फिल्मी गीत ‘जिंदगी इम्तिहान लेती है‘ में दोस्ती, दिल्लगी, प्रीत, बेबसी, आशिकी, मयकशी भी इम्तिहान लेती है। गीत से बाहर निकल आएं तो कुछ किताबें भी इम्तिहान लेती है, उनमें से एक यह निधीश त्यागी की ‘तमन्ना तुम अब कहां हो‘ है। मगर क्या यह इम्तिहान देना जरूरी है?, शायद नहीं, मगर मुझ छत्तीसगढ़िया के लिए हां, क्योंकि इस लेखक के छत्तीसगढ़ से रिश्ते के बारे में बताया गया है। किताब में रायपुर, बस्तर-जगदलपुर, विनोद कुमार शुक्ल(ा)? आते ही हैं, देशबन्धु अखबार (पत्रकारों की नर्सरी) में नौकरी का भी जिक्र है। और फिर लेखक ब्लॉग वाले दिनों के वर्चुअल परिचितों में हैं।
दौ सौ से कम पेज की पुस्तक में सौ से अधिक और अधिकतर वाक्य की तरह लंबे शीर्षकों के साथ बात कही गई है। एक शीर्षक में ‘एक लाइन में दिल तोड़ने वाली 69 कहानियां' हैं, सो अलग। कहीं डायरी जैसी अनौचारिक, मनमौजी, सहजता तो कहीं चिंतन। कवितानुमा गद्य, दार्शनिक उलटबांसियां। दो और कभी-कभी दो से भी अधिक वाक्य, जिन का वैध संबंध लिखने वाले के मन में तो होता होगा लेकिन पाठक को वह अवैध की तरह लगता है।
खबरों के अंश, जो छपने-छापने के लिए गैरजरूरी मान लिए जाते हैं, उनमें कहानियां उग आती हैं, यहां कई ऐसे प्रसंग हैं। ‘एक गुमशुदा दोस्त का पता मिलने पर‘ गद्य गीत है। ‘नैय्यरा नूर ...‘ के लिए कहने का ढंग उपयुक्त बन पड़ा है। ‘उसने दिल को ...‘ और ‘फिर फंस जाओ...‘ भेद में सौहार्द उभारने का प्रयास है। ‘उसने समंदर में ...‘ सुंदर निभा है।
‘खुशी को जिस... ‘ में ‘उसने‘ का प्रयोग देखिए- ‘उसने कहा उसे लौटना है। उसने पूछा कहां? उसने कहा-अब उसे पता है रास्ता खु़द के पास जाने का। उसने कहा...‘। ‘दिक्कत प्यर की...‘ का उसने देखिए- ‘उसने कहा-वह दूर जा रहा है। उसने कहा-ख़्याल रखना। उसने कहा-तुम भी। उसने कहा-ख़बर भेजते रहना अपनी। उसने कहा-वह जल्द लौटेगा। उसने कई लंबे ख़त लिखे। पर ख़राब नेट कनेक्शन की वजह से वे जा नहीं सके। उसका मोबाइल गुम गया और उसे उसका नंबर ही याद नहीं रहा।‘
‘शीशे की असलियत...‘ का एक दिलचस्प अंश- ‘उसे जैसे यक़ीन था कि अगर आप ज्यादा शिद्दत से दिलचस्प बातों को ढूंढ़ते हैं, तो वे आपको नहीं मिलती। नहीं मिलतीं इसलिए कि वे भी आपको ढूंढ़ रही होती हैं आपके पते पर, और आप उनके पते पर उन्हें ढूंढ़ रहे होते हैं। ‘लड़की देखते ही...‘ किसी बड़ी कहानी का बढ़िया प्लॉट, जल्दबाजी में मटियामेट हुआ है। वेब मैगजीन हीट की एम्मा, खबर-खुलासे के साथ संभावित कुछ अलग तरह के अंदेशों-खतरों के साथ दो शीर्षकों में आती है। ‘घरघराते हुए एयरकंडीशनर...‘ और ‘हाशिए से आता है...‘, असंबद्ध किस्म के वाक्यों का गुच्छा है, जिसमें छत्तीसगढ़- जशपुर, गरियाबंद आदि के साथ आता है।
कुल मिलाकर लगता है लेखक को जो अगला काम करने की तमन्ना है उसके लिए यहां कलम मांज रहा है।
No comments:
Post a Comment