Pages

Wednesday, May 18, 2011

अजायबघर

18 मई। सन 1977 से इस तिथि पर पूरी दुनिया में संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। आज यह दिवस 100 से भी अधिक देशों और 30000 से भी अधिक संग्रहालयों में मनाया जा रहा है। इस वर्ष का विषय है 'संग्रहालय और स्मृति : चीजें कहें तुम्हारी कहानी' (Theme - Museum and Memory : Object Tell Your Story)। कुछ स्मृति और पुराना लेखा-जोखा मिलाकर हमने संग्रहालय की ही कहानी बना ली है, जिसमें रायपुर, छत्तीसगढ़ के लिए गौरव-बोध का अवसर भी है।

सन 1784 में कलकत्‍ता में एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल की स्थापना हुई और इससे जुड़कर सन 1796, देश में संग्रहालय शुरुआत का वर्ष माना जाता है, लेकिन सन 1814 में डॉ. नथैनिएल वैलिश की देखरेख में स्थापित संस्था ही वस्तुतः पहला नियमित संग्रहालय है। संग्रहालय-शहरों की सूची में फिर क्रमानुसार मद्रास, करांची, बंबई, त्रिवेन्द्रम, लखनऊ, नागपुर, लाहौर, बैंगलोर, फैजाबाद, दिल्ली?, मथुरा के बाद सन 1875 में रायपुर का नाम शामिल हुआ। वैसे इस बीच मद्रास संग्रहालय के अधीन छः स्थानीय संग्रहालय भी खुले, लेकिन उनका संचालन नियमित न रह सका। रायपुर, इस सूची का न सिर्फ सबसे कम आबादी वाला (सन 1872 में 19119, 1901 में 32114, 1931 में 45390) शहर था, बल्कि निजी भागीदारी से बना देश का पहला संग्रहालय भी गिना गया, वैसे रायपुर शहर के 1867-68 के नक्‍शे में अष्‍टकोणीय भवन वाले स्‍थान पर ही म्‍यूजियम दर्शाया गया है। यह नक्शा आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र जी के संग्रह में है।

इस संग्रहालय का एक खास उल्‍लेख मिलता है 1892-93 के भू-अभिलेख एवं कृषि निर्देशक जे.बी. फुलर के विभागीय वार्षिक प्रशासकीय प्रतिवेदन में। 13 फरवरी 1894 के नागपुर से प्रेषित पत्र के भाग 9, पैरा 33 में उल्‍लेख है कि नागपुर संग्रहालय में इस वर्ष 101592 पुरुष, 79701 महिला और 44785 बच्‍चे यानि कुल 226078 दर्शक आए, वहीं रायपुर संग्रहालय में पिछले वर्ष के 137758 दर्शकों के बजाय इस वर्ष 128500 दर्शक आए। फिर उल्‍लेख है कि दर्शक संख्‍या में कमी का कारण संग्रहालय के प्रति घटती रुचि नहीं, बल्कि चौकीदार कदाचरण है, जो परेशानी से बचने के लिए संग्रहालय को खुला रखने के समय भी उसे बंद रखता है।


सन 1936 के प्रतिवेदन (The Museums of India by SF Markham and H Hargreaves) से रायपुर संग्रहालय की रोचक जानकारी मिलती है, जिसके अनुसार रायपुर म्युनिस्पैलिटी और लोकल बोर्ड मिलकर संग्रहालय के लिए 400 रुपए खरचते थे, रायपुर संग्रहालय में तब 22 सालों से क्लर्क, संग्रहाध्यक्ष के बतौर प्रभारी था, जिसकी तनख्‍वाह मात्र 20 रुपए (तब के मान से भी आश्चर्यजनक कम) थी। संग्रहालय में गौरैयों का बेहिसाब प्रवेश समस्या बताई गई है।
अष्‍टकोणीय पुराना संग्रहालय भवन तथा महंत घासीदास
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इसी साल यानि 1936 में 8 फरवरी को मेले के अवसर पर लगभग 7000 दर्शकों ने रायपुर संग्रहालय देखा, जबकि पिछले पूरे साल के दर्शकों का आंकड़ा 72188 दर्ज किया गया है। इसके साथ यहां आंकड़े जुटाने के खास और श्रमसाध्य तरीके का जिक्र जरूरी है। संग्रहालय के सामने पुरुष, महिला और बच्चों के लिए तीन अलग-अलग डिब्बे होते, जिसमें कंकड डाल कर दर्शक प्रवेश करता और हर शाम इसे गिन लिया जाता। यह सब काम एक क्लर्क और एक चौकीदार मिल कर करते थे। तब संग्रहालय के साप्ताहिक अवकाश का दिन रविवार और बाकी दिन खुलने का समय सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक होता।
सन 1953 में इस नये भवन का उद्‌घाटन हुआ और सन 1955 में संग्रहालय इस भवन में स्थानांतरित हुआ। अब यहां भी देश-दुनिया के अन्य संग्रहालयों की तरह सोमवार साप्ताहिक अवकाश और खुलने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे है। राजनांदगांव राजा के दान से निर्मित संग्रहालय, उनके नाम पर महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय कहलाने लगा। ध्यान दें, अंगरेजी राज था, तब शायद राजा और दान शब्द किसी भारतीय के संदर्भ में इस्तेमाल से बचा जाता था, शिलापट्‌ट पर इसे नांदगांव के रईस का बसर्फे या गिफ्ट बताया गया है (आजाद भारत में पैदा मेरी पीढ़ी को सोच कर कोफ्त होने लगती है)।
संग्रहालय की पुरानी इमारत को आमतौर पर भूत बंगला, अजैब बंगला या अजायबघर नाम से जाना जाता। भूत की स्‍मृतियों को सहेजने वाले नये भवन के साथ भी इन नामों का भूत लगा रहा। साथ ही पढ़े-लिखों में भी यह एक तरफ महंत घासीदास के बजाय गुरु घासीदास कहा-लिखा जाता है और दूसरी तरफ महंत घासीदास मेमोरियल के एमजीएम को महात्मा गांधी मेमोरियल म्यूजियम अनुमान लगा लिया जाता है। बहरहाल, रायपुर का महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, ताम्रयुगीन उपकरण, विशिष्ट प्रकार के ठप्पांकित व अन्य प्राचीन सिक्कों, किरारी से मिले प्राचीनतम काष्ठ अभिलेख, ताम्रपत्र और शिलालेखों और सिरपुर से प्राप्त अन्य कांस्य प्रतिमाओं सहित मंजुश्री और विशाल संग्रह के लिए पूरी दुनिया के कला-प्रेमी और पुरातत्व-अध्येताओं में जाना जाता है।
मंजुश्री, सिरपुर, लगभग 8वीं सदी ईसवी
कहा जाता है, संग्रहालयीकरण, उपनिवेशवादी मानसिकता है और अंगरेज कहते रहे कि यहां इतिहास की बात करने पर लोग किस्से सुनाने लगते हैं, भारत में कोई व्यवस्थित इतिहास नहीं है। माना कि किस्सा, इतिहास नहीं होता, लेकिन इतिहास वस्तुओं का हो या स्वयं संग्रहालय का, हिन्दुस्तानी हो या अंगरेजी, कहते-सुनते क्यूं कहानी जैसा ही लगने लगता है? चलिए, कहानी ही सही, इस वर्ष संग्रहालय दिवस के लिए निर्धारित विषय दुहरा लें - 'संग्रहालय और स्मृति : चीजें कहें तुम्हारी कहानी'।

यह पोस्‍ट, नई दिल्‍ली के जनसत्‍ता अखबार में 10 जून 2011 को समांतर स्‍तंभ में 'कहानी ही सही' शीर्षक से प्रकाशित।

सिंहावलोकन में संबंधित अन्य पोस्ट के लिंक-

49 comments:

  1. बड़े रोचक तरीके से बारीक विवरण दिया है आपने भाई जी !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  2. संग्रहालय के इतिहास के बारे में जानकर अच्छा लगा.मुझे संग्रहालय सदा आकर्षित करता रहा है.एक अलग दुनिया लगती है संग्रहालय में जाकर.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    ReplyDelete
  3. संग्रहालय पर बहुत ज्ञान वर्धक जानकारी.... अभी बच्चो को लेकर नेशनल म्यूजियम दिल्ली लेके जा रहा हूँ... संग्रहालय दिवस के अवसर पर.... आप का हर आलेख गंभीर विषय को सहज और सरल बना देता है...

    ReplyDelete
  4. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक वृतांत.लगता है रायपुर आना ही पड़ेगा.

    ReplyDelete
  5. कोलकाता का नेशनल संग्रहालय देखा है काफी बड़ा है और लगभग हर विषय की चीजे वहा मौजूद है भूगोल, इतिहास , समाज , संगीत, विज्ञानं से जुडी हर विधा और न जाने क्या क्या उस संग्रहालय में मौजूद है यदि अच्छे से देखे तो पूरा एक दिन जाता है |

    ReplyDelete
  6. हर पंक्ति मेरे मन मस्तिष्‍क संग्रहालय में नवीन ज्ञान की वृद्धि

    ReplyDelete
  7. आदरणीय राहुल जी
    नमस्कार !
    बहुत बढ़िया
    संग्रहालय के के बारे में जानकर अच्छा लगा
    सुंदर लेखन शैली में रोचक जानकारी देती ज्ञानवर्धक पोस्ट

    ReplyDelete
  8. है तो मेरे मन में भी एक अजायबघर स्मृतियों का...मैंने उन्हें कविता रूप में जीवित ही डायरी के पन्नों में कैद रख छोड़ा है...
    जब भी कोई पुराना परिचित मिलता है .. 'स्मृतियों के संग्रह-आलय' में ... एक बात दोहरा देता हूँ : "कविता कहे तुम्हारी कहानी"

    ReplyDelete
  9. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक

    ReplyDelete
  10. कहानी तो चित्र ही व्यक्त करते है अब चाहे तुम्हारी हो या हमारी .

    ReplyDelete
  11. मुझे लगता है अजायबघर के बजाय संग्रहालय ज्यादा उपयुक्त नामकरण है -
    बहुत सामयिक और प्रासंगिक पोस्ट -जीवन की आपाधापी के इस दौर में !

    संग्रहालय हैं -
    सांस्कृतिक संपदा के धरोहर
    भविष्य के अतीत -संरक्षक
    शिक्षा और मनोरंजन का बस इक सुनहला नाम
    हमारी विरासत का आईना
    राष्ट्रीय एकता के पक्षधर
    ज्ञान की खिड़की
    मात्र मृत अजायबघर ही नहीं
    (एक विज्ञापन सामग्री से आंशिक रूप से संशोधित )

    ReplyDelete
  12. जानकारियों की चलती फिरती लाइब्रेरी और इसे संप्रेषित कर सकने की मशीन कहूं या फिर आपको यूं कहूं कि सूचनाओं की लहर ब्लॉग के समंदर पर बिल्कुल हल्के फुल्के अंदाज में लहराती सी है। हां कई बार कुछ तेज से पल्लड़ आता है और तली में रेत से बना रहे घरोंदे (समझ) को बहाकर ले जाता है। तब कठिन होता है, इस पल्लड़ को समझना। काजू किसमिस और रोटी के बीच में हजार काजू किसमिस श्रेष्ठ रहें, लेकिन रोटी आगे ही रहेगी। काजू किसमिस हर रोज नहीं खाए जा सकते, पेट रोटी से ही भरेगा। अति कठिन पोस्ट कई बार काजू की तरह होती है। अच्छी जानकारियों के लिए बधाइयां।

    ReplyDelete
  13. राहुल जी आपकी लेखनी अपनी बात को रोचक तरीके से कहने की शैली का उत्तम उदाहरण है ।

    ReplyDelete
  14. स्कूल टाईम में मित्रमंडली की तरफ़ से स्कूल बंक करके कहाँ जाना है, ये निर्णय करने के लिये हम प्राधिकृत अधिकारी थे। एक बार सबको पकाने के इरादे से दिल्ली के नैशनल म्यूज़ियम में ले गया था। शुरुआती आधा घंटा वहाँ मुश्किल से रुके और फ़िर मन ऐसा लगा कि शाम को मुश्किल से बाहर निकले।
    एक अलग ही दुनिया होती है संग्रहालयों की, और एक अलग ही अंदाज होता है आपकी पोस्ट्स का। ऐसे ही तो नहीं हम आपके...:)

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया! रायपुर संग्रहालय के बारे में पढ़ कर दन्न से मुझे बृजमोहन व्यास जी की "मेरा कच्चा चिठ्ठा" याद हो आयी। व्यास जी 1921 से 1943 तक इलाहाबाद नगर पालिका के एग्जेक्यूटिव अफसर थे और बड़ी मेहनत से इलाहाबाद संग्रहालय बनाया था!
    व्यास जी की यह पुस्तक पहले सरस्वती में लेखमाला के रूप में छपी थी।
    एक संग्रहणीय पुस्तक!

    ReplyDelete
  16. सर आपकी उस लेखनी को सलाम जो अजायबघर या संग्रहालय जैसे विषयों पर भी पाठक को पूरा लेख पढने पर मजबूर कर देती है . इतनी तन्मयता से तो मैंने कभी सविता भाभी डाट कॉम की कथाएं भी नहीं पढ़ी.

    ReplyDelete
  17. राहुल भाई,संग्रहालय दिवस पर आपको जागरूक पहरुए की भूमिका निभाने पर बधाई. काश मीडिया भी आपकी तरह चौकन्ना होता. छत्तीसगढ़ में संग्रहालयों की स्थिति पर रिपोर्टें तो देखने को मिलती.साथ में सरकार की नई पहलें भी. ऐसे मौकों पर आप प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया को झिंझोड़ दिया कीजिए .

    ReplyDelete
  18. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक वृतांत....

    ReplyDelete
  19. बहुत बढ़िया जानकारी .....ज्ञानवर्धक पोस्ट

    ReplyDelete
  20. सुन्दर प्रस्तुति रोचक और ज्ञानवर्धक,धन्यवाद

    ReplyDelete
  21. वाह राहुल जी, कितने शानदार और रोचक ढंग से इतनी सारी जानकारी दे दी आपने! रायपुर संग्रहालय के विषय में बहुत सारी जानकारी मिली इस पोस्ट से।

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सुन्दरता से विवरण दिया है आपने! बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!

    ReplyDelete
  23. हमारे न जाने कितने संग्रह विद्शों में हैं, वे आयें तो हमारे संग्रहालयों की शोभा और बढ़ेगी।

    ReplyDelete
  24. अच्‍छी जानकारी। वास्‍तव में संग्रहालय हमारे अतीत की झलकियां दिखाने वाले झरोखे हैं। हमें स्‍वयं और अपने बच्‍चों को भी अजायबघर जैसी जगहों को देखने की आदत और शौक पैदा करना चाहिए क्‍योंकि कहावत है कि 'We have to look back to think ahead.'

    ReplyDelete
  25. आपकी .. पुनः एक रोचक व ज्ञानवर्धक प्रस्तुति । आपके सभी लेख सामयिक होते हैं । अभिव्यक्ति का आपका अंदाज सीधा व सरल किंतु बेहद प्रभावशाली रहता है । बधाई ।
    - डा.जेएसबी नायडू ।

    ReplyDelete
  26. हमेशा की तरह रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति।
    संग्रहालयों को देखना और उनके बारे में पढ़ना तिलिस्म की दुनिया में खो जाने जैसा है।

    ReplyDelete
  27. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक चित्रमय प्रस्तुति..धन्यवाद!

    ReplyDelete
  28. संग्रहालय पर बहुत ज्ञान वर्धक जानकारी....सारे स्कूल से बच्चों को संग्रहालय ले जाना अनिवार्य होना चाहिए. एक दूसरी दुनिया ही होती है,वहाँ . बहुत कुछ जानने -सीखने को मिलता है

    ReplyDelete
  29. बहुसंख्यक लोगो को महंत और गुरु में साम्यता नज़र आती है.
    जबकि दोनों विभूतियाँ अलहदा हैं और वे आपकी पैनी नज़र से नहीं बच पाते.
    इस पोस्ट के माध्यम से बहुत कुछ जानने को मिला.
    साधुवाद

    ReplyDelete
  30. चित्र सहित इतनी खुबसूरत जानकारी देने का बहुत - बहुत शुक्रिया |
    ज्ञानवर्धक पोस्ट |

    ReplyDelete
  31. बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट |

    ReplyDelete
  32. रोचक शैली में जानकारी देने की कला राहुलसिंह से सीखनी चाहिए. मेरी जानकारी में काफी इजाफा हुआ. आनंद आ गया.

    ReplyDelete
  33. अच्‍छा करेव भईया अजायबघर के बारे म ये जानकारी देके, प्रो.अली भईया ल मैं ह अजायबघर वाले राहुल भईया कहिथंव त वो ह हांसथे, मोर मुह ले आपके कार्यालय के नाम अजायबघरेच निकलथे.

    ReplyDelete
  34. बहुत सी नई जानकारी मिली। आपकी पोस्ट पढने का सुखद अनुभव अलग ही होता है। इसमें जानकारियों का खजाना होता है और हर आलेख काफ़ी शोध कर के लिखा होता है।

    ReplyDelete
  35. अपन शहर के ही अजायबघर के बारे में अतेक जानकारी नहीं रहिस हे. शुक्रिया भैया

    ReplyDelete
  36. रायपुर के पुराने संग्रहालय में प्रवेश के आंकड़े जुटाने का जुगाड़ बड़ी रोचक लगी. बच्चों के लिए बने डिब्बे में कंकडों की संख्या निश्चित ही अधिक रहती रही होगी.!
    सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  37. अजायबघर के बारे में शोधपूर्ण जानकारी इतने छोटे आलेख में बहुत खूब लिखी है .रोचक विवरण के साथ फोटो निश्चत रूप में इम्प्रेस करते हैं .आभार

    ReplyDelete
  38. संग्रहालय पर खोजपरक अन्वेषी दृष्टि के साथ प्रस्तुत की गई सामिग्री के लिए आपका आभार .

    ReplyDelete
  39. आदरणीय राहुल जी
    संग्रहालय के बारे में जानकर अच्छा लगा
    एक उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट आपका आभार .

    ReplyDelete
  40. रोचक जानकारी। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  41. संग्रहालयों में जब भी जाता हूँ एक चीज का अभाव हमेशा खटकता है- एक अच्छे गाइड का.. या तो वे उपलब्ध नहीं होते या होते हैं तो रोज एक ही काम करने के कारण ज्यादा बताने में उनकी दिलचस्पी नहीं रहती.. सरकार और विश्वविद्यालयों को इस विषय में अध्ययन और शोध को बढ़ावा देना चाहिए... काफी नयी जानकारियाँ मिलीं इस पोस्ट से..

    ReplyDelete
  42. ईमेल पर प्राप्‍त डॉ. ब्रजकिशोर प्रसाद जी की टिप्‍पणी-
    मुझे तो लगता है की संग्रहालय का अवलोकन दर्शक को अपने मन से इतिहास समझने का अवसर देता है.रायपुर के संग्रहालय पर रोचक जानकारी , बधाई.

    ReplyDelete
  43. जानकारी देता हुआ लेख,

    ReplyDelete
  44. कंकड़ वाली बाते नयी और सुन्दर लगी। क्या तरीका था। वैसे इस तरह के तरीके हम भी इस्तेमाल करते रहे हैं।

    अचानक विचार शून्य की बात कुछ अप्रासंगिक सी लगी।

    लेकिन आपके लिखने के तरीके से तो मैं बहुत…

    ReplyDelete
  45. 18 मई और 10 जून का चक्कर समझ नहीं आया।

    ReplyDelete
  46. बहुत अच्छी जानकारी। इस संग्रहालय से मेरी बहुत पुरानी यादें जुड़ी हुई हैं, 60 से 64 की। बहुत बढ़िया। पता नहीं, सामने बगीचा अब भी है, या सड़क चौंडीकरण में चला गया?

    ReplyDelete