्क बना रहा, जिज्ञासुओं के प्रति उनके रवैये के बारे में उनसे परिचित सभी भलीभांति जानते हैं, जो अपरिचित हैं, इस पत्र से अनुमान कर सकते हैं- 

प्रिय राहुल, 

आपका 10 मई का पत्र एक सुखद अचरज रहा। इस बीच आपसे एक अर्से से मुलाकात नहीं हो पाई। यह जानकर मुझे बड़ा अच्छा लगा कि आप पुरातत्व विभाग में काम कर रहे हैं और अध्ययन और शोध में अपनी रुचि बराबर बना कर रखते हैं। 

आपने आदिम धर्म पर इस बीच परियोजना के लिये एक लेख लिखा है - यह सुखद सूचना है मानव विज्ञान में आदिम और आधुनिक धर्म दोनों पर मानव शास्त्री काफी लम्बे समय से काम कर रहे हैं और धर्म की मान्यताओं और विकास के सम्बंध में काफी बहसें चालती रहती है। एक महत्वपूर्ण प्रश्न मानवशास्त्रियों ने यह उठाया कि मानव कि धर्म समाज में क्या काम करता है? आदिम अथवा आधुनिक समाज में उसकी क्या उपादेयता है? क्या तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के कारण वह अपनी जगह खो चुका है? धर्म के क्षेत्र में होने वाली सभी बहसों में आपको मार्क्स के विचारों को अवश्य पढ़ना चाहिये। धर्म के विकास और उपादेयता पर मार्क्स और एंगेल्स ने यह कह कर बहुत गर्मी पैदा कर दी कि ‘‘धर्म जनता का अफीम है‘‘। मैं मार्क्स के विचारों से सहमत नहीं पर इस क्षेत्र में मावर्स को प्रतिभाशाली अवश्य मानता हूं। किसी अच्छी बहस की शुरुआत मार्क्स से की जानी चाहिए।

आदिम धर्म के क्षेत्र में हमारे विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में काफी साहित्य - समाजशास्त्र और मानवशास्त्र दोनों ही विषयों में। आप स्वयं यहां आकर कोई पुस्तक ले सकते हैं अथवा इस बीच यदि मैं बिलासपुर अकलतरा आया तो अपने साथ लेता आउंगा। अच्छा तो होगा यदि अपना वक्त निकाल कर यहां आयें तो काफी बातचीत रहेगी। 

पुरातत्व विभाग इन दिनों छत्तीसगढ़ में खनन का कहां कहां काम चला रहा है? बुद्धकालीन मूर्तियां और अवशेष सिरपुर को छोड़कर और कहां है, कृपया सूचित करें। मैं बिलासपुर आने पर आपके संग्रहालय को अवश्य देखना चाहूंगा।। 

शुभकामनाओं के साथ 
आपका शुभांक्षी 
सुरेन्द्र परिहार 
19/5/187

Wednesday, March 19, 2025

बस्तर में संग्रहालय

बस्तर के अखबार ‘दण्डकारण्य समाचार‘ की 1959 से 2003 तक की 45 वर्षों की यात्रा का संकलन है ‘जिज्ञासा‘। इसमें दस्तावेजी महत्व की जानकारियां हैं। संग्रहालय विज्ञान से जुड़े होने के कारण इसकी दो प्रविष्टियां मेरे लिए खास हैं- पहली 1961 में उद्घाटित पुरातत्वीय संग्रहालय (पेज-25) और दूसरी जगदलपुर में 1964 में नृतत्वशास्त्रीय संग्रहालय (पेज-70) के प्रस्ताव पर कार्यवाही का निम्नानुसार है- 

Vol 2 No. XXXIX Jagdalpur, Sunday, February 12, 1961 

Kabir Inaugurates Archeological Museum 

Jagdalpur, Feb. 5. The Minister for Scientific Research and Cultural Affairs Professor Humaun Kabir told a packed gathering here that the object of the Government was to study Indian Archeology throughout India and Baster would now also be put under this programme. 

He was inaugurating a small Archeological Museum housed in the District Collectorate on the afternoon of Feb. 4. The function was orgins by the District Publicity and Social Welfare department with an initial collection about 20 sculptures. 

"Bastar is a land of fascinating interest having influences from different parts of the country with manifestations of diversity of culture besides its unique place in the sphere of Anthropology, Geology and the ike and rich also in archeological remains scattered all over the disrict with thousands of years of history behind them," Shri Kabir said, Announcing a token grant of Rs. 1000/00 for the museum, the Minister said that while the departments of Anthropology and Gelogy are already at work at Bastar, the Government would step in the archelogical sphere also when time was ripe for it and appreciated the move taken locally towards this. 

speaking at length of cultural heritage of India Prof. Humayun Kabir said that researches now being carried & linguistic survey of India being made from next year would have more insight into this. The Minister advised the district to apraoch Government of India for a technical Institute to be followed by Polytechnic Institution for the benifit of tribals. Later in the evening Prof. Humayan Kabir paid visit to Republic Day Exhibition and gave away prizes to the competitors in the presence of a t gatheringe. He felt happy at the development programmes undertaken at Bastar and laid stress on placing emphasis on spread of education which alone would lead our country to progress, he said. 

On both these functions, in the absence of the Collector, the Duputy Collector Sri P.G.Y. Mudaliar who welcomed the Minister and introducted him to gathering stated in brief the background under which the functions were held and later proposed a vote of thanks for the chief guest in glowing terms. He also thanked all those connected with the successful organisation of the functions. 

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Voll. V No. 40 Jagdalpur, Sunday April 26, 1964 

Anthropological Museum at Jagdalpur 

JAGDALPUR, April 14, 1964. The Government of lndia, it is understood, is examning a proposal for opening of an Anthropological Museum at Jagdalpur, the Hdqrs of Bastar District. The Directorate of the Anthropological Survey of India, Calcutta, had recently deputed Doctor N.C. Chowdhary, the Curator of Indian Museum to Jagdalpur for survey and to find out this possibility. This survey by the Anthropological Survey of India was undertaken in view of a request from the Ministry of Education, Government of India inviting comments and suggestions on the proposal immediately and also asking for a comprehensive scheme with full financial involvement in case the directorate support the proposal, it is very reliably learnt. 

Shri Sunderial Tripathi of the Anthropological Institute Jagdalpur, it is also gathered, met the Education Minister Shri M.C. Chagla in New Delhi early last March and put before him the fact that Bastar area had many interesting historical finds relating to tribals, finds of early 9th to 15th Century A.D. and urged the desirability of establishing an Anthropological museum at Jagdalpur Maintained directly by the Central Government which would prove very useful to the country. 

Doctor Chowdhary who was here for four days left for Calcutta and is likely to submit his comments and suggestions shortly to the Directorate.

Tuesday, March 18, 2025

प्रवीरचंद्र भंजदेव - कालक्रम

बस्तर के अखबार ‘दण्डकारण्य समाचार‘ की 1959 से 2003 तक की 45 वर्षों की यात्रा का संकलन है ‘जिज्ञासा‘। इसमें आई दस्तावेजी महत्व की जानकारियों में पेज 84 पर वर्ष 7 अंक 37 जगदलपुर, रविवार 27 मार्च 1966 के साथ ‘राजमहल में गोली कांड, पुलिस की गोली से प्रवीरचंद्र भंजदेव का निधन‘ प्रकाशित है और इसी क्रम में पेज 85-86 पर उनके जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां इस प्रकार छपी हैं- 

स्वर्गीय प्रवीर के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां 

२५ जून १९२९-प्रवीरचंद्र भंजदेव का शिलांग में जन्म 
९ मार्च १९३४-प्रवीर के लघु भ्राता वर्तमान महाराजा श्री विजयचंद्र भंजदेव का इंग्लैंड में जन्म। 
फरवरी १९३६- प्रवीर की माता महारानी प्रफुल्ल कुमारी का इंग्लैंड में देहावसान। 
१६ जुलाई १९४७- प्रवीर का विधिवत राज्याभिषेक। 
१ जनवरी १९४८- बस्तर का रियासत का विलीनीकरण। 
१९५३-शासन द्वारा प्रवीर की सारी संपत्ति कोर्ट आफ वार्डस के अधीन करने की घोषणा 
१९५५- प्रवीर द्वारा आदिवासी किसान मजदूर संघ की स्थापना। 
१९५७- प्रवीर का जिला कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित होना तथा बाद में आम चुनाव में विधायक निर्वाचित होना। प्रवीर के पिता स्व. श्री प्रफुल्लचंद्र का निधन। 
१९५८- प्रवीर द्वारा आदिवासी सेवा दल स्थापना। 
१९५९- श्री प्रवीर द्वारा विधानसभा की मान्यता से त्यागपत्र। 
११ फरवरी १९६१-धनपूंजी गांव में प्रवीर की गिरफ्तारी
 
१२ फरवरी १९६१- शासन द्वारा प्रवीर गतिविधियों तथा उनके वक्तव्यों को जनविरोधी बताते हुये उनकी मान्यता रद्द की घोषणा। 
२७ मार्च १९६१- तोकापाल अश्रु गैस कांड। 
३१ मार्च १९६१- लोहंडीगुड़ा तथा सिरिसगुड़ा में आदिवासियों द्वारा प्रदर्शन तथा प्रवीर की रिहाई की मांग। लोहंडीगुड़ा में पुलिस द्वारा आदिवासियों पर गोली चालन। 
२६ अप्रैल १९६१- प्रवीर की नरसिंहगढ़ जेल से रिहाई, शासन द्वारा नियुक्त सलाहकार बोर्ड द्वारा प्रवीर की गिरफ्तारी को अवैध निरूपित किया जाना। 
४ जुलाई १९६१-प्रवीर का पाटन की राजकन्या शुभ राजकुमारी से विवाह (प्रवीर द्वारा महारानी वेदवती देवी नामकरण) 
अक्टूबर १९६१- प्रवीर द्वारा १४ वर्षों की लंबी अवधि के बाद पुनः विधिवत रथारुढ़ होकर दशहरा समारोह का नेतृत्व (इसके पूर्व वे १९४७ में रथारुढ़ हुये थे।) 
नवंबर १९६१- प्रवीर द्वारा ‘राजा मड़ई‘ का पुनः शुभारंभ (राजा मड़ई १९३७ से बंद थी) 
दिसंबर १९६१-प्रवीर दूद्वारा ‘महाराजा पार्टी‘ की स्थापना। 
फरवरी १९६२- कांकेर तथा बीजापुर के अतिरिक्त शेष सभी क्षेत्रों से महाराजा पार्टी के प्रत्याशियों की विजय। 
६ अक्टूबर १९६२- महारानी वेदवती देवी का बस्तर आगमन। 
८ तथा ९ अक्टूबर १९६२- महाराजा प्रवीर तया महारानी वेदवती देवी, दोनों के द्वारा रथारुढ़ होकर दशहरा समारोह का नेतृत्व। 
८ मई १९६३-जगदलपुर राजमहल में प्रवीर की संपत्ति कोर्ट आफ वार्डस से मुक्त करने के लिये आदिवासियों द्वारा कोर्ट आफ वार्डस के कार्यालय पर हमला। 
९ मई १९६२- महारानी वेदवती द्वारा महल का त्याग तथा पाटन को प्रस्थान। 
१० मई १९६३- म. प्र. शासन द्वारा प्रवीर की संपत्ति कोर्ट आफ वार्डस से मुक्त करने का निर्णय। 
३० जुलाई १९६३- प्रवीर की ३० लाख की संपत्ति कोर्ट आफ वार्डस से मुक्त 
१६ नवंबर १९६३- प्रवीर द्वारा दीपावली के अवसर पर दान करते समय रिक्शा चालक मोतीलाल का हाथ काट दिया जाना। 
१९ नवंबर १९६३- मोतीलाल का हाथ काटने के अभियोग में प्रवीर की गिरफ्तारी तथा ५०० रुपये की जमानत पर रिहाई। 
२२ सितंबर १९६४- हाथ काटने के अभियोग में प्रवीर को १००० रु. जुर्माना तथा १८ माह की सख्त कैद की सजा सुनाया जाना एवं प्रवीर द्वारा अपील पेश। 
१२ जनवरी १९६५- प्रवीर द्वारा दिल्ली जाकर शांतिवन में अनशन। गृहमंत्री श्री नंदा द्वारा आश्वासन दिये जाने पर अनशन की उसी दिन समाप्ति। 
२ नवंबर १९६५-खाद्य संकट से प्रभावित सैकड़ों आंदिवासियों का महल में जमाव। 
१६ नवंबर १९६५-आदिवासी महिलाओं द्वारा रुपये में चार सेर चावल तथा सोने की लापता छड़ी की मांगों को लेकर जिलाधीश कार्यालय में धरना तथा प्रदर्शन। 
१२ दिसंबर १९६५- प्रवीर द्वारा सोने की लापता छड़ी की मांग लेकर अनशन। 
१६ दिसंबर १९६५-कमिश्नर श्री वीरभद्रसिंह के आश्वासन पर अनशन समाप्ति। 
४ फरवरी १९६६-केशरपाल में लेव्ही वसूली के समय उपद्रव। पुलिस द्वारा आदिवासियों पर अश्रु गैस लाठी चार्ज। 
८ फरवरी १९६६- लेव्ही वसूली के प्रश्न पर प्रवीर द्वारा विजय भवन में अनशन आरंभ। 
११ फरवरी १९६६- शासन द्वारा उचित कार्यवाही का आश्वासन दिये जाने पर अनशन की समाप्ति। 
१८ मार्च १९६६- राजमहल में पुलिस द्वारा आदिवासियों को पीटे जाने पर आदिवासियों द्वारा तीर कमान संभाल लिया जाना प्रवीर के बीच बचाव से अप्रिय घटना का टल जाना। 
२५ मार्च १९६६- आदिवासी कैदियों को न्यायालय ले जाते समय अन्य आदिवासियों द्वारा पुलिस दल पर तीर फेंकना जिसमें एक सूबेदार सहित ९ पुलिसमैन आहत (सरदार अवतार सिंह) की मृत्यु। पुलिस द्वारा आदिवासियों को महल में घेरकर गोली चालन। आधी रात तक संघर्ष। 
२५ मार्च १९६६- रात्रि के समय गोलियों से प्रवीर की महल में मृत्यु। 
२६ मार्च १९६६- प्रवीर का संध्या समय अंतिम संस्कार।
-इस्माईल जगदलपुरी

Wednesday, March 12, 2025

देउरकोना - पति पाती

पत्र लेखक-पति - राहुल कुमार सिंह, डीपाडीह कलां, 26/1/89 
पत्र प्राप्तकर्ता-पत्नी - श्रीमती नम्रता सिंह, अकलतरा, 3/2/89 


देउरकोना मंदिर          (संभवतः शिव मंदिर) 
लगभग 8 वीं सदी ई.     (दक्षिण पूर्व) 

त्रिरथ प्रकार का, पंचभूमि शिखर वाला पूर्वाभिमुख मंदिर है अग्रभाग खंडित होने से प्रवेश द्वार अप्राप्त है. अधिष्ठान अंशतः भूमि में दबा, अर्द्धस्तंभयुक्त प्रक्षेप वाली जंघा, चैत्य गवाक्ष, कीर्तिमुख, प्रतिमाओं (गणेश) युक्त शिखर, उपर क्षत शिखर पर आमलक शिला रखी है। 

जंघा के निचले भाग पर छोटी उत्कीर्ण प्रतिमाओं युक्त पाषाण मध्य में slit तथा उपर मकर मुख (सम्मुख युग्म) जंघा पर मालाधारी गन्धर्व तथा चैत्य में मुकुल. 

कीचक और गज का अंकन शिखर प्रक्षेप के सलिलान्तरों में। 

ईब नदी के बायें पार्श्व में लगभग 8 वीं सदी ई. का मंदिर है। 

यह स्थान सन्ना से लगभग 12 कि.मी. तथा इतना ही डीपाडीह से दूर है मार्ग के पश्चिम व्यपवर्तन (ग्राम नन्हेसर) से मात्र 1 कि.मी. दूर यहां पहुंचा जा सकता है। 

ईब उद्गम- जड़ाकोना ग्राम निकट ही है। रानीझूला पहाड़ी से निकला है। शिवालय पहाड़ी देउरकोना मंदिर के पास वटली पहाड़ी का नाम है। 

पोस्ट तथा राजस्व ग्राम - नन्हेसर 
पटवारी हल्का - 2 (खेड़ार) 
विकास खंड+तहसील - बगीचा 
थाना - सन्ना 
जिला - रायगढ़