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Tuesday, January 11, 2022

हाशिया-आयु

हाशिया यानि मार्जिन शब्द के सामान्य प्रचलित और शब्दशः अर्थ किनारा, कोर, छोर के साथ अन्य प्रयोग भी हैं। मार्जिन, आय का भी होता है तो किनारे कर दिया जाना या मूल संदर्भों से विलगाव हाशियाकरण है। दूसरी ओर महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी हाशिये पर अंकित होती हैं इसलिए वह आम लेखे से अलग खास है। जिल्दसाजी में गूटर मार्जिन का ध्यान रखा जाता है। लेकिन हाशिये का समानार्थी एक शब्द, जो अब प्रचलन में नहीं रहा, ‘आयु‘ है।

हस्तलिखित ग्रंथों, पोथियों के पृष्ठ, किनारों से खराब होते थे, इसलिए लेखन के मुख्य भाग के चारों ओर, खासकर बाईं ओर, जिधर ग्रंथित करने के लिए सूत्र पिरोया जाता था, जितना चौड़ा हाशिया छोड़ा जाता था, उसकी उतनी अधिक ‘आयु‘ का भरोसा होता था, लेकिन यह आयु इतनी भी नहीं होती थी कि लिखे मुख्य भाग पर हावी हो।

कभी एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मैंने अपने विचार रखे थे कि कला-संस्कृति-पुरातत्व को हाशिये में रहना शोभा देता है, वह बुनियादी जरूरतों के साथ अनिवार्य तो है, लेकिन मुख्य धारा में रहा तो उनके साथ बहने लगेगा, रोजी-रोटी में रह जाएगा या समाज राग-रंग में डूबने लगेगा। कईयों को शायद मेरे ‘हाशिये पर रहने‘ कहने को ‘हाशिये पर डालना‘ मान कर सख्त ऐतराज हुआ।

हाशिये को उसके समानार्थी आयु शब्द के साथ देखें तो लगता है कि कला-संस्कृति के साथ पुरातत्व, समाज में घर के उस अधिक ‘आयु‘ वाले बुजुर्ग की तरह हैं, जो सामान्यतः दरवाजे पर बैठा किसी अनिष्ट-अनपेक्षित के प्रवेश को नियंत्रित करता है, जो मुख्य धारा के लिए सुरक्षा-कुशन की तरह है, जिनका सम्मान तो हर कोई करता मगर वह सामान्यतः उपेक्षित सा छूटा रहता है। वैसे साखी-गवाही हाशिये पर ही दर्ज की जाती है।

समाज, दुविधा में रहता है इसलिए वह यानि कला-संस्कृति-पुरातत्व, कभी महिमामंडित प्रतिष्ठित किया जाता है, तब लगता है समाज के पन्ने पर मुख्य धारा से अलग हटकर वह पूरे लेख पर महत्वपूर्ण टीप है, जो लिखे का भविष्य ‘आयु‘ तय करेगा और फिर हाशिये में डाल दिया गया, तब खांसते-खंखारते उपस्थिति दर्ज कराते, अपनी आयु के साथ समाज के हालात और उसकी आयु के लिए नब्ज होता है।

सन 2011 की फुकुशिमा पावर स्टेशन, जापान का नाभिकीय संकट हुआ था, जिसमें शेष आबादी की सुरक्षा के लिए उम्रदराज 200 से अधिक पेंशनरों का समूह, जानलेवा आशंका की स्थितियों का सामना करने के लिए स्वयं स्वेच्छा से आगे आया था, यह मानते कि हम तो उम्र के कगार पर हैं, अन्य सब जिनके लिए सारी उम्र है, उनकी सुरक्षा के लिए हम आगे हैं।

उर्दू-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार हाशिया मूल रूप से एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है - चादर या साड़ी आदि के किनारे की गोट या बेल बूटे, किनारा, किसी पुस्तक के नीचे दी हुई टीका-टिप्पणी। कहीं इसका अर्थ उपान्त, किनारी, छोर, गोट, पल्ला मिलता है। इस संदर्भ में देंखे तो कला-संस्कृति-पुरातत्व का हाशिये पर होने का अर्थ समाज की शोभा में श्रीवृद्धि करने से है और साथ ही इसका आशय मर्यादा में बांधने का भी प्रतीत होता है।

पूर्णिमा वर्मन की स्त्री-विमर्श पर कविता की पंक्तियां हैं- ‘खास सब कुछ होता है - हाशिये पर/... ... ... हाशिये से मिलता है किताब को संवाद/ हाशिये के बिना अर्थहीन होती है किताब।‘ जॉन रस्किन का ‘अन्टू दिस लास्ट‘, गांधी का ‘अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति‘, नयी धारा के इतिहासकारों का ‘सब-आल्टर्न‘ और जन-कवियों की विमर्श का केंद्रीय तत्व ‘हाशिये पर खड़ा आदमी‘ है। मंजुल भारद्वाज की ‘हाशिया हाशिए पर न हो‘ शीर्षक कविता की अंतिम पंक्तियां हैं- ‘व्यवस्थागत क्रांति के साथ/ आत्म क्रांति करनी होगी/ चिंतन, विचार, स्वराज का/ आत्मोदीप जलाना होगा/ ताकि हाशिया हाशिए पर न रहे।‘ और बिलासपुर-अकलतरा वाले हीरालाल वर्मा जी सुनाया करते थे- 'एक पत्र द्वार पर छोड़ गया डाकिया, एक शब्द प्यार है, शेष पत्र हाशिया।' विनोद कुमार शुक्ल जी भी एक शब्द वाली कविता लिखने की चाह बताते हैं, वह शायद ऐसा ही कुछ होगा, ढाई आखर का एक शब्द।

कामना यही कि मुख्यधारा का प्रवाह तो बना रहेगा, उसका सौंदर्य और कवच- ‘हाशिया-आयु‘ सलामत रहे।

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