पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी के अमरीका प्रवास के दौरान लगभग 10 करोड़ मूल्य की कलाकृति-संपदा भारत को वापस सौंपे जाने पर, समाचारों के अनुसार, ब्लेयर हाउस में, अमेरिका सरकार और ओबामा को प्रधानमंत्री जी ने धन्यवाद दिया है, आदि। यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह धन्यवाद, हमारी औपचारिक सौजन्यता है और उदार बनते दिखने वाले उन देशों को अपराध-बोध होना चाहिए, क्योंकि उनका ऐसा करना हम पर उपकार नहीं, उनकी बाध्यता है। इस संदर्भ में यूनेस्को के ‘कन्वेन्शन आन द मीन्स आफ प्राहिबिटिंग एंड प्रिवेंटिंग द इल्लिसिट इम्पोर्ट, एक्सपोर्ट एंड ट्रान्सफर आफ ओनरशिप आफ कल्चरल प्रापर्टी 1970‘ का स्मरण आवश्यक है। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले दुनिया के सभी प्रमुख देशों के साथ भारत भी है।
इस कन्वेन्शन के क्रम में आगे चलकर हमारे देश में 'पुरावशेष और बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972' आया। जैसाकि इस अधिनियम के आरंभ में स्पष्ट किया गया है कि यह अधिनियम पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृतियों का निर्यात-व्यापार विनियमित करने, पुरावशेषों की तस्करी तथा उनमें कपटपूर्ण संव्यवहार के निवारण आदि अन्य विषयों के बारे में उपबन्ध करने के लिए है। पुरावशेषों के विधिवत पंजीकरण की आवश्यकता को देखते हुए 1974-75 में पूरे देश में ‘रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों’ की नियुक्ति हुई। तत्कालीन मध्यप्रदेश के संभागीय मुख्यालयों में रायपुर और बिलासपुर सहित 10 रजिस्ट्रीकरण कार्यालय खोले गए। इन कार्यालयों के माध्यम से छत्तीमसगढ़ में लगभग 20 वर्षों तक पुरावशेषों का राज्यव्यापी नियमित सर्वेक्षण और पंजीयन का महत्वपूर्ण कार्य हुआ। फिर रजिस्ट्रीकरण कार्यालयों की भूमिका के साथ क्रमशः कार्यालय भी सीमित होते गए, लेकिन अब भी इस अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाती है।
रजिस्ट्रीकरण कार्यक्रम के बाद प्राचीन कलाकृतियों की चोरी, तस्करी की घटनाएं नियंत्रित हुई हैं, क्योंकि यह साबित किया जा सका कि कोई पुरावस्तु हमारे देश की विरासत है और अवैध रूप से, चोरी-तस्करी से विदेश पहुंची है तो वह हमारे देश को वापस करनी होगी। ऐसे कई उदाहरणों में से एक धुबेला संग्रहालय, छतरपुर, मध्यप्रदेश से चोरी हुई ‘कृष्ण जन्म’ प्रतिमा है। धुबेला संग्रहालय के सूचीपत्र में सचित्र प्रकाशित यह प्रतिमा चोरी के लगभग 30 साल बाद न्यूयार्क गैलरी से सन 1999 में वापस लौटी। एक अन्य मामले में मंदसौर जिले के कंवला गांव से फरवरी 2000 में चोरी हुई वराह प्रतिमा न्यूयार्क में बरामद हुई और अगस्त 2006 में वापस लाई गई। इस सब के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऐसी पुरावस्तु का कोई मूल्य नहीं, जिसका पंजीयन-अभिलेखन हो। अब स्मारकों के संरक्षण-अभिलेखन तथा पंजीकरण के बाद मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि महत्वपूर्ण पुरावशेषों का पर्याप्त अभिलेखन हो चुका है और चोरी-तस्करी होने पर उसके अपने आधिपत्य में होने के प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं। लेकिन ऐसी अफवाहों और फिल्मों से बने माहौल में तस्करी से रातों-रात मालामाल हो जाने की झूठी उम्मीद से चोरी और ठगी का व्यवसाय फला-फूला है। कानून की नजरों में जो हो, लेकिन सामान्यतः ठगी भी जेबकटी की तरह मामूली अपराध माना जाता है, एक कारण शायद यह कि इसका सबूत जुटाना, साबित करना आसान नहीं होता और अक्सर कार्यवाही-सजा भी मामूली ही होती है।
लेकिन इस पृष्ठभूमि में खबर-प्रपोगेंडा से बनने वाला जनमानस, ठगी के छोटे कारोबारियों के लिए मनचाही मुराद है। हर साल 'चमत्कारी' सिक्के, मूर्ति-चोरी, ठगी, तस्करी के तीन-चार आपराधिक प्रकरण, जांच के लिए पुलिस के माध्यम से पुरातत्व विभाग में आते हैं। आम तौर पर जो सिक्के चर्चा में आते हैं उनमें हनुमान छाप, राम दरबार, धनद यंत्र अंकित, सच बोलो सच तोलो सिक्का, इस्ट इंडिया कंपनी का सन 1818 (कभी 1616, 1717 या 1919 भी) वाला, चावल को खींच कर चिपका लेने वाला, जैसे विलक्षण, चमत्कारी गुणों वाले बताये जाते हैं। ठगी करने वालों ने ऐसी संख्याओं, खासकर 1818 को 'आइएसआइ' मार्का की तरह प्राचीनता की गारंटी वाला अंक प्रचारित कर, जनमानस में स्थापित कर दिया है। पढ़े-लिखे लोग भी बातचीत में कहते हैं, 'दुर्लभ, अनूठा, बहुत पुराना इस्ट इंडिया कंपनी के जमाने का 1818 का है।' इसी तरह इनमें 'रोने वाली', 'पसीना निकलने वाली' और स्वर्णयुक्त अष्टधातु की दुर्लभ कही जाने वाली अधिकतर बौद्ध मूर्तियां होती हैं। ऐसी धातु मूर्तियां भी देखने में आई हैं, जिनकी पीठ पर 1818 खुदा होता है। ऐसी ठगी और उसकी तरकीबों पर सरसरी निगाह डालते चलें।
आमतौर पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, कोर्ट-कचहरी के आसपास नग, अंगूठियों के साथ ऐसे सिक्के बेचने वाले दिख जाते हैं। इन सिक्कों के माध्यम से ठगी करने वाले अपना जाल फैलाने के लिए देहाती-अंदरूनी इलाकों में पहले ऐसे सिक्के की तलाश करते घूमते हैं कि अमुक सिक्का किसी के पास हो तो वह उसकी मुंहमांगी कीमत देगा। थोड़े दिन बाद उसका दूसरा साथी उस इलाके में ऐसे सिक्के ले कर, चमत्कारी गुणों का बखान करते हुए ग्राहक खोजता है। सिक्के में चुम्बकीय गुण लाना तो आसान होता है, लेकिन इन्हें खींचने वाले चावल की व्यवस्था खास होती है, इसके लिए उबले चावल के दानों पर लोहे का बारीक चूर्ण चिपका कर सुखा लिया जाता है। इसी तरह मूर्तियों को भारी बनाने के लिए उसमें सीसा मिलाया जाता है और 'रोने', 'पसीने' के लिए उनमें बारीक सुराख कर मोम पिला दिया जाता है साथ ही मूर्ति की गहरी रेखाओं वाले स्थाानों पर भी मोम की पतली परत होती है। यह भी बताया जाता है कि कई बार ठगों का कोई साथी जान-बूझकर पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है ताकि उसकी खबरों के साथ बाजार और माहौल गरम हो। विशेषज्ञों के परीक्षण से जालसाजी उजागर हो जाने पर कभी यह पैंतरा भी होता है कि पुरातत्व विभाग को लपेटते हुए इसे मिली-भगत से रफा-दफा करने का प्रयास बता दिया जाय।
पुरावस्तुओं की तस्करी और उनकी कीमत का सच उजागर करने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त होगा। सन 1991 में छत्तीसगढ़ के प्रमुख पुरातात्विक स्थल मल्हार से डिडिनेश्वरी प्रतिमा की चोरी हुई, खबरों में कहा गया कि 'अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 12 करोड़ रुपए बताई जाती है' लेकिन इन समाचारों में यह नहीं बताया गया कि यह कीमत किसने तय की है। आपसी बातचीत में मीडिया परिचितों ने खुलासा किया कि ऐसा करना मीडिया और पुलिस दोनों के लिए माकूल होता है। बड़ी रकम यानि मीडिया के लिए बड़ी खबर और पुलिस के लिए बड़ा प्रकरण। इसका दूसरा पहलू कि यह प्रतिमा चोरी के 45 दिनों बाद बरामद कर ली गई। बरामदगी से संबंधितों के अनुसार मूर्ति बेच पाने में असफल चोरों ने अंततः इसकी कीमत 50000 रुपए, जितनी रकम वे अपने इस अभियान के लिए खर्च कर चुके थे, तय की थी, लेकिन इस कीमत पर भी कोई ग्राहक नहीं मिल सका। वांछित कीमत न मिल पाने से यह बिक नहीं सकी और पकड़ी गई।
निष्कर्षतः, कलाकृतियों की देश वापसी पर औपचारिक आभार के साथ अन्य ऐसे पुरावशेष, जिनसे संबंधित हमारे आधिपत्य अभिलेख हैं, वापस लाने का उद्यम और पुरावशेषों के मूल्य का अनधिकृत निर्धारण/घोषणा और इस संबंधी अफवाहों पर कठोर नियंत्रण आवश्यक है।
निष्कर्षतः, कलाकृतियों की देश वापसी पर औपचारिक आभार के साथ अन्य ऐसे पुरावशेष, जिनसे संबंधित हमारे आधिपत्य अभिलेख हैं, वापस लाने का उद्यम और पुरावशेषों के मूल्य का अनधिकृत निर्धारण/घोषणा और इस संबंधी अफवाहों पर कठोर नियंत्रण आवश्यक है।
इस लेख का एक अंश इस तरह प्रकाशित हुआ था। |
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति अमर शहीद अमर चरण वोहरा जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी मिली, वो भी रोचक तरीके से। ब्लॉगिंग के दिन सुधरते दिखत रहे हैं :)
ReplyDeleteRochak. Sasani aur. Rahasya ko samajhane me sahayak..
ReplyDeleteLekhan hetu aabhar
Read sansani instead of sasani
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख
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