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Saturday, September 17, 2022

खैरागढ़ ताम्रपत्र

बात 1989-90 की है। हमलोग रायपुर विश्वविद्यालय में आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र जी के परिसर स्थित प्राध्यापक आवास तथा विश्वविद्यालय के शिक्षण विभाग गए थे। वहां हुई दो खास बात याद है पहली कि शिक्षण विभाग में चर्चा के दौरान पता चला कि इस वर्ष एम.फिल. में 36 विद्यार्थी हैं तो उनके शोध निबंध के लिए विषय तय करने में सब की एक राय बनी कि प्रत्येक को छत्तीसगढ़ के 36 में से एक-एक गढ़, विषय यह ध्यान रखते हुए दिया जाए कि विद्यार्थी उस अंचल का निवासी या उससे परिचित हो।

यहां संदर्भ दूसरी बात का है, वह यह कि मिश्र जी ने अपने निवास पर एक ताम्रपत्र दिखाया। बाकी लोग चर्चा करते रहे, मैंने उनकी अनुमति से वहीं इसका प्रारंभिक पाठ तैयार कर लिया। इस पाठ को सुधार कर अच्छी तरह संपादित कर प्रकाशित कराने का विचार था, मगर ऐसा करना रह गया। पिछले दिनों मेरे द्वारा तैयार किया गया पाठ मिला तो फिर खोजबीन में लगा।

इसका परिचयात्मक प्रारंभिक प्रकाशन शोध पत्रिका ‘प्राच्य प्रतिभा‘ Journal of Prachya Niketan, Bhopal Vol.-V, No.-2, July 1977 में हुआ था। मालूम हुआ कि यह संक्षिप्त परिचय सहित अब इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के संग्रहालय में प्रदर्शित है। इनमें आई जानकारी अंशतः उपयोगी मगर, दोनों अशुद्धियों के कारण भ्रामक है। साथ ही इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के शोध जर्नल ‘कला-वैभव‘, अंक 18-19 वर्ष 2009-10/2010-11 में पृष्ठ-90 पर चित्र सहित संक्षिप्त विवरण डॉ. मंगलानंद झा ने प्रकाशित कराया, जो उपरोक्त चित्र में आई जानकारी के ही अनुरूप है, मगर उसमें ताम्रपत्र की लम्बाई साढ़े 46 सें.मी. व चौड़ाई 31 सें.मी, कुल वजन 1 किलो 974 ग्राम उल्लिखित है। ‘प्राच्य प्रतिभा‘ में लेखक के नाम की त्रुटि के अलावा ताम्रपत्र का आकार भी गलत छपा है। ताम्रपत्र का आकार खैरागढ़ विश्वविद्यालय की जानकारी में भी अशुद्ध है, मगर इस संबंध में श्री चौरे ने स्पष्ट किया कि ताम्रपत्र का वास्तविक आकार 48X30 सेंटीमीटर है। उक्त ताम्रपत्र का चित्र श्री मिश्र के निवास पर उपलब्ध है। उन्होंने कृपापूर्वक उस चित्र से प्रति तैयार करने की अनुमति दी, जो यहां नीचे है। आप महानुभावों के प्रति आभार।

ताम्रपत्र का पूरा पाठ साथ ही इसका संपादन भी संभवतः अभी तक नहीं हुआ है। इसमें विलंब न करते हुए, रुचि रखने वाले अध्येता, जो इसे प्रकाशित भी करा सकते हैं, ऊपर फोटो, जिससे पाठ देखा जा सकता है और नीचे 1989-90 में मेरे द्वारा तैयार पाठ की हस्तलिखित प्रति का चित्र तथा पंक्तिवार पाठ-टेक्स्ट, जिसे शुद्ध करते हुए, संपादित कर प्रकाशित किया जाना है, प्रस्तुत है।

यतो धर्मश्ततोजयाः
श्री
श्री श्री चन्द्रबंसी (याने) सोवनंसी कात्कीयवंस गंगवंसी राजओं का लेख

(पंक्ति 01) सोमबंशी राजाओं के बंस से जरासंघ के पुत्र शहदेव के सौमापी नामक पुत्र होये फेर इस तरह वसावली चालु हुई श्र्सुत
(पंक्ति 02) वान अयुता निर तीत्र सुफत्र ब्रहस्त करमा सु स्रुमद्रासेन मुमत रावल सुनीत सत्यजीत विस्वजीत रीपुजयं ये सव चंद्र
(पंक्ति 03) वंसी कलीजुग के १००० वर्स तक राज करे हैं वाद रीपुंजय नामक राजा से इनकी वंसावली चालु है इस कुल का मुख असथा
(पंक्ति 04) न हस्तनापुर का था जो मुसलमानों के चड़ाई के कार्ण बीर विक्रम देव राजा हस्ततान्पुर छोड़ कर मद्रास की ओर करना
(पंक्ति 05) टक में विक्रमी सम्वत् ८८२ में बुनीयाद डालकर राज अस्थापीत कीये जीन्के पुरत्र प्रताप रुद्रदेव जगदीश पुरी आये
(पंक्ति 06) और चन्दसेखर सुरजवसी से वीजै कर राज प्राप्त कीये इन्के तीन पुत्र प्रथम पुत्र बोधकेसरी देव ७१ वर्स पुरी
(पंक्ति 07) का राज भोग्य किये कीये दुतीये पुत्र कातकी प्रताप राद्रदेव मंन्द्रास में राज कीये इन्के वंसज भीमसेन
(पंक्ति 08) देव मुसलमानी परवर्तन में विक्रमी सम्वत ११८८ सुभ पक्षे भाद्रोपदेमा शापच्चोरिध झूंसी
(पंक्ति 09) के तर्फ जात्रा कर राज्य कीये त्रितीये पुत्र कात्की प्रताप रुद्रदेव नामक राजा का भाई आन्यम
(पंक्ति 10) राज उस अस्थान को छोड़ औरंगल यानी वारगल में आ बसे थे जब मुसलमानों ने इस अस्थान पर चड़ा
(पंक्ति 11) ई की तब अन्यमराजा बस्तर को चला आया और वहाँ पर राज अस्थापीत कीया जिसके वंसज
(पंक्ति 12) हम्मीरदेव उर्फ येमी राजदेव महाराजा हुए तीन्के पुत्र भैराजदेव तीन्के पुत्र पुरसोतमदेव
(पंक्ति 13) जगदीस जाकर मन्दीर साफ कराकर अपने पुरी राजवंश में शामिल हो मादुला पांजी लिखा
(पंक्ति 14) य जिन्के पुत्र जैसिंहदेव के पुत्र नरसिंहदेव के पुत्र प्रतापराजदेव जीन्के पुत्र जगदीस देव
(पंक्ति 15) जिन्के पुत्र विरनरायदेव इन्के पुत्र विरसिंहदेव इन्की रानी चन्दलिन बदनकुमारी महारानी
(पंक्ति 16) बिशए दीगपालदेव पुत्र प्राप्त हुये ते दिगपालदेव बिबाह कीन बरदी के चन्देल राव रतन राजा
(पंक्ति 17)वो कन्या अजबकुमारी महारानी विशये दो पुत्र उतपन्न हुये प्रथम पुत्र रक्षपालदेव जो ब
(पंक्ति 18) स्तर का राज भोग्य किये ऐ राजा चालक बृहमन का आसेप लेते हुये बंस वल्दकर रक्षा किये
(पंक्ति 19) दुतिय पुत्र अनंगपाल देव जो पुरी पुरसोत्तमदेव के पुष्प पुत्र हो कर सिहावा में शेस साल छिपकर राज किये इन्के पुत्र वीर
(पंक्ति 20) कान्हरदेव उर्फ करनेस्वरदेव जिन्के वंस का यह लेष लिषा जाता है बौध केसरीदेव पुरी नरेश के त्रितीये पुस्त
(पंक्ति 21) में पुरसोतम देव हुये और समुन्द्र की रेनुका से श्री जगनाथ जी के मंदिर को निकालकर सुना सजाकर श्रीकृष्णाजि के
(पंक्ति 22) उस पिंडज को लाकर चन्दन के घरे रामेरष कर अस्थापना की जो पान्डवों के जलाने से बाकी रह गया था वो आोडीया राज थापेतिन
(पंक्ति 23) के पट पुस्त में कर्ज केसरी देव जिन्के पुत्र (दुतिये) पुरसोतमदेव जो अपने जेष्ठ पुत्र सिध्द केसरीदेव को पुरी का राज सर्मपन कर
(पंक्ति 24) कुस्ट रोग्ग ग्रसित सिहावा आये कुन्ड में अशनान कर कुष्ठ नास किये वो सिहावा में रहै दिगपालदेव से बस्तर राजा से अनंगपाल
(पंक्ति 25) देव नामक पुत्र मांग पुस्य पुत्र माने और सिहावा राज प्राप्त कर प्राणांयाम बैकुठ गये अनंगपाल थोड़े दिन छिपकर राज्य
(पंक्ति 26) किये जिन्हें पुत्र वीर कान्हरदेव विवाह कनि भोपालादेवी से विष्यात पुरी से मदत लाये कर श्री साके १२४२ रुद्र नाम
(पंक्ति 27) सम्वतसरे सुभ पक्षे पंचम्यांतिथौ सिहावा नाम नगरे श्रृड्गी रिषि आश्रमे वर्तमान काकैर नाम नगरे सोमबंसी व्याघ्र प
(पंक्ति 28) द अत्रि गोत्र प्रथम विषयात हो सिहावा राज किये तिनके पुत्र कपिल नरेन्द्र देव के पुत्र तानुदेव जो सिहावा मे राज करते
(पंक्ति 29) हुये कांकेर नौरंगपुर की जमिदारी को भैना (याने) कड़ार से फते कर दोनों तालूका में राज कीये
(पंक्ति 30) ते सिहावा-कांकैर का राज करते हुए नागवंसि छत्रीयों से धमतरी दाहेज में पाये धमतरी अमल कर तीनो तालुका में राज कीये
(पंक्ति 31) जिन्के पुत्र अजै नरेनद्रदेव तिनों तालुका में राज किये इन्के पुत्र हमिरदेव तीनों तालुका में राज कीये तिन्के पुत्र रुद्रदेव धर्मशील
(पंक्ति 32) सिव भक्त राजा भये रुद्रदेव राजा के पधारे रुद्रेश्वर महादेव महानदी के तीर में धमतरी के नजीक इन्के पुत्रं हिमं
(पंक्ति 33) चल साह देव धमतरी में गद्दी कर तीनो तालुका में राज किये अर्थ रुद्रदेवराजा के प्रसंसा में पत्र लिषाये
(पंक्ति 34) मैथिल रामचरणदास लिषे के सम्बत १७०७ मासोतमे मासे फालगुन मास कृष्ण पछे सुभ तिथौउ
(पंक्ति 35) चतुरदसी सुभनाम नछत्रे श्री रुद्रेस्वर महादेव के पूजान उत्साह सहित पूर्ण भये अस राजा रुद्रदेव सम शिव भक्त आज राजा कल जुग में थोर
(पंक्ति 36) होई है - इति सुभमस्ताः
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