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Monday, January 10, 2022

छेरछेरा

आय का स्व-निर्धारण, स्रोत पर अपेक्षारहित, स्वैच्छिक कटौती और तदनुरूप अंशदान को जाने-अनजाने हितग्राहियों तक सीधे पहुंचाने (Self assessment, TDS, DBT) के क्रम का उत्स है, महापर्व ‘छेरछेरा‘। (कृषि-आय इसीलिए कर-मुक्त है?) छत्तीसगढ़ में 17 जनवरी 2022 को पूस पूर्णिमा पर पहली बार ‘छेरछेरा‘ सार्वजनिक अवकाश होगा। 

दीवाली पर लक्ष्मीजी का आह्वान हुआ, गौरा-गौरी विवाह, सुआ और देवउठनी-मातर। अगहन में लक्ष्मी-पूजा के बाद किसानी उदारता के इस पर्व से खरीफ क्षेत्रों में मेला-मड़ई का सिलसिला आरंभ हो जाएगा। तब तक 55-60 दिन वाली फसल, परेवा, सुल्टू, बोहिता की नवाखाई हो चुकी होती है। रामनामी समुदाय के लोग बड़े भजन मेला मनाने के लिए धान-पान इकट्ठा कर चुके होते है और मेलार्थी व्यापारी और जन-समुदाय अपने-अपने तरह से तैयार हो चुके होते हैं। इसी क्रम में हिस्सा-बढ़उनी, सीला, छेवर, फाता-झालर का दौर भी हो चुका होता है।

फसल लुआई-कटाई में पूरी फसल खेत मालिक किसान, स्वयं नहीं काट लेता, बल्कि प्रत्येक खेत के बीच-बीच में या किनारे का कुछ भाग ‘हिस्सा‘ या ‘बढ़ोना-बढ़उनी‘ भी छोड़ता है, जिस पर जोतते-बोते-फसल तैयार होते-लूते तक, जिनका परोक्ष भी सहयोग रहा हो, किंतु उसका अंश देना रह गया हो, अधिकार होता है। फिर चिरई-चुरगुन, कीरा-मकोरा, गाय-गोरू का, जिन्हें अब तक रोकता-छेंकता रहा है, अब उनका भी अंश है। वैसे भी किसान खुद पूरी फसल काट ले और खेत उन्ना न छूटे, भरभंगा न हो जाय, नहीं चाहता, जैसे व्यापारी दुकान बंद नहीं करता, बढ़ाता है या लेन-देन के हिसाब में एक कलम छोड़ रखने को कहता है। कोठी-कुरो में भी पूरा खाली नहीं करते, कुछ न कुछ छोड़ रखा जाता है। फाता-झालर की सजावट हो जाती है।

फिर बारी आती है सीला बीनने वालों की। कहावत है- ‘बीने गए सीला, हपट परे बीरा‘। सीला बीनने वाले खेतों में लुआई पूरा होने के लिए बेताब रहते हैं और खेतों में उतर जाते हैं, जबकि काम बाकी रहता है तब किसान ताकीद करता है कि अभी तो करपा है, धीरज रखो, ‘डोहरा‘ जाने दो। बोझा बांधकर सिरपर लाद कर या गाड़ा में भर कर फसल खेत से लाया जाता, मगर ‘लुआई-सकेलाई‘ में धान की बालियां और दाने खेत में छूटे-बिखरे रह जाते हैं, यही गांव के बाल-गोपाल के हक का ‘सीला‘, संस्कृत का ‘शिलोंछ‘ है। लाई-मुर्रा वाली केंवटिन, मरार-पटेल से ले कर अढ़तिया तक सीला ले कर आने वालों का राह देखते रहते हैं।

मिसाई पूरी करते हुए ‘छेवर‘ की बारी आती है। मिसाई के लिए खंभा गाड़ने के साथ गुड़ भेली, नरियर, फूल-पान, आगी-हूम दे कर पैर डालते, आवाहन किया जाना भी ‘बढ़ोना‘ है। इस काम को समेटते हुए, एक-दो काठा और फसल अच्छी होने पर अधिक भी धान छोड़ दिया जाता है, अलिखित व्यवस्था होती है, जिसके अनुरूप खेती के काम से जुड़े रहे लोगों को आखिरी मिसाई के साथ बतौर मेहनताना, नाप-तौल का हिसाब कर नहीं, बल्कि उदार अनुमान से कुरो-पसर-टुकनी-सूपा भर-भर दिया जाता है। पौनी-पसारी वाले अपना हिस्सा ले जाते हैं, इस बात का ध्यान सभी रखते हैं कि हकदार और जरूरतमंद को चाहे पहुंचने में देर हो उसका हिस्सा छूटा रहे। इस मौके पर पहुंचे लइका-सियान को भी खाली नहीं जाने दिया जाता।

अब घर-कोठी धन-धन्य से संपन्न है। लक्ष्मी का प्रवेश हुआ है, इसलिए विष्णु का भी वास है- मासानां मार्गशीर्षोहं, विष्णु अवतार कृष्ण गीता में बता रहे हैं, मासों में उत्तम मैं मार्गशीर्ष-अगहन मास हूं। और तैत्तिरीयोपनिषद् दान की महिमा बताता है- श्रद्धया देयम्। अश्रद्धयादेयम् श्रिया देयम्। अर्थात दान श्रद्धापूर्वक करना चाहिये, बिना श्रद्धा के करना उचित नहीं ... ... ... दान के बिना मानव की उन्नति अवरुद्ध हो जाती है।

किसान अपनी भौतिक हैसियत से बजाय ‘छेरछेरा‘ पर धान बांटने के लिए, दान को अंशदान मानते हुए, कोठी के साथ अपने दिल के द्वार भी खोल देता है। साल भर से लंबित कई गांवजल्ला-सार्वजनिक काम, रामधुनी-प्रभाती का इंतजाम भी छेरछेरा के माध्यम से हो जाता है। मजेदार कि जिस घर से छेरछेरा दिया जाता होता है, उस घर के बच्चे भी अन्य घरों में छेरछेरा ‘झोंकने‘ जाते हैं। न लेने में कोई संकोच, न देने का कोई गर्व, समरस लेन-देन की परंपरा का अबाध और सहज निर्वाह। ‘छेरछेरा‘ का एक भूला हुआ सा पक्ष यह भी कि बड़े किसान छेरछेरा देने के बाद पता करते थे कि किसकी छांधी से प्रतिदिन सुबह-शाम धुंआ नहीं निकलता, और ऐसा कोई छूटा रह गया हो तो उसे ‘घर पहुंच सेवा‘ की तरह छेरछेरा पहुंचवा दिया जाता था।

खोर-गली, दरवाजे पर रौनक है। कुई डंडा वाले युवाओं की टोली तैयार है। गुदरिया बाबा, जै गंगान, भरथरी, चितेरा, सांडा तेल वाले बइद, लोहगड़िया, बहुरूपिया, तिरिथ के पंडा महराज, सब एक-एक कर, कभी एक साथ, तब मलकिन झल्लाती है- खरिखा बरोबर, पहाड़ कस बेंदरा उतरे हें, प्रकट हो रहे हैं। किसान को अपने उत्पादक होने का गर्व और संतोष है वह यह सब ऐसा मानते हुए करता है कि जो भी ‘पनियर-पातर‘ उससे हो पा रहा है, वह निभा रहा है।

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